24 सितंबर 1982 को बीआर चोपड़ा ने बॉलीवुड को एक फिल्म दी. नाम था 'निकाह'
इस फिल्म में बीआर चोपड़ा ने उन दो प्रथाओं 'तीन तलाक' और 'हलाला' पर चोट की, जिन्हें इस्लाम में महिलाओं के खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है. फिल्म 36 बरस पुरानी है, लेकिन समस्या शताब्दियों से चली आ रही है.
आते-आते 2018 आ गया पर समस्या का हल न मिला!
कुछ अच्छा है तो बस यह कि निकाह की 'निलोफर' के शब्दों को आज की 'निदा खान' की आवाज मिल गई है. वे उस लड़ाई को जिंदा रखे हुए हैं, जिसमें यदि जीत गए तो इस्लाम में महिलाओं को उनका जायज हक मिल जाएगा.
फतवे पर फतवे जारी हो रहे हैं. कथित गुंडे घर पर हमला कर रहे हैं. धर्म से बेदखल कर दिया है पर निदा का हौंसला अभी डिगा नहीं है. तो चलिए जानते हैं निदा और उनके जज्बे की कहानी!
पति ने आठ माह में दे दिया तलाक
निदा खान!
यूपी के बरेली से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक हर कोई नाम और इसके पीछे छिपी ताकत से वाकिफ है. कहते हैं निदा का हौंसला ही है, जो सरकार को 'तीन तलाक' विधेयक पारित करने पर मजबूर कर सका.
पर यह सब लिखने-पढ़ने जैसा आसान नहीं था. बल्कि निदा ने इसके लिए बड़ी कीमत अदा की है.
निदा का जन्म एक सम्पन्न परिवार में हुआ था. पिता की आंखों का तारा रही निदा की हर वह ख्वाहिश पूरी हुई, जो उसने मांग की. ग्रेजुएशन के बाद निदा की शादी बरेली के नामी आला हजरत खानदान के शीरान रजा खां से हो गई.
16 जुलाई 2015 को हुई इस शादी में वह हर चीज निदा को तोहफे में दी गई, जो उसकी गृहस्थी में चार चांद लगा सकती थी.
पिता ने नाजों से बेटी को विदा किया. पर शायद ससुराल वालों को यह सम्मान कम लगा. सो शादी के सप्ताहभर बाद से ही पति का मिजाज खराब रहने लगा. पहले जुबान में कड़वाहट आई और फिर धीरे-धीरे नौबत हाथ उठाने तक आ गई.
निदा कोशिश कर रही थी कि उसे या तो वह सलीका आ जाए, जिससे उसके मियां खुश हो जाएं. या फिर इतनी मोटी चमड़ी हो जाए की मार का असर ही न हो.
पर मियां जान को निदा से इस कदर नफरत हुई कि उन्होंने बिना कोई वाजिव वजह बताए शादी के आठ माह के भीतर ही निदा को तलाक दे दिया. यह तलाक भी कुछ ऐसा जैसे कोई राशन की लिस्ट पढ़ रहा हो.
तलाक! तलाक! तलाक!
निदा जब तक इन शब्दों को कानों से होते हुए जहन में उतार पाती. तब तक तो पति ने बोरिया-बिस्तर बांधकर दरवाजे के बाहर खड़ा कर दिया. वह दरवाजा खटखटाती रही पर किसी के कान पर जूं तक न रेंगी. आमतौर पर लड़कियां ऐसे हालत में पड़ोसियों और रिश्तेदारों से मदद मांगती हैं, पर निदा ने पुलिस स्टेशन का रूख किया.
पति की हरकत के खिलाफ शिकायत दर्ज की.
मायके वाले पहले तो निदा को समझाते रहे, पर फिर जब लगा कि वह सही है तो सबने उसका साथ दिया. निदा पुलिस, रिपोर्ट, थाने तक सीमित नहीं रहना चाहती थी. उसने जिला अदालत का रूख किया.
कोर्ट गई तो जारी हुआ फतवा
अदालत की चौखट पर निदा का पैर क्या पड़ा, ससुराल वालों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. आग में घी का काम उन मौलानाओं ने किया, जिन्हें इस्लाम में महिलाओं का आंख उठाना तक मंजूर नहीं.
बरेली में पहली बार किसी मुस्लिम महिला ने तीन तलाक के खिलाफ आवाज बुलंद की थी.
अधिकांश लोग उसका खुलकर विरोध कर रहे थे, जबकि निदा जैसी ही कुछ महिलाएं दबी जुबान में उसे जायज करार दे रही थीं. अदालत अपना फैसला सुना पाती. इसके पहले ही निदा के खिलाफ फतवा जारी कर दिया.
इसके तहत अगर निदा खान बीमार पड़ती हैं, तो उन्हें कोई दवा उपलब्ध नहीं कराई जाएगी. उनकी मौत हो जाती है, तो न ही कोई उनके जनाजे में शामिल होगा, न नमाज अदा करेगा.
अगर कोई उनकी मदद करता है, तो उसे भी यही सजा मिलेगी. उनसे तब तक कोई मुस्लिम संपर्क नहीं रखेगा, जब तक वह सार्वजनिक तौर पर माफी नहीं मांग लेती हैं और इस्लाम विरोधी स्टैंड को छोड़ती नहीं हैं.'
भारत में मौलानाओं के फतवे कोई नया मसला नहीं था, पर यह मामला कुछ अलग ही था. मौलाना साहब यह सोच रहे थे कि निदा डरेगी पर फतवे के बाद तो उनके हौसलों को जैसे एक नई उड़ान मिल गई!
जब निदा कोर्ट के चक्कर लगाती थीं, तो उन्हें अपनी जैसी समस्या से गुजर रही हर दूसरी मुस्लिम औरत दिखाई देती थी. इसके बाद उसने ऐसी ही पीड़ित महिलाओं को एक करना शुरू किया.
जब कुछ महिलाएं एक मंच पर आ गईं, तो शुरू हुआ निदा का एनजीओ— 'आला हजरत हेल्पिंग सोसाइटी'.
...और शुरू किया अपना 'एनजीओ'
पति तो अपनी ओर से डराने में कोई कसर नहीं रख रहे थे. आग में घी का काम किया समाज के कुछ ठेकेदारों ने. उन्होंने इस जंग के दौरान तीन बार निदा पर जानलेवा हमला भी करवाया.
उनके घर धमकी भरे कॉल आए. खत पहुंचे और एक बार तो गुंडो ने आतंक मचा दिया.
निदा के साथ उसके परिवार के बाकी लोगों का भी घर से निकलना मुश्किल हो गया. अब उम्मीद थी कि वह कोर्ट जाना बंद कर देगी. पर तब तक अदालत ने निदा को राहत दी और शौहर द्वारा उन्हें दिए गए तीन तलाक को अवैध घोषित कर दिया.
साथ ही घरेलू हिंसा का चार्ज एड हो गया. यह पहली छोटी जीत निदा के लिए काफी नहीं थी.
उसने अपने जैसी और औरतों के हक में लड़ाई शुरू की. तीन तलाक अकेला मसला नहीं था. इस्लाम में हो रहे 'हलाला निकाह' ने भी निदा को परेशान कर रखा था. केवल एक साल के भीतर निदा से करीब 350 महिलाओं की मुलाकात हुई, जो इन दो समस्याओं से दो चार हो रही थीं. इन्हीं महिलाओं के दम पर निदा ने मामले को सरकार तक पहुंचाने की ठानी.
मीडिया की मदद ली. सोशल मीडिया पर कैम्पेन शुरू किया. जिसका असर दिखाई देने लगा. मुस्लिम महिलाओं का साथ तो था ही गैर मुस्लिमों ने भी निदा की तरफदारी की. अब बारी सरकार की थी. निदा ने तीन तलाक और हलाला के खिलाफ पहली शिकायत राज्य सरकार से की. मीडिया की मदद से बात केन्द्र तक पहुंची.
फतवा जारी करने वालों के बारे में निदा कहती हैं कि ऐसे लोगों को पाकिस्तान चले जाना चाहिए. यह भारत है और लोकतांत्रिक देश है. यहां एक के लिए कानून वहीं है जो दूसरे के लिए है.
निदा की बेबाकी से बौराए मौलवियों ने एकजुट होने का फैसला किया.
अब नया फतवा यह था कि निदा को इस्लाम से बेदखल किया जाता है. कम से कम तब तक के लिए जब तक वह सरेआम माफी नहीं मांगती. लेकिन इस फतवे की जूं तक निदा के कानों पर न रेंगी.
उन्होंने मीडिया से कहा कि फतवा जारी कर उनके मौलिक अधिकारों का हनन किया गया है. जिस अल्लाह ने हमें समाज दिया वह समाज हमें खुद से अलग करने का हक नहीं रखता. यह हक केवल अल्लाह का है.
लाखों में पहुंच गई 'फैन फॉलोइंग'
निदा की आवाज की गूंज से केन्द्र में घंटियां बजी ओर केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी की बहन फरहत नकवी ने उसका साथ देने की ठानी. कहते हैं उन्हीं की मदद से तीन तलाक रोकने वाला विधेयक पीएम नरेन्द्र मोदी की टेबल तक पहुंचा.
जब तक विधेयक पर काम होता, तब तक निदा आए दिन गुंडों का सामना कर रही थी.
उसकी तकलीफ को अभिनेता फरहान अख्तर ने समझा और अपने सोशल मीडिया कैम्पेन के जरिए उसे पुलिस सुरक्षा मुहैया करवा दी. केवल दो साल के भीतर ही सोशल मीडिया पर निदा की फैन फॉलोइंग लाखों में पहुंच गई.
दुनिया भर से औरतें उन्हें मैसेज कर रहीं थीं.
वह चाहती थी कि चाहे जैसे भी हो इस कुप्रथा पर बैन लगे. सो वह भी हो गया. सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को गैरकानूनी करार दिया. इस फैसले के साथ ही देशभर की मुस्लिम महिलाओं ने राहत की सांस ली.
पर निदा को नए फतवे का सामना करना बाकी था. यह नया आदेश था कि 'जो भी निदा के बाल काटकर लाएगा, उसे 11786 रुपए का इनाम दिया जाएगा.' इसके बाद तो निदा का जीना मुहाल हो गया.
अभी भी जारी है निदा की जंग!
तीन तलाक के बाद अब अगला अहम फैसला 'हलाला' के खिलाफ आने वाला है. देशभर में इस मुद्दे पर संवेदनशीलता का माहौल बना हुआ है. पर केवल निदा हैं, जो खौफ के साए में घिरी है.
मगर राहत वाली बात तो यह है कि निदा के पीछे भारत की तकरीबन 50 हजार से ज्यादा मुस्लिम महिलाएं हैं, जो इस कैम्पेन में उनके पीछे चल रही हैं. उन्हीं की उम्मीद बनकर निदा कहती हैं, 'हम आजाद मुल्क में रह रहे हैं.
ये होते कौन हैं, मुझे इस्लाम से बेदखल करने और मुल्क छोड़ने का फरमान जारी करने वाले. मेरी जंग इस्लाम को गलत तरीके से पेश करने वालों के खिलाफ है. उन्होंने साफ कर दिया है कि अभी रूकना नहीं है.
इस लड़ाई को दूर तक ले जाना है, अपने अंजाम तक पहुंचाना है.
निदा के बहाने ही सही पर देश में एक बार फिर महिलाओं हक की आवाज मुखर हुई है. अब यह मसला केवल एक धर्म, एक समुदाय विशेष का नहीं रह गया है. बल्कि यह मुद्दा है उनका भी बन चुका है, जो मस्जिद में औरतों को नमाज अदा करने से रोकते हैं. मंदिर में पूजा करने देने की बात पर तलवारें खींच लेते हैं.
ऐसे में देश की तमाम औरतों को उम्मीद है कि बुर्के के पीछे से निकली चीख अब दुनियाभर में बदलाव की गूंज पैदा करेगी.
क्या कहते हो आप?
Web Title: Nida Khan's Story Against Triple talaq and Halala, Hindi Article
Feature Image Credit: The Independent