इतिहास के पन्नों में ऐसी कई घटनाएं हैं, जिनका प्राचीन समय में शायद उतना महत्व नहीं था, लेकिन आज देखें तो उनकी कल्पना मात्र से ही रोमांच पैदा हो जाता है. कुछ गुत्थियां तो सुलझी हैं, और जो नहीं सुलझीं हैं वे अब भी रहस्य बनी हुई हैं.
ऐसे ही रहस्यों से घिरा है राजस्थान का कुलधरा गांव!
इसे कई लोग भूतों का डेरा मानते हैं और कुछ ने इसे श्रापित गांव घोषित कर दिया है. इसके इतिहास और रहस्य को समझने के लिए सालों से रिसर्च हो रही है, लेकिन अब तक कोई पुख्ता परिणाम सामने नहीं आया है.
कुलधरा के श्रापित होने के पीछे एक ऐतिहासिक कहानी बताई जाती है. कहा जाता है इस गांव की गलियां पहले चटख रंगों में रंगी थीं, हर तरफ शोर और हंसी-ठिठोली थी, पर फिर कुछ ऐसा हुआ कि एक रात में ही पूरा गांव वीरान हो गया.
आइए जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर क्या थी वह वजह, जिसने इस गांव को हमेशा के लिए वीरान कर दिया और पीछे छोड़ दिए कई सवाल–
ब्राह्मणों ने बसाया था कुलधरा!
1291 ईसा पूर्व जैसलमेर के पश्चिम में 18 किलोमीटर दूर पालीवाल ब्राह्मणों ने एक गांव बसाया था, जिसे नाम दिया गया कुलधरा. पहली बार यहां करीब 50 परिवारों ने घर बनाए, जो समय के साथ बढ़ते गए और एक गांव करीब 120 किमी के क्षेत्र में फैलकर 83 गांवों में बंट गया.
पहले जहां एक मुखिया हुआ करता था, वहीं बाद में पांच-पांच गांव पर एक मुखिया नियुक्त कर दिया गया. खास बात यह थी की पालीवालों ने कभी भी अपने कुटुम्ब, समाज और परिवार के फैसलों के लिए जैसलमेर के राजाओं पर निर्भर नहीं हुए. गांव के मुखिया और पंच ही वाद-विवाद और परेशानियों के हल मिलकर तलाशते थे.
पालीवाल ब्राह्मण अन्य ब्राह्मण समुदायों से हटकर व्यापार किया करते थे. इनमें से कुछ कुशल किसान और पशुपालक भी थे. इनका मुख्य काम ऊंटों के जरिए अन्य राज्यों से सामान लाकर जैसलमेर में बेचना और राजस्थान की शिल्पकारी को अन्य राज्यों में बेचना था. वे मुख्य रूप से सूखे मेवे, हाथी दांत के आभूषण, अफीम और अनाज का व्यापार करते थे.
व्यापारी वर्ग होने के कारण पालीवालों की आर्थिक स्थिति ज्यादा बेहतर थी. यही कारण था कि वे अन्य ब्राह्मण समुदायों को भी खटकते थे. फिर कई दशकों तक पालीवालों ने यहां शांति से निवास किया.
उनका किसी से बैर नहीं था, इसलिए जैसलमेर के किले से भी उनके संबंध अच्छे रहे.
Kuldhara Village of Rajasthan. (Pic: Wikimedia Commons)
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और अविष्कारक
पालीवालों की खास बात यह थी कि वे अविष्कारों में विश्वास रखते थे, उनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण था. इस बात की झलक मिलती है उनके घर बनाने की कला में. पालीवालों ने अपने घर बनाने के लिए उस जमीन की तलाश की, जहां जिप्सम की मात्रा सर्वाधिक हो. जिप्सम हरसौंठ का वैज्ञानिक नाम है.
यह एक तहदार खनिज है, जिसे ‘सिलेनाइट’ भी कहते हैं. इसमें कैल्श्यिम और सल्फेट के साथ जल के दो अणु भी होते हैं. यह बात पालीवाल जानते थे.
हरसौंठ वाली जमीन तलाश करने के बाद उन्होंने वहां कुलधरा गांव बसाया. यही कारण है कि पूरे जैसलमेर में सूखा होने के बाद भी यहां की जमीन में नमी रहती थी. यदि 75 प्रतिशत जल निकालकर हरसौंठ को पीस डाला जाए, तो प्लास्टर आॅफ पैरिस बन जाता है. यही कारण है कि उन्होंने अपने घर की दीवारों पर इसी सीमेंट की छपाई की, जिससे बिना पंखे के भी इन घरों में ठंडक रहती थी.
पालीवालों ने गांव के मकानों को इस तरह से बनाया था कि यदि एक के घर में बात हो रही है, तो वह दूसरे के घर में सुनाई नहीं देती थी. किन्तु, फिर भी जब दोनों घरों के सदस्यों को बात करनी होती थी, तो दीवार के एक हिस्से में छोटा सा सुराख होता था, जो उस वक्त टेलीफोन का काम किया करता था.
गांव जैसलमेर की तुलना में जमीन के निचले हिस्से में बसाया गया था. ऐसा इसलिए था कि यदि भारी संख्या में कोई गांव की तरफ आ रहा है, तो उसकी आवाज 4 मील पहले से सुनाई देती थी. वे जलसंचय के लिए ‘खड़ीन’ का इस्तेमाल करते थे.
खड़ीन एक कृत्रिम निचाई वाला हिस्सा होता था, जिसके तीन ओर बाँध बना दिए जाते थे. जब खड़ीन का पानी सूख जाता तो बची हुई मिट्टी में ज्वार, गेहूँ और चने की फसल उगाई जाती थी. इस वैज्ञानिक दृष्टिकोण का जैसलमेर तो क्या पूरे राजस्थान में कोई मुकाबला नहीं था. इस कारण वे राज्य के वरिष्ठ शिल्पकारों की नजर में खटकने लगे.
An Abandoned & Cursed 200 Year Old Village. (Pic: indiamike)
समय ने करवट ली और…
17वीं शताब्दी तक कुलधरा में शांति रही. तब तक देश में ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन हो चुका था और देश के कई राज्यों में अंग्रेजों की सत्ता काबिज होने लगी थी. 18वीं शताब्दी आने तक राजस्थान भी अंग्रेजों की हुकूमत का हिस्सा बन गया था. 1820 में जैसलमेर में मूलराज और गज सिंह राजाओं का राज था.
उन्होंने अंग्रेजों से संधि की थी कि वे उनकी सत्ता स्वीकार करेंगे यदि अंग्रेज बाहरी आक्रमणों से उनकी रक्षा करें. गज सिंह ने सालिम सिंह को राज्य का दीवान नियुक्त किया और उसे कर और लगान वसूलने की जिम्मेदारी सौंप दी.
राजाओं को शुरू से ही पालीवाल ब्राह्मण की आर्थिक सम्पन्नता और आत्मनिर्भरता खटक रही थी, इसलिए सालिम सिंह को जिम्मेदारी दी गई कि वह पालीवालों से अतिरिक्त कर वसूल करे.
इसलिए सालिम सिंह ने पालीवालों से अतिरिक्त कर वसूलना शुरू कर दिया. कर न देने पर वह गांव में उत्पात मचाता और उसके सैनिक घरों से पुरुषों को खींच लाते और उनकी बेरहमी से पिटाई करते. इससे गांव की महिलाओं की आबरू भी खतरे में थी.
कर्नल जेम्स टॉड ने अपनी किताब ‘ऐनल्स एंड एंटिक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान‘ में लिखा है कि व्यापारी वर्ग होने के कारण पालीवालों की अंग्रेजों के साथ अच्छी दोस्ती थी.
उन्होंने सालिम सिंह के अत्याचारों से परेशान होकर अंग्रेजों से जैसलमेर रियासत से संधि तोड़ने का आग्रह किया पर ब्रिटिश हुकूमत ने यह बात मानने से इंकार कर दिया. नतीजतन गांव वाले सालों तक सालिम सिंह के अत्याचार सहन करते रहे.
आबरू बचाने के लिए खाली हुआ गांव
वहीं इतिहासकार नन्द किशोर शर्मा ने अपनी किताब ‘जैसलमेर, दि गोल्डेन सिटी‘ में लिखा है कि 1825 तक पालीवालों ने हर अत्याचार सहन किया, लेकिन सालिम सिंह की नजर अब उनकी महिलाओं पर थी.
उसे कुलधरा गांव के प्रधान की बेटी पसंद आ गई. वह उसे किसी भी कीमत पर पाना चाहता था इसलिए उसने गांव वालों के सामने शर्त रखी कि वह सालभर का पूरा कर्ज माफ कर सकता है. बशर्ते उसे बदले में प्रधान की बेटी दे दी जाए.
गांव वालों ने उसकी शर्त मानने से साफ इंकार कर दिया. इसके बाद सालिम सिंह ने गांव वालों को सोचने के लिए एक रात का समय दिया और कहा कि यदि सुबह तक फैसला उसके हक में नहीं हुआ तो वह पूरी सेना के साथ आएगा.
इस धमकी ने गांव वालों को सोचने पर मजबूर कर दिया और रातों रात 83 गांवों के लोग एक साथ जमा हुए. महापंचायत बुलाई गई, लेकिन निर्णय लेने में देर नहीं लगी. क्योंकि कोई भी अपनी बेटी को सालिम सिंह के हवाले नहीं करना चाहता था. बात गांव की इज्जत की थी सो तय हो गया कि प्रधान की बेटी कहीं नहीं जाएगी, लेकिन अब भी समस्या थी कि आखिर सालिम सिंह का सामना कैसे किया जाए.. ?
बहुत सोचने के बाद तय हुआ कि यदि हमने उसका सामना किया तो निश्चित ही हार होगी और फिर पूरे गांव की महिलाओं की इज्जत खतरे में पड़ सकती है. इसलिए भलाई इसी में है कि आज रात ही पूरे गांव को खाली कर दिए जाए. यह किसी चुनौती से कम नहीं था. 83 गांवों में करीब 5 हजार परिवार रह रहे थे, फिर भी कोशिश हुई.
रातों-रात लोगों ने अपना सामान बांधा, तहखानों में रखा जो भी रुपया हाथ लगा उसे ले लिया. खाने का कुछ सामान और जरूरी औषधियां रखीं, जो मवेशी साथ चल सकते थे उन्हें साथ रखा और बाकी छोड़ दिए गए. रात घनी होते ही गांव से पालकी और ऊंट गाड़ियों में सवार होकर ग्रामीण अपनी नई मंजिल की ओर निकल पड़े.
देखते ही देखते पूरे गांव खाली हो गए और जाते-जाते गांव वालों के मन से आह निकली. उन्होंने श्राप दिया कि कुलधरा हमारी थी और हमारी ही रहेगी, यदि यह उजड़ी है तो उजाड़ ही रहेगी.
रेगिस्तान में इतनी तेज हवा थी कि सुबह तक उनके पैरों के निशां तक देखने को नहीं मिले. सालिम सिंह जब अपने सैनिकों के साथ वहां पहुंचा तो पूरा गांव खाली देखकर हैरान रह गया. गुस्से में उसने कई घरों को आग लगा दी.
सैनिकों को गांव वालों की तलाश के लिए भेजा पर कुछ हाथ न लगा.
Kuldhara known to be one of the most haunted place. (Pic: Condé Nast Traveller India)
क्या कुछ बचा है यहां…
पालीवालों का श्राप आज भी कायम है. इस गांव को फिर किसी राजा ने दोबारा नहीं बसाया. गांव वाले रातों रात किस रास्ते से कहां गए कोई नहीं जानता. इतिहासकारों का मानना है कि पालीवालों ने मप्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात और छत्तीसगढ़ में पनाह ली, जहां कई लोगों ने अपने नाम और पहचान बदल ली.
500 साल से ज्यादा वक्त तक कुलधरा में रौनक थी और अब 200 साल से यहां खालीपन है. कुछ पर्यटकों की गाड़ियां रोजाना यहां के खालीपन में हल्की सी आवाजें पैदा करती हैं, लोग खंडहर घरों में जाते हैं, फोटो खींचते हैं और फिर शाम होने से पहले ही वापिस आ जाते हैं.
कहा जाता है इन गांवों में जो भी रात को ठहरता है वह फिर वापिस नहीं आ पाता. हालांकि, वैज्ञानिकों ने रिसर्च में साबित किया है कि यह कोरी अफवाह है, फिर भी इंडियन पैरानॉमर्ल सोसायटी ने यहां मई 2013 में एक रिसर्च की थी और सोसायटी ने दावा किया कि कुलधरा में कुछ नकारात्मक ऊर्जा है, जिसके कारण आत्माएं होने की बात पर विश्वास किया जा सकता है.
हालांकि, राजस्थान सरकार ने इस थ्योरी को नकार दिया.
अब कुलधरा में 600 से अधिक घरों के अवशेष, एक मंदिर, एक दर्जन कुएं, एक बावली, चार तालाब और आधा दर्जन छतरियां शेष बची हैं. इसके अलावा घरों के भीतरी हिस्से में कुछ तहखाने भी मिलते हैं. कहा जाता है कि यह पालीवालों की तिजोरियां हैं जो उनके जाने के बाद सालम सिंह ने लूट ली थीं.
Temple in Kuldhara. (Pic: hauntedindia)
यदि आप भी राजस्थान जा रहे हैं, तो कुलधरा को अपनी यात्रा सूची में जरूर शामिल करें और हमारे साथ नीचे कमेंट बॉक्स में अपने अनुभव साझा करना न भूलें!
Web Title: Kuldhara: An Abandoned & Cursed 200 Year Old Village of Rajasthan, Hindi Article
Featured Image Credit: recipe4travel