ये दुनिया कितनी बड़ी है, धरती का ओर-छोर कहां है और समुद्र की सीमाएं कहां समाप्त होती हैं..?
ऐसे ही कुछ सवाल प्राचीन समय के लोगों के जहन में आए होंगे.
ये वो समय था, जब तकनीक अपने शुरूआती चरण में थी. तब दुनिया को इस काम को करने में सझम उपग्रह आधारित नेविगेशन सिस्टम नहीं मिला था.
बहरहाल, उस समय कोलंबस जैसे खोजकर्ताओं ने इस समुद्र में नए रास्ते खोजे और सुदूर महाद्वीपों की यात्रा की. इन्हीं में से एक कप्तान जेम्स कुक भी थे.
हालांकि, यॉर्कशायर के मार्टर शहर के एक किसान परिवार में पैदा हुए जेम्स के लिए ये इतना आसान नहीं था.
लेकिन अपने खोजी जीवन में इन्होंने 3 महत्वपूर्ण समुद्री यात्राएं कीं, जिन्होंने प्रशांत महासागर, उनके द्वीपों और किनारे पर रहने वाले लोगों के बारे में अभूतपूर्व जानकारी प्रदान की है.
सन 1755 में ये रॉयल नेवी में भर्ती हुए. इसके बाद एक प्रभावी समुद्री खोजकर्ता बनने के लिए इन्होंने गणित और खगोल विज्ञान में व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया.
अब तक इन्हें लगभग सभी प्रकार के अनुभव मिल चुके थे. जिसने कप्तान जेम्स कुक को 18वीं शताब्दी का एक उत्कृष्ट खोजकर्ता बना दिया.
ऐसे में आइए, एक बार इनके समुद्री सफर पर नजर डाल लेते हैं –
18 साल की उम्र में शुरू की समुद्री यात्रा
27 अक्टूबर, 1728 को समुद्र से घिरे यॉर्कशायर के एक छोटे से गांव मार्टन में पैदा हुए जेम्स कुक के पिता एक साधारण किसान थे.
पैसे की तंगी थी, इसलिए इन्होंने 12 साल की उम्र में एक बिसाती की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया.
हालांकि, इनका मन तो खुले समुद्र में गोते लगा रहा था. लिहाजा ज्यादा दिनों तक ये वहां टिक नहीं पाए और अपने मन की सुनकर समुद्री यात्रा की ओर निकल पड़े.
इसके बाद इन्होंने एक कोयला ढोने वाले जहाज पर काम किया. जिससे इन्हें कुछ खास कमाई तो नहीं होती थी लेकिन वहां काम करके ये समुद्र के और करीब होते चले गए.
17 साल की उम्र में ये एक व्यापारी जहाज कंपनी के साथ प्रशिक्षु बन गए. और इन्होंने अपनी पहली समुद्री यात्रा 18 साल की उम्र में की.
यहीं से इनके जीवन ने मोड़ ले लिया. फिर इन्होंने उस कंपनी के साथ नार्वे और बाल्टिक के समुद्री किनारों पर काम करना शुरू कर दिया.
इन्होंने 10 साल तक वहां नेविगेशन की कला में महारत हासिल की. यहां से इन्हें कप्तान बनाने की तैयारी चल रही थी. लेकिन इसी बीच 1755 में इन्होंने नौकायन करियर छोड़कर ब्रिटिश रॉयल नेवी ज्वाइन कर ली. जहां इन्हें साधारण नाविक के तौर पर काम मिला.
इस समय तक जेम्स 26 साल के हो गए थे. हालांकि ब्रिटिश रॉयल नेवी में इनकी ये शुरूआत भर थी. जल्द ही जेम्स की प्रतिभा को नौसेना ने पहचानना शुरू कर दिया और उन्हें केवल दो सालों में ही जहाज का मालिक बना दिया गया.
इसके बाद इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. ये बाद में ब्रिटिश नौसेना के इतिहास में उन पहले व्यक्तियों में से एक बने, जिन्हें साधारण नाविक से एक जहाज का कमांडर बनाया गया हो.
शुरू हुआ सीक्रेट मिशन
कप्तान जेम्स कुक ने अगस्त 1768 में पहली समुद्री यात्रा शुरू की. एचएम बार्क एन्ड्यूवर पर सवार 100 क्रू सदस्यों के साथ ये इंग्लैंड से निकले.
उनकी ये यात्रा स्पष्ट रूप से एक वैज्ञानिक अभियान थी, लेकिन इसके पीछे कहीं न कहीं एक गुप्त सैन्य एजेंडा भी था.
कुक को मुहरबंद आदेश दिए गए थे, और उन्होंने ग्रेट दक्षिणी महाद्वीप की यात्रा शुरू कर दी.
वे दक्षिण में गए, लेकिन उन्हें कोई भी महाद्वीप नहीं मिला. इसके बाद इनका बेड़ा पश्चिम की ओर मुड़ गया और देखने के लिए कि यहां कोई बड़ा महाद्वीप है, न्यूजीलैंड का चक्कर लगाने लगा.
इसके बाद ये अपने बेड़े के साथ ऑस्ट्रेलिया पहुंचे. जहां इन्हें नहीं पता था कि इनका जहाज ग्रेट बैरियर रीफ की कटीली कोरल संरचनाओं पर चल रहा है.
11 जून, 1770 को इनका जहाज एक कोरल रीफ में फंस गया.
इससे जहाज पर पानी भरना शुरू हो गया. हालांकि लगभग 20 घंटे की कड़ी मेहनत के बाद रिसाव को रोका गया. हालांकि जहाज की मरम्मत करने में कुक को दो महीने लग गए.
कुछ खास नहीं कर पाई दूसरी यात्रा
जेम्स कुक की दूसरी यात्रा भी प्रशांत की ओर 1772 से 75 तक चली. शायद इस बार जो चीजें पहली यात्रा में पीछे छूट गई थीं, इसमें उनकी खोज की जानी बाकी थी.
अपनी 3 साल की इस खोजी यात्रा में कप्तान कुक ने दक्षिणी महाद्वीप का भ्रमण किया. वह पिछले नेविगेटर की तुलना में दक्षिण ध्रुव के काफी करीब पहुंचे और ताहिती-न्यूजीलैंड की जमीन को दोबारा से छुआ.
वहीं उन्होंने पहली बार ईस्टर द्वीप, मार्केस द्वीप समूह, टोंगा और न्यू हेब्रैड्स की भी यात्रा की.
इसमें से अधिकतर स्थानों की पहले से ही खोज की जा चुकी थी. जिहाजा, परंपरागत रूप से इन्हें कुक की खोज नहीं माना जा सकता था, खासकर यूरोप के लिए.
बावजूद इसके उनकी इन दो यात्राओं का महत्व पहली खोजों से अधिक था. अपनी यात्राओं के दौरान दक्षिण प्रशांत के आधुनिक मानचित्र उनकी उपलब्धियों का बखान करते हैं.
कुक इससे पहले उत्तरी अमेरिका में ब्रिटेन-फ्रांस के बीच चले 7 साल के युद्ध के दौरान सेंट लॉरेंस नदी का विस्तृत नक्शा बना चुके थे.
1760 के दशक की शुरुआत में, इन्हें एक जहाज देकर कनाडा के तट पर न्यूफाउंडलैंड द्वीप का नक्शा बनाने का काम दिया गया. और इनके द्वारा बनाया गया वो मानचित्र एकदम सटीक निकला, जिसका इस्तेमाल 20वीं शताब्दी में भी किया गया.
कुक ने अपने समय के किसी भी नेविगेटर की तुलना में अधिक क्षेत्र का पता लगाया था और मानचित्र पर उनका सजीव चित्रण भी किया.
कुक की मौत के बाद उनकी उपलब्धियों को नासा ने सम्मान दिया. कुक के जहाज के नाम पर अंतरिक्ष शटल का नाम रखा गया.
ठंड ने रोक दी तीसरी खोज
एक समय ऐसा भी आया, जब ब्रिटेन का संयुक्त राज्य अमेरिका, स्पेन और फ्रांस के साथ युद्ध चल रहा था. उस समय भी एक अग्रणी खोजकर्ता के रूप में कुक का बहुत सम्मान था. और उन्हें कभी भी विरोधी देशों द्वारा समुद्र में यात्रा करने से रोका नहीं गया.
उम्र के 47वें पड़ाव पर सन 1776 में जेम्स कुक अपनी तीसरी और आखिरी समुद्री यात्रा पर निकला. इस बार कुक को आर्कटिक में छिपे नॉर्थ वेस्ट समुद्री मार्ग की खोज करनी थी.
धरती का लगभग आधा रास्ता पार करने के बाद एचएमएस रिजोल्यूशन और डिस्कवरी जहाजों के साथ कुक ने पश्चिमी कनाडा और अलास्का के ऊपरी तट पर नए मार्ग की खोज में निकल पड़े.
कुक इस मार्ग से 50 मील तक अंदर आ गए. लेकिन उन्हें यहां के मौसम का अंदाजा नहीं हो पाया.
बेरिंग सागर में हांड कंपा देने वाली ठंड थी, और अंतत: वह इसका पता लगाने में विफल रहे. लेकिन कुक हार मानने वालों में से नहीं थे. उनका चालक दल ठंड के सामने हार चुका था, और विद्रोह की कगार पर खड़ा था.
आखिरकार हारकर कुक ने अपने बेड़े को दक्षिण की ओर मोड़ दिया.
इससे पहले की उनकी इस यात्रा को सफल बनाया जाता, जेम्स कुक की मौत हो गई.
Web Title: Story of Captain James Cook British Explorer and Navigator, Hindi Article
Feature Image Credit: nasa/deviantart