चीनी भाषा के अजीब से शब्द, जो हमारे लिए किसी टंग-ट्विस्टर से कम नहीं रहे. जब दुनिया के सात आश्चर्यों की बात होती है, तो चीन की दीवार का नाम भी लिया जाता है.
चीन से याद आता है मार्शल आर्ट और आखिर में चाइनीज फूड!
अब भले ही हम चीनी खिलौनों से खेलते हों, चीनी रंग और अबीर से होली मनाते हों, चीनी राखियां भाई की कलाई पर बांधी जा रही हों और चीनी चावल हमारी थाली में भर गए हों, लेकिन चीन को उतना किसी ने नजदीक से नही समझा जितना रबींद्रनाथ टैगोर ने!
आपको जानकर हैरानी होगी कि रबींद्रनाथ टैगोर चीन के युवा आज भी युवा साहित्यकारों की रचानाओं की प्रेरणा है.
आखिर कैसा रिश्ता था रबींद्रनाथ और चीन का? आइए जानने की कोशिश करते हैं—
चीनी श्रमिकों से थे प्रभावित!
20 बरस के कवि रबींद्रनाथ टैगोर ने 1881 में ‘मोर्टाल्टिी बिजनेस इन चाइना’ नाम से एक लेख लिखा. इस लेख में उन्होंने चीन में रहने वाले लोगों के विचारों को प्रधानता दी और चिंता व्यक्त की. वे जापान के खिलाफ चीनियों के विद्रोह में उनके साथ थे.
साथ ही उनके विचारों को पूरी दुनिया तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे.
उनका यह लेख न केवल आम युवाओं में चेतना जगाने के लिए काफी था, बल्कि यह पुष्टि भी करता है कि वे इतनी कम उम्र में समस्याओं के प्रति किस कदर जागरूक थे.
गौरतलब हो कि रबींद्रनाथ एशिया के वह पहले कवि थे, जिन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया था. 1913 में यह पुरस्कार पाने के बाद उन्हें कई देशों से आमंत्रण मिले और उन्होंने अपनी विश्वयात्रा शुरू की. ऐसे ही एक आमंत्रण पर वे 1916 में जापान जा रहे थे.
भारत से जापान जाने के बीच उन्हें हांगकांग में रूकने का मौका मिला. यहां रबींद्रनाथ ने चीनी श्रमिकों से मुलाकात की. वे उनके काम करने के तरीके और अनुशासन से प्रभावित हुए. कहते हैं उनके विचारों ने रबींद्रनाथ को एक नया नज़रिया दे दिया था!
Rabindranath Tagore (Pic: speakingtigerbooks.com)
…और चीन की तारीफ में कसीदे पढ़े
उन्होंने अपने अनुभव को साझा करते हुए लिखा कि, ‘शक्ति, काम के कौशन और उसके सुख को देखकर मुझे एहसास होता है कि इस पूरे देश में कैसी शक्ति है, जिसे संग्रहित किया जा सकता है. चीन की वो ताकत मैं देख सकता हूं, जिससे अमेरिका भी डरता है. वह चीन से उसका उत्साह और काम की शक्ति नहीं छीन सकता इसलिए उससे दूर भागता है.’
1916 में रबींद्रनाथ ने चीन के लिए भविष्यवाणी की थी, जिसे बाद में खुद चीन ने साबित करके दिखाया है. उन्होंने कहा था कि ‘एक वक्त ऐसा आएगा जब चीन के जैसी बड़ी शक्ति संसार में होगी, यानी तब विज्ञान पर उसका नियंत्रण होगा और उसे शक्तिमान बनने से कोई नही रोक सकेगा. वह अपनी प्रतिभा के साथ अपनी सरलता को जोड़े रखेगा.’
Rabindranath visit to China (Pic: twimg.com)
बुद्धिजीवियों के बीच लोकप्रियता
रबींद्रनाथ को नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद उनकी ख्याति पूरी दुनिया में फैल चुकी थी. चीन भी उनकी ख्याति से अछूता नहीं था. खासतौर पर चीनी युवा रबींद्रनाथ की कविताओं के दीवाने थे. वे उन्हें अपनी प्ररेणा मानते थे.
चीन में रबींद्रनाथ के साहित्य का पहुंचना आसान नहीं था. रबींद्रनाथ ने बंगाल में साहित्य लिखा था, इसलिए भाषा भी बंगाली थी. सो इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया. फिर अंग्रेजी से चीनी भाषा में अनुवाद.
रबींद्रनाथके कविताओं के अनुवाद के चरणों में उनकी मूल भावनाएं प्रभावित हो रही थीं. किन्तु, जो चीनी साहित्यकार रबींद्रनाथ के व्यक्तित्व को जानते थे, उन्होंने उन भूलों को सुधारा. फिर नए सिरे से चीनी भाषा में रबींद्रनाथ की कविताओं को अनुवाद किया गया.
रबींद्रनाथ के हर लेख में दर्शन का एक प्रभाव दिखाई देता है.
यही कारण है कि वे चीनी बुद्धिजीवियों के बीच बहुत लोकप्रिय हुए और उन्हें चीन में अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किया जाने लगा!
कम्युनिस्ट पार्टी का गठन और…
2021 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के सौ साल पूरे हो रहे हैं. किन्तु, सौ साल पहले हम उस चीन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे, जो वह आज है.
बीसवीं शताब्दी के दूसरे और तीसरे दशकों में चीन ने यह महसूस कर लिया था कि पश्चिमी सम्यता दासता की परिचायक है. वे दास बनाना जानते हैं और यही गुण दूसरों में विकसित करते हैं. चीन कभी भी अधीनस्थता स्वीकार नहीं कर सकता था, इसलिए उन्होंने अपने देश, समाज और परिवारों के लिए दायरे बनाएं और उन्हीं में रहना स्वीकार किया.
अपने परंपरागत दायरे में रहते हुए भी चीनी युवाओं ने ज्ञान की खोज और अभ्यास जारी रखा. वे भौतिकवाद के आधार पर एक आधुनिक राज्य बनाने का सपना संजोए हुए थे. इसी सपने के साथ 1921 में चीन में कम्युनिस्ट पार्टी का गठन हुआ.
Supporters of Rabindranath in China (Pic: steemitimages.com)
…जब मिला चीन यात्रा का मौका
कम्युनिस्ट पार्टी के गठन के साथ ही चीन में क्रांति का आगाज हुआ और सीधे अथवा परोक्ष रूप से बदलाव की आने लगा. इसी दौर में रबींद्रनाथ को चीन यात्रा का मौका मिला.
12 अप्रैल 1924 को वे 49 दिनों की चीन यात्रा पर रवाना हुए.
अब तक चीन युवाओं के मन में दबा हुआ विद्रोह था, पर वे दर्शन की शक्ति से अंजान थे. वे यह नहीं जानते थे कि कविता हो या लेख, वह क्रांति से भरा हो अथवा नहीं पर, जब तक उसमें दर्शन नहीं होगा तब तक उसके लिखे जाने का मकसद सार्थक नहीं होगा.
ऐसे में रबींद्रनाथ ने युवाओं के चेहरे से इसी चश्में को उतारा और उन्हें दर्शन का महत्व समझाया. पहली बार में उनके विचारों को ज्यादा मान्यता नहीं मिली. कई बार तो रबींद्रनाथ को हास्यप्रद परिस्थितियों से गुजरना पड़ा. लेकिन उन्होंने वहां खुलकर भौतिकवाद का विरोध किया. उन्होंने भाषणों से क्रांति जगाने के पहले उसके दर्शन को समझाया. वे चाहते थे कि युवा क्रांति एक सही दिशा में आगे बढे.
इसी क्रम में एक बार जब वे युवाओं को संबोधित कर रहे थे, तो उसी भीड़ में बैठे युवा क्रांतिकारी माओ ताओ तुओंग काफी ध्यान से भी उन्हें ध्याने से सुना.
झेलना पड़ा कड़ा विरोध मगर…
तुओंग की आस्था वर्ग संघर्ष में थी. वहां बैठे युवा क्रांतिकारियों को रबींद्रनाथ की रैलियों के पीछे कोई षडयंत्र नजर आ रहा था. जबकि, तुओंग उनके विचारों से प्रभावित हुए. कुछ लोगों ने रबींद्रनाथ के विचारों का विरोध तक किया.
मगर तुओंग ने उनके विचारों को चीन की क्रांति का हिस्सा बनाया.
जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा के दौरान भी रबींद्रनाथ को विद्रोह झेलना पड़ा. उन्होंने पूंजीवादी राष्ट्रवाद की आलोचना की और इस दौरान किसी भी जापानी कवि से मुलाकात तक नहीं की. जापान जर्नल में लिखा गया कि ‘रबींद्रनाथ की आवाज़ हार गई और देश को जंजीर की बेडियों में बांध दिया है, उन्हें उन्हीं के देश में महत्व नहीं मिला.’
वहीं अमेरिका में कहा गया, ‘रबींद्रनाथ के शब्द बीमार शर्मिंदगी से ढंके हुए हैं. वे महान अमेरिकी युवाओं के दिमाग में जहर डाल रहे हैं, इसलिए सावधान हो जाओ.’
चीन के विद्रोहियों ने भी अपने लेखों में लिखा कि ‘हमें आपकी विचारधारा नहीं चाहिए, हमें दर्शन नहीं चाहिए. हमें भौतिकवाद चाहिए. आप विदेशी हैं और अपनी विचारधारा के साथ अपने देश वापस जाइए.’
हालांकि, चीन में ही रहने वाले कुछ क्रांतिकारियों ने इन लेखों का विरोध भी किया. वे रबींद्रनाथ के बताए दर्शन के महत्व को क्रांति का अंग बना चुके थे!
Rabindranath Tagore in China (Pic: flickr.com)
आखिर सच हुए रबींद्रनाथ के विचार
आखिरकार चीन में रबींद्रनाथ का संदेश व्यर्थ नहीं गया.
1916 में उन्होंने जो पहली बार चीन के लिए कहा था वह सार्थक हुआ. विज्ञान की मदद से चीन ने प्रतिस्पर्धा में सभी को पीछे कर दिया. कुछ सालों बाद चीन में क्रांति की लौ जली और फिर वह सही दिशा में आगे चलकर मोक्ष के मार्ग पर बढ गई.
चीन ने विज्ञान से अविष्कार किए, विकास किया और अर्थव्यवस्था का निर्माण किया. साथ ही दर्शन को महत्व देते हुए अपने मूल संस्कारों को थामें रखा.
वे आध्यात्म के करीब रहे और विकास के साथ भी.
साल 1872 के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका की अर्थव्यवस्था ने बेहतर मुकाम हासिल करते हुए, दुनिया के शीर्ष पर जगह बनाई. वहीं लगभग 150 साल बाद साल 2014 में चीन ने विश्व अर्थव्यवस्था में शीर्ष स्थान पा लिया.
पिछले तीन दशकों में चीन में 80 मिलियन लोग गरीबी रेखा से ऊपर आए हैं.
रबींद्रनाथ ने चीन यात्रा से वापिस आने के बाद वहां के इतिहास और अपने अनुभवों को समेंटकर रखा. उन्हें लेखों और किताबों में बांटा ताकि, वह जन-जन तक पहुंचे.
किन्तु, हम शायद उस इतिहास के महत्व को उतना नहीं समझ पाएं. बेशक रबींद्रनाथ हमारे थे, पर उनके विचारों ने चीन को एक मुकाम हासिल करवाया.
Rabindranath Tagore (Pic: martinbrownphotography)
चीन के मशहूर साहित्यकार टैन वेन ने एक किताब लिखी जिसका नाम था ‘कंट्रोवर्शियल गेस्ट: रबींद्रनाथ एंड चीन’. इस किताब को लिखने में भारतीय साहित्यकार शिशरकुमार दास ने उनकी मदद की. किताब में चीन की क्रांति का इतिहास और टैगोर की चीन की यात्रा के संस्मरणों को समेंटा गया है.
इस एक मात्र खजानें के अलावा रबींद्रनाथ और चीन का के संबंधों में निशानी शेष नहीं है!
Web Title: Rabindranath Tagore a Supporter of Chinas Revolution, Hindi Article
Feature Image Credit: FactorDaily