पाकिस्तान में महिला हुकमरानों का नाम लिया जाए तो गिनती की एक-दो महिलाएं याद आती है. कुछ लोग बेनजीर भुटटो का नाम जप लेते हैं, तो कुछ मरियम नवाज और हिना रब्बानी का.
खास बात यह कि ये चर्चे राजनीतिक बयानों से ज्यादा खूबसूरती के कारण होते हैं.
बहरहाल एक 'मलाला' ही थी जो अब तक पाकिस्तान में महिलाओं का पर्चा बुलंद किए थे. अब उनका साथ देने के लिए आई हैं ताहिरा सफदर. ताहिरा पाकिस्तान की पहली और इकलौती महिला चीफ जस्टिस है.
बलूचिस्तान सूबे के हाई कोर्ट में उन्हें चीफ जस्टिस बनाया गया है. गौर करने वाली बात यह है कि इसी कोर्ट में परवेज़ मुशर्रफ पर देशद्रोह का मुकदमा भी चल रहा है. ऐसे में लाजमी है कि ताहिरा उनके भविष्य का फैसला कर सके!
ऐसे में ताहिरा को नजदीक से जानना दिलचस्प रहेगा-
खून में ही बहती है वकालत
ताहिरा के खून में वकालत बहती है! यदि ऐसा कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. 5 अक्टूबर 1957 को पाकिस्तान के क्वेटा में जन्मीं ताहिरा सफ़दर के पिता सैयद इम्तियाज़ हुसैन बकरी हनाफी न केवल अपने शहर के बल्कि राज्य के नामदार वकीलों में से थे. पिता की छांव में पली ताहिरा ने बचपन से कानूनी दांवपेच समझना शुरू कर दिया था.
खास बात यह रही कि पिता ने कभी रिश्वत नहीं ली. वे ईमानदारी से अपना काम करते रहे और धमकाने वालों से कभी घबराए नहीं. सो यही सारे गुण ताहिर में आ गए. जब स्कूल में विषय चुनकर भविष्य तय करने का मसला आया तो उन्होंने पिता के प्रोफेशन को अपनाने की ठानी. बस फिर क्या था. लगन और मेहनत के खुद की थी, जबकि मार्गदर्शन पिता का.
सो ताहिरा ने सरकारी स्कूल और फिर सरकारी कॉलेज से ही पढ़ाई पूरी की. पिता नामदार जरूर थे पर उन्होंने ताहिरा को पैसों की गर्मी के बीच नहीं पाला. यही कारण रहा कि ताहिरा पढ़ाई के साथ-साथ घर के काम करती.
समय मिलने पर बच्चियों को फ्री कोचिंग भी देती रहीं. ताहिरा ने पहले उर्दू साहित्य में मास्टर्स किया और फिर 1980 में यूनिवर्सिटी ऑफ बलूचिस्तान से कानून में भी डिग्री ले ली. ताहिरा ने फौजदारी मुकदमों से अपने करियर की शुरूआत की.
हालांकि, उन पर कोई आत्मकथा नहीं लिखी गई, पर उन्होंने कई इंटरव्यू दिए, जिनमें उनके केसों का जिक्र मिलता है.
महिला अत्याचारों के खिलाफ लड़ाई
ताहिरा कहती है कि मैंने कभी घबराना सीखा ही नहीं, क्योंकि वही एक चीज थी जो पिता ने नहीं सिखाई. पिता खुद भी फौजदारी के मुकदमे देखते आए थे, इसलिए अपराधियों से पाला पड़ना मेरे लिए नया नहीं रहा.
जब से ताहिरा ने वकालत शुरू की थी, तभी से देश में महिला अत्याचारों के मामलों पर ध्यान देना शुरू किया.
उनकी खासियत रही कि वे महिलाओं के पक्ष में लड़ी. उनके हक की आवाज बुदंल की. मामले चाहे तलाक के हो या हलाला के या फिर दुराचार के, ताहिरा ने हर वो केस लड़ा जिससे एक लड़की को न्याय मिल सके.
उन्हें अक्सर रूढ़िवादियों की धमकी और हमलों का सामाना भी करना पड़ा, लेकिन ताहिरा ने हिम्मत नहीं हारी. वे वकालत से वक्त निकालकर महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करती रहीं.
साथ ही वे इस्लाम की सही तालीम दिए जाने पर जोर देती रहीं.
हर पद पर बनाया है एक नया रिकॉर्ड
1982 तक बलूचिस्तान में कोई भी महिला जज नहीं थी. तब ताहिरा को यह मौका मिला और वे बलूचिस्तान में पहली महिला सिविल जज बनीं. इस फैसले से कई वरिष्ठ वकील और कानून के पेशे से जुड़े लोग खफा हुए.
...लेकिन ताहिरा ने किसी की परवाह किए बिना पद स्वीकार किया और अपना काम जारी रखा.
इसके बाद 1987 में पहली सीनियर सिविल जज बनने का मौका मिला. ताहिरा के पहले और उसके बाद अब तक किसी महिला को इतनी बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी गई थी. खास बात यह है कि अब तक जितने भी कानूनी पद और जिम्मेदारियां ताहिरा को मिली है, उसमें वह अकेली और पहली महिला कहलाईं हैं.
ताहिरा के बेहतर काम को देखते हुए उनका लगातार प्रमोशन होता रहा. खास तौर पर ताहिरा के काम की गति इतनी बेहतर थी कि कोर्ट में सालों से लंबित मामलों के निपटारे में अचानक तेजी आ गई. यही वजह रही कि उन्हें 1991 में एडिशनल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशंस जज के पद पर नियुक्त कर दिया गया. इसके साथ ही वे बलूचिस्तान सर्विसेज ट्रिब्यूनल का भी हिस्सा बनी.
पाकिस्तान में महिलाओं के लिए आइडल!
ताहिरा के काम की तारीफ न केवल राज्य में बल्कि पूरे देश में हो रही है. पाकिस्तान में अब वे महिलाओं के लिए आइडल बन चुकी हैं. ताहिरा को देख कर कई लड़कियों ने कानून की शिक्षा में रूचि लेना शुरू किया है.
चीफ जस्टिस मियां साकिब तो पहले से ही ताहिरा के मुरीद थे. उन्होंने उनका नाम बलूचिस्तान सूबे के हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस पद के लिए आगे बढाया. हालांकि यह काम आसान नहीं था. कानूनी महकमा इस बात से नाखुश था कि एक औरत पर आखिर इतना भरोसा क्यों जताया जा रहा है? आखिर क्यों वह सबकी आंखों का तारा है.
साकिब ने अपने इंटरव्यू से सबकी बोलती बंद कर दी.
उन्होंने मलाला और ताहिरा का एक पंक्ति में नाम लेते हुए कहा कि यही हमारे देश की छवि बदलने वाली बेटियां हैं. यदि हमने इनकी इज्जत करना नहीं सीखा, तो दुनिया में कभी हमारी छवि अच्छी नहीं हो सकती.
काफी जदृदोजहद के बाद आखिर ताहिरा का नाम फाइनल किया गया. 31 अगस्त को चीफ जस्टिस मुहम्मद नूर मेशकनजई हाई कोर्ट से सेवानिवृत्त हो रहे हैं और उनकी जगह ले रहीं है पाकिस्तान की पहली महिला चीफ जस्टिस ताहिरा सफ़दर!
सैयदा ताहिरा सफ्दार अगले साल 5 अक्टूबर तक बलूचिस्तान सूबे के हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस बनी रहेंगी.
मुशर्रफ के फैसले में ताहिरा का रोल
ताहिरा भले ही एक साल के लिए कोर्ट में बतौर चीफ जस्टिस नियुक्त हुईं हैं, पर यह साल बेहद खास जाने वाला है.
चूंकि वे तीन जजों की उस विशेष पैनल का हिस्सा हैं, जो पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के खिलाफ देशद्रोह के मामले की सुनवाई कर रहा है. मेशकनजई के बाद अब ताहिरा मुशर्रफ के भविष्य का फैसला लेने में अहम भूमिका निभाएंगी.
गौरतलब है कि 3 नवम्बर 2007 को पाकिस्तान में इमरजेंसी लगाकर देश की जनता को परेशान करने वाले परवेज मुशर्रफ पर बलूचिस्तान हाईकोर्ट में बीते 10 साल से मुकदमा चल रहा है.
नवाज शरीफ के जेल पहुंचने के बाद इस बात की मांग तेज हो गई है कि मुशर्रफ पर जल्दी फैसला होना चाहिए. ऐसे में ताहिरा पर बड़ी जिम्मेदारी है कि उन्हें एक साल के भीतर इस मामले में फैसला सुनाना है.
बहरहाल जिस ईमानदारी से ताहिरा ने पाकिस्तान की कानून व्यवस्था में काम किया है, उससे उम्मीद है कि वे इस चुनौती का भी सामना कर लेंगी. सबसे खास बात यह है कि उनकी उपलब्धि पाकिस्तान की रूढ़िवादी सोच पर एक तमाचे के समान है.
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Web Title: Pakistan's First Lady Chief Justice Tahira Safdar, Hindi
Featured Iamge Credit: Livelaw