दिल्ली से लगभग 110 किमी दूर विश्व प्रसिद्ध अलीगढ़़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रहे, जाने-माने मार्क्सवादी इतिहासकार इरफान हबीब अपने तेज तर्रार विचार, धर्मनिरपेक्षता के लिए और हिंदू-इस्लामिक सांप्रदायिकता के खिलाफ खड़ी एक मजबूत शख्सियत माने जाते हैं.
इन्होंने भारतीय इतिहास पर बारीकी से काम किया है और उसको कलमबद्ध कर अंतरराष्ट्रीय छवि भी बनाई है.
तो चलिए आज इस मशहूर इतिहासकार के जीवन पर एक नजर डालते हैं –
बड़ौदा में जन्म और अलीगढ़ से पढ़ाई
प्राचीन और भारतीय इतिहास के अग्रणी जानकार प्रो. इरफान हबीब का जन्म 12 अगस्त 1931 को बड़ौदा, गुजरात में हुआ था.
हिंदू और इस्लामिक सांप्रदायिकता के खिलाफ खड़े रहने वाले इरफान हबीब के पिता प्रख्यात इतिहासकार मोहम्मद हबीब रहे हैं, और शायद यही कारण था कि इन्हें इतिहास में ज्यादा दिलचस्पी रही.
वहीं प्रो. हबीब के दादाजी मोहम्मद नसीम लखनऊ के प्रसिद्ध वकील रहे, जो अलीगढ़ आंदोलन और महिला शिक्षा के प्रमुख समर्थक भी थे. इसी कड़ी में इनकी पत्नी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर हैं.
प्रो. हबीब ने 1953 ई. में एएमयू से स्नातक की शिक्षा ग्रहण की, फिर वहीं से इतिहास में एमए किया और इसके बाद 1956 में डी. फिल करने के लिए ऑक्सफोर्ड चले गए. वहां से 1960 में आने के बाद एएमयू में ही रीडर के पद पर अपनी सेवाएं देने लगे.
ऑक्सफोर्ड से लौटने के बाद से ही इन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में इतिहास पढ़ाना शुरू कर दिया था और 1969 से 1991 तक प्रोफेसर रहे.
हालांकि हबीब अपने पद से रिटायर हो चुके हैं, लेकिन आज भी एएमयू के इतिहास विभाग में अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
Irfan Habib was Awarded with Watumull Prize in 1982. (Pic: Wikipedia)
इतिहास के ‘भगवाकरण’ के खिलाफ
प्रो. हबीब स्वयं को धर्मनिरपेक्ष मानते हैं, लेकिन उन्हें एक मार्क्सवादी लेखक माना जाता है. इसी कड़ी में उनके साथ विवाद भी जुड़े रहे हैं.
बात 2015 की है, जब मूडीज ने मोदी सरकार के खिलाफ एक रिपोर्ट दी, तब लोगों में सोशल मीडिया के जरिए ये भ्रम फैलाया गया कि इस रिपोर्ट को लिखने वाले फराज सैयद इरफान हबीब के दामाद हैं. ऐसे में इनके परिवार को काफी परेशानी भी झेलनी पड़ी. असल में फराज सैयद से इनका कोई लेना-देना ही नहीं था.
हालांकि प्रो. हबीब ने 1998 की भारतीय इतिहास कांग्रेस में इतिहासकारों का नेतृत्व किया था, जिसमें इतिहास के भगवाकरण के खिलाफ एक प्रस्ताव भी पेश किया गया. प्रो. हबीब ने भाजपा सरकार की 1998-2004 तक सत्ता में रहते हुए भारतीय इतिहास की अपने हिसाब से तथाकथित व्याख्या करने पर आलोचना भी की.
हालांकि इन्होंने समय-समय पर भारत में राष्ट्रवाद की परिभाषा को अपने इतिहास के पन्नों से निकालकर लोगों के सामने भी रखा है और जब भी जरूरत हुई है तो सरकार के खिलाफ भी बोलने से हिचकिचाए नहीं हैं. वहीं, प्रख्यात इतिहासकार ताराचंद और ईश्वरी प्रसाद द्वारा लिखित इतिहास की कम्युनिस्ट इतिहासकारों से तुलना और उसमें अंतर करने से पहले भारत के इतिहास को जानने की सलाह भी दे चुके हैं.
Irfan Habib Biography of Marxist Historian of Ancient and Medieval India. (Pic: kindlemag)
आरएसएस के ‘घोर’ विरोधी
प्रो. हबीब इतिहास के क्षेत्र में जितनी बड़ी हस्ती हैं, उतना ही इनका विवादों से नाता रहा है. फिर से 2015 की ही बात करते हैं, जब बतौर इतिहासकार इरफान हबीब ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की तुलना कट्टर मुस्लिम आतंकवादी संगठन आईएसआईएस से कर दी थी.
भारत में बढ़्ती असहिष्णुता और सांप्रदायिक हिंसा का हवाला देकर तब इतिहासकार और साहित्यकारों की एक लंबी फेहरिस्त अपने पुरस्कार लौटा रही थी. ठीक उसी समय प्रो. हबीब ने केंद्र सरकार पर विभाजनकारी राजनीति का आरोप लगाते हुए कहा था कि, “राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और इस्लामिक स्टेट में बौद्धिक आधार पर ज्यादा अंतर नहीं है.”
हालांकि इनकी इस विचारधारा को समर्थन नहीं मिला और इन्हें निंदा का सामना भी करना पड़ा!
कई पत्रकारों ने तो इनके इस बयान को हास्यास्पद तक करार दे दिया. वहीं वरिष्ठ स्तंभकार तवलीन सिंह ने तो यहां तक कहा कि प्रो. हबीब को इतिहास लिखना छोड़ देना चाहिए.
वहीं आईएस से तुलना के अलावा इन्होंने आजादी की लड़ाई में आरएसएस की भूमिका पर भी सवाल उठाए थे, जिस पर खासा बवाल हुआ था. प्रो. हबीब ने अपने एक लेख में कहा था कि आजादी की लड़ाई में आरएसएस की कोई भूमिका नहीं रही.
इसके अलावा इन्होंने एक और विवादित बयान ‘भारत माता की जय’ पर दिया था. इतिहासकार हबीब का कहना था कि भारत माता की जय का विचार भारत का नहीं यूरोप का है. इन्होंने कहा कि भारतीय इतिहास से भारत माता की जय का कोई लेना देना नहीं है, क्योंकि मातृ भूमि की बात यूरोप में की जाती है.
प्रो. इरफान हबीब तब भी काफी विवादों में रहे, जब उन्होंने दावा किया कि पद्मावती असल में एक काल्पनिक किरदार था, जो किताबों में मनगढ़ंत कहानी से रचा गया था. इन्होंने दावा किया कि 1540 ई. से पहले पद्मावती का कोई इतिहास नहीं मिलता.
प्रो. हबीब का मानना था कि मलिक मोहम्मद जायसी ने ही पद्मावती नामक किरदार अपनी कल्पना से रचा था.
Irfan Habib was born in a Aristocratic Family of Learned Scholars. (Pic: ghazipurwalamakki)
‘वेदों’ पर भी लिखी है किताब
प्रो. इरफान हबीब ने प्राचीन भारत के ऐतिहासिक भूगोल, भारतीय प्रौद्योगिकी के इतिहास, मध्यकाल के प्रशासनिक और आर्थिक इतिहास, भारत पर औपनिवेशवाद का प्रभाव और ऐतिहासिक इतिहास पर काम किया है. प्रो. हबीब यूनेस्को प्रकाशन सहित लगभग 12 किताबों का संपादन कर चुके हैं, वहीं इन्होंने भारतीय इतिहास पर 8 से ज्यादा किताबें लिखी हैं, जिसमें वैदिक काल और वेदों के ऊपर भी किताब शामिल है.
प्रो. हबीब के हिसाब से वेदों से इतिहास के बारे में अच्छी जानकारी मिलती है.
अपने आपको मार्क्सवादी लेखक मानने वाले प्रो. हबीब की किताबों में दि एग्रेरियन सिस्टम ऑफ मुगल इंडिया 1556-1707, एन एटलस ऑफ दी मुगल एंपायर, एसेस इन इंडियन हिस्ट्री, दि इकॉनोमिक हिस्ट्री ऑफ मिडीवल इंडिया और इंडियन इकॉनोमी, मौर्यन इंडिया, सिंधु सभ्यता, वैदिक एज इत्यादि पर पीपल हिस्ट्री ऑफ इंडिया सीरीज प्रमुख हैं.
Veteran Historian Irfan Habib is Professor Emeritus at AMU. (Pic: governancenow)
2005 में दिया गया ‘पद्म भूषण’
सन 1991 में ऑक्सफोर्ड में राधाकृष्णन लेक्चर दे चुके प्रो. हबीब 1997 को ब्रिटिश रॉयल हिस्टोरिकल सोसाइटी के फेलो बने.
प्रो. हबीब को 1982 में ‘दि कैंब्रिज इकॉनोमिक हिस्ट्री ऑफ इंडिया’ किताब के लिए तपन रायचौधरी के साथ संयुक्त रूप से अमेरिकन हिस्टोरिकल एसोसिएशन द्वारा वाटुमुल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. गौरतलब है कि वाटुमुल पुरस्कार भारत के इतिहास पर लिखी गई सर्वश्रेष्ठ पुस्तकों के लिए दिया जाने वाला पुरस्कार है, जिसकी शुरूआत 1944 में की गई थी.
वहीं, इन्हें भारतीय इतिहास के क्षेत्र में अग्रणी योगदान देने के लिए सन 2005 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण पुरस्कार से नवाजा गया. फिर साल 2006 में इन्हें भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी की ओर से मुजफ्फर अहमद मेमोरियल पुरस्कार दिया गया.
भारत इतिहास के अग्रणी इतिहासकारों में शामिल प्रो. इरफ़ान हबीब के ऊपर रोर हिंदी की यह प्रस्तुति कैसी लगी, कमेन्ट-सेक्शन में अवश्य अपनी राय दें!
Web Title: Irfan Habib: Biography of Marxist Historian of Ancient and Medieval India, Hindi Article
Featured Image Credit: uohherald