एक जीवन जो नाचते-गाते, दूसरों की खुशियों में खुश होते, दुनियाभर को दुआएं देते हुए बीत जाए...!
एक आम आदमी के लिए यह कितनी खास बात होती है. पर जब इसी 'जीवन' के आगे 'किन्नर' शब्द जोड़ा जाता है, तो इस पूरी लाइन के मायने ही बदल जाते हैं. अच्छा लगता है जब हमारे घर उत्सव होता है.
इस मौके पर रौनक बढ़ाने किन्नर दरवाजे पर आते हैं. पर हम न तो कभी उनके दरवाजे पर झांकते हैं न उनकी जिंदगी में. किन्नरों के बारे में आम सी धारणा बस यही है कि वे शादी-ब्याह और त्यौहारों पर अपनी गलियों से निकलते हुए हमारे सभ्य समाज में आते हैं, पैसे लेते हैं और फिर उन्हीं गलियों में चले जाते हैं.
पर जनाब इन गलियों में किन्नर सांसे लेते हैं, जीते हैं, हंसते और रोते हैं फिर एक दिन खामोशी से मर जाते हैं. हर किन्नर के जीवन में एक दिन ऐसा आता है जब वाकई खुश होता है, दुल्हन बनता है और फिर शादी करता है!
चलिए आज किन्नरों की गलियों से निकले हुए उनकी शादी के किस्से और उससे जुडे पौराणिक इतिहास को टटोलते जाएं!
स्त्रियों जैसा वेश रखते हैं किन्नर
किन्नर वे हैं जो न तो पूरी तरह से पुरूष हैं न ही स्त्री. फिर भी उनका पहनावा स्त्रियों वाला होता है. दरअसल इसके पीछे महाभारत काल की एक घटना का तर्क दिया जाता है. एक बार जब अर्जुन चित्रसेन से संगीत और नृत्य की शिक्षा ले रहे थे. तभी वहां इंद्र की अप्सरा उर्वशी पहुंची. वह अर्जुन के रूप को देखकर उन पर मोहित हो गई.
उन्होंने अर्जुन के समक्ष अपने मन की संवेदनाएं प्रकट की. जवाब में अर्जुन ने कहा कि आप पुरू वंश की जननी है इस लिहाज से आप मेरी माता के समान हैं. मेरा आपके साथ केवल मां और पुत्र का रिश्ता हो सकता है. प्रेम प्रस्ताव ठुकराने से दुखी उर्वशी ने अर्जुन को एक वर्ष तक किन्नर होने का श्रॉप दिया.
इसी श्रॉप की बदौलत अज्ञातवास के दौरान अर्जुन खुद को कौरवों से छिपाने के सार्थक हुए. वे किन्नर के रूप में स्त्रियों वाले कपड़े पहना करते थे. यही वजह रही कि किन्नरों को अधिकांशत: स्त्री वेशभूषा में देखा जाता है.
तमिलनाडू का एक गांव ऐसा भी...
वैसे तो किन्नरों की आबादी पूरे देश में फैली हुई है और हर छोटे-बडे शहर में कोई न कोई कोना है, जहां किन्नरों की अपनी बस्तियां हैं. बावजूद इसके तमिलनाडू का एक गांव कूवगाम किन्नरों के लिए काफी मायने रखता है. यह वही गांव हैं जहां हर साल हजारों की संख्या में किन्नर जमा होते हैं और फिर उनका सामुहिक विवाह होता है.
किन्नरों का विवाह किसी उत्सव से कम नहीं. आम हिंदू परिवारों की तरह यहां शादी की हर रस्म अदा की जाती है. तमिल नव वर्ष की पहली पूर्णिमा इस उत्सव का सबसे अहम पडाव होता है. पूर्णिमा से अगले 18 दिन तक किन्नरों की शादी की विभिन्न रस्में होती हैं. जैसे हल्दी लगना, तेल चढ़ना, मेंहदी और संगीत. इन रस्मों को निभाने वाले भी किन्नर ही होते हैं.
खास बात यह है कि शादी की कोई उम्र निश्चित नहीं है. यहां 18 साल से लेकर 80 साल तक के किन्नर विवाह के लिए पहुंचते हैं. कुछ तय है तो बस यह कि मरने से पहले उनका विवाह करना जरूरी है. उत्सव के 17 दिनों में सभी रस्में होंने के बाद आखिरी दिन किन्नर सोहर श्रंगार करते हैं. ठीक उसी तरह, जैसे कोई दुल्हन.
दुल्हन की तरह बन संवर कर वे मंडप में पहुंचते हैं. जहां पुरोहित उन्हें हल्दी से पुते हुए सूत के धागे में पिरोए हुए काले मोतियों से बना एक मंगलसूत्र देते हैं. आप सोच रहे होंगे कि आखिर दुल्हन यहां है तो दूल्हा कहां है?
तो किन्नरा का दूल्हा भी उसी मंडप में होता है. यह दूल्हा कोई और नहीं बल्कि किन्नरों के भगवान 'इरावन' होते हैं. जो मंगलसूत्र किन्नरों को दिया जाता है वह इरावन के चरणों में अर्पित होता है और फिर मंडप में बैठे किन्नर एक—दूसरे के गले में मंगलसूत्र बांध देते हैं. अब यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि यह शादी किन्नर आपस में नहीं बल्कि अपने भगवान से कर रहे होते हैं.
पर ऐसा क्यों? तो इसका जवाब भी महाभारत काल की एक कहानी से मिलेगा.
मोहिनी एक रात के लिए बनी थी दुल्हन
किन्नर जिन्हें अपना भगवान मानते हैं वे 'इरावन' हैं, जिन्हें कुछ लोग 'अरावन' के नाम से भी पुकारते हैं. इरावन अर्जुन और नागकन्या उलूपी की संतान हैं. जब महाभारत के युद्ध की घोषणा हुई तो पांडवों ने विजय के लिए युद्ध से पहले मां काली की विशेष पूजा की. इस पूजा का प्रावधान यह कहता है कि पूजा का फल तभी प्राप्त हो सकता है जब कोई नरबलि दी जाए.
विशेष फल पाने के लिए परिवार के राजकुमार की ही नरबलि दी जानी अनिवार्य है.
पांडवों के सामने समस्या यह थी कि आखिर अपने किस पुत्र को मौत के मुंह में धकेल दिया जाए? कैसे अपने ही पुत्र की निर्मम हत्या कर दी जाए? हालांकि नरबलि के लिए पांडवों का कोई भी पुत्र आगे नहीं आया. पूजा अधूरी थी और पांडव परेशान. तभी अर्जुन पुत्र इरावन वहां पहुंचे और कहा कि मैं नरबलि के लिए तैयार हूं.
यह मेरी मृत्यु से मेरे पिता, परिवार और भाईयों का जीवन सुरक्षित होता है तो मैं हंस कर बलि हो सकता हूं. सभी उसके प्रस्ताव की तारीफ कर पाते इसके पहले इरावन ने शर्त रखी. यह शर्त थी कि मरने से पहले मेरा विवाह होना चाहिए.
इस शर्त ने पांडवों को फिर परेशानी में डाल दिया. भला कौन सी राजकुमारी हो सकती थी तो केवल एक रात के लिए विवाह करती और अगले दिन विधवा हो जाती. इस समस्या का हल निकाला भगवान श्री कृष्ण ने.
उन्होंने मोहिनी रूप धरकर इरावन से शादी की सहमति दे दी. इस तरह महाभारत शुरू होने के ठीक पहले इरावन ने मोहिनी से विवाह किया. एक रात के लिए श्रीकृष्ण दुल्हन बने और अगले दिन इरावन की बलि दे दी गई. इस तरह वे अगले दिन विधवा हो गए. इरावन की मृत्यु के बाद मोहिनी ने विधवा की तरह विलाप किया. और फिर शुरू हुई महाभारत!
...और अगले दिन विधवा हो जाते हैं किन्नर
इस घटना के आधार पर ही किन्नर इरावन से विवाह करते हैं. सारे रीति—रिवाज होने के बाद एक रात का जश्न मनाया जाता है. उत्सव, गीत, संगीत होता है. विवाह के बाद इरावन की विशाल मूर्ति को पूरे क्षेत्र में घुमाया जाता है. जुलूस में नाचते गाते हुए हजारों किन्नर दिखाई देते हैं. शाम होने के बाद इरावन की मूर्ति के टुकड़े-टुकड़े कर दिए जाते हैं.
यह इसी संदर्भ में होता है कि इरावन की शादी के बाद बलि दे दी गई. और फिर सभी किन्नर विधावाओं की तरह विलाप करती हैं. 18 दिनों के उत्सव के बाद विपाल का यह आखिरी मंजर रौंगटे खड़े कर देने वाला होता है.
इस विलाप के बहाने एक किन्नर अपने जीवन की तमाम तकलीफों को याद करते हैं. यही वह मौका होता है जब वे सबसे ज्यादा खुश होते हैं और फिर सबसे ज्यादा दुखी. उनकी सारी तकलीफें विलाप के साथ, चीखों में बदलती जाती हैं और फिर आंसुओं से होती हुई बह जाती हैं. इसके बाद लंबा मौन. विधवा होने के बाद अधिकांश किन्नर भगवान विष्णु की आराधना में लग जाते हैं.
सांसारिक जीवन त्याग देते हैं, विधवा नियमों का पालन करते हैं और दोबारा साज-श्रंगार नहीं करते. इसके बाद का सारा वक्त बस उस पाप के प्राश्चित में गुजरता है, जिसके कारण उन्हें किन्नर जीवन भोगना पड़ा.
किन्नरों के जीवन की अंतिम घडी भी कष्टों से भरी होती है. हमारे परिवारों की तरह उनके घरों में मरने पर शोक नहीं मनाया जाता बल्कि खुशी इस बात की होती है कि कम से कम उसे किन्नर योनि से मुक्ति मिल गई. जहां एक ओर हमारे सभ्य माने जाने वाले समाज में शव यात्रा पर फूल फेंके जाते हैं वहीं किन्नरों की शव यात्रा गुप्प अंधेरे में निकली है. बिना किसी रूदन के!
यदि आवाज आती है तो केवल चप्पलों की... जो उस शव को मारी जाती है जो अपने आखिरी सफर पर है.
इसके पीछे तर्क है कि चप्पल मारकर उसके इस जीवन के सारे पापों, गललियों को खत्म किया जाता है ताकि फिर कभी वो किन्नर पैदा न हो. किन्नरों के जीवन से जुड़े इन अजीब से रिवाजों के पीछे एक बात समान लगती है!
यह बात है 'पीड़ा'. वह पीड़ा जिससे जन सामान्य का कोई सरोकार ही नहीं. वह पीड़ा जिसके साथ एक किन्नर जन्म लेता है,
जीता है और फिर उसे लेकर मर जाता है!
Web Title: Mythological Story of Shemale Wedding
Feature Image Credit: SpashtAwaz