लिव इन रिलेशनशिप! समाज को तोड़ने वाला, शादी की व्यवस्था को नष्ट करने वाला, हमारे बेटे-बेटियों को भटकाने वाला, पाश्चत्य सभ्यता का असर, देश की संस्कृति को बर्बाद कर देने वाला वाक्य!
बहुत दूर नहीं जाइए, बस अपने से पहले वाली पीढ़ी की ओर मुंह करके यह शब्द तो बोलिए, फिर देखिए यदि इनमें से कोई एक बात भी वे कहने से चूक जाएं. 'लिव इन रिलेशनशिप' ये तीन वे शब्द हैं, जिन्हें साथ में ले लिया जाए तो विवाद पैदा हो जाए.
माता-पिता और रिश्तेदारों के अलावा कई स्वयंसेवी संगठन अपना झंडा लेकर खड़े हो जाएंगे. फिर मजाल है कि कोई इन शब्दों को दोबारा अपने मुंह से निकाले. वो भी तब, जब देश में 'मॉब लिचिंग' की घटनाएं इतनी तेजी से हो रही है!
भारत में आज लिव इन रिलेशनशिप पर इतना विवाद बना हुआ है, जबकि यह चलन हमारे समाज में किसी न किसी रूप में सदियों से व्याप्त है. इसी रिलेशनशिप का एक रूप 'नाता प्रथा' के तौर पर राजस्थान मे अपनी जड़ें जमाएं हुए हैं.
वही राजस्थान जहां कन्या भ्रण हत्या और आॅनर किलिंग ऐसा है, जैसे किसी सब्जी को काट देना. उसी राजस्थान में सदियों से 'नाता प्रथा' का पालन हो रहा है. जहां बाकी प्रथाएं आधुनिक दौर में दम तोड़ देती हैं, वहां केवल यही एक प्रथा है जो प्रसार पा रही है.
तो चलिए आज जानते हैं 'नाता प्रथा' को!
कुछ खास जातियों में जीवित है प्रथा
राजस्थान में मुख्य तौर पर राजपूत, गुर्जर, ब्राम्हण और जैन समुदाय की बाहुलता है. केवल गुर्जर जाति को छोड़ दिया जाए, तो बाकी तीनों का इस प्रथा से खास लेना देना नही है. राजनीतिक दृष्टि से भी गुर्जरों को अहम माना जाता है.
फिर निचले तबके की कई और जातियां भी हैं जो इस प्रथा को सांसे दे रही हैं.
नाता प्रथा कब से शुरू हुई और इसका पहला वाक्या तो शायद इतिहास के किसी पन्ने पर दर्ज नहीं है, पर गुर्जर समेत धाकड़, जोगी, बिश्नोई, बंजारा जैसी करीब दर्जनों जातियों में इसे दशकों से जीवित पाया गया है. लोगों के पास प्रथा का इतिहास बताने के लिए केवल रटी रटाई कुछ लाइनें हैं. जैसे- फलां के दादा ने फलां की दादी को अपने साथ रख लिया था. या फिर फलां की मां के दो पति थे.
वगैरह-वगैरह...
यह लिव-इन रिलेशनशिप का पुराना रूप कहा जा सकता है. जो खास तौर पर विधवा महिलाओं और परित्यागता महिलाओं को सामान्य जीवन देने के हिसाब से तैयार किया गया. प्रथा की शुरूआत में ऐसी महिलाओं को अपनी पसंद से किसी भी पुरूष के साथ रहने की आजादी थी. पुरूष बदले में उसका जीवनभर का खर्च उठाता और सुख-दुख में साथ देता.
नाता जीवन भर चला तो ठीक यदि खटपट हुई तो महिला को अधिकार था कि वह अपने लिए दूसरा साथी तलाश ले.
सुनने में अजीब लगता है, पर आज समाज की मानसिकता जितनी संकुचित हो गई है, अपेक्षाकृप वह पहले ज्यादा स्वतंत्र थी. यही कारण रहा कि बाल विधवा होने के बाद भी महिलाओं को पूरा जीवन अकेला नहीं काटना पडा. उन्हें उम्र के हर पड़ाव पर अपना साथी चुनने की आजादी रही. वह भी राजस्थान जैसे राज्य में, जहां सीएम भले ही महिला है पर दबदबा आज भी पुरुषत्व का माना जाता है.
डॉक्टर मोहनलाल गुप्ता की किताब 'राजस्थान की आरक्षित जातियां' में उन्होंने जिक्र किया है कि नाता प्रथा खासतौर पर ओबीसी और एसटी एससी समुदायों में व्याप्त है. गुर्जर, कुम्हार, लोहार, धाकड, जोगी समेत करीब 36 तरह की जातियों में इस प्रथा का प्रतिशत 75 तक है. जबकि सपेरों के समुदाय में 90 फीसदी परिवारों में नाता प्रथा व्याप्त है.
नाता करने का होता है विशेष तरीका
ऐसा नहीं है कि नाता केवल रंग-रूप देखकर बस यूं ही हो जाता है. बल्कि इसके लिए बाकायदा पंचायत की व्यवस्था की गई है. इससे जाहिर है कि यह सामान्य तौर पर समाज में स्वीकार्य है. नाता प्रथा में अविवाहित या विधवा ही नहीं, बल्कि विवाहित महिला-पुरूष भी शामिल हो सकते हैं. बस प्रथा में जाने से पहले अपने पति या पत्नी को निश्चित राशि हर्जाने के तौर पर देनी होती है. इसके बाद वह स्वतंत्र है.
इसके लिए पांच गांवों की पंचायत बैठाई जाती है. इसमें पहली शादी से पैदा हुए बच्चों, संपत्ति आदि मसलों पर चर्चा होती है और आपसी सहमति से निर्णय लिया जाता है. ताकि भविष्य में कोई विवाद पैदा न हो.
इसका एक फायदा यह है कि लोग कोर्ट-कचहरी में तलाक की पेशियों में पहुंचने से बच जाते हैं.
खास बात यह है कि यदि पहली पत्नी या पति को साथी के दूसरे व्यक्ति से नाता करने से कोई आपत्ति नहीं है, तो वह बिना अलग हुए भी इस प्रथा का निर्वहन कर सकता है. राजस्थान की प्रथाओं पर लिखे गए कई शोध पत्रों में इस बात का साफ जिक्र है कि नाता प्रथा पूरी तरह से महिलाओं को ताकत देने के लिए शुरू हुई थी. उन्हें आर्थिक मदद और सुरक्षा मिल जाती थी.
साथ ही नाता समाज में स्वीकार्य प्रथा थी, इसलिए सामाजिक सम्मान की हानि भी नहीं होती थी. यदि नाता के दौरान संतान का जन्म हो जाए तो नाजायज नहीं कहलाता था. राज्य के बीकानेर में तो बाकायदा इसे कर का दर्जा दिया गया है.
यहां की कई किवदंतियों और ऐतिहासिक कहानियों में 'रीढ़ का कर' का जिक्र किया गया है. इसका अर्थ ही यह था कि महिला के नाता में आने के बाद पुरूष महिला के परिवार को एक निश्चित रकम देता था ताकि वह अपना जीवन यापन कर सकें.
पर अब होने लगात है व्यापार
अब तक नाता प्रथा के बारे में जो भी कहा गया वह इस प्रथा की मूल आत्मा रही. यानि प्रथा का असली मकसद और स्वरूप यही था. इसके बीते कुछ दशकों में हानि पहुंची है. खासतौर से तब जब राजस्थान में लिंगानुपात में भारी अंतर आया है.
वर्तमान आंकड़ों के अनुसार राजस्थान राज्य में 1 हजार पुरूषों पर 926 महिलाएं हैं. जबकि गांवों में यह प्रतिशत और भी कम है. यहां 1 हजार पुरूषों पर 874 महिलाएं हैं. साल 2011 की जनगणना के अनुसार गंगानगर, धौलपुर, जैसलमेर समेत करीब दर्जन भर जिलों और आसपास के गांवों में आंकड़े और भयावह हो जाते हैं. यहां 1 हजार पुरूषों पर 850 से भी कम महिलाएं हैं.
गिरते हुए लिंगानुपात ने नाता प्रथा को बुरी तरह प्रभावित किया है. महिलाओं की संख्या कम होने से उनके अधिकारों में भी कमी आई. पुरूषों का प्रभाव ज्यादा है. नतीजा उनके बनाएं नियम और उन्हीं के आदेशों का प्रभाव है. पंचायत में भी महिलाओं का स्थान नणन्य है.
कल तक जो नाता महिलाएं अपनी पसंद से कर रहीं थीं, अब वह पुरूषों की पसंद पर आधारित हो गया है. इतना ही नहीं प्रथा के तहत पैसे के लेन-देन का कोई चलन नहीं था. किन्तु अब आलम यह है कि पैसे देकर प्रथा की आड़ में किसी की भी पत्नी को अपनाया जा सकता है.
साल 2013 में राजस्थान के उदयपुर जिले में छतरपुरा गांव में एक प्रतिष्ठित परिवार ने अपने बेटे की शादी दो दुल्हनों से रचाई. दूल्हे का नाम भगवती लाल था, जो एक महिला के साथ नाता प्रथा के तहत रह रहा था. बाद में उसे दूसरी युवती से प्यार हो गया.
चूंकि पहली से नाता किया था, इसलिए वह उसकी जिम्मेदारी थी. ऐसे में भगवती ने दोनों युवतियों से शादी कर ली.
यह तो फिर भी ठीक था, लेकिन साल 2016 में उदयपुर के कसोटिया गांव में एक महिला और उसके साथी को निर्वस्त्र कर पेड़ से बांधकर मारने की घटना सामने आई थी. नाता प्रथा के इस मामले में महिला के पति ने उसके साथी से 2 लाख रुपए की मांग की थी.
जब युवक पैसे नहीं दे पाया तो पति ने उन दोनों के साथ यह शर्मनाक हरकत की.
यह कोई अकेला उदाहरण नहीं है, बल्कि हर साल इस तरह के कई घटनाएं सामने आ रही हैं. जहां नाता करने के लिए अब मानसिक स्थिति से ज्यादा आर्थिक निर्भरता को आंका जा रहा है. इतना ही नहीं कई मामलों में तो पुरूष अपने अन्य मित्र की पत्नी से नाता करने के लिए उसे मुहं मांगी रकम तक देने को तैयार है. यहां महिला की मर्जी पूछना आवश्यक नहीं रह गया है.
चूंकि एक महिला जीन में अधिकतम 5 बार नाता कर सकती है. इसी की आड़ लेकर उसका शरीरिक शोषण शुरू हो गया है. वहीं दूसरा पहलू यह है कि अब पुरूष नाता प्रथा के तहत पैदा हुई संतानों को स्वीकार करने से बचना चाहते हैं.
चूंकि कानूनी रूप से वह उसकी संपत्ति का वारिस कहलाएगा.
एनजीओ कर रहे हैं प्रथा की खिलाफत
जब तक बात महिलाओं के हक में थी, तब तक सब ठीक चला. पर प्रथा की आड़ लेकर उसे देह व्यापार में तब्दील कर देने वालों के खिलाफ अब राजस्थान सरकार और स्वयं सेवी संगठनों ने सख्ती दिखाना शुरू किया है. यहां ‘लाडो’ का जिक्र करना अहम है.
नाता प्रथा की तरह है कि राजस्थान में बाल विवाह का चलन बहुत ज्यादा है. इसलिए बाल विधवाओं की संख्या भी ज्यादा है. अब तक बाल विधवाओं के पास नाता प्रथा ही जीने का एक सहारा बचती थी. पर प्रथा की आड़ में चल रहे व्यापार के खिलाफ ‘लाडो’ लड़ रही है.
सर्वे के दौरान ऐसे कई मामले सामने आए जहां माता-पिता ने बाल विधवाओं का नाता कर दिया और फिर पुरूषों ने उन्हें किसी और कि हाथ बेच दिया. सरकार और संगठन मिलकर स्कूलों में साक्षरता और जागरूकता अभियान चला रहे हैं. ताकि इस प्रथा को खत्म करने में मदद मिल सके. बावजूद इसके राजस्थान के गांव और कस्बों में बहुत तेजी से नाता प्रथा का प्रसार हो रहा है.
एक महिला का पति भी है और 'नाता साथी' भी.
शोध और सर्वे में इसके दो कारण आ रहे हैं. पहला कि प्रथा को गलत तरीके से प्रचारित किया गया है और दूसरा कि गांवों में महिलाओं की संख्या लगातार कम हो रही है, नतीजतन लोग पैसे देकर महिलाओं से नाता करने को राजी हैं.
इसका दूसरा नुकसानदायक पहलू यह है कि कई प्रथा के नाम पर कई साथी बनाने से यौन रोगों का प्रतिशत तेजी से बढ़ा है. इसका असर अनुवांशिक हो रहा है, जो आने वाली संतानों को सेहत को भी प्रभावित कर रहा है.
कुल मिलाकर लिव इन रिलेशनशिप भारतीय समाज में बहुत पहले से है. एक हिस्से में ही सही पर समाज इससे अछूता नहीं है. पर नाता के दुर्गति देखकर शायद लिव इन रिलेशनशिप के कॉन्सेप्ट का विरोध जारी है.
Web Title: Rajasthan's History And Important Facts Of Nata Marriage, Hindi Articles
Features Image Credit: aljazeera.com