संतों के बारे में आम धारणा है कि वे जीवन-मृत्यु के खेल से परे, मोह माया से दूर, निष्काम जीवन जीते हैं. केवल वहीं हैं, जो तनाव से दूर हैं और दुनिया को भी तनाव से दूर रहने का मूल मंत्र देते हैं.
पर क्या होता है, जब वे तनाव में आते हैं? इस बात का चौकानें वाला जवाब 'राष्ट्र संत' भय्यूजी महाराज की आत्महत्या ने दिया है. 13 जून 2018 को भय्यूजी महाराज ने गोली मारकर आत्महत्या कर ली. इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया.
एक संत की मौत पर किसी को विश्वास नहीं हो पा रहा है, पर यह सच है. ऐसा सच, जिसे मानने में शायद कुछ वक्त लगे.
बहरहाल उनकी मौत की गुत्थी तो पुलिस सुलझा ही रही है, लेकिन आज हम उनके जीवन के उन पहलुओं को आपके सामने लेकर आए हैं, जिन्होंने एक मॉडल को 'राष्ट्र संत' बना दिया.
वो महाराष्ट्र की राजनीति के 'संकटमोचन' रहे, जिनके आगे आरएसएस ने भी सिर झुकाया है!
मॉडलिंग से शुरू किया था करियर
भय्यूजी महाराज.. दरअसल यह नाम तो काफी बाद में उन्हें मिला. उनका असली नाम था उदय सिंह देशमुख. उदय ने मध्य प्रदेश के शुजालपुर गांव में एक किसान के घर जन्म लिया था.
जाहिर है कि किसान के घर पैदा हुआ बच्चा जन्म से ही बड़े सपने नहीं देख पाया. वह केवल इतना चाहते थे कि पिता के कहे अनुसार पढ़ाई कर लें और जब वह पूरी हो जाए तो नौकरी करके घर की आमदनी बढाएं.
किन्तु, नियति के आगे सारी योजनाएं धरी की धरी रह गईं. उदय सिंह ने स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद इंदौर के इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया और आगे की पढ़ाई वहीं शुरू की.
चूंकि, पिता की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, इसलिए वे पार्ट टाइम जॉब भी करते रहे.
अच्छी शक्ल-सूरत और शानदार व्यक्तित्व के कारण उन्हें मॉडलिंग का मौका मिला. उदय ने पहली बार इंदौर में ही 'सियाराम सूटिंग्स' के लिए मॉडलिंग की.
आमतौर पर किसी युवा को ऐसा मौका मिलता, तो वह शायद बॉलीवुड में जाने की प्लानिंग करता पर उदय ने ऐसा नहीं किया. भगवान दत्तात्रेय के प्रबल भक्त होने के कारण वे पढ़ाई के दौरान आध्यात्म से जुडे रहे.
इंजीनियरिंग पूरी हुई तो परिवार को आर्थिक मदद देने के लिए नौकरी शुरू कर दी, लेकिन मन आध्यात्म की ओर बढ़ता जा रहा था. इस बीच गुरु अन्ना महाराज से गुरू दीक्षा भी ले ली.
पिता विश्वास राव देशमुख को लगा कि उदय आध्यात्म की राह पर चलने के चक्कर में कहीं गृहस्थ जीवन से मोह न खो दे, इसलिए उनकी शादी माधवी से करवा दी.
हालांकि, मीडिया रिपोर्ट में कहा जाता है कि माधवी के साथ उनके बहुत अच्छे संबंध नहीं रहे.
भगवान दत्तात्रेय के प्रबल भक्त होने के कारण वे पढाई के दौरान आध्यात्म से जुडे रहे. इंजीनियरिंग पूरी हुई, तो परिवार को आर्थिक मदद देने के लिए नौकरी शुरू कर दी.
किन्तु, मन आध्यात्म की ओर बढ़ता जा रहा था. इस बीच गुरु अन्ना महाराज से गुरू दीक्षा भी ले ली.
पिता विश्वास राव देशमुख को लगा कि उदय आध्यात्म की राह पर चलने के चक्कर में कहीं गृहस्थ जीवन से मोह न खो दे, इसलिए उनकी शादी माधवी से करवा दी.
हालांकि, मीडिया रिपोर्ट में कहा जाता है कि माधवी के साथ उनके बहुत अच्छे संबंध नहीं रहे.
...और फिर बन गए राष्ट्र संत
बहरहाल शादी हो जाने से भी उदय के जीवन में कोई खास फर्क नहीं आया. उन्होंने श्री सदगुरु दत्त धार्मिक व परमार्थिक ट्रस्ट की शुरुआत की. इंदौर, पुणे, नासिक समेत महाराष्ट्र के कई शहरों में आश्रम बनाएं और समाज सेवा शुरू कर दी.
ट्रस्ट लावारिस मृतकों के अंतिम संस्कार, अनाथों की परवरिश, गरीब लड़कियों की शादियां करवाने का काम करता रहा. इस दौरान उनकी मित्रता केंद्रीय मंत्री विलासराव देशमुख से हुई. यह पहला मौका था, जब राजनीति जगत में कोई उनका संगी बना.
इसी दौरान आरएसएस और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं से भी मेलजोल बढ़ गया.
कहा जाता है कि उनके ट्रस्ट में सबसे ज्यादा दान नेताओं की ओर से ही आता था. वहीं दूसरी ओर नेताओं को उनकी, की गई भविष्यवाणियों पर काफी विश्वास था. विलासराव मुख्यमंत्री बनेंगे इसकी घोषणा उन्होंने पहले ही कर दी थी.
यही नहीं कहा तो यहा तक जाता है कि प्रतिभा पाटिल जब राजस्थान की राज्यपाल थीं, उसी वक्त भय्यूजी ने कहा था कि वो राष्ट्रपति बनेंगी. उनकी यह भविष्यवाणी सच हुई, तो खुद प्रतिभा पाटिल उनसे मिलने के लिए इंदौर आईं थीं.
उदय सिंह भय्यूजी कब बने इसकी कोई निश्चित तारीख नहीं है, लेकिन कहा जाता है कि जब से उनके आश्रमों की स्थापना हुई है, तभी से उनके भक्त और अनुयायी भय्यूजी पदवी से सम्मानित करने लगे थे.
इसके बाद तो भय्यूजी की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई.
पीएम नरेन्द्र मोदी से लेकर केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी, मोहन भागवत समेत अन्य बीजेपी नेताओं ने भय्यूजी महाराज की शरण ले ली. एक बार मुंबई के एक मराठी अखबार ने उन्हें सरकारी साधु कहकर संबोधित किया था.
ऐसा इसलिए कि अगर सरकार कहती है, बेटी बचाओ...तो वो बेटियों से जुड़े सामाजिक कार्य करने लगते थे. यदि जल बचाने की अपील की जाती, तो भय्यूजी कुएं खुदवाते, तालाब बनवाते.
महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें राष्ट्र संत का दर्जा तक दे दिया था.
इसके बाद वे घोषित संत हो गए. आलम यह था कि बड़े-बड़े सरकारी अधिकारी अपनी ट्रांसफर रुकवाने से लेकर कोई प्रमोशन पाने तक के लिए भय्यूजी से पैरवी लगवाते थे. महाराष्ट्र की राजनीति में उन्हें संकटमोचक के तौर पर देखा जाता था.
बहरहाल वे मुख्य रूप से चर्चा में तब आए, जब उन्होंने साल 2011 में कांग्रेस सरकार और अन्ना हजारे के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाई. यह वही वक्त था, जब अन्ना आंदोलन कर रहे थे और पूरा देश उनके साथ था.
असल में भय्यूजी पहले अन्ना को जानते थे. कांग्रेस जानती थी कि अन्ना किसी की बात माने न माने पर भय्यूजी महाराज की बात नहीं टाल सकते. यही कारण था कि उन्होंने उनसे मदद मांगी थी.
लग्जरी लाइफ जीते थे भय्यूजी
भय्यूजी के निजी जीवन में भी परेशानियां कम नहीं थी. बेटी कुहू का जन्म हुआ और उसके कुछ ही सालों बाद 2015 में पत्नी माधवी की मृत्यु हो गई. हालांकि, बाद में उन्होंने देर न करते हुए दो साल बाद 2017 में डॉक्टर आयुषी शर्मा से दूसरी शादी कर ली. पहली शादी परिवार वालों की पसंद से हुई थी, लेकिन इस बार उन्होंने अपनी पसंद से जीवन साथी का चुनाव किया.
भय्यूजी महाराज की दूसरी शादी से पहले मल्लिका राजपूत नाम की अभिनेत्री/लेखक ने उन पर सनसनीखेज आरोप लगाया था. उसका कहना था कि मैंने कड़ी मेहनत करके उनके जीवन पर एक किताब लिखी.
इसकी 950 प्रतियां दो-ढाई साल से भय्यूजी के पास हैं, जिसे वह न रिलीज कर रहे हैं और न वापस कर रहे हैं. हालांकि, भय्यूजी महाराज ने मल्लिका राजपूत को फ्रॉड महिला करार दे दिया था.
भय्यूजी महाराज की लाइफ काफी लग्जरी रही. वे महंगी कार और घडियों का शौक फरमाते थे. वहीं उनके भक्त भी पीछे नहीं थे. जब भय्यूजी का मन किसी कार से भर जाता, तो उन्हीं के भक्त उसी कार को दोगुनी कीमत देकर खरीद लेते.
यही हाल उनके कपड़े और घड़ियों का भी था. उनके इंदौर, नासिक और पुणे में बंगले रहे. जहां वे राजनेताओं से मुलाकात करते थे. घुड़सवारी और तलवारबाजी पारंगत भय्यूजी सूर्य की उपासना करते थे और घंटों जल समाधि लिए रहते.
मध्यप्रदेश सरकार ने राज्यमंत्री का दर्जा दिया था. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अक्सर उनसे मुलाकात किया करते थे. प्रदेश में कई योजनाओं की शुरुआत भय्यूजी महाराज की सलाह से ही की थी.
वे प्लेन की बजाए अपनी लग्जरी गाड़ियों से सफर करते थे और इन्ही सफर के दौरान कई बार घायल भी हुए.
साल 2016 में पुणे से लौटते समय उनका एक्सीडेंट हो गया था, जिसे बीजेपी नेताओं ने एक सोची समझी साजिश करार दिया था. इस एक्सीडेंट के बाद भय्यूजी कई महीनों तक बिस्तर से उठ नहीं पाएं थे.
भय्यूजी की मौत बनी है राज!
आम जनता से लेकर राजनेताओं तक के बीच मशहूर रहे भय्यूजी को जिसने भी देखा हमेशा मुस्कुराते देखा. मुस्कान उनकी ताकत रही और इसी के बल पर वे अब तक सबका दिल जीतते आए थे. लेकिन 13 जून की सुबह रोजाना से कुछ अलग थी.
भय्यूजी काफी देर से अपने कमरे में ही बंद थे. घर के बाकी लोग अपने कामों में व्यस्त थे. तभी अचानक गोली चलने की आवाज आई. आवाज भय्यूजी के कमरे से आई थी.
परिवार के लोग, नौकर-चाकर जब तक कमरे में पहुंचे, तब तक भय्यूजी खून से लथपथ फर्श पर पड़े आखिरी सांसे गिन रहे थे.
उन्हें तत्काल इंदौर के बॉम्बे हॉस्पिटल पहुंचाने का इंतजाम किया गया, लेकिन जब तक वे अस्पताल पहुंच पाते, तब तक सांसों ने साथ छोड़ दिया. इस घटना ने शायद भय्यूजी के परिवार को उतना नहीं झंकझोरा था, जितना की देश के सियासी जगत को.
परिवार को इसलिए भी नहीं, क्योंकि कई दिनों से उन्होंने सभी लोगों से बातें करना बंद कर दिया था. वे घंटों अपने कमरे में रहते और वहां आने की अनुमति किसी को नहीं थी. यह सिलसिला करीब डेढ़ साल से चल रहा था. राज्य मंत्री बनने के बाद भी भय्यूजी खुश नहीं थे. आज, जबकि वो हमारे बीच नहीं है तो इस खौफनाक कदम के पीछे कई कहानियां निकलकर आ रही हैं.
भय्यूजी की बेटी कुहू का कहना है कि सौतेली मां आयुषी के कारण पापा परेशान थे. जबकि, भय्यूजी की पत्नी आयुषी कह रही है कि कुहू अपने पिता को जरा भी पसंद नहीं करती थी.
दिलचस्प बात तो यह है कि उनकी कोई राजनीतिक अनबन नहीं थी, कोई विरोधी नहीं था, न ही कोई दुश्मन. फिर भी भय्यूजी ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि ' मैं मानसिक रूप से परेशान हूं.'
सही तौर पर कोई नहीं जानता है कि आखिर भय्यूजी की परेशानी क्या थी?
कौन सी ऐसी समस्या थी, जिसने उन्हें आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर दिया.
कहा जाता है कि संत जीवन में कभी तनाव महसूस नहीं करते, लेकिन 'राष्ट्र संत' की मौत कई सवाल खड़े कर रही है!
Web Title: Spiritual Leader Bhayyuji Maharaj Committed Suicide, Hindi Article
Feature Image Credit: Pinterest