एक महिला क्या कर सकती है!
यह सवाल पूछना आज के समय में बचकाना लगता है. अब शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो, जहां महिलाएं पुरूषों के बराबर काम न कर रही हों!
जबकि, आज से करीब 60 साल पहले तक इस सवाल का एक ही जवाब था… औरतें घर का चौका-चूल्हा सम्हालने और बच्चे पालने के लिए होती हैं!
उसी दौर में 1960 के आसपास बुंदेलखंड की जमीं पर ऐसी लड़की ने जन्म लिया, जिसने कुछ सालों बाद ‘इस सवाल’ के ‘जवाब’ को अपनी लाठी की धमक से बदल कर रख दिया.
वह कोई और नहीं संपत पाल थीं!
संपत पाल वहीं महिला हैं, जिन्होंने बुंदेलखंड में महिला सशक्तिकरण के लिए काम करते हुए ‘गुलाबी गैंग’ को खड़ा किया. गजब की बात तो यह है कि उन्हें दुनिया की 100 प्रभावशाली महिलाओं में जगह मिली. यही नहीं उनके जीवन पर ‘गुलाब गैंग’ नामक हिन्दी फिल्म भी बनी.
संपत ने महिलाओं को सशक्त बनाने में अपना पूरा जीवन झोंक दिया पर आखिर में शोहरत की चमक और राजनीति ने उनका अस्तित्व खत्म कर दिया.
ऐसे में फिल्मी उनकी कहानी को जानना दिलचस्प हो जाता है—
अपमान के घूंट ने जगाई हिम्मत!
1960 को उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के एक साधारण से गड़रिया परिवार में संपत का जन्म हुआ. यह इलाका उबड़-खाबड़ टीलों और बीहड़ों से भरा हुआ था. कुछ ऐसा ही था संपत का जीवन, जिसमें उतार चढ़ावों की कोई कमी नहीं रही.
संपत उसी दौर में जन्मी थीं, जब लड़कियों का पैदा होना उनके माता-पिता के सिर पर नए बोझ के समान था. माता-पिता ने भी देर न करते हुए केवल 12 साल की उम्र में शादी कर दी.
संपत की शादी, जिससे हुई वह सब्जी बेचने का काम करता था. मायके में तो कभी पढ़ने का मौका मिला नहीं, ससुराल में भी यह आस अधूरी रह गई. पति काम पर जाते और संपत घर का चौका-चूल्हा सम्हालती. परिवार की आर्थिक स्थिति पहले ही अच्छी नहीं थी, ऐसे में बची हुई कसर जातिवाद के दंश ने खत्म कर दी.
संपत की ससुराल चित्रकूट ज़िले के रौलीपुर-कल्याणपुर में थी.
यह गांव ठाकुरों के परिवारों से भरा हुआ था. ऐसे में एक हरिजन परिवार में ब्याही गई संपत को सम्मान की उम्मीद न के बराबर ही रही.
संपक को पहली बार अपमान तब महसूस हुआ, जब उसे गांव के कुंए से पानी भरने से केवल इसलिए रोक दिया गया, क्योंकि वह निचली जाति से ताल्लुक रखती थी. दूसरी तरफ ठाकुरों का दबदबा इतना था कि संपत के पास अपमान का घूंट पी लेने के अलावा कोई चारा न बचा.
Gulabi Gang (Pic: assettype.com)
नहीं रुका अपमान का सिलसिला तो…
इस घटना के बाद संपत ने परिवार के साथ गांव छोड़ दिया और बांदा के कैरी गांव में बस गई. जिंदगी फिर अपनी गति से चलने लगी, लेकिन जाति के कारण अपमान का सिलसिला खत्म नहीं हुआ. संपत के जीवन पर लिखी गई किताब ‘मॉय संपत पाल, चेफ द गैंग इन सारी रोज़’ में उस घटना का जिक्र है, जिसने पहली बार गुलाबी गैंग की नींव रखी.
दरअसल, एक रोज संपत के घर के पास वाले घर में शराबी प ति अपनी पत्नी को पीट रहा था. वह बेसहारा चिल्ला रही थी, पर कोई मदद के लिए आगे नहीं आया. उसके छोटे-छोटे बच्चे पिता की हरकत से डरे हुए एक कोने में चुपचाप बैठे मां को पिटते हुए देख रहे थे.
लोगों की खामोशी और उस औरत की चीख ने संपत को परेशान कर दिया. उसने हिम्मत दिखाई और उस आदमी को अपनी पत्नी पर हाथ उठाने से रोका. ऐसे में जब आदमी ने यह कहकर उसे घर से निकाल दिया कि ये मेरे परिवार का मामला है, तो संपत का खून खौल उठा.
उसने समाज की औरतों की पंचायत बुलाई और कुछ महिलाओं को अपने साथ राजी कर उसी आदमी को अगले दिन खेत में पकड़कर जमकर पीटा. वह भी तब तक, जब तक कि उसने अपनी पत्नी से माफी नही मांग ली.
बस फिर क्या था, पूरे गांव में संपत की हिम्मत की चर्चा हुई. पुरूषों ने तो दबे मुंह इस घटना का विरोध किया पर महिलाओं को संपत से बड़ा आसारा मिला. इस घटना के बाद संपत ने गांव की महिलाओं का एक समूह बनाया, जो ‘गुलाबी गैंग’ के रूप में मशहूर हुआ!
Voice Against Tyranny (Pic: blogspot.com)
शुरू हुआ गुलाबी गैंग का सफर
गुलाबी गैंग के लिए संपत ने गुलाबी रंग की साड़ी यूनीफार्म की तरह निर्धारित कर दी. पहले तो महिलाएं अपने घर की अलग-अलग गुलाबी साड़ियां पहती रहीं, फिर धीरे-धीरे उन्होंने एक जैसी गुलाबी साड़ी तैयार कर ली. शुरूआत में महिलाओं के इस समूह में करीब 50 महिलाएं जुडीं.
इन महिलाओं ने गांव में गरीबों, औरतों, पिछड़ों, पीड़ितों, बेरोज़गारों के लिए लड़ाई लड़नी शुरु कर दी. यह बड़ी पहल थी, किन्तु संपत जानती थी कि केवल बातों से बात नहीं बनेगी, इसलिए उसने पहले खुद लठ्ठबाजी सीखी और फिर समूह की बाकी महिलाओं को सिखाई.
आगे जहां कहीं भी अत्याचार होता, वहां गुलाबी गैंग पहुंच जाती! पहले बातचीत का रास्ता चुना जाता, फिर बात नहीं बनती तो गुलाबी गैंग धरना करती. उनकी लाठी की धमक ऐसी थी कि गांव के अच्छे-अच्छे पहलवान भी कतराने लगे थे.
आलम यह हुआ कि कुछ ही सालों में संपत की गैंग 50 से 500 और फिर 5000 हजार हो गई. इसके साथ ही गैंग की धमक बांदा से बाहर निकलते हुए आसपास के जिलों तक पहुंच गई. ॉ
अब तक संपत पीड़ित महिलाओं के हक की लड़ाई, शराब दुकान बंदी, राशन की समस्याएं और पंचायती फरियादों के लिए लड़ाई लड़ रही थ, लेकिन साल 2006 में वह तक चर्चा में आई ज ब दुराचार के एक मामले में अतर्रा के तत्कालीन थानाध्यक्ष को बंधक बना लिया. नतीजा यह हुआ कि गुलाबी गैंग के दबाव में तत्काल आरोपियों की गिरफ्तारी हो गई.
इसके बाद मऊ थाने में अवैध खनन के आरोप में पकड़े गए मज़दूरों को छोड़ने की मांग को लेकर तहसील परिसर में गुलाबी गैंग ने संपत पाल के नेतृत्व में धरना दिया. बहुत समझाने के बाद भी जब गुलाबी गैंग वहां से नहीं हटी, तो पुलिस ने बल प्रयोग किया और जवाब में गुलाबी गैंग ने एसडीएम और सीओ पर लाठी से हमला कर दिया.
दोनों अधिकारी अपना केबिन छोड़ सड़क पर भागते नजर आए और उनके पीछे पीछे भाग रही थी गुलाबी गैंग. बाद में दोनों अधिकारियों को कमरे में बंद कर दिया गया और फिर प्रशासन को दवाब में आकर मजदूरों को छोड़ना पडा.
Gulabi Gang(Pic: cloudfront.net)
जब शोहरत की चमक में खो गई सपंत!
संपत पाल की इस हिम्मत और गुलाबी गैंग के कारनामों की चर्चा से प्रदेश भर के अखबार भर गए. यहां तक की देश के बड़े-बडे़ मीडिया हाउस में संपत के इस कदम की चर्चा हुई. घटना की तरफदारी करने वालों की कमी नहीं थी, लेकिन राज्य सरकार गुलाबी गैंग के इस कदम से खफा हो गई. नतीजतन पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह ने गुलाबी गैंग को नक्सली संगठन करार देते हुए संपत पाल और उसके सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया.
हालांकि, कुछ ही वक्त में वह जमानत पर रिहा हुई और उसे आम जनता का पूरा समर्थन मिला.
इसके बाद संपत लाल और गुलाबी गैंग शराब बंदी के अभियान को लेकर देशभर में चर्चित रहीं. साल 2007 तक गैंग में करीब 15 हजार महिलाएं शामिल हो चुकी थीं. इनमें से अधिकांश महिलाएं, वे थीं जिन्हें किसी कारणवश उनके परिवार से बेदखल कर दिया गया है. या फिर जो प्रताड़ित रहीं. संपत ने बेसहारा महिलाओं को आसरा दिया, इसलिए उन्होंने उसे सम्मान दिया.
संपत की ख्याति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि साल 2008 में फ्रांस की एक पत्रिका ‘ओह’ ने संपत की जीवनी और गुलाबी गैंग के सफर पर ‘मॉय संपत पाल, चेफ द गैंग इन सारी रोज़’ नाम से किताब का प्रकाशन किया. इसके अलावा एक और किताब प्रकाशित हुई जिसका नाम था संपतलाल: वेयर इन अ पिंक सारी. यह किताब भारत समेत दुनियाभर में पढी गई.’
नतीजतन 2011 में अंतरराष्ट्रीय ‘द गार्जियन’ पत्रिका ने दुनिया की सौ प्रभावशाली महिलाओं में उन्हें जगह दी.
संपत लाल उस क्षेत्र में काम कर रही थी, जहां डकैतों का राज था. आम आदमी डकैतों से डरता था, लेकिन संपत के प्रति उनके मन हमदर्दी ने जगह बना ली. उनकी गैंग में 2 लाख 70 हजार महिलाएं शामिल हो गईं. लोग अपनी छोटी-बड़ी समस्याएं लेकर संपत के पास आने लगे और देखते ही देखते वह दुनियाभर में मशहूर हो गई.
महिला सशक्तिकरण पर संपत ने भारत समेत अन्य देशों में अपने वक्तव्य दिए और लोग उसके काम से प्रभावित भी हुए.
किन्तु, कहा जाता न है कि शोहरत का आसमान ज्यादा देर तक किसी को अपने पालने में नही झुलाता. आखिर हुआ भी यही. जो संपत कल तक गरीबों और बेसहारा महिलाओं की हमदर्द थी वह अब चकाचौंध भरी दुनिया में खोने लगी थी.
राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय सम्मेलन, सम्मान कार्यक्रम, पुरस्कार लेने की व्यस्तता ने उसे आम आदमी से दूर कर दिया.
Madhuri Dixit as Sampath Pal (Pic:.thenational.ae)
राजनीति में उतरने की कोशिश की, लेकिन…
संपत की ख्याति का फायदा राजनीति को मिल सके, इस उदेदश्य से उसे राजनीतिक पार्टियों ने चुनाव लड़ने की सलाह दी.
इसी के चलते साल 2012 में संपत ने प हली बार राजनीति में उतरने की कोशिश भी की. हालांकि, जनता को संपत का यह बदला हुआ रूप पसंद नही आया और वह हार गईं! आम आदमी से दूर, राजनीति में हारी हुई संपत को फिर से सहारा तब मिला, जब वह मशहूर टीवी शो बिग बॉस 6 का हिस्सा बनी. यह बात और है कि वह यहां भी दूसरे ही राउंड में बाहर निकाल दी गईं.
सभी जगह से मात खाने के बाद संपत ने दोबारा अपनी गैंग को सम्हालने की सोची और फिर वापिसी का रूख किया.
हालांकि, जब संपत वापिस गैंग के बीच पहुंची, तब तक बहुत कुछ बदल चुका था. गैंग को कई स्वयंसेवी संगठनों की मदद से फंडिंग हो रही थी और वे लगातार शोषित महिलाओं के लिए काम कर रहे थे, लेकिन इस काम के आड़े आ रही थी संपत की शौहरत.
साल 2012 में संपत ने दोबारा गैंग के साथ मिलकर काम करना चाहा, पर अब उसके व्यवहार में परिवर्तन आ चुका था. महिला सदस्य संपत के रवैए से खुश नहीं थीं. सदस्यों का कहना था कि संपत को राजनीति का चमक ने अंधा बना दिया है. वह संगठन के पैसों का दुरुपयोग कर रही है. सभी लोग इस बात से नाराज थीं कि उसने बिना किसी को सूचना दिए बिग बॉस जैसे शो का हिस्सा बनना मंजूर कर लिया.
आखिरकार 53 वर्षीय गैंग कमांडर संपत पाल की तानाशाही के खिलाफ साल 2014 में बांदा जिले के अट्टारा इलाके में संगठन की महिला सदस्यों की बैठक आयोजित हुई. इसमें संपत को शामिल नही हुईं, लेकिन सदस्यों ने पूर्ण सहमति से उसे गैंग से बाहर निकाल फेंका और सुमन सिंह को कार्यवाहक अध्यक्ष बना दिया.
साथ ही संगठन में निर्णय लेने के लिए सात सदस्यों की कमेटी बनाई गई. इसके बाद अलग-अलग पदों के लिए चुनाव होते रहे और संगठन मौन रूप से काम करता रहा. किन्तु, संपत पूरी तरह खामोश हो गई. अपनी ही बनाई गैंग से निकाल दिए जाने का गुस्सा मन में लिए उसने साल 2017 में फिर से चुनाव मैदान में उतरने की कोशिश की, पर इस बार भी जनता का विश्वास हासिल नहीं कर पाई.
Sampat-Pal (Pic: Kudos)
अब संपत 53 साल की हो चुकी हैं और अपने घर में अकेली हैं. गैंग का साथ छूटते ही शरीर से गुलाबी रंग भी उतर गया.
राजनीति और शोहरत की आंधी ने एक झटके में संपत से सबकुछ छीन लिया. जब से संपत ने खामोशी का दामन थामा है, तब से गुलाबी गैंग की चर्चा भी कम हो गई है. संपत और उनकी गैंग पर अब भी दर्जन भर केस चल रहे हैं पर अब यह जंग उन्हें अकेले ही लड़नी हैं.
संपत के आखिरी दौर को याद न करते हुए यदि केवल उसके काम पर ध्यान दिया जाए तो यह मानने में आज भी किसी को हर्ज नहीं है कि वह शोषित और पीड़ित वर्ग की बुलंद आवाज थी!
Web Title: Sampath Pal Created the Gulabi Gang, Hindi Article
Feature Image Credit: Freedom Quarter