ये बहुत सामान्य सी बात है कि किसी भी देश की न्यायिक व्यवस्था का असर उस देश के लोगों पर भी होता है. यदि न्यायिक प्रणाली बेहतर होगी, तो यकीनन न्यायसंगत समाज का गठन होगा.
वहीं यदि न्याय देने वाली व्यवस्था में ही खोट होगा, तो उसका असर लोगों को मिलने वाले न्याय पर भी पड़ेगा. भारत में अब तक न्यायिक प्रणाली को बेहतर बनाने की कई कोशिशें की गईं. बावजूद इसके इसमें कई खामियां हैं. सबसे बड़ी खामी जिसको लेकर भारतीय न्यायिक व्यवस्था पर बार-बार सवाल उठते रहे हैं, वो है इस व्यवस्था में महिलाओं की न के बराबर भूमिका!
1950 में अस्तित्व में आने के बाद से सुप्रीम कोर्ट में केवल एक ही महिला फातिमा बीवी चीफ जस्टिस के पद तक पहुंच पाईं. वहीं 1950 से लेकर अब तक केवल 7 महिलाएं ही सुप्रीम कोर्ट में जज बनने का मकाम हासिल कर पाई हैं. ये आंकड़ें हैरानी में डाल देने वाले हैं. बावजूद इसके महिलाएं निरंतर न्यायिक व्यवस्था में अपनी भूमिका को लेकर रास्ता खोज रही हैं.
अपनी काबिलीयत से वो उस ढ़ांचे को अपने लिए झुकने पर मजबूर कर रही हैं. धीरे-धीरे ही सही वो अपनी कोशिशों में कामयाब भी हो रही हैं. इन्हीं महिलाओं में एक नाम लीला सेठ का भी है. लीला सेठ भारत के न्यायिक प्रणाली में कोई मामूली नाम नही है. लीला सेठ वो हैं, जो दिल्ली हाई कोर्ट की पहली महिला जज बनीं. लीला सेठ वो हैं, जो किसी हाई कोर्ट की पहली चीफ जस्टिस बनीं और मदर इन लॉ' कहलाती हैं.
तो आइए जानें कि उन्होंने कामयाबी का ये सफर कैसे तय किया-
लंदन बार परीक्षा टॉप कर कहलाईं 'मदर इन लॉ'
लीला सेठ 1930 में पैदा हुईं. यह वह दौर था, जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था. लीला के पिता इम्पीरियल रेलवे सर्विस में काम करते थे. लिहाजा उनका बचपन अच्छी बीता, हालांकि जब वो 11 साल की थीं, तब उनके पिता की मृत्यु ने परिवार समेत उनको सदमें में डाल दिया था. खासतौर पर लीला की मां के लिए यह सहज नहीं था. फिर भी उन्होंने मजबूती दिखाई और लीला की पढ़ाई में किसी तरह की कोई कसर नही छोड़ी.
इस तरह मां की मदद से लीला ने दार्जीलिंग के लॉरेटो कंवेंट स्कूल से अपनी पढ़ाई पूरी की. आगे बतौर स्टेनोग्राफर उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की. इसी दौरान उनकी मुलाकात प्रेम सेठ से हुई, जोकि बाद में उनके पति बने. शादी के कुछ सालों बाद लीला सेठ और उनके पति प्रेम सेठ लंदन चले गए थे. लंदन जाकर लीला ने अपनी आगे की पढ़ाई शुरू की और 27 साल की उम्र में एक बच्चे की मां होते हुए उन्होंने लंदन बार की परीक्षा को टॉप किया.
इस उपलब्धि पर लीला सेठ को एक स्थानीय अखबार ने 'मदर इन लॉ' की संज्ञा दी. भारत लौटने पर उन्होंने अपने कानूनी कैरियर को आगे बढ़ाते हुए पटना में प्रैक्टिस शुरू कर दी. इस दौरान उनके एक सीनियर वकील ने उनसे कहा, लीला तुम्हें अब शादी कर लेनी चाहिए. असल में उन्हें नहीं पता था कि लीला शादीशुदा है. लीला ने जब उन्हें बताया तो हैरान रह गए.
आगे बढ़ते हुए उन्होंने लीला से कहा सिर्फ शादी ही काफी नहीं, बच्चे होना भी जरूरी है. इसके जवाब में जब लीला ने कहा कि वह एक बच्चे की मां हैं, तो उनके सीनियर हैरानी से उनकी तरफ देखते रहे थे!
मैरिटल रेप के खिलाफ की सिफारिशें
लीला सेठ के पूरे कानूनी सफर में वो कुछ ऐसी कमेटियों का हिस्सा रहीं, जिसके तहत भारत में महिलाओं के अधिकारों को लेकर अहम फैसले किए गए. इसमे पहले आती है 15वां लॉ कमिशन, जिसके तहत हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में कुछ अहम संशोधन सुझाए गए. इन संशोधनों के तहत महिलाओं को पारिवारिक संपत्ति में बराबर का हक देने का फैसला किया गया.
कमिशन ने कई ग्राउंड रिपोर्ट्स का आंकलन किया, जिसमें ये पाया गया था कि किस तरह संपत्ति से जुड़े अधिकारों में महिलाओं के साथ भेदभाव होता है. उन्हें अपने पारिवारिक संपत्ति में पुरूषों के समान अधिकार नही मिल पाते हैं.
अपनी 174वीं रिपोर्ट सौंपते हुए कमिशन ने इस मामले में अपने विचार रखे थे.
महिलाओं के अधिकारों के नजरिए से लीला सेठ दूसरी जिस अहम कमिटी का हिस्सा रहीं, वो थी जस्टिस वर्मा कमिटी. इस कमेटी का गठन उस क्रूर और बेरहम घटना के बाद हुआ था, जिसने पूरे देश को महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चिंता में डाल दिया था. ये केस था 16 दिसंबर को देश की राजधानी में दिल्ली में हुआ गैंग रेप.
घटना के बाद जब देश भर में प्रदर्शन हुए, तो सरकार पर दबाव बना और रेप से जुड़े कानूनों को और भी पुख्ता और कड़ा करने की मांग उठी. इसके लिए जस्टिस वर्मा की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की कमिटी बनाई गई थी. लीला सेठ उनमें से एक थीं.
लीला सेठ अपनी किताब टॉकिंग ऑफ जस्टिस में इस कमेटी की सदस्य होने के अनुभव की चर्चा की हैं. कमेटी में रखी गई उनकी राय से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो किस कदर बिना किसी भेदभाव वाले न्याय में विश्वास रखती थी.
खास बात यह कि जब कमेटी में रेप से जुड़े कानून बनाने पर बहस हो रही थी, तो लीला ने ऐसी अप्रोच की बात की जो जेंडर न्यूट्रेल हो. यानि जिसमें रेप पीड़ीतों को उनके जेंडर के आधार पर न्याय देने के बजाए हर किसी के लिए एक सा कानून हो.
हालांकि, जब ये रिपोर्ट संसद के पास पहुंची तो उन्होंने कमेटी द्वारा सुझाए गए रेप पर जेंडर न्यूट्रेल कानून को हटाकर उसे जेंडर निर्धारित कर दिया. इसमें गुनहगारों और पीड़ीतों को उनके जेंडर के आधार पर सजा या इंसाफ दिया जाएगा.
लीला सेठ ने संसद के इस फेरबदल की आलोचना की, उन्होंने इसे आदमियों और समलैंगिकों के लिए गलत ठहराया.
कमेटी ने अपनी इस रिपोर्ट में मैरिटल रेप पर भी अपनी रखते हुए गैरकानूनी और अपराध की श्रेणी में डालने की बात की थी. लीला सेठ ने कई देशों का उदाहरण दिया था, जहां मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में रखा गया. उन्होंने भारत में भी इस अपराध ठहराने की दृष्टि से कनाडा, साउथ अफ्रीका, और इंगलैण्ड का उदाहरण दिया है.
लीला सेठ ने इस मामले में दी गई कमेटी की राय पर खिलाफत करने वाले लोगों की मानसिकता पर सवाल उठाए. किताब में उन्होंने बताया कि कैसे एक जनाब ने मारिटेल रेप को अपराधिक श्रेणी में लाने का ये कहते हुए विरोध किया कि इससे तलाक के मामले बढ़ जाएंगे. हालांकि, सरकार ने कमेटी की इस सिफारिश को नहीं माना था.
समलैंगिकों के लिए खुलकर उठाई आवाज
न सिर्फ महिलाओं, बल्कि समलैंगिकों के लिए भी लीला सेठ ने खुलकर आवाज उठाई थी. 2014 में जब सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को आपराधिक करार दिया, तो लीला सेठ ने एक अंग्रेजी अखबार के लिए एक लेख लिखा.
इस लेख में लीला सेठ ने लिखा कि “मेरा नाम लीला सेठ है. मैं 83 साल की हूं. मैं अपनी 60 साल की शादीशुदा जिंदगी में बहुत खुश हूं. मैं तीनों बच्चों की मां हूं और उन तीनों को एक समान प्यार करती हूं. मैने और मेरे पति ने अपने बच्चों को दूसरों के प्रति सहानूभूति, ईमानदारी रखना और साहसी होने के गुण दिए हैं.
हम जानते हैं कि वो तीनों बहुत मेहनती लोग हैं, जो दुनिया की भलाई के लिए कुछ अच्छा करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन मेरा सबसे बड़ा बेटा अब एक गुनहगार है. ये सिर्फ इसलिए कि वो भारत में रह रहे कई और लोगों की तरह समलैंगिक है.”
लीला सेठ ने फैसले पर ऐतराज जताते हुए लिखा था कि मैं कानून की इज्जत करती हूं. साधारणत किसी फैसले पर कोई कमेंट नहीं करती, लेकिन इस पर मैं चुप नहीं रह सकती. चूंकि फैसले में जिस तरह से कानून की व्याख्या की गई है, उसमें समलैंगिक समुदाय के लोगों पर होने वाली ज्यादतियों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया गया है.
जिस तरह से लीला सेठ अपने जीवन में कानून को लेकर अपनी आवाज बुलंद की. वह सराहनीय है. उन्होंने न केवल महिलाओं के लिए एक मिसाल कायम की, बल्कि कानून को लेकर उनकी सोच ने भारतीय कानून व्यवस्था पर गहरा असर छोड़ा है.
Web Title: Leila Seth, First women Judge Of Delhi High Court, Hindi Article
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