समाज ने जिस तरह से महिलाओं को मां, बहन, पत्नी के किरदारों के जरिए पूजनीय बना दिया है, उससे वह इंसानों के दायरे से बाहर होती जा रही हैं. औरतों के सपनों पर जिम्मेदारियों के एक मोटी सी चादर चढ़ा दी गई है. जब भी वो इससे हटकर अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश करती हैं, कोई न कोई अवरोध खड़ें हो जाते है!
कुछ औरते इनसे समझौता कर लेती हैं, तो वहीं कुछ इन चुनौतियों को पार कर इतिहास रचने का काम करती हैं. हमारे देश में डॉक्टरी करने वाली पहली महिला रुखमाबाई राउत की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. बाल विवाह के बाद जब उन्होंने अपने सपनों को पहचाना और उन्हें पूरा करने की कोशिश की, तो शादी की बेड़ियों ने उन्हें जकड़ लिया.
मगर शादी के चक्रव्यूह से निकलते हुए उन्होंने अपने सपने को पूरा किया और एक मिसाल कायम की.
तो आइए चलते हैं रुखमाबाई राउत के संघर्षमयी सफर पर-
दूसरे पिता से मिला डॉक्टरी का सपना
11 साल की उम्र में जिस लड़की को पढ़ाई की जगह शादी जैसे बंधन में बांध दिया गया हो. जरा सोचिए उसके सपनों की क्या हैसियत रह गई होगी. रुखमाबाई उस बॉम्बे प्रजिडेंसी में पैदा हुई थीं, जहां अंग्रेजी शिक्षा का प्रभाव और दायरा काफी बड़ा था. बावजूद इसके उनकी पैदाइश के समय 1864 में बाल विवाह जैसी प्रथा बहुत आम बात थी.
रुखमाबाई की मां की शादी बचपन में ही कर दी गई थी, जिसके चलते मात्र 17 साल की उम्र में वो विधवा हो गई थी. कम उम्र के चलते रुखमाबाई की मां का विवाह एक सामाज सुधारक और पेशे से डॉक्टर सखाराम अर्जुन से करवा दिया गया. अपने दूसरे पिता के समाज सुधारक और डॉक्टर होने का रुखमाबाई की जिंदगी पर गहरा असर पड़ा.
डॉक्टरी में उनकी रूची बनने लगी थी. खैर उन्हें आकार मिलता इससे पहले मात्र 11 साल की उम्र में उनकी शादी करवा दी गई. हालांकि, वो शादी के तुरंत बाद अपने ससुराल नहीं गई और अपने घर में रहकर ही पढ़ाई की.
मगर जब वो 12 साल की हुईं, तो दकियानुसी ख्यालों वाले पति के साथ रहना उन्होंने स्वीकार नहीं किया. रुखमाबाई ने उस रिश्ते से आजादी की चाहत जताई, जिसे केवल उनकी मां की खुशी के कारण नींव मिली.
पति ने बनाया साथ में रहने का दबाव
इस समय पर रुखमाबाई के पति उन पर अपने साथ वैवाहिक जीवन बिताने के लिए दबाव बनाने लगे थे. किंतु तब तक अपने पिता की तरह डॉक्टर बनने का सपना देख चुकी रुखमाबाई इसके खिलाफ हो चुकी थीं. दकियानूसी समाज में जहां शिक्षा का स्तर न के बराबर हो, वहां रुखमाबाई के सपने की कहां किसी को फिक्र थी.
वहीं एक पितृस्तातमक समाज में एक औरत द्वारा अपने पति की बात न मानना, अपने आप में एक बड़ा अपराध था!
लिहाजा रुखमाबाई के पति दादाजी भीकाजी ने बॉम्बे कोर्ट में याचिका दायर कर दी. आजादी के समय रुखमाबाई के इस मामले ने इतनी तूल पकड़ी थी कि चर्चा बाल गंगाधर तिलक तक पहुंच गई थी. मगर उन्होंने इस पर रुखमाबाई को समर्थन नहीं दिया.
मामला कोर्ट में था, इसलिए सभी की नज़र उस पर टिकी हुई थी. कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि रुखमाबाई को अपने पति के साथ रहना होगा. अगर वह ऐसा नहीं करती तो उन्हें जेल जाना होगा. रुखमाबाई ने बहादुरी और साहस के साथ इस स्थिति का सामना किया और पति के साथ जाने की वजाए जेल जाना ज्यादा उचित समझा. बाद में दादाजी भीकाजी को मुआवजा देकर रुखमाबाई के पिता ने दोनों का तलाक करवा दिया था. इस तरह वो मजबूरी के रिश्ते से आजाद हो गईं.
'द हिंदू लेडी' में बयां किया अपना दर्द
छोटी सी उम्र में इतने मसले झेल चुकी रुखमाबाई ने कभी न हार मानने की सीख ले ली थी. दूसरी तरफ रामाबाई रानाडे जैसे समाज सुधारक रुखमाबाई के साथ खड़े नज़र आए. उन्होंने रुखमाबाई और उनके पिता का खुल कर साथ दिया. खुद रुखमाबाई ने 'द हिंदू लेडी' के नाम से द टाइम्स ऑफ इंडिया में दो लेख भी लिखे.
इन लेखों में उन्होंने दकियानुसी सोच को जमकर लताड़ा. उन्होनें लिखा-बाल विवाह की इस क्रूर प्रथा ने मेरे जीवन की खुशी को नष्ट कर दिया. यह मेरे और उन चीजों के बीच आई है, जिन्हें मैं अपनी जिंदगी में ज्यादा तरजीही देती हूं-शिक्षा और मानसिक विकास. मेरी किसी भी गलती के बगैर मुझे अपराधी घोषित कर अलग-थलग किया गया. मेरी गलत छवि पेश की गई.
खैर, तलाक के बाद रुखमाबाई अपने सपनों को पूरा करने के लिए आजाद थीं. डॉक्टर बनने के उनके सपने में बॉम्बे के कामा अस्पताल के डॉयरेक्टर एडिथ फिजसन ने उनकी काफी मदद की. उन्हें अंग्रेजी सीखने का कोर्स करवाया, जिसके बाद रुखमाबाई लंदन स्कूल ऑफ मेडिसिन फॉर वूमैन में पढ़ने के लिए इंगलैंड गईं.
लंदन से पढ़ाई पूरी करने के बाद जब 35 साल की उम्र में वो भारत लौटीं, तो उन्होंने खुद को बाल विवाह और पर्दा प्रथा जैसे दकियानूसी विचारों के खिलाफ लड़ाई में गुजार दी. साथ ही वो पहली डॉक्टरी करने वाली भारतीय महिला भी बनीं.
वैसे उनसे पहले आनंदीबाई गोपाल जोशी डॉक्टरी की पढ़ाई में दाखिल हो चुकी थी, लेकिन टीबी के चलते वो मृत्यु को प्यारी गईं थी. इस कारण रुखमाबाई का नाम सबसे पहले डॉक्टरी बनने वाली महिला के रूप में लिया जाता है.
Web Title: Rukhmabai Raut, First Women Doctor of India, Hindi Article
Feature Image Credit: Mumbai