आधुनिक दौर के बिजी शड्यूल में बहुत कम होता कि कोई किसी के दुख-सुख में शामिल हो सके. बावजूद इसके कई ऐसे नाम हुए, जिन्होंने अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति के दम पर कुछ ऐसा कर दिया कि लोग उनके नाम को अपने होठों पर लगाए फिरते हैं
राजेन्द्र सिंह इसका बड़ा उदाहरण हैं!
वे पानी को लेकर चलाई गई अपनी क्रांति को लेकर मशहूर हैं. इतने मशहूर कि उन्हें 'वॉटरमैन ऑफ इंडिया' तक कहा जाता है. उन्होंने दुनिया की बेहतरी के लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर करते हुए, राजस्थान जैसे राज्य को जल संकट से उभारने के लिए काम किया.
तो आईए जानते हैं, कैसे उन्होंने इस असंभव काम को संभव बनाया-
राजनीति में जाना चाहते थे, मगर...
राजेन्द्र सिंह का जन्म 6 अगस्त 1959 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में मौजूद डौला गांव में हुआ. आम बच्चों की तरह राजेन्द्र बड़े हुए और हाई स्कूल की शिक्षा प्राप्त करने के बाद भारतीय ऋषिकुल आयुर्वेदिक महाविद्यालय में दाखिला लिया. वहां से उन्होंने आयुर्वेद में डिग्री प्राप्त की, और अपने गांव में ही जनता की सेवा के इरादे से अभ्यास शुरू कर दिया.
इसी बीच वह समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण के संपर्क में आए और उनसे खासे प्रभावित हुए. इतने प्रभावित कि उनके अंदर भी राजनीति का भूत सवार हो गया था. दिलचस्प बात तो यह थी कि वह इसके लिए राजनीती के मैदान में कूद भी पड़े.
इसके लिए उन्होंने इलाहबाद विश्वविद्यालय से सम्बद्ध एक कालेज में प्रवेश ले लिया. साथ ही वहां के छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के साथ जुड़ गए. वह राजनीति में आगे बढ़ते इससे पहले सन 1980 में उन्हें सरकारी नौकरी मिल गयी.
शादी के बाद छोड़ दी नौकरी और...
इस तरह वह बतौर 'नेशनल सर्विस वालेंटियर फॉर एजुकेशन' जयपुर पहुंच गए और राजनीति में करियर बनाने का सपना इलाहाबाद में ही छूट गया. अपनी नौकरी के दौरान उन्हें राजस्थान के दौसा जिले में शिक्षा के प्रोजेक्ट का काम सौंपा गया था.
उनकी नौकरी ठीक-ठाक चल रही थी, तभी 'मीना' नामक युवती से उनका विवाह हो गया.
आगे विवाह से करीब डेढ़ साल बाद 1981 में राजेन्द्र ने अचानक नौकरी छोड़कर सबको चौका दिया. बात में पता चला कि राजस्थान के पानी संकट ने उन्हें द्रवित कर दिया था. इस कारण वह परेशान रहने लगे थे और तभी उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी.
तरुण भारत संघ की स्थापना
नौकरी को त्याग करने के बाद पानी की संकट को ख़त्म करने के लिए वह कुल 23 हज़ार रूपए लेकर मैदान में उतर गए. सबसे पहले उन्होंने अपने चार साथियों नरेंद्र, सतेन्द्र, केदार और हनुमान के साथ मिलकर एक गैर सरकारी संस्था को स्थापित किया.
इसका नाम तरुण भारत संघ था. हालांकि, कहा जाता है कि यह संस्था जयपुर यूनिवर्सिटी में बनाई गयी थी, जोकि एक तरह से ख़त्म हो चुकी थी. राजेन्द्र सिंह अपने साथियों समेत इसी संस्था को अपने पसीने से फिर से जिंदा किया.
साथ ही राजस्थान में पानी की संकट को समाप्त करने में लग गए. शुरुआत में इनको गांव के लोगों को अपने मुहिम में शामिल करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा.
उपहास के दौर के उस पार
ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने बारिश के पानी को रोकने के लिए प्राचीन भारतीय प्रणाली को अपनाई और गांवों में छोटे-छोटे पोखर तालाब बनाने शुरू कर दिए. ऐसा माना जाता है कि इस पोखर में बरसात का पानी भर जाता है.
फिर इस पानी को मिट्टी धीरे-धीरे सोख लेती है. इससे पानी का स्तर बढ़ने लगता है.
हालाँकि, शुरुआत में उनके प्लान की कुछ लोगों ने मजाक भी बनाया. यह तक कहा कि ये छोटे-छोटे पोखर आखिर क्या कर लेंगे? क्या लोगों की दिक्कते इन पोखरों से पूरी हो जाएगी?
'मनोटा कोयाला' में मिली कामयाबी
राजेन्द्र सिंह इस सबसे पार पाते हुए गांव के कुछ लोगों को समझाने में सफल रहे. नतीजा यह रहा कि वह उनके साथ हो लिए. आगे उनके साथ से पुराने कुँए और जोहड़ों को दोबारा जिंदा करने की मुहिम आगे बढ़ चली.
इसी क्रम में पहला जोहड़ बनाने के लिए मनोटा कोयाला इलाके को चुना गया.
यहाँ पर इस काम को अंजाम देने के लिए ग्राम सभा को भी बुलाना पडी . इस ग्राम सभा में लोगों को इस कार्य में मदद करने की अपील की गयी. ऐसा माना जाता है कि उनके और गांव वालों की मेहनत से 6 मार्च 1987 को मनोटा कोयाला में पहला जोहड़ का काम शुरू हुआ, जो सफल रहा.
इस जोहड़ में जल संचय के फार्मूले को कामयाबी मिलने के बाद सिलसिला आगे बढ़ता रहा. देश के कई इलाकों में राजेन्द्र के नेतृत्व में पानी को इकठ्ठा करने के लगभग साढ़े छह हज़ार जोहड़ो का निर्माण कराया गया.
वहीं लगभग एक हज़ार गांव में पानी के संकट का निवारण हुआ.
...और कहलाएं 'वॉटरमैन ऑफ इंडिया'
इसी क्रम में राजेन्द्र सिंह ने राजस्थान के अलवर जिले की तस्वीर ही बदल दी. बताते चलें कि अलवर की जमीन, बंजर हुआ करती थी, जिसे राजेन्द्र ने अपने जल संरक्षण प्लान के तहत हरा-भरा कर दिया. यही नहीं उनके सार्थक प्रयासों से कई नदियों और तालाबों को पुनर्जीवित किया.
आज करीब साढ़े छह हजार जोहड़ों का निर्माण हो चुका है, और राजस्थान के करीब 1000 गाँवों में पानी उपलब्ध हो गया है. वर्तमान में राजेंद्र सिंह की ये मुहीम समूचे भारत में फ़ैल गई हैं और वह 'वॉटरमैन ऑफ इंडिया' कहलाते हैं.
राजेंद्र सिंह को स्टाकहोम में पानी का नोबेल पुरस्कार माने जाने वाले स्टॉकहोम वाटर प्राइज से नवाजा जा चुका है. इसके आलावा वर्ष 2008 में गार्डियन ने उन्हें 50 ऐसे लोगों की सूची में शामिल किया था, जो पृथ्वी को बचा सकते हैं.
इसके अलावा इनको 2001 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए “रमन मैगसेसे” पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जोकि एशिया का नोबेल पुरस्कार माना जाता है. बावजूद, अपनी इस सफलता का श्रेय वह गांव वालों को देते हैं.
वह बताते हैं कि उन्हें शुरुआत में जल संरक्षण योजना और जोहड़ो के निमार्ण के बारे में जानकारी तक नहीं थी, मगर गांव वालों ने हमारे इस काम को कामयाब बनाने के लिए पूरा साथ दिया.
इसी के चलते उनकी मुहिम को बल मिला और नतीजा सबके सामने है.
तो ये थे राजेन्द्र सिंह के जीवन से जुड़े कुछ पहलू.
अगर आपके पास भी उनसे जुड़े कुछ पहलू है, तो नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं!
Web Title: The Water Man of India, Rajendra Singh, Hindi Article
Feature Image Credit: mycitychennai