भारतीय परिदृश्य में मां बनाना एक औरत के पूर्ण होने की निशानी है.
पर वो औरतें जो मां नहीं बन सकती क्या उनमें ममत्व का भाव नहीं होता? जिस देश में कृष्ण की मां देवकी हो पर वह कहलाते यशोदानंदन हों उस देश में मां न बन पाने वाली औरतों की तकलीफ कम नहीं है.
यह संघर्ष तब और बढ़ जाता है, जब उन्हें बच्चा गोद देने से भी इंकार कर दिया जाए. इस इंकार को हामी में बदलने की एक जंगी हकीकत आज आपके सामने हैं. कहानी की मुख्य पात्र है जीजा घोष.
जीजा घोष देश की वह पहली महिला है, जो सेरिब्रल पॉलसी से ग्रसित हैं, लेकिन फिर भी एक बच्ची को गोद लेने का अधिकार हासिल कर पाईं. उनके संघर्ष की कहानी हम सभी के लिए प्रेरणादायी है.
साथ ही समाज की उस गंभीर समस्या के मुंह पर तमाचा है, जो दिव्यांग्ता को मानसिक कमी समझकर उन्हें अलग छोड़ देते हैं-
एक जन्मजात समस्या है सेरेब्रल पाल्सी
जीजी घोष को जानने से पहले हम उस बीमारी के बारे में जान लेते हैं, जिसने जीजा के जीवन में संघर्ष को जन्म दिया. 'सेरेब्रल पाल्सी' दरअसल एक मानसिक अवस्था है. इसे ऐसा रोग नहीं माना जा सकता जिसके कारण किसी पीड़ित को पागल घोषित कर दिया जाए. आम भाषा में इसे आम भाषा में बच्चों का लकवा या लिटिल डिजीज कहा जाता है.
वैज्ञानिक परिभाषा के अनुसार सेरेब्रल पाल्सी का नाम उन अवस्थाओं के उस समूह के लिए होता है, जो व्यक्ति की गतिविधि और हावभाव के नियंत्रण को प्रभावित करते हैं. गतिविधि को नियंत्रित करने वाले मस्तिष्क के एक या अधिक हिस्से की क्षति के कारण प्रभावित व्यक्ति अपनी मांसपेशियों को सामान्य ढंग से नहीं हिला सकता.
इस प्रकार यह एक तरह का मानसिक पक्षाघात है.
हालांकि, समय पर उपचार मिले तो बच्चे में सुधार की गुजाइश होती है लेकिन चिकित्सक भी मानते हैं कि इस जन्मजात बीमारी से पूरी तरह निजात नहीं मिल पाती. इन लोगों के मानसिक सामान्य विकास में कमी, सीखने की अक्षमता, फिट आना या देखने, सुनने और बोलने की समस्या जैसी दिक्कतें आती है.
वैज्ञानिक आंकडों के अनुसार तीन साल से ज्यादा उम्र वाले 1,000 में से 2 से 3 बच्चे ऐसे होते हैं जो सेरिब्रल पाल्सी से ग्रस्त हों. भारत के संदभ में देखें तो वर्तमान में हर उम्र के सेरिब्रल पाल्सी पेशेंट की संख्या लगभग 5 लाख है.
परिवारवाले टूट न जाएं, इसलिए नई रोई जीजा
सेरेब्रल पाल्सी के बारे में जानकर इतना तो साफ हो गया है कि यह केवल मानसिक अवस्था है. न कि पागलपन की निशानी. मगर दुखद यह है कि लोग सेरेब्रल पाल्सी के बारे में नहीं जानते हैं.
पीड़ित की शक्ल सूरत और हावभाव देखकर खुद ही अंदाजा लगा लेते हैं कि वह पागल होगा!
जीजा घोष के साथ भी पूरी जिंदगी यही होता आया है. उनका जन्म कोलकाता में हुआ. जब वे पैदा हुईं तो परिवार खुश था पर यह खुशियां कुछ ही दिन में चिंता में बदल गईं.
जीजा जब पैदा हुईं थी तो सामान्य थीं, पर कुछ ही दिनों के भीतर मासूम जीजा के शरीर में सेरेब्रल पाल्सी के लक्षण दिखाई देने लगे. उनके हाथों और पैरों की मांसपेशियों में कड़ापन आ गया, चेहरे की बनावट में फर्क दिखने लगा.
डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए और परिवारवाले परेशान हो गए.
खैर मातापिता के लिए उनके बच्चे जैसे भी हों खास होते हैं, सो जीजा भी अपने परिवार की लाडली बन गई. सभी के सपोर्ट से जीजा का इलाज शुरू हुआ और करीब 5 साल की उम्र तक कम से कम जीजा अपने पैरों पर खड़ी होना और चलना सीखने लगी. यह तो परिवार था तो साथ रहा, लेकिन दुनिया से सामना होना अभी बाकी था.
जीजा ने अपने इंटरव्यू में बताया है कि स्कूल में दाखिला लेने में काफी परेशानी आई, उन्हें सामान्य बच्चों से अलग रखा गया. कई सालों तक तो कोई दोस्त नहीं बना. बच्चे उनकी शक्ल और दिमाग का मजाक बनाते रहे.
जीजा को दुख होता था पर वे रो नहीं पाती थीं. सिर्फ इसलिए कि यदि उन्होंने हिम्मत हार दी तो परिवार वाले टूट जाएंगे. खैर जैसे-तैसे स्कूल खत्म हुआ, कॉलेज में दाखिला हुआ पर आसपास का माहौल वही रहा. जो हाल स्कूल में था वहीं कॉलेज में हुआ.
बहरहाल उन्होंने अपनी एमए की पढ़ाई पूरी की और साथ में सोशल वर्क करती रहीं.
केवल यही एक क्षेत्र था, जहां उनके काम की इज्जत होती थी.
जब बच्चा गोद लेने की हुई इच्छा
पढ़ाई और काम चल रहा था कि तभी जीजा की जिंदगी ने करवट ली और अच्छे दिन आए. बप्पादित्य ने जीजा का हाथ थामा और दोनों ने शादी कर ली. सेरेब्रल पाल्सी जैसे शब्द को हटा दिया जाए, तो जीजा की जिंदगी आम लड़कियों की तरह ही चल रही थी. जीजा और बप्पादित्य अपनी शादी से खुश थे.
बस अब उनकी इच्छा थी कि परिवार को नया सदस्य मिले, लेकिन जीजा और बप्पादित्य दोनों जानते थे कि यह संभव नहीं है. जीजा की शारीरिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे बच्चे को जन्म दे सके.
पर ऐसा नहीं है कि जो औरत मां नहीं बन सकती उसमें ममत्व की भावना न हो. जीजा के भीतर असीम प्यार था, जिसे वह बच्चों पर उड़ेल देना चाहती थी. उन्होंने बच्चा गोद लेना तय किया.
बहुत सी उम्मीद के साथ मियां-बीवी ने एडॉप्शन के लिए अर्ज़ी डाल दी. दो साल बाद जीजा को एक फ़ोन आया. फोन के दूसरी ओर से आवाज आई बधाई हो आप मां बन सकती हैं. आपकी अर्जी मंजूर हो गई है. यह सुनकर जीजा की आंखें भर आईं.
पर आप यहां गौर करें, यह कॉल दो साल बाद आया था! यानि जीजा को यह खुशखबरी बस यूं ही नहीं मिली बल्कि इसके पीछे संघर्ष की एक कहानी है.
संघर्ष के बाद मिला मां बनने का सुख
जब जीजा बच्चा गोद लेने के लिए पहुंची तो उनसे अजीब से सवाल पूछे गए. जैसे क्या वो मां बनने के काबिल हैं! उनकी शादीशुदा जिंदगी कैसे चल रही है! वो कैसे नहाती हैं! आदि...
दरअसल लोग यह मानने को तैयार ही नहीं थे कि जीजा का दिमाग खराब नहीं है. सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स ऑथोरिटी (CARA) में काम करने वाली सदफ़ नाज़नीन जब भी अपना मेल बॉक्स चेक करती.
वहां जीजा का एक खत जरूर मिलता. जीजा को बच्चा गोद नहीं मिल रहा था. कोई यह मानने को ही तैयार नहीं था कि वो मां बनने के काबिल हैं. आखिर सदफ ने दंपति की मदद करना स्वीकार किया.
जीजा ने दो साल कानून लड़ाई लड़ी और लोगों को यह समझाने में कामयाब हुईं कि सेरेब्रल पाल्सी पागलपन नहीं. उनमें रिश्ते निभाने की क्षमता, बच्चे को सम्हालने का सामथ्र्य है. वे हर तरह से मां बनने के काबिल हैं.
आखिर साल 2018 में वे केस जी गईं और एक 5 माह की बच्ची की मां बनी. जीजा अपनी बेटी को सोनाई नाम से पुकारती हैं. सोनाई इसी साल जनवरी में पैदा हुई थी. उसे ओड़िशा के एक अस्पताल में लावारिस छोड़ दिया गया था.
खैर अब सोनाई का एक प्यारा सा परिवार है, जहां मां जीजा उस पर जान छिड़कती है.
इस केस को जीतने के साथ ही जीजा भारत में वो पहली इंसान हैं, जिसे सेरिब्रल पॉलसी होने के बावजूद बच्चा गोद लेने की इजाज़त मिली है. यह जीत केवल जीजा की नहीं थी.
बल्कि उन सबकी थी जिन्हें दिव्यांग कहकर यह मान लिया जाता है कि वे बच्चे को प्यार करने की काबलियत भी नहीं रखते.
कानूनी जंग जीतकर दिखाया अपना दम
जीजा के जीवन के संघर्ष यह एक अकेला अहम पड़ाव नहीं है, बल्कि हाल ही में उन्होंने एक और कानूनी जंग जीती. 19 फरवरी 2012 को जीजा घोष कोलकाता से गोवा एक कांफ्रेंस में हिस्सा लेने जा रही थीं.
वे स्पाइस जेट के विमान में सवार तो हुईं पर उड़ान भरने से पहले उन्हें यह कहकर उतार दिया कि वे काबिल नहीं हैं. विमान चालक दल ने तो यहां तक कह दिया कि वे अन्य यात्रियों के लिए खतरा हो सकती हैं.
यहां तक की कुछ यात्रियों ने जीजा को अपने साथ बिठाने तक से इंकार कर दिया.
यह वो अपमान था जिसके खिलाफ जीजा ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. मई 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पाइस जेट की इस हरकत को अमानवीय करार देते हुए जीजा के हक में फैसला दिया. कंपनी पर 10 लाख रुपए का जुर्माना ठोका गया.
सुप्रीम कोर्ट ने तर्क दिया कि शरीरिक या मानसिक रूप से अक्षम लोगों के पास वही अधिकार हैं, जो भारत के सामान्य नागरिक के पास हैं. बस लोग उन्हें हमेशा कम ही आंकते हैं. बताते चलें कि जीजा घोष डिसेबल होते हुए भी एक एक्टीविस्ट के तौर पर काम कर रही हैं. जो साबित करता है कि वे भी उतनी ही काबिल हैं, जितना कि इस देश का दूसरा कोई नागरिक.
जीजा के जीवन के ये पहलु हमें यह बताने के लिए काफी हैं कि दुनिया केवल 'मैं' से नहीं 'हम' से चलती है, और इस 'हम' में हम सब आते हैं. उसमें जीजा भी आती है.
Web Title: Jeeja Ghosh, India's Frst Cerebral Palsy Mother
Feature Image Credit: Momspresso