सन 1999 में कारगिल की पहाड़ी पर भारत और पाकिस्तान के बीच भयंकर युद्ध हुआ, भारतीय सैनिकों ने मैदान में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए.
युद्ध में भारतीय सैनिकों ने तो अपना जज्बा दिखाया ही, साथ ही हथियारों ने भी हमारा खूब साथ दिया.
एक तरफ जहां बोफार्स तोप दुश्मनों के ठिकानों को निशाना बना रही थी, तो दूसरी तरफ इंसास राइफल पाकिस्तान को उसकी औकात दिखाने के लिए ललकार रही थी.
और आखिरकार भारत ने इस मोर्चे से दुश्मनों को खदेड़ दिया और युद्ध में पाकिस्तान की करारी हार हुई.
जीत की हीरो रही इंसास राइफल.
आज जब सैनिकों के पास एक से बढ़कर एक हथियार हैं, ऐसे में कई प्रकार की खूबियों से लैस स्वदेशी इंसास राइफ़ल भी किसी से कम नहीं है. इसलिए एक नजर भारत की इस महत्वपूर्ण राइफल पर डालना आवश्यक हो जाता है.
तो आइए इंसास राइफ़ल के इतिहास और उसकी खूबियों के बारे में जानते हैं –
1980 के दशक में हुआ निर्माण
आज़ादी के बाद पड़ोसी मुल्क ने कई बार भारत पर आक्रमण किया, उसके आतंकवादियों की निगाहें भारत की शांति और प्रगति पर हमेशा टेढ़ी रहीं.
हालांकि हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी है, लेकिन भारत-चीन युद्ध के दौरान चीनी सैनिकों ने भारत के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया.
ऐसे में भारत ने अपने हथियारों को उम्दा और बेहतर बनाने का काम शुरू कर दिया.
इस युद्ध के बाद, भारतीय सेना को एक नई राइफ़ल ‘इशापोर सेल्फ लोडिंग राइफ़ल 7.62 मिमी’ मिली. यह एक सिंगल शॉट राइफल थी.
1987 में इसी हथियार से भारतीय सेना ने गृह युद्ध से पीड़ित श्रीलंका में एके 47 लेकर खड़े लिट्टे लड़ाकों का सामना किया. बावजूद इसके ये इतनी ज्यादा कारगर साबित नहीं हुई और ‘रक्षा अनुसंधान विकास संगठन’ (डीआरडीओ) ने ‘इशापोर सेल्फ लोडिंग राइफल’ को संशोधित करके पूरी तरह से स्वचालित राइफल बनाने का प्रयास शुरू कर दिया, हालांकि इसमें सफलता नहीं मिली.
उसी समय पुणे में स्थित ‘आर्मामेंट डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टिट्यूशन’ ने एक राइफल बनाने का काम शुरू किया, जो छोटे कैलिबर के साथ, हल्की और अधिक प्रभावी थी. यह 5.56 एमएम कैलिबर हथियार कोई और नहीं बल्कि इंसास राइफल ही थी.
INSAS यानी इंडियन न्यू स्माल आर्म्स सिस्टम.
भारतीय सैनिकों को एक ऐसा हथियार मिलने वाला था, जिसकी उन्हें खासा जरूरत थी. बाद में इंसास राइफ़ल को पश्चिम बंगाल में ‘इचापुर ऑर्डनेंस फैक्ट्री’ को उत्पादन के लिए सौप दिया गया.
INSAS Assault Rifle. (Pic: khabarnwi)
सेना का घातक हथियार बनी इंसास
भारतीय सेना ने तो इससे पहले भी कई राइफलों का इस्तेमाल किया था, लेकिन तमाम खूबियों से लैस इंसास जैसी राइफ़ल इससे पहले कभी इस्तेमाल नहीं की गई थी.
आखिकार इंसास को 1988 में भारतीय सेना में शामिल कर लिया गया.
इसके बाद इंसास प्रणाली को और अधिक विकसित करने के लिए, इसे तीन भाग में बांट कर और बेहतर बनाया गया. जिसमें पहला कार्बाइन, दूसरा ‘स्कवाड ऑटोमैटिक वेपन’ और तीसरा ‘लाइट मशीन गन’ के रूप में विकसित किया गया.
ख़ासा पसंद किए जाने के बाद 1997 में इस लाइट मशीन गन का बड़े स्तर पर उत्पादन शुरू कर दिया गया.
साल 1998 में गणतंत्र दिवस की परेड में पहली बार इंसास राइफ़ल का प्रदर्शन किया गया.
इसके ठीक एक साल बाद इस राइफल को कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ा. सन 1999 में पाकिस्तान ने भारत की सीमा में घुसकर कारगिल की चोटी पर कब्जा कर लिया था.
हालांकि हिमालय की ठंडी वादियों में इस राइफल को कुछ समस्याओं का सामना जरूर करना पड़ा, लेकिन इसने भारतीय सैनिकों का पूरा साथ दिया.
जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इसको बनाया गया था, उसे पूरा करते हुए इंसास के सहारे भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया, और कारगिल पर भारत का परचम फिर से शान से लहराने लगा.
Indian Army with INSAS. (Pic: thenamopress)
तमाम खूबियों से लैस
इंसास राइफ़ल कई खूबियों से लैस है.
इसे सिंगल राउंड या तीन-राउंड मोड में भी फायर किया जा सकता है. इसके साथ कई सारी चीजें अटैच की जा सकती हैं.
दूर तक देखने के लिए इसमें दूरबीन लगाया जा सकता है. इससे सैनिक का निशाना पहले से भी अच्छा हो जाता है.
इतना ही नहीं इस स्कोप में बहुत सी चीजें और हो सकती हैं, जैसे की नाइट विज़न. रात के अंधेरे में भी यह बंदूक इसके सहारे और भी ज्यादा सैनिकों के लिए मददगार हो जाती है.
4.15 किलोग्राम वजनी इंसास से 5.56 एमएम, एसएस 109 और एम 193 गोला बारूद भी छोड़ा जा सकता है. इतना ही नहीं इंसास राइफ़ल के आगे एक चाकू भी जोड़ा जा सकता है, जिससे कि दुश्मन के नजदीक होने पर हमला किया जा सके.
400 मीटर की रेंज वाली इंसास का विकसित रूप ‘लाइट मशीन गन’ है, जिसकी रेंज 700 मीटर है. इसे ऑटोमैटिक मोड़ पर भी फ़ायर किया जा सकता है.
42nd Rashtriya Rifles. (Pic: Pinterest)
विदेशों में भी इस्तेमाल
इस राइफल का महत्व तब और बढ़ गया, जब भारतीय सेना के साथ-साथ भारतीय सशस्त्र बल, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, भारतीय अर्धसैनिक बल और कई राज्यों के पुलिस बल ने इसका इस्तेमाल शुरू किया.
इतना ही नहीं इसको हल्के वजन और अच्छी पकड़ व तेज फायर करने की गुणवत्ता के कारण नक्सली क्षेत्रों और जंगलों में नक्सलियों से निपटने के लिए भी बड़ी मात्रा में उपयोग में लाया जा रहा है.
इसी के साथ इंसास को विदेशी सेना भी खूब पसंद कर रही है.
भूटान की ‘रॉयल भूटान आर्मी‘ भी इंसास का इस्तेमाल करती है. इसके अलावा नेपाली सेना के पास सन 2006 में लगभग 25,000 इंसास राइफलें हैं. वहीं, सन 2010 से ओमान की ओमान रॉयल आर्मी इंसास राइफलों का इस्तेमाल कर रही है.
बहरहाल, बीच-बीच में इंसास राइफ़ल को और विकसित किया गया है.
लेकिन आज के आधुनिक युग में एक से बढ़कर एक ऑटोमैटिक हथियार आ जाने के कारण लगभग 20 साल तक सेना का साथ निभाने वाली इंसास राइफ़ल को 2017 में भारतीय सेना से हटा दिया गया.
अब केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल और राज्य पुलिस बल को इंसास राइफलें सौंप दी गई हैं, ताकि वो अंग्रेजों के जमाने की बेकार हो चुकी ‘थ्री नॉट थ्री’ राइफल के इस्तेमाल से पीछा छुड़ाकर अत्याधुनिक युग में आतंक से समाज को छुटकारा दिलाकर उसे भय मुक्त कर सकें.
Indo-Kazakhstan Military Exercise. (Pic: Moneycontrol)
भारत स्वदेशी हथियारों को बनाने के अपने मार्ग पर प्रशस्त हो रहा है, ऐसे में आपको इंसास पर ये प्रस्तुति कैसी लगी. अपनी राय नीचे कमेंट बॉक्स के द्वारा हमारे साथ जरूर शेयर करें.
Web Title: INSAS: Deadlier Assault Rifles of Indian Army, Hindi Article
Feature Image Credit: army