21 साल की उम्र में अधिकतर नवयुवक अपने आने वाले जीवन को आरामदायक बनाने के प्रयास में लगे होते हैं. वे सब चाहते हैं कि कैसे भी करके उन्हें एक अच्छी जिंदगी मिल जाए. इस उम्र में अधिकतर नवयुवक बस बने बनाए ढर्रे पर चलते रहते हैं. कुछ भी नया करने का विचार उन्हें अंदर से डरा देता है.
दुनिया में ऐसे बहुत कम ही लोग हुए हैं जिन्होंने कम उम्र में भेड़चाल का हिस्सा बनने से इंकार करके अपनी अलग पहचान बनाई है. ये लोग लीक से हटकर चले और विफलताओं से सीखकर आगे बढ़े और दूसरों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बने. ऐसे ही एक शख्स हैं रितेश अग्रवाल जिन्होंने छोटी उम्र में ओयो रूम्स जैसा के सक्सेसफुल बिजनेस शुरू किया.
तो चलिए जानते हैं कि आखिर कैसे इस कच्ची उम्र के युवक ने शुरू किया ऐसा स्टार्टअप–
कुछ अलग करने के लिए घर से भाग गए!
हम जिन शख्स की बात कर रहे हैं, उनका नाम है रितेश अग्रवाल. ये ‘ओयो रूम्स’ के फाउंडर हैं.
किसी भी आम बच्चे का बचपन जैसे बीतता है, वैसे इनका भी बीता. बारहवीं तक की पढ़ाई बड़े आराम से की, लेकिन इनके जीवन में असली उठापटक यहीं से शुरू हुआ. असल में ये मारवाड़ी परिवार से हैं. इनके परिवार की पीढियां सदियों से व्यापार और कारोबार करती आ रही थीं. इसलिए इनके माता पिता चाहते थे कि ये भी कोई दुकान खोल लें.
हालांकि रितेश दुकान खोलकर एक जगह नहीं बैठना चाहते थे. इनका मन किताबों और यात्रा में लगता था. इसलिए ये घर छोड़कर कोटा आ गए. यहां उन्होंने आआईटी के लिए कोचिंग करनी शुरू की. कोचिंग के साथ साथ वे जगह-जगह आयोजित होने वाली ‘बिजनेस सेमिनार’ में भी जाने लगे. यहां उनकी मुलाकात ऐसे लोगों से हुई, जो रोजमर्रा की समस्यायों का आसान हल निकालने की कोशिश कर रहे थे.
यहीं से रितेश को ख्याल आता है कि वे भी कुछ ऐसा करेंगे. रितेश मन ही मन सोचते हैं कि रसायन विज्ञान के सूत्रों को सीखकर वे लोगों की इतनी मदद नहीं कर सकते हैं जितनी किसी नए बिजनेस से कर सकते हैं. इसलिए वे आईआईटी की कोचिंग छोड़कर दिल्ली में एक बिजनेस कॉलेज में दाखिला ले लेते हैं.
छोटी उम्र में ही खोल लिया अपना स्टार्टअप!
ज्यादातर ‘बिजनेस सेमिनार्स’ बड़े-बड़े शहरों में हुआ करती हैं और कई-कई दिनों तक चलती हैं. इसलिए रितेश को इन महंगे शहरों में रुकना भी पड़ता था. यहाँ ठहरने में उनको बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. इसमें सबसे बड़ी परेशानी थी अच्छे और सस्ते होटल नहीं मिलना. कई बार ज्यादा पैसे देने के बाद भी उन्हें अच्छा कमरा नहीं मिल पाता था.
यहीं से उनके दिमाग में ख्याल आता है कि क्यों न कोई ऐसा प्लेटफोर्म बनाया जाए जिसके जरिये लोगों को ठहरने के लिए आसानी से कमरे मिल जाएं. जिस वक़्त रितेश के दिमाग में यह ख्याल आया उस दौर में भारत में स्टार्टअप शुरू होने लगे थे और टेक्नोलॉजी के मामले में भी भारत काफी आगे हो गया था.
इस उद्देश्य से 2012 में उन्होंने अपना पहला स्टार्टअप ‘ऑरवेल स्टेस’ शुरू किया. यह स्टार्टअप लोगों को छोटी और मध्य अवधि के लिए कमरे बुक करने की ऑनलाइन सेवा उपलब्ध कराता था. इस स्टार्टअप में अपना सबकुछ देने के लिए रितेश ने अपना बिजनेस कॉलेज भी छोड़ दिया था!
हालाँकि जैसे सभी स्टार्टअप्स को शुरुआत में पैसों की जरूरत होती है. वैसे ही ‘ऑरवेल स्टेस’ को भी पड़ी. वे अपने बिजनेस का विचार लेकर स्टार्टअप्स में निवेश करने वाली एक कंपनी ‘वेंचर नर्सरी’ के पास गए. कंपनी को उनका यह विचार पसंद आया और उन्होंने रितेश के स्टार्टअप को करीब तीस लाख रूपए का फंड भे दे दिया.
इसी समय रितेश को ‘थील फेलोशिप’ के बारे में पता चलता है. यह फेलोशिप बीस वर्ष से कम उम्र के युवाओं को अपना स्टार्टअप आगे बढ़ाने के लिए वित्तीय मदद मुहैया कराती है. रितेश इस फेलोशिप में दसंवा स्थान हासिल करते हैं और उन्हें 66 लाख रूपए की प्रोत्साहन राशि मिलती है.
डूबने लगा रितेश का पहला स्टार्टअप...
सब सही चल भी रहा था. कंपनी और फेलोशिप से मिली राशि को स्टार्टअप में लगाया जा चुका था. रितेश की गाड़ी पटरी पर चल पड़ी थी मगर थोड़े ही समय में वह गाड़ी रुकने लगी थी.
इतना सारा पैसा लगाने के बाद भी उन्हें अपेक्षित फायदा नहीं हो रहा था. ‘ऑरवेल स्टेस’ धीरे-धीरे घाटे में जा रहा था. रितेश के जानने वाले उसे वापस घर जाकर कुछ और करने की सलाह दे रहे थे, लेकिन उन्हें मालूम था कि अगर वे घर चले गए, तो फिर कभी वह आगे नहीं बढ़ पाएंगे!
चारों तरफ से उनकी आलोचनाएँ हो रही थीं. वे सभी आलोचनाओं को ध्यान से सुन रहे थे और केवल उन्हीं पर ध्यान दे रहे थे, जो उनके स्टार्टअप में हुई गलतियों के बारे में बता रही थीं. उन्हें पूरा विश्वास था कि वे इस संकट की घड़ी से बाहर निकल आएंगे.
जब उन्होंने ढंग से जांच पड़ताल की, तो पाया कि अब बदले हुए वक्त में सस्ता कमरा मिलना या ना मिलना उतना महत्वपूर्ण नहीं रह गया है, जितना कि कम पैसे में अच्छी सुविधाओं से लैस कमरा मिलना. ग्राहकों को जो चाहिए था वह उन्हें रितेश की वेबसाइट से नहीं मिल रहा था. यह बात रितेश को समझ आ चुकी थी. उन्होंने भी सोचा लिया कि अब ग्राहकों की जरूरत समझकर ही वह नया बिजनेस शुरू करेंगे.
करते हैं नई शुरुआत
इन्हीं सब बातों पर विचार करके उन्होंने ‘ऑरवेल स्टेस’ में जरूरी परिवर्तन किए. उन्होंने अपने शुभचिंतकों से सलाह ली और 2013 में ‘ऑरवेल स्टेस’ का नाम बदलकर ‘ओयो रूम्स’ कर दिया. ओयो रूम्स का मतलब होता है- आपके अपने कमरे. उन्होंने ग्राहकों को अच्छे रूम्स और बेहतर सुविधाएं देने पर ज्यादा जोर डाला. यही वह एक चीज थी, जो लोगों को ओयो रूम्स की तरफ आकर्षित कर सकती थी. रितेश ने सोच लिया कि अगर बिजनेस सही से चलाना है, तो उन्हें खुद उन होटल रूम्स की हकीकत जाननी पड़गी जिन्हें वह अपने ग्राहकों को मुहैया कराएंगे.
रितेश ने यह कदम इसलिए उठाया क्योंकि कई बार होटल वाले जैसे कमरे का दावा करते थे कमरे वैसे होते नहीं थे. यही कारण है कि पहले उनका स्टार्टअप डूबने लगा था. हालांकि इस बार रितेश ने सोच लिया था की वह फिर से इसे गिरने नहीं देंगे.
ओयो रूम्स ने बुक किए जाने वाले कमरों के कुछ मानक सेट कर दिए. अब होटल वालों को ग्राहक को ओयो द्वारा निर्धारित कम से कम सुविधाएं देना जरूरी हो गया. अब कोई भी होटल अगर ओयो के साथ जुड़ना चाहे, तो पहले उसे ओयो की वेबसाईट पर जाकर आवेदन करना पड़ेगा. फिर इसके बाद ओयो के कुछ अधिकारी होटल के कमरों और वहां मौजूद मूलभूत सुविधाओं का निरीक्षण करेंगे और सबकुछ सही पाने पर ही उस होटल को अपने साथ ओयो जोड़ेगा.
इस नए विचार के साथ रितेश को बहुत सफलता मिली. ओयो रूम्स ने दिन दोगुनी और रात चौगुनी रफ़्तार से प्रगति की. कंपनी की इस प्रगति को देखते हुए 2014 में डीएसजी कंज्यूमर पार्टनर्स ने इसमें चार करोड़ का निवेश किया! वहीं 2016 में जापानी बहुराष्ट्रीय कंपनी सॉफ्टबैंक ने इसमें सात अरब रूपए का निवेश किया.
आज ओयो रूम्स ने बाजार में खुद को स्थापित कर लिया है. हर महीने लगभग एक करोड़ ग्राहक ओयो रूम्स के जरिए कमरे बुक करते हैं. यह एक नई कंपनी के लिए बहुत बड़ी बात है. फिलहाल ओयो का कोई बड़ा प्रतिद्वंदी मार्केट में नहीं है. धीरे- धीरे यह कंपनी भारत के बाहर भी फैल रही है. मलेशिया में इसने अपना नया वेंचर खोला है. आज ओयो अपनी सफलता के शिखर पर है और इसके साथ रितेश भी.
आज ओयो रूम्स जिस शिखर पर है, उसके पीछे रितेश की मेहनत ही है. रितेश जोखिम उठाने से कभी नहीं घबराए. जोखिम उठाने के बाद जब लगा कि सब कुछ ख़त्म हो जाएगा, तब भी रितेश ने हिम्मत नहीं हारी और सफलता हासिल की.
रितेश सच में हमारे लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं. रितेश के बारे में आपके क्या विचार हैं कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं.
Web Title: Ritesh Agarwal Founder Of OYO Rooms, Hindi Article
Feature Image Credit: youtube