वर्तमान में जितने भी चिकित्सा के क्षेत्र में अनुसंधान हैं उनकी जड़ें कहीं न कहीं प्राचीन भारतीय शास्त्रों-वेदों में उल्लिखित हैं.
ऐसे में जब बात औषधि और आयुर्वेद की होती है तो सहज ही एक नाम सभी की जुबान पर आता है… ये हैं चिकित्सा विज्ञान के प्रणेता धनवंतरी.
सर्वप्रथम धनवंतरी ने आयुर्वेद के आधार पर औषधियों के उपयोग से रोगों का निवारण करने में सफलता प्राप्त की थी. इन्हें धरती पर आयुर्वेद का जनक भी माना जाता है.
कहा जाता है कि धनवंतरी आयुर्वेद की शक्ति से मरते हुए बीमार व्यक्ति को जीवित और उसे आरोग्या प्रदान कर सकने में सक्षम थे.
वहीं ऐसी बीमारियों से भी निजात दिला सकते थे जिसका आज तक कोई इलाज नहीं है.
तो चलिये जानते हैं कौन थे काशी नरेश और आयुर्वेद के जनक धनवंतरी –
चिकित्सा विज्ञान के विद्वान
हिंदू धर्म शास्त्रों, प्राचीन वेदों-पुराणों से लेकर भारतीय प्राचीन इतिहास से पता चलता है कि धनवंतरी आयुर्वेद के प्रणेता को ही संबोधित नहीं करते बल्कि चिकित्सा शास्त्र और परंपरा की चली आ रही लंबी श्रेणी के विद्वानों को भी धनवंतरी कहा जाता था.
माना जाता है कि विभिन्न काल खंडों में 3 प्रकार के धनवंतरी हुए हैं.
ब्रह्मावैवर्त पुराण के अनुसार श्री धनवंतरी ने भगवान सूर्य से आयुर्वेद का ज्ञान लिया था. वहीं श्रीमद भागवत पुराण के अनुसार इन्हीं धनवंतरी ने इस संसार को आयुर्वेद के नाम से परिचित कराया और इन्हें आदि धनवंतरी कहा गया.
आज भी इनकी पूजा चिकित्सा विज्ञान के जनक और उसके देवता के रूप में की जाती है.
दूसरे काशी नरेश दिवोदास को भी धनवंतरी माना जाता है जिन्हें भगवान विष्णु का ही अवतार माना गया है. दिवोदास का जिक्र सुश्रुत संहिता, विष्णु पुराण और चरक संहिता में किया गया है. विष्णु पुराण के अनुसार दिवोदास धनवंतरी चंद्र राजवंश में काशी नरेश हुए.
माना जाता है कि इन्होंने मूल आयुर्वेद को आठ भागों (आष्टांग) में विभाजित किया. चिकित्सातत्ववीजनामा, चिकित्सादर्शन दिवोदास धनवंतरी द्वारा लिखी मानी जाती हैं.
तीसरे धनवंतरी, सम्राट विक्रमादित्य के दरबार में शामिल नौ रत्न में से एक माने जाते हैं. इन्हें उज्जैन के लोगों को आरोग्य और बेहतर स्वास्थ्य प्रदान करने के लिए सम्राट ने अपने रत्न में शामिल किया था. कुछ इतिहासकारों ने विक्रमादित्य के समय के धनवंतरी को ही औषधि पर लिखे गए शब्दकोष ‘धनवंतरी निघंतु’ का लेखक माना है.
धनवंतरी निघंतु आयुर्वेद पर लिखी पुस्तक मानी जाती है, जो लगभग 3 भागों में विभक्त है जिसमें से एक ही वर्तमान में उपलब्ध है. इसमें 373 तरह की दवाओं और जड़ी बूटियों से बीमारियों के उपचार और निदान के बारे में उल्लेख किया गया है.
Ancient Ayurvedic Mysteries. (Pic: phoenixisrisen)
समुद्र मंथन से अमृत लेकर निकले…
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय भगवान विष्णु ने असुरों से परेशान देवताओं को अमरत्व प्रदान करने के लिए समुद्र मंथन का विचार रखा.
योजना के अनुसार देवताओं और असुरों द्वारा मिलकर समुद्र मंथन किया गया जिसके परिणामस्वरूप भगवान धनवंतरी चतुर्भुज रूप में अमृत कलश को लेकर उत्पन्न हुए.
धनवंतरी के हाथ में अमृत कलश देखकर असुरों में अमर होने का लालच आ गया और वो इसे पी कर अमर होने के ख्वाब देखने लगे. इसी के चलते उन्होंने धनवंतरी से ये कलश छीन लिया और उसे लेकर भागने लगे. देवताओं ने कलश का पीछा किया और असुरों से कई बार झड़प भी हुई, कलश की इस छीना झपटी में अमृत की कुछ बूंदें धरती पर गिर गईं.
माना जाता है कि जिन चार जगहों पर ये बूंदें गिरीं उन्हीं जगहों पर हर 12 साल बाद महाकुंभ का आयोजन किया जाता है. ये स्थान है इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक.
समुद्र मंथन से निकलने के बाद भगवान धनवंतरी को देवों का चिकित्सक बना दिया गया और ये आयुर्वेद के भगवान कहलाने लगे.
SAMUDRA MANTHAN. (Pic: mbs)
काशी नरेश के घर लिया जन्म!
समुद्र मंथन से निकलने के बाद धनवंतरी को कोई देवतुल्य विभाग तो नहीं दिया गया लेकिन भगवान विष्णु ने उन्हें धरती पर आयुर्वेद का ज्ञान बांटने के लिए अधिकृत कर दिया.
धनवंतरी ने भगवान की इच्छानुसार काशी नरेश राजा काश के पुत्र धन्व के यहां पर जन्म लिया. इस प्रकार काशी नरेश के यहां दिवोदास धनवंतरी का जन्म 1000 ईसा पूर्व में हुआ माना जाता है.
जन्म के बाद इन्होंने ऋषि भारद्वाज से पुन: आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया और उसके मूल को आठ भागों में विभाजित कर उसको प्रचारित किया.
वहीं उन्होंने सुश्रुत मुनि को आयुर्वेद का ज्ञान दिया जिसके आधार पर इन्होंने शल्य चिकित्सा की शुरूआत की.
माने जाते हैं विष्णु के अवतार!
श्रीमद भागवत पुराण में धनवंतरी को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है. कहा जाता है कि धनवंतरी भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से 12वें अवतार हैं.
गरुण पुराण में भी भगवान धनवंतरी से संबंधित कथा का वर्णन किया गया है. वहीं धनवंतरी का उल्लेख विभिन्न प्राचीन हिंदू धर्म-शास्त्रों में भी किया गया है.
गरुड़ पुराण, मार्कंडेय पुराण, विष्णु पुराण, ब्रह्मा पुराण के साथ साथ सुश्रुक संहिता, धनवंतरी संहिता, चरक संहिता, कश्यप संहिता, अष्टांग हृदय आदि में इनके बारे में उल्लेख मिलता है.
The god of medicine Dhanwantari. (Pic: drramaprasad)
ब्रह्मा ने की थी आयुर्वेद की रचना
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मा जी ने धरती पर इंसानों की उत्पत्ति से पहले वेदों का निर्माण किया था, उसी समय इन्होंने अथर्ववेद के एक भाग के रूप में आयुर्वेद की रचना की थी. भगवान धनवंतरी इसके देवता माने जाते हैं.
ब्रह्मावैवर्त पुराण के अनुसार वेदों के रचयिता ब्रह्मा जी ने चारों वेदों में से आयुर्वेद को अलग कर सूर्य देव को सिखाया और सूर्य देव ने इस ज्ञान के आधार पर स्वयं एक संहिता का निर्माण किया और फिर अपने 16 शिष्यों को आयुर्वेद की शिक्षा दी जिसमें से धनवंतरी भी एक हैं.
वहीं एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार ब्रहमा जी ने सर्वप्रथम दक्ष को आयुर्वेद का ज्ञान दिया उसके बाद दक्ष ने अश्विनी कुमारों को फिर उन्होंने इंद्र को ये ज्ञान आगे बढ़ाया. इस प्रकार सबसे आखिर में इंद्र ने धनवंतरी को इसका ज्ञान दिया और ऐसे आयुर्वेद धनवंतरी के द्वारा धरती पर आया.
माना जाता है कि समुद्र मंथन से पहले तक आयुर्वेद का ज्ञान सीमित था, लेकिन धनवंतरी ने समुद्र-मंथन से बाहर निकलने के बाद आयुर्वेद के इस गुप्त ज्ञान को सार्वजनिक किया.
Lord Brahma. (Pic: fireflydaily)
धनतेरस के दिन हुआ था जन्म!
धनतेरस को धन संपदा के साथ-साथ स्वास्थ्य और आरोग्य का दिन भी माना जाता है. जबकि मान्यताओं के अनुसार भगवान धनवंतरी का जन्म लगभग 7 हजार ईसा पूर्व धनतेरस के ही दिन हुआ था. शायद इसी कारण से हिंदू धर्म में कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी यानी धनतेरस को भगवान धनवंतरी की पूजा का विधान है.
उत्तर भारत में भगवान धनवंतरी को समर्पित कोई भी मंदिर नहीं है जबकि दक्षिण भारत के तमिलनाडु और केरल राज्य में इनके मंदिर हैं.
धरती पर मानव को विकारों से मुक्ति दिलाने और आरोग्य प्रदान करने वाले आयुर्वेद के प्रणेता महान धनवंतरी के बारे में बताने की ये एक कोशिश थी.
अगर आप भी इनके बारे में कुछ विशेष जानते हैं तो नीचे कमेंट बॉक्स में हमारे साथ अपने विचार शेयर जरूर करें.
Web Title: Kashiraja Dhanvantari: God of Ayurvedic Medicine, Hindi Article
Feature Image Credit: keralahoneymoons