इरोम शर्मीला, मणिपुर का एक ऐसा नाम जिनकी पहचान किसी की मोहताज नहीं है.
सभी जानते है कि वह एक नहीं, दो नहीं, बल्कि 16 साल तक भूख हड़ताल पर रहीं. इस दौरान उन पर आत्महत्या करने जैसे आरोप लगे. यहां तक कि उन्हें जेल तक जाना पड़ा.
बाद में उन्होंने राजनीति की तरफ कदम रखा. किन्तु, क्या आप जानते हैं कि उनका बचपन कैसा रहा, अपनी मां से वह क्यों पिछले कई सालों से दूर हैं. अगर नहीं!
तो आईए जानते हैं-
पढ़ाई-लिखाई में नहीं रही रुचि, मगर…
इरोम शर्मीला का जन्म 14 मार्च, 1972 में, मणिपुर के एक साधारण से परिवार में हुआ था. नौ भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं इरोम. उनकी स्कूली पढ़ाई-लिखाई में ज्यादा रूचि नहीं थीं. मसलन इरोम 12वीं भी पास नहीं कर पाईं!
इस दौर में उन्हें कविताएं लिखना बहुत पसंद था. लिहाज़ा, वह कभी-कभी अख़बार में लेख भी लिखती थीं. समय आगे बढ़ा तो इरोम की उम्र भी. उन्हें कुछ न कुछ को करना ही था.
इसके चलते उन्होंने मानवाधिकर संगठन में एक इंटर्न के तौर पर काम करना शुरु कर दिया. मानवाधिकर संगठन के साथ इसलिए क्योंकि यह उनकी रूचि के अनुरूप था.
इसी बीच उनकी आंखों ने एक ऐसी घटना देखी, जिसने उन्हें पूरी तरह से बदल दिया.
इरोम करीब 28 साल की रही होंगी, तभी इंफाल के मालोम गाँव में ‘असम राइफल’ के जवानों की मुठभेड़ में 10 आम नागरिक मारे गए. मारे गए इन लोगों में एक बच्चा भी शामिल था. चूंकि मामला लोगों की मौत से जुड़ा हुआ, इसलिए तूल पकड़ना लाजमी था.
खासतौर पर इस घटना ने इरोम का खासा द्रवित किया.
यही कारण था कि उन्होंने अफ़्सपा कानून को हटाने के लिए मोर्चा खोल दिया. शुरुआती कुछ आम विरोधों के बाद वह आमरण अनशन पर बैठ गईं.
बस यही से शुरु हो गई उनकी संघर्षमयी जिंदगी!
Irom Sharmila (Pic: CNN.com)
‘अफस्पा’, जिसको हटाने के लिए हुआ संघर्ष
आगे बढ़ने से पहले यह समझना जरूरी है कि जिस अफ़्सपा कानून के लिए इरोम ने लड़ाई शुरु की थी, वह है क्या…असल में यह एक ऐसा कानून है, जो ‘अशांत क्षेत्रों’ में लागू हैं. यह सैन्य बलों को अशांत क्षेत्रों में शान्ति बनाए रखने के लिए विशेष अधिकार प्रदान करता है.
इस कानून के तहत, किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार और उसके घर की तलाशी लेने का विशेषाअधिकार होता. इसके अलावा, अगर कोई व्यक्ति अशांति या बार-बार कानून तोड़ता है, तो उस पर गोली तक चलाने का अधिकार है.
इन प्रावधानों के अलावा, सशस्त्र बलों को यह भी अधिकार है कि अगर संदेहास्पद विद्रोही या उपद्रवी किसी जगह छुपे हुए हैं, तो वह उसे तबाह कर सकें!
मुख्य बात यह है कि इस कानून के तहत सशस्त्र बलों द्वारा अपने अधिकारों के गलत प्रयोग करने की स्थिति में कठोर कार्यवाही का प्रावधान है.
मणिपुर में यह अफ़्सपा कानून 1980 से लागू है.
Indian Military (Representative Pic: thewire)
दिल्ली में भी गूंजी इरोम की आवाज
अपनी हड़ताल के दौरान इरोम, कई बार गिरफ्तार की जाती थीं, क्योंकि आत्महत्या की कोशिश करना अपराध था, जिसकी कम से कम 1 साल तक की सजा का प्रावधान था.( हालांकि, अब यह कानूनी तौर पर अपराध नहीं है)
हर 15 दिन में उन्हें अस्पताल से कोर्ट जाना पड़ता था, जहां उनसे ये पूछा जाता था कि, क्या वह अपनी भूख हड़ताल ख़त्म करेंगी और इरोम हमेशा इसका जवाब न में देती थीं.
साल 2006 में इरोम अपनी भूख हड़ताल को अपने गाँव ‘मालोम’, जो राजधानी इंफ़ाल से 7-8 किलोमीटर की दूरी पर बसा है से दिल्ली लेकर आयीं, जहाँ उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. किन्तु, इस बार उनकी ‘भूख हड़ताल’ ने अंतर्राष्ट्रीय ध्यान अपनी ओर खींचा.
ऐसा ध्यान कि इसके सन्दर्भ में यूरोपियन संसद के सदस्यों ने भारत सरकार को इस कानून में बदलाव करने के लिए चिठ्ठी भी लिखी.
16 सालों तक चली संघर्ष की कहानी!
इरोम शर्मीला ने अपनी भूख हड़ताल के दौरान 16 साल तक केवल नाक की नली से ही आहार लिया. वह नली उनके शरीर के एक अंग की तरह बन गयी थी. शुरुआत में इरोम दिन में तीन बार आहार लिया करती थीं, लेकिन बाद में उन्होंने यह तीन से घटाकर दो कर दिया. इसके अलावा, रविवार को तो वह सिर्फ एक ही बार आहार लिया करती थीं.
इरोम को सेरेलेक जैसे पदार्थ पानी में मिलाकर दिए जाते थें. इसके अलावा उन्हें कैल्शियम, आयरन सिरप दिए जाते थें, जिसे वह रोज योगा के साथ-साथ लेती थीं!
Irom Sharmila Reading a Book (Pic: thequint)
इस सब में मां पीछे छूट गईं, पर क्यों?
इरोम शर्मिला ने अपने 16 सालों में से ज्यादातर समय इंफाल के एक अस्पताल में न्यायिक हिरासत में बिताए. कोर्ट ने अगस्त 2014 को इरोम शर्मिला पर आत्महत्या करने की कोशिश के लगे आरोपों को ख़ारिज़ कर दिया और उन्हें बरी कर दिया.
कोर्ट के इस फैसले के बाद भी इरोम ने अपना विरोध नहीं छोड़ा. इस वजह से उन्हें दो दिनों बाद फिर से गिरफ्तार कर लिया गया. साल 2016 के अगस्त में, उन्होंने अपने लम्बे अनशन को तोड़ दिया. उन्होंने शहद चखकर अपनी हड़ताल ख़त्म की.
हैरानी वाली बात यह है कि अपने अनशन के दौरान भी इरोम अपनी माँ से भी नहीं मिलीं. उन्होंने अपना अनशन ख़त्म करते समय भी यह बोला की वह अपनी माँ से नहीं मिलेंगी, क्योंकि अभी वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हुई हैं.
शायद उन्होंने खुद से तय कर रखा था कि जब तक वह अपनी मंजिल को नहीं पा लेती वह अपनी मां से नहीं मिलेगीं!
अनशन ख़त्म करने के बाद क्या…
अपनी भूख हड़ताल ख़त्म करने के साथ ही इरोम ने राजनीति में आने का फैसला लिया. उन्होंने ‘प्रजा’ पार्टी बनायीं और मणिपुर में विधानसभा के चुनाव में मैदान पर उतरीं, लेकिन यहां भी उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था.
स्वयं इरोम को मात्र 90 वोट मिले थे!
चुनाव में मिली हार के बाद, इरोम शर्मिला ने लंबे समय से मित्र रहे डेसमंड कुटान्हो के साथ शादी करने का फैसला किया. इरोम को अपने विरोध के लिए अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिली और 2013 में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने उन्हें ‘अंतरात्मा की कैदी’ की संज्ञा दी.
साथ ही, इरोम अपने इतने लंबे अनशन के लिए, ‘आयरन लेडी ऑफ़ मणिपुर’ के नाम से भी जानी जाती हैं. इन उपलब्धियों के अलावा, 2007 में उन्हें मानवाधिकार के लिए लड़ने के लिए ग्वांगजू पुरस्कार मिला, साल 2010 में ‘रबींद्रनाथ शांति पुरस्कार’ और ‘एशियन ह्यूमन राइट्स कमीशन’ की ओर से ‘लाइफटाइम अचीवमेंट’ अवॉर्ड से नवाजा गया.
Irom Sharmila While Breaking Her Hunger Strike (Pic: thewire)
इरोम शर्मीला ने सोलह साल तक का लंबा अनशन करके अपने साहस का परिचय दिया. हालांकि, उन्हें अपने मकसद में कामयाबी नहीं मिली.
किन्तु, उन्होंने हमेशा नारी को कोमल समझे जाने वाली सोच पर गहरा प्रहार किया. शायद यही कारण है कि उनकी कहानी प्रेरणा का स्रोत मानी जाती है.
Web Title: Irom Sharmila, Iron Lady of Manipur , Hindi Article
Feature Image Credit: The Week