मोहब्बत में जुदाई का कोई मौसम नहीं होता, सच्ची मोहब्बत करने वाले बिछड़ कर भी हमेशा साथ रहते हैं. यही सबसे बड़ी वजह है कि हम पुराने समय के ऐसे ही मोहब्बत के किस्सों को पढ़कर और सुनकर आ रहे हैं. ऐसे किस्सों को जानने के बाद हमें लगता है कि प्यार करने वालों की मंजिलें कभी आसान नहीं थीं.
न कल… न आज!
मोहब्बत इम्तिहान मांगती है और जो इन इम्तिहान को पास कर लेता है. उन्हें मोहब्बत की मजिलें मिल जाती हैं, लेकिन यह मंजिलें इतनी आसान भी नहीं होतीं. यही वजह है कि हमारे पास मिर्जा- साहिबा जैसे प्रेमी जोड़ों की मोहब्बत दर्द भरी कहानियों के रुप में आज भी मौजूद हैं.
आज हम आपको एक ऐसे ही दो मोहब्बत करने वालों की दास्तां सुनाने जा रहे हैं, जिन्हें दुनिया भर के लोग हीर-रांझा के नाम से जानते हैं. जी हां, हीर-रांझा एक ऐसा प्रेमी जोड़ा… जो दर्द भरी इस दुनिया में अपने प्यार को परवान नहीं चढ़ा सका.
कहते हैं कि हीर-रांझा के लिए जितनी मुश्किल उनकी राहें थीं, उससे कहीं मुश्किल उनकी मंजिलें, इसलिए आईये पंजाब की जमीन पर जन्मे हीर-रांझा की मोहब्बत की दास्तान को और गहराई से समझने की कोशिश करते हैं–
मीलों दूर होने के बाद भी आए ‘करीब’
हीर-रांझा की मोहब्बत की कहानी की शुरुआत पंजाब राज्य से हुई. यह कहानी उस वक़्त की है, जब हिंदुस्तान-पाकिस्तान का बंटवारा नहीं हुआ था. जिस पंजाब प्रांत में हीर-रांझा की मोहब्बत के सिलसिले शुरु हुए, वह पंजाब अब पाकिस्तान देश का हिस्सा है.
खैर, हीर अपने समय की बेहद खूबसूरत लड़की थी. हीर का जन्म पंजाब प्रांत के झांग गांव में हुआ था, जो अब पाकिस्तान देश के बड़े शहरों में शुमार किया जाता है. हीर का ताल्लुक सियाल कबीले से था. इस कबीले के लोग काफी खानदानी जमींदार और गांव में खूब रसूख वाले थे.
इधर रांझा का जन्म पंजाब में बहने वाली चेनाब दरिया के पास गांव तख़्त हज़ारा में हुआ था. रांझा जाट कबीले से ताल्लुक रखता था. कहा जाता है कि रांझा का असली नाम कुछ और था. रांझा तो उसका महज सरनेम था.
भले ही दोनों का जन्म एक ही प्रांत में हुआ था, लेकिन दोनों के गांव एक दूसरे से मीलों दूर थे. ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि मीलों दूर होने के बाद भी एक दिन दोनों बेहद करीब कैसे आ गये.
Heer (Pic: Representative Pic: Instanonymous.com)
‘किस्मत’ ने कराई दोनों की मुलाकात
मोहब्ब्त में जीने वाले भी अजीब हैं, मोहब्बतों में मरने वाले भी अजीब हैं. अज़ीम हैं दास्तां मोहब्बत की फासलों पर जो रहते हैं. वह बेहद करीब है.
ये पंक्तियां शायद हीर-रांझा के लिए ही किसी ने लिखीं होगीं!
दोनों एक दूसरे से मीलों दूर होने के बाद एक दिन बेहद करीब थे. रांझा अपने चार भाईयों में एक था. रांझा की अच्छी आदतें और हंसमुख चेहरे के कारण वह अपने पिता का भी काफी चहेता था. रांझा में एक खूबी और थी, जिसके चलते गांव के लोग उसके दीवाने थे.
वह बांसुरी बहुत अच्छी बजाया करता था. कहते हैं कि जब रांझा गांव के हरे-भरे खेतों में बांसुरी बजाया करता, तो गांव के लोग अपना सारा काम छोड़कर उससे सुनने दौड़े आते थे. रांझा के जीवन की शुरुआत तो अच्छी रही, किन्तु पिता के जाने के बाद रांझा का वक़्त बदल गया.
उसके शादीशुदा भाईयों की पत्नियां उस पर ज़ुल्म करने लगीं. भाभियों के ज़ुल्म करने की वजह का कारण था पिता की ज़मीन का हिस्सा. उसकी भाभियों को लगता था कि अगर रांझा घर में रहा तो जमीन के बंटवारे में उसे भी हिस्सा देना पड़ेगा.
कहा जाता है कि रांझा की भाभियों ने उसे खाना देना तक छोड़ दिया था. इससे तंग आकर रांझा घर छोड़कर चला गया.
शायद रांझा की किस्मत को उसकी मुलाकात हीर से करानी थी. जैसे-तैसे रांझा का मीलों का सफर करके हीर के गांव झांग आकर रुक गया.
बांसुरी की आवाज ने हीर को बनाया दीवाना
मीलों सफर करने के बाद रांझा काफी थक चुका था. वह ईमानदार था और मेहनती भी, इसलिए झांग गांव में मेहनत कर थोड़े पैसे कमाकर अपना गुज़ारा करता. इसी दौरान एक दिन हीर के ज़मीदार पिता की नज़र रांझा पर पड़ी और उन्होंने रांझा की ईमानदारी से ख़ुश होकर उसे घर में काम पर रख लिया.
रांझा घर के पालूत जानवरों की देखरेख करता और उन्हें खेतों घास चराने ले जाया करता. खेतों में जब तक जानवर घास चरते, रांझा अपनी बांसुरी बजाने में मशगूल हो जाता. एक दिन जब रांझा बांसुरी बजाने में लीन था, हीर का वहां से गुजरना हुआ. उसके कानों में जैसे ही रांझा की बांसुरी की आवाज़ पड़ी, वह उसकी दीवानी हो गई.
आगे हीर, रांझा को छुप-छुप कर सुनने लगी.
हीर के दिल में रांझा की मोहब्बत एक तरफा बढ़ती जा रही थी. वह रांझा को पसंद करने लगी थी. एक दिन जब हीर को रांझा से बात करने का मौक़ा मिला, तो उसने पहली मुलाक़ात में अपने दिल का हाल सुना दिया. रांझा, हीर की मोहब्बत को ठुकरा नहीं पाया और इस तरह दोनों की मोहब्बत परवान चढ़ने लगी.
दोनों छुप छुप कर मिलने लगे. फिर एक दिन दोनों ने साथ जीने मरने की कसमें खा लीं.
Canvas Heer Ranjha Painting (Pic: Amazon)
मुश्किलों से भरी थीं आगे प्यार की राहें
हीर-रांझा एक दूसरे को दिल दे बैठे थे. दोनों किसी कीमत पर एक दूसरे के बिना रहने को राजी नहीं थे. शायद दोनों को अंदाज़ा नहीं था कि आगे उनकी मोहब्बत ने उनका कितना कड़ा इम्तिहान लेना है.
एक दिन हीर के चाचा ने उसे रांझा के साथ चोरी छुपे मिलते हुए देख लिया. हीर के चाचा ने इसकी शिकायत हीर के परिवार से कर दी. दोनों की मोहब्बत की ख़बर गांव में आग की तरह फ़ैल गई. हीर के परिवार वालों ने उसे रांझा को भूलने का दबाव डाला, लेकिन वह इसमें नाकामयाब रहे.
अंतत: उन्होंने एक दिन हीर की शादी ज़बरदस्ती ज़मीदार लड़के से कर दी. असल में हीर के पिता को यह मंजूर नहीं था कि घर के एक मामूली नौक़र से उनकी बेटी की शादी हो. अगर ऐसा होता तो गांव में ज़मीदार परिवार की इज्जत पर लोग सवाल उठाते. शादी के बाद हीर अपने पति के साथ दूसरे गांव चली गई.
उधर हीर की जुदाई ने रांझा को तोड़ कर रख दिया. वह जोगी बनकर पूरे पंजाब में दर्द भरे नगमें गाकर गली गली घूमने लगा. वह अपने हर नगमें में लोगों को यही बताता कि मोहब्बत में सिवाए दर्द के कुछ नहीं मिलता.
बरसों बाद दोनों मिले तो, लेकिन…
कहते हैं कि वक़्त सिखा देता है इंसान को जीने का हुनर. उसके बाद क्या नसीब और क्या हाथ की लकीरें. हीर की जुदाई में रांझा ने जीने का हुनर तो सीख लिया था, लेकिन रांझा के दिल में हीर की जुदाई की कसक थी.
यही वजह थी कि दोनों की किस्मत ने दोनों को फिरसे बरसों बाद मिलाया और ऐसा मिलाया कि दोनों की मोहब्बत फिर से जवां हो गई. दो सच्चा प्यार करने वाले जब मुद्दत बाद मिलते हैं तो यही तो होता है… दिल काबू में नहीं रहता!
कहा जाता है वक़्त को ग़लत साबित करने के लिए दोनों ने एक दूसरे से शादी करने का मन बनाया. दोनों की मोहब्बत के आगे उनके घर वालों को भी झुकना पड़ा और दोनों की शादी की तैयारियां शुरु हो गईं.
इस बार दोनों की मोहब्बत में हीर का पति आंधी बनकर आया और इस आंधी ने हीर-रांझा की मोहब्बत को उजाड़ कर रख दिया. शादी की तैयारियों के दौरान हीर के पुराने पति ने धोखे से मिठाई में ज़हर रखकर हीर को ख़िला दिया, जिससे हीर की तड़प-तड़प कर मौत हो गई.
जब रांझा हीर के पास पहुंचा तो हीर का शरीर ज़मीन पर पड़ा था और पास में वह मिठाई का टुकड़ा था. रांझा ने आंखो में आंसू लाकर बिना किसी से कुछ कहे वह ज़हर से भरी मिठाई खाली और चंद मिनटों में उसकी भी मौत हो गई.
दोनों ने साथ जीने मरने की कसमें खाईं थीं, लेकिन साथ जीने की कसम के बजाए साथ मरने की कसम कुबूल हो चुकी थी. इस तरह हीर-रांझा साथ जी तो न सके, लेकिन मरने के बाद दोनों साथ दफन जरूर हुए.
Heer and Ranjha in a 1970s film poster (Pic: TFT)
हीर के झांग गांव में दोनों को दफ़नाया गया जहां आज भी उनकी यादें ताज़ा हैं.
हीर रांझा की असल मोहब्बत में कई फिल्में भी बनाई गईं हैं, जिससे हीर-रांझा की मोहब्बत दर्शकों के दिल में जिंदा है.
Web Title: Love Story of Heer Ranjha, Hindi Article
Featured Image Credit: Flipboard