नाम था गौरी शंकर, लेकिन उसे लोग ऑटो शंकर के नाम से बुलाते थे. शायद ये ऑटो चलाता था इसलिए.
इसके ऊपर 9 से ज्यादा हत्याओं का आरोप था. पहले ये लड़कियों का अपहरण करता, उनके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाता और फिर उन्हें अपने साथियों को बेच देता.
ये सिलसिला तब तक जारी रहता जब तक उनकी हवस या तो खत्म नहीं हो जाती या लड़की मर नहीं जाती. इसके बाद लड़की की हत्या कर उसे जलाकर या तो दरिया में फेंक दिया जाता या फिर घर में दफन कर दिया जाता.
इन्हीं हत्याओं ने इसे 1980 के दशक का चेन्नई का कुख्यात सीरियल किलर बना दिया था.
हत्याओं का सिलसिला कैसे शुरू हुआ और इसकी फांसी के बारे में आइए जानते हैं –
लड़कियों को अगवा किया गया
90 के दशक में चेन्नई लड़कियों के लिए एक खतरनाक शहर बन चुका था. आए दिन लड़कियां गायब होने लगी थीं.
सन 1987 से 1988 तक चेन्नई के तिरुवनमियुर सेक्शन से 9 लड़कियों को अगवा किया गया था.
शुरुआत जांच में पुलिस को लगा कि दहेज देने में असमर्थ परिवारों ने वेश्यावृत्ति के लिए इन्हें बेच दिया है. लेकिन जल्द ही पुलिस जांच में ये साबित हो गया कि वास्तव में ऐसा हुआ ही नहीं है.
बावजूद इसके पुलिस इनका पता लगाने में नाकाम रही. वो न तो लड़कियों को खोज पाई और न ही उनके अपहरणकर्ताओं को.
दिसंबर 1988 को सड़क से गुज़र रही एक सुबालक्ष्मी नाम की छात्रा को शराब की दुकान के पास से अगवा कर लिया गया. लेकिन वो कैसे भी बच निकली और जाकर उसने पुलिस से शिकायत कर दी.
मामले की तहकीकात हुई तो, इसके पीछे एक नाम सामने आया, वो थो ऑटो शंकर का.
इसके बाद ऑटो शंकर मद्रास में आतंक का पर्याय बन गया. लोग उसके नाम से डरने लगे थे. वह फिल्मी अंदाज में ही अपनी वारदातों को अंजाम देता था.
उसने लोगों को मारने के लिए मुगलई तरीकों का भी खूब इस्तेमाल किया. उसने कई लोगों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया, तो कई को जिंदा आग लगा दी गई.
...और सिहर उठा चेन्नई
चेन्नई के इतिहास में ऐसा मामला पहले कभी नहीं आया. जब 1987 और 1988 के बीच ऑटो शंकर और उनके गैंग द्वारा भयानक तरीके से हत्याएं, बलात्कार और खतरनाक साजिशें रची गईं.
इससे पूरा चेन्नई सिहर उठा था.
1955 में वेल्लोर के कंगयानल्लूर गांव में पैदा हुआ गौरी शंकर, पैसा कमाने के उद्देश्य से चेन्नई के पेरियार नगर में आकर बस गया.
उसने पहले एक चित्रकार के रूप में काम शुरू किया, उसके बाद ऑटो रिक्शा चलाना शुरू कर दिया. वह तिरुवनमियुर और मामलापुरम के बीच अवैध रूप से व्यापार किया करता था.
यहां उसे फिल्मों का भी शौक लगा. धीरे-धीरे उसे शबाब और शराब का चस्का लग गया. इसके बाद वह देह व्यापार के धंधे से जुड़ गया और ऑटो से ही लड़कियों और शराब की तस्करी शुरू कर दी.
कोई रोक-टोक नहीं थी, लिहाजा उसका धंधा बढ़ता चला गया. इसी स्वतंत्रता ने उसे ये ऐहसास करा दिया था कि चेन्नई में वो कुछ भी कर सकता है.
वो चेन्नई को अपना घर ही मान बैठा और उसने खतरनाक वारदातों को अंजाम देना शुरू कर दिया.
उसे डांस पसंद था, अक्सर वो अपनी इस हसरत को पूरा करने के लिए फिल्म देखने जाया करता था. और शायद यहीं से उसे लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करने और बलात्कार करके हत्या करने का ख्याल आया.
ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है, क्योंकि ऑटो शंकर ने अपने खिलाफ चल रहे केस के दौरान अदालत में कहा भी था कि सभी घटनाओं के लिए सिनेमा जिम्मेदार है. सिनेमा के असर ने ही उसे ऐसा करने को मजबूर किया है.
निर्दयी और वहशी थे हत्या के तरीके
अपने छोटे भाई मोहन और उसके साले एल्डिन और शिवाजी, जयवेलू, राजारामन, रवि, पलानी और परमासिवम की मदद से शंकर जल्द ही तिरुवनमियुर का सबसे घृणित अपराधी बन गया.
उन्होंने पेरियार नगर और एलबी रोड पर पुलिस की सहमति से वेश्यावृत्ति का काम शुरू कर दिया.
इस क्षेत्र में शंकर का प्रभाव 1980 के दशक के मध्य तक चला.
सन 1987 में, पुलिस के मुताबिक एक युवा महिला ललिता शंकर के खिलाफ पहली ज्ञात पीड़िता थी. वह शंकर के वेश्यालय से छुटकारा चाहती थी. सो अपने साथी सुदालाइमुथु के साथ भाग निकली. लेकिन उनका पीछा किया गया और पकड़कर पेरियार नगर वापस लाया गया.
यहां इन दोनों की हत्या कर लाश को एक खाली जगह पर जला दिया गया और अवशेष एक कंबल में बांधकर बंगाल की खाड़ी में फेंक दिए गए.
इसी तरह से निर्दयी और वहशी तरीके ये गिरोह वारदातों को अंजाम देता रहा.
इसके कुछ दिन बाद शंकर का सामना मोहन, संपथ और गोविंदराज से हुआ. जिन्होंने कुछ महिलाओं को एल.बी. रोड लॉज से ले जाने का प्रयास किया.
इस कारण उसका उन तीनों से झगड़ा भी हुआ था.
बहरहाल, तीनों को इतनी बुरी तरह से पीटा गया कि उनकी मौत हो गई. और उन्हें पेरियार नगर में एक छोटी सी जगह पर दफना दिया गया.
इन पांच हत्याओं के अलावा शंकर ने एक रवि नाम के लड़के की भी हत्या कर दी.
पुलिस ने बिछाया जाल और पकड़ा गया हत्यारा
दिसंबर, 1987 में एमजी रामचंद्रन का निधन हो गया और जनवरी 1988 और 1989 के बीच वहां राजनीतिक संकट का दौर रहा. ऐसी स्थिति में वहां राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया.
पुलिस शंकर को पकड़ नहीं पा रही थी और उधर पीड़ितों के घर वाले गवर्नर पी.सी. अलेक्जेंडर के पास गए. तब उन्होंने पुलिस महानिरीक्षक जफर अली को मामले की जांच के लिए पुलिसकर्मियों की एक नई टीम बनाने के आदेश दिए.
इस टीम में पड़ोसी तिरुवन्नमलाई जिले का एक पुलिस कॉन्स्टेबल भी था, जो शंकर को बहुत अच्छी तरह से जानता था.
इसके इनपुट पुलिस के काम आए और शंकर को पकड़ लिया गया. पुलिस ने उससे सभी कत्लों के बारे में पूछताछ की. शंकर की गिरफ्तारी के बाद, पुलिसकर्मियों ने उसके घर की तलाशी ली.
1988 में उसके घर से 3 लोगों के कंकाल मिले, जिससे आसपास के इलाके में सनसनी फैल गई.
उसके साथ मिले हुए कुछ पुलिसवालों के नाम भी इस जांच में सामने आए और उन्हें तत्काल निलंबित कर दिया गया.
शंकर को बाद में चेन्नई सेंट्रल जेल स्थानांतरित कर दिया गया, जहां से वो अगस्त 1990 में भाग निकला. बाद में उसे ओडिशा के राउरकेला से गिरफ्तार कर लिया गया.
इस मामले में उसकी मदद करने वाले तीन जेल वार्डन सहित पांच लोगों को दोषी ठहराया गया. शंकर के भाई मोहन, सेल्वा और जेल वार्डन, कन्नन, बालन और रहीम खान को आपराधिक षड्यंत्र रचने के लिए छह महीने सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई.
फांसी के साथ खत्म हुआ आतंक
पुलिस की जांच पड़ताल के बाद ऑटो शंकर के ऊपर ललिता, सुदालाई, सम्पथ, मोहन, गोविंदराज और रवि की हत्याओं का मुकदमा चला. इन लोगों को मारने के बाद या तो जला दिया गया या घर के अंदर दफना दिया गया था.
कोर्ट में मामला सामने आने के बाद सन 1988 से 1989 तक 2 साल के बीच हुए 6 कत्लों के लिए ऑटो शंकर और उसके खतरनाक गैंग को दोषी ठहराया गया. इन दोषियों में उसका छोटा भाई ऑटो मोहन भी शामिल था. जिसे हर कत्ल के लिए 3 बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.
ऑटो शंकर को साथी एल्डिन और शिवाजी के साथ 31 मई 1991 को इन तीनों को मौत की सजा सुना दी गई.
वहीं, मामले में 5 अन्य आरोपी जयवेलू, राजारामन, रवि, पलानी और परमासिवम को आजीवन कारावास के तहत जेल भेज दिया गया.
इसी क्रम में 27 अप्रैल, 1995 को सलेम सेंट्रल जेल में ऑटो शंकर को फांसी पर लटका दिया गया. और इसी के साथ चेन्नई में इस सीरियल किलर के आतंक का सफाया हो गया.
Web Title: Indian Serial Killer Gowri Auto Shankar, Hindi Article