महाभारत का प्रत्येक अंश, प्रत्येक चरित्र आम-ओ-खास को गिरफ्त में लेने की क्षमता रखता है. आप चाहे किसी किरदार को पसंद करें, या फिर उसे नापसंद करें…
किन्तु आप किसी किरदार को अनदेखा नहीं कर सकते!
इन तमाम कैरेक्टर्स के बावजूद अगर महाभारत के किसी चरित्र को सर्वाधिक घृणास्पद माना जाए तो वह दुर्योधन नहीं, दुशासन नहीं… शकुनि या कोई अन्य भी नहीं… बल्कि वह द्रोण-पुत्र अश्वत्थामा है.
जी हाँ! वही अश्वत्थामा जो अर्जुन और कर्ण जैसा बड़ा धनुर्धर था, तो फिर उसे सर्वाधिक घृणास्पद माने जाने के पीछे क्या तर्क हैं?
उसने तो बस दुर्योधन का साथ ही दिया और दुर्योधन का साथ तो महारथी कर्ण ने भी दिया… फिर एक को इतिहास दानवीर, महारथी कर्ण के नाम से पुकारता है तो अश्वत्थामा से इतिहास घृणा क्यों करता है?
अगर दुर्योधन का साथ देने की बात ही है तो उसका साथ तो गंगा-पुत्र भीष्म और खुद अश्वत्थामा के पिता आचार्य द्रोण ने भी दिया, तो फिर उन्हें इतिहास अश्वत्थामा जितना दोषी क्यों नहीं मानता!
आइये, इसे समझने के लिए चलते हैं युद्ध क्षेत्र, कुरु क्षेत्र की यात्रा पर…
युद्ध के षड्यंत्रकारी दांव
शान्ति के तमाम प्रयासों के असफल होने के बाद कौरव और पांडव सेनाएं युद्ध क्षेत्र में आमने-सामने डँट गयी थीं. कौरवों की ओर से महारथी भीष्म प्रधान सेनापति नियुक्त किये गए तो पांडवों ने द्रुपद-पुत्र धृष्टधुम्न को अपना मुख्य सेनापति बनाया.
युद्ध के प्रथम दस दिनों तक भयंकर मारकाट मची. दोनों पक्षों का जमकर खून बहा, योद्धा मारे गए… किन्तु परिणाम निकलने की कोई गुंजाइश नज़र नहीं आ रही थी. कौरवों की ओर से गंगा-पुत्र भीष्म के अडिग दीवार बनकर खड़ा होने से पांडव-पक्ष में निराशा फैलती जा रही थी. उन्हें इच्छा-मृत्यु का वरदान जो था. तब श्रीकृष्ण के कहने पर युधिष्ठिर ने स्वयं जाकर गंगा-पुत्र से उनकी मृत्यु का उपाय पूछा. उसके बाद की कहानी हम सबको मालूम है कि शिखंडी को आगे खड़ा करके अर्जुन ने पितामह भीष्म को युद्ध भूमि से हटाया.
पर पांडवों की मुसीबत यहीं ख़त्म नहीं हुई!
उसके बाद कौरवों के प्रधान सेनापति बने आचार्य द्रोण और भीष्म की तरह वह भी परशुराम शिष्य होने के साथ पांडवों को सिखाने वाले गुरु भी थे. अब गुरु तो गुरु ही होता है… अपने शिष्यों के बारे में उसे बखूबी ज्ञात होता है.
ऐसे में गुरु द्रोण के साथ युद्ध के दौरान पांच दिन और खिंच गए और तब जाकर पांडवों को अहसास हुआ कि भीष्म की तरह आचार्य द्रोण को भी सीधे युद्ध में नहीं हराया जा सकता.
यह अहसास होना था कि गुरु द्रोण के खिलाफ षड़यंत्र रचा गया और इसी षड़यंत्र को वह बीज माना जा सकता है, जिसने अश्वत्थामा को इतिहास का सर्वाधिक घृणास्पद पात्र बना डाला.
मगर कैसे…
Ashwatthama (Representative Pic: MyGodPictures)
व्यक्तिगत प्रतिशोध का बीज
कौरव पक्ष तो षड़यंत्र करने में माहिर था!
खुद द्रोणाचार्य के सेनापतित्व में अभिमन्यु का वध युद्ध के तमाम नियमों की धज्जियां उड़ा चुका था. ऐसे में अगर पांडवों द्वारा किसी प्रकार का षड़यंत्र किया गया तो उसका एक सीधा सीधा ‘लॉजिक’ नज़र आता है.
खैर, द्रोणाचार्य महोदय डंटकर खड़े हो गए थे और ‘चक्रव्यूह’ टाइप रोज कुछ न कुछ पांडवों के लिए मुसीबत खड़ी करने लगे थे. ऐसे में षड़यंत्र कह लें या फिर योजना… वह द्रोणाचार्य के पुत्र-मोह के इर्द गिर्द बुनी गयी.
क्या था कि अपने गरीबी के दिनों से ही द्रोणाचार्य बेहद परेशान थे और तब तो उनका कलेजा फट गया जब उन्होंने देखा कि उनके पुत्र यानी अश्वत्थामा के मुंह पर उनकी पत्नी चावल का लेप लगा रही थी. वह इसलिए, ताकि अश्वत्थामा के दोस्त समझें कि अश्वत्थामा दूध पीकर आया है.
फिर अपने पुत्र के दुःख से व्यथित द्रोणाचार्य ने राजाश्रय लेकर अपने दुःख दर्द दूर किये.
खैर, वह दूसरी कहानी है.
लब्बो लुआब यह समझ लीजिये कि द्रोणाचार्य अपने पुत्र को बहुत चाहते थे, उसके बिना उनका बदहवास हो जाना सुनिश्चित था!
तो धर्मक्षेत्र-कुरुक्षेत्र में पांडवों की योजना सुस्पष्ट थी कि-
अश्वत्थामा नामक किसी हाथी को महाबली भीम मार देंगे और शोर मचाएंगे कि उन्होंने “अश्वत्थामा को मार डाला”.
उनके विजयी शोर को सुनकर द्रोणाचार्य को झटका लगेगा, किन्तु वह सत्यवादी युधिष्ठिर से इस बात का वेरिफिकेशन भी करेंगे.
धर्मराज युधिष्ठिर ने पहले तो झूठी वेरिफिकेशन देने के लिए ना-नुकर की, लेकिन डिपार्टमेंट यानी… श्रीकृष्ण सहित पांडवों का जबरदस्त दबाव था युधिष्ठिर पर.
फिर कोई रास्ता न देखकर युधिष्ठिर आखिरकार तैयार हो गए…
आगे की कहानी हम सबको पता ही है कि-
अश्वत्थामा की मृत्यु का समाचार युधिष्ठिर द्वारा वेरिफाई करने के बाद द्रोणाचार्य का मानसिक संतुलन गड़बड़ा गया और वह एक जगह बैठकर अपनी उखड़ी साँसों को कंट्रोल करने में लग गए.
इसी दौरान द्रुपद-पुत्र धृष्टधुम्न ने, जो इसी अवसर के लिए पैदा हुआ था… अपनी तलवार से द्रोणाचार्य का सर काट डाला.
बाद में जब यह सब अश्वत्थामा को पता चला तो उसने इसे ‘पर्सनल’ ले लिया. मतलब ऐसे कैसे…
माने उसे लगा कि ऐसे झूठ बोल कर पांडव कैसे उसके पिता का वध कर सकते हैं!
झटका लगा उसे और तब उसने मन ही मन खतरनाक प्रतिज्ञा कर डाली, जिसने उसे महाभारत का सर्वाधिक घृणास्पद पात्र बना डाला.
Ashwatthama (Pic: Wikipedia)
…और चला दिया गर्भवती पर ‘ब्रह्मास्त्र’
महाभारत का युद्ध समाप्त हो चला था.
तमाम योद्धा मारे जा चुके थे, उनके वंश तक समाप्त हो गए थे.
दुर्योधन की भी महाबली भीम ने जांघ तोड़ डाली थी और वह मौत की आखिरी घड़ियाँ गिन रहा था. पांडवों के पांच पुत्रों को भी खुद अश्वत्थामा ने सोते समय मार डाला था.
ऐसे में पांडव वंश का भी कोई चिराग बचा नहीं था…
या फिर बचा था?
जी हाँ, एक बालक हो सकता था, जो पांडवों का वंश आगे बढ़ाता!
अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पांडव-वंश का अंश पल रहा था और यह बात द्रोण-पुत्र अश्वत्थामा को पता थी.
बस फिर उसने कर डाला महाभारत का सबसे निकृष्ट काम!
पांडवों के पांच पुत्रों की सोते समय हत्या करने के बाद भी उसका मन नहीं भरा था…
फिर…पांडव वंश का अंश समाप्त करने को उसने ब्रह्मास्त्र चला दिया, हालाँकि, अर्जुन ने भी प्रतिउत्तर में ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था, किन्तु सृष्टि की भलाई के लिए उन्होंने बाद में ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया था, जबकि अश्वत्थामा को यह अस्त्र वापस लेने नहीं आता था.
तो आखिरकार, उत्तरा का गर्भ नष्ट ही हो गया था… वह तो योगेश्वर श्रीकृष्ण की माया थी कि उत्तरा के गर्भ से निकले बालक को जीवनदान मिला और बाद में वह महाराज परीक्षित के नाम से मशहूर हुए.
पर अश्वत्थामा को उसके कृत्य की सजा मिलनी बाकी थी!
‘घाव’ जो अनंत-काल तक रिस रहा है…
योगेश्वर श्रीकृष्ण अश्वत्थामा के कृत्य से क्षुब्ध हो गए और शायद यह महाभारत का पहला अवसर था, जब खुद श्रीकृष्ण के मुंह से बेहद कटु वचन निकले!
इससे पहले शिशुपाल, कंस जैसे दूसरे पापियों को तो श्रीकृष्ण ने मुक्ति दे दी थी.
पर अश्वत्थामा का अपराध मुक्ति के योग्य नहीं था!
तभी तो उसके माथे की ‘मणि’ को श्रीकृष्ण के आदेश पर छीन लिया गया और अश्वत्थामा को श्राप रुपी सजा मिली कि वह अपने पाप की सजा अनंत-काल तक भोगेगा.
इतना ही नहीं, अश्वत्थामा का मस्तक जहाँ मणि विराजमान थी, वहां एक घाव बना, जो सन्दर्भों के अनुसार अनंत काल तक रिसने और दुखने के लिए अभिशप्त हो गया.
तबसे माना जाता है कि अश्वत्थामा जीवित है और अपने किये पाप की सजा आज भी भुगत रहा है.
Ashwatthama Spiritual Warrior (Representative Pic: Google Sites)
द्वापर युग में अश्वत्थामा द्वारा किया गया यह कार्य सर्वाधिक जघन्य था. जाहिर है, एक महान धनुर्धर योद्धा होने के बावजूद, पितृ-भक्त होने के बावजूद क्रोध और ईर्ष्या में जो कृत्य अश्वत्थामा ने किया… उसके आगे उसके गुणों का कोई मोल नहीं!
क्या पता, अश्वत्थामा को इतिहास कभी माफ़ करेगा भी या नहीं!
आप पाठकों की क्या राय है अश्वत्थामा के चरित्र और उसके कृत्य पर?
Web Title: Story of Ashwathama, Hindi Article
Featured Image Credit: 720p