ये भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार हैं. जो लगभग दस साल तक तीन महाद्वीपों में पांच अकादमिक पदों पर रहने और देश विदेश के कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के बाद हमेशा के लिए एक लेखक बन गए.
इन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन, आधुनिक भारत और उसके इतिहास व खेल पर कई किताबें और लेख लिखे हैं.
जी हां! हम बात कर रहे हैं रामचंद्र गुहा की.
अगर आपने गांधी और नेहरू के बाद का भारतीय इतिहास पढ़ा है तो आप रामचंद्र गुहा को जानते होंगे. लेकिन आजकल ये नरेंद्र मोदी और भाजपा के प्रमुख आलोचक के तौर पर ज्यादा मशहूर हैं.
तो आइए, एक नजर रामचंद्र गुहा के जीवन और उनके उतार-चढ़ाव पर डाल लेते हैं –
येल और स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालयों में पढ़ाया
सन 1958 को देहरादून में पैदा हुए रामचंद्र गुहा ने आधुनिक भारत के साथ कदमताल करते हुए दिल्ली और फिर कलकत्ता से अपनी पढ़ाई की है.
इतिहास और जीवनी लिखने के लिए प्रसिद्ध रामचंद्र गुहा येल और स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालयों और भारतीय विज्ञान संस्थान में शिक्षक रहे हैं. साथ ही बर्कले के कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में इंडो-अमेरिकन समुदाय विजिटिंग प्रोफेसर रह चुके हैं.
अकादमिक वर्ष 2011-12 में इन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में इतिहास और अंतरराष्ट्रीय मामलों के फिलिप रोमन प्रोफेसर के तौर पर कार्य किया था.
Ramachandra Guha at Bangalore Literature Festival. (Pic: bangaloreliteraturefestival)
20 भाषाओं में उपलब्ध हैं किताबें
‘द अनक्विट वुड्स’ गुहा द्वारा लिखित पर्यावरण इतिहास पर अग्रणी किताब है. साथ ही ‘अ कॉर्नर ऑफ ए फॉरेन फील्ड’ क्रिकेट के सामाजिक इतिहास की अवॉर्ड विनिंग किताब है. इनकी ‘भारत गांधी के बाद’ पुस्तक को द इकानॉमिस्ट, द वाशिंगटन पोस्ट, द वॉल स्ट्रीट जर्नल, द सैन फ्रांसिस्को क्रॉनिकल, टाइम आउट और आउटलुक द्वारा ‘बुक ऑफ द ईयर’, वहीं, टाइम्स ऑफ इंडिया, द टाइम्स ऑफ लंदन, द हिंदू द्वारा बुक ‘ऑफ द डिकेड’ के खिताब से नवाजा जा चुका है. इनकी सन 2014 में आई किताब ‘भारत से पहले गांधी’ को न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा वर्ष की उल्लेखनीय पुस्तक के रूप में चुना गया था.
किताबों के अलावा, रामचंद्र गुहा देश-विदेश के जाने-माने अखबारों में कॉलम भी लिखते रहे हैं. साथ ही इनके द्वारा लिखित किताबों और निबंधों को लगभग 20 भाषाओं में अनुवाद भी किया जा चुका है, जिससे साबित होता है कि इन्हें विदेशी के साथ क्षेत्रीय भाषाई लोग भी पढ़ते हैं.
गुहा द्वारा लिखी किताबों में भारत गांधी के बाद, भारत नेहरू के बाद, आखिरी उदारवादी और अन्य निबंध, गांधी 1915-1948: साल जिन्होंने दुनिया को बदल दिया, भारत से पहले गांधी, देशभक्त और विभाजन आदि प्रमुख हैं.
‘भारत गांधी के बाद’ किताब में रामचंद्र गुहा ने भारतीय राजनीति में उथल-पुथल और अंग्रेजों की कटु चालों का उल्लेख किया है, साथ ही इसमें नेहरू, गांधी और पटेल की तारीफ की गई है और भारत विभाजन के दर्द को भी उकेरा गया है. वहीं, ‘द लास्ट लिबरल एंड अदर एसेज’ में भारत की प्रसिद्ध हस्तियों से लेकर फुटपाथ तक के बारे में बखूबी ढंग से लिखा है. इस किताब के द्वारा धर्मनिरपेक्षता, उदारवाद, ईमानदार और समाज के लिए प्रतिबद्ध लोगों के जीवन पर प्रकाश डाला गया है.
Book India After Gandhi. (Pic: twitter)
मिल चुका है पद्म भूषण पुरस्कार
न्यूयॉर्क टाइम्स ने इन्हें ‘भारत के नॉन फिक्शन लेखकों में सबसे अच्छा’ बताया है. वहीं, टाइम पत्रिका का कहना है कि गुहा भारतीय लोकतंत्र के पूर्व-प्रतिष्ठित इतिहासकार हैं.
रामचंद्र गुहा को देश विदेश में कई पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है, जिसमें से अमेरिकन सोसाइटी ऑफ एनवायरमेंटल हिस्ट्री का लियोपोल्ड-हिडी पुरस्कार, द डेली टेलीग्राफ/क्रिकेट सोसायटी पुरस्कार, सामाजिक विज्ञान अनुसंधान में उत्कृष्टता के लिए मैल्कम आदिदेहिया पुरस्कार, पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए रामनाथ गोयनका पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, और आर के नारायण पुरस्कार शामिल हैं.
इसी के साथ इन्हें सन 2009 में भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया. 2014 में इन्हें येल विश्वविद्यालय द्वारा मानविकी में मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया था.
क्रिकेट और बीसीसीआई पर बेबाक राय
रामचंद्र गुहा भारतीय इतिहास के साथ-साथ राजनीति, खेल खासकर क्रिकेट पर भी अपनी बेबाक राय रखते रहे हैं. इसी साल जनवरी में जब विराट कोहली के नेतृत्व में भारतीय क्रिकेट टीम दक्षिण अफ्रीका से टेस्ट सीरीज हारकर वापस आई तो रामचंद्र गुहा ने उनकी काफी आलोचना की. गुहा ने कोहली के साथ-साथ टीम के कोच और अन्य अधिकरियों पर भी जमकर निशाना साधा.
रामचंद्र गुहा 2017 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई बीसीसीआई की प्रशासनिक समिति के सदस्य भी रह चुके हैं. हालांकि कुछ महीने बाद ही इन्होंने निजी कारणों का हवाला देकर इस पद से इस्तीफा दे दिया. इसके साथ ही भारत के पूर्व खिलाड़ियों के साथ अच्छा व्यवहार न करने और अपने तानाशाही रवैये के लिए गुहा कई बार बीसीसीआई की कड़ी आलोचना कर चुके हैं.
अपने एक लेेख में उन्होंने लिखा कि “बीसीसीआई के लोग विराट कोहली को जैसे पूजते हैं, वैसे तो केंद्र सरकार में मंत्रिमंडल के सदस्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी नहीं पूजते होंगे.”
Ramachandra Guha was in Committee of BCCI Administration. (Pic: Cricbuzz)
सत्ताधारियों की खिंचाई!
रामचंद्र गुहा समय-समय पर सत्ता के शीर्ष शिखर की उनकी नीतियों पर आलोचना करते रहे हैं. जब केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अपनी उपलब्धियों को बताने के लिए विज्ञापन पर 1100 करोड़ खर्च कर दिए, तब रामचंद्र गुहा ने उनकी कड़ी आलोचना की थी. हालांकि इसके अलावा भी कई और बार गुहा ने नरेंद्र मोदी की आलोचना की है.
वहीं, गुहा ने नरेंद्र मोदी और आरएसएस के संबंधों पर भी निशाना साधते हुए कहा था कि “भारत को हिंदू पाकिस्तान बनते देख मुझे चिंता हो रही है. मुझे नहीं लगता कि पिछले 3 सालों में प्रधानमंत्री ने आरएसएस से दूरी बनाई है.”
कई मौकों पर गुहा ने नरेंद्र मोदी की तारीफ भी की है. उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स इंडिया समिट 2017 के दौरान मोदी के करिश्मे और अपील को जाति और भाषा की सीमा के परे बताते हुए कहा था कि “पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी तीसरे सबसे सफल प्रधानमंत्री बनने के करीब हैं.”
नेहरू की ओर झुकाव और…
यूं तो रामचंद्र गुहा ने भारत के राजनीतिक इतिहास पर कई पुस्तकें लिखी हैं, लेकिन उनका झुकाव स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की और ज्यादा रहा है, जैसा कि उनके लेखन से पता चलता है. इसके लिए उनकी कई बार आलोचना की गई है, और शायद इसी कारण उन्हें नेहरू का प्रिय भी कह दिया जाता है.
कहा तो यहां तक जाता है कि रामचंद्र गुहा ने अपनी इतिहास को बताने वाली किताबों में कांग्रेस और नेहरू के काले अध्याय को शामिल ही नहीं किया.
रामचंद्र गुहा नेहरू के बारे में लिखते हैं कि “भाषाई और धार्मिक बहुलवाद, विज्ञान को बढ़ावा देकर नेहरू ने आधुनिक भारत के निर्माण में बड़े पैमाने पर योगदान किया है. हालांकि, उनकी पीढ़ी ने उनकी प्रतिष्ठा को गहराई से हानि पहुंचाई है.”
साथ ही नेहरू की लोकप्रियता पर रामचंद्र गुहा ने लिखा है कि “1991 और इसके पहले के तमाम दशकों तक नेहरू को मिले सम्मान की एक वजह यह थी कि उन्होंने देश आजाद होने के बाद लगातार तीन कार्यकाल बतौर प्रधानमंत्री पूरे किए और 1970-80 के दशक के भारत को राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक आकार दिया.”
Democrats and Dissenters Book. (Pic: Medium)
पूर्व पीएम की आलोचना
इससे पहले गुहा भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ऊपर भी निशाना साध चुके हैं. राहुल गांधी की ताजपोशी के दौरान मनमोहन सिंह के भाषण को इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने चापलूसी बताया था.
हालांकि इतनी आलोचना के बाद रामचंद्र गुहा को कई लोगों और पार्टियों का कोप भी झेलना पड़ा. ऐसे ही एक मामले में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या को संघ परिवार से कथित तौर पर जोड़ने के लिए रामचंद्र गुहा को आलोचना झेलनी पड़ी थी. हालांकि उन्होंने हत्या के पीछे किसी व्यक्ति विशेष या पार्टी का नाम नहीं लिया, लेकिन उन्होंने ये जरूर कहा कि “आज के भारत में स्वतंत्र लेखकों और पत्रकारों को प्रताड़ित किया जा रहा, यहां तक कि हत्या कर दी जा रही, लेकिन हमें चुप नहीं किया जा सकता.”
Historian Ramachandra Guha. (Pic: Easy Money)
इससे पहले सन 2017 में गुहा ने हिंदू राष्ट्रवाद को इस्लामिक विचारों पर आधारित बताया था. गुहा ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि “हिंदुत्व राष्ट्रवाद भारत का मूल स्वदेशी विचार नहीं है. इसकी जड़ें अपने आदर्शों में भी नहीं हैं.”
हालांकि उनका कहना था कि राष्ट्रवाद बहुलतावाद पर आधारित है, इसे किसी एक भाषा या धर्म के आधार पर तय नहीं किया जा सकता है.
Web Title: Ramachandra Guha: Biography of Famous Indian Historian, Hindi Article
Feature Image Credit: raghavshreyas/Toronto Star