प्रकृति के रंग अनोखे हैं. यहां छोटी सी चींटी और बड़ा सा हाथी, एक साथ एक ही जंगल में रहते हैं. धीमे-धीमे चलने वाला कछुआ और सरपट दौड़ जाने वाला खरगोश तो कहानियों के पात्र बन गए हैं. इन्हीं दिलचस्प जीवों के बीच में रहता है गेंडा!
वही गेंडा जो देखने में कुरूप है, लेकिन इसकी ताकत के आगे बड़े-बड़े जानवरों के हौसले पस्त हो जाते हैं. पर दुख की बात है कि गेंडे की प्रजाति लुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है.
इसका एक नमूना 19 मार्च 2018 को देखने को मिला, जब दुनिया का आखिरी ‘सफेद गेंडा’ ‘सूडान‘ हमें छोड़कर चला गया.
हालांकि इसकी उप प्रजाति वाले दो मादा गेंडे 27 साल की नाजिन और 17 साल का फाटू अभी जीवित हैं, लेकिन सूडान का जाना एक बार फिर एहसास करवा गया कि धरती पर सब कुछ बदल रहा है!
ऐसे में हमारे लिए जानना जरूरी है कि आखिरी उसके जाने की क्या वजह रहीं, तो चलिए जानने की कोशिश करते हैं –
सूडान का परिवार और मौत
दक्षिण सूडान के जंगलों में 1973 को ‘सूडान’ का जन्म हुआ था. दो साल की उम्र में ही इसे चाउचोसाल्वकी डाबर क्रॉव्ले जू में रख दिया गया. जहां यह कुछ सालों तक अन्य प्रजातियों के गेंडों के बीच ही पला-बढ़ा. साल 2009 में इसे केन्या के ओल पेजेटा वन्यजीव अभ्यारण्य में लाया गया. सूडान के साथ दो मादा गेंडे भी अभ्यारण्य में लाए गए थे.
दो मादा गेंडों के साथ संबंध बनाने के बाद सूडान का परिवार बढ़ा, लेकिन वह ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रहे.
आज सूडान की बेटी 27 साल की नाजिन और पोती 17 साल की फाटू ही जीवत बचे हैं. बाकी पूरा परिवार प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण खत्म हो गया.
जब सूडान की मौत हुई, वह 45 साल का था. उम्र बढ़ने के कारण उसकी हडि्डयां कमजोर हो गई थीं. उसके घावों में से लगातार खून निकलता रहता था. ऐसा ही एक घाव उसके पैर में हुआ था. जो बाद में इंफेक्शन बन गया.
सूडान के घावों को दिन में दो से तीन बार साफ किया जाता था, लेकिन उसके स्वाथ्य में खास सुधार नहीं हुआ.
वह दर्द के कारण ठीक से सो भी नहीं पाता था और फिर अगले दिन कमजोरी महसूस करता था. सूडान को नींद की दवा भी दी जाने लगी थी, लेकिन यह काफी नहीं था.
दिन पर दिन बढ़ रही उसकी तकलीफ को देखते हुए सरकार ने फैसला किया कि उसे मौत का इंजेक्शन दे दिया जाए, ताकि उसे आराम की मौत मिल सके.
आखिरकार, 19 मार्च को सूडान ने आखरी सांस ली.
The Last Male Northern White Rhino Dead. (Pic: time)
लगभग विलुप्ति की कगार पर
स्तनधारी जानवरों में हाथी सबसे बड़ा है और इसके बाद गेंडे का नाम लिया जाता है. दुनिया में गेंडे की 5 प्रजातियां पाई जाती हैं. अफ्रीका में पाया जाने वाले सफेद गेंडे यहां के पूर्वी और मध्य हिस्से में रहते थे, जिसमें युगांडा, चाड और सूडान शामिल हैं.
लेकिन 70 से 80 के दशक में इन क्षेत्रों में शिकारियों की दस्तक हुई और बहुत तेजी से गेंडों का शिकार किया जाने लगा.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेंडे के सींग और त्वचा की मोटी कीमत मिलती है. इसके सींग से धारदार हथियार और दवाएं तैयार की जाती हैं.
बढ़ती मांग के कारण शिकारियों ने गेंड़ों के जीवन को समाप्त कर दिया और पूरी दुनिया से 1990 में सफेद गेंडे खत्म हो गए. केवल कुछ ही थे जिन्हें जीवित रखने के लिए जंगलों से हटाकर अभ्यारण्य में रखा गया था.
सफेद गेंडों की प्राचीन प्रजातियां बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में ही विलुप्त हो चुकी थीं और इनमें से केवल 20 गेंडे ही शेष बचे थे.
पर्यावरणशास्त्रियों और प्राणी जीव वैज्ञानिकों की मदद से सफेद गेंडों के सरंक्षण और प्रजनन पर काम किया गया. कुछ ही सालों में इनकी संख्या बढ़कर 20 हजार तक पहुंच गई.
हालांकि कांगो युद्ध के कारण उत्तरी क्षेत्र में रहने वाले सफेद गेंडों के संरक्षण में परेशानियां आने लगीं. इस दौरान आम लोग तो गंभीर रूप से घायल हुए ही, साथ ही प्रकृति को भी भारी नुकसान हुआ. जिसने सफेद गेंडों के विकास को बुरी तरह से प्रभावित किया.
विद्रोहियों ने बदला लेने के लिए जमकर शिकार किया और विदेशों में गेंडों के सींग और त्वचा को बेचकर करोड़ों रुपए कमाए.
Endangered Species of Rhino. (Pic: unsplash)
प्रजातियों को बचाने की एक कोशिश
ओल पेजेटा वन्यजीव अभ्यारण्य के अधिकारियों की मानें तो सूडान के परिवार को बचाने और उसकी वंशावली को बढ़ाने की कोशिश हमेशा जारी रही, पर अंत में सारे प्रयास विफल हो गए.
उन्होंने सूडान के लिए ठीक वैसा ही माहौल तैयार किया था, जैसा वह प्राकृतिक रूप से पसंद किया करते थे. उसे बेडि़यों में नहीं बांधा गया, बल्कि 70 एकड़ जमीन पर उसका घर था.
उम्मीद थी कि इस माहौल में वह सामान्य होने की कोशिश करेगा और मादा गेंडों के साथ सहवास कर परिवार को बढ़ाएगा.
सूडान की सुरक्षा के लिए हर वक्त 40 बंदूकधारी सैनिक तैनात रहते थे. 2014 में सूडान के शुक्राणु एकत्र कर दो अन्य मादा गेंडों के गर्भाशय में डाले गए लेकिन प्रयोग विफल रहा. उम्र बढ़ने के कारण सूडान के शुक्राणु कमजोर हो चुके थे और वह परिवार बढ़ाने की स्थिति में नहीं रहा.
सूडान की नस्ल को बचाने के लिए उसकी प्रोफाइल टिंडर डेटिंग एप पर भी बनाई गई. ताकि इस प्रोफाइल से इकट्ठे हुए पैसों से फर्टिलाइजेशन प्रक्रिया के तहत इस नस्ल को बढ़ाया जा सके.
अब भी अफ्रीका के जंगलों में गेंडों की दूसरी अन्य प्रजातियां जीवन के लिए लगातार संघर्ष कर रही हैं. इनकी संख्या बढ़ाने के लिए आईवीएफ तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. जो गेंडे उम्र ज्यादा होने के कारण संबंध बनाने की स्थति में नहीं हैं उनके शुक्राणुओं का संचय किया जा रहा है.
हालांकि वैज्ञानिक भी नहीं जानते कि यह प्रयोग सफल होंगे भी या नहीं.
Wildlife Rangers protecting Sudan. (Pic: focus)
गेंडों की प्रजाति में दक्षिणी सफेद गेंडे सबसे बड़े होते थे और इनका वजन लगभग 20 हजार किलो था. जीव वैज्ञानिक मानते हैं कि प्राकृतिक परिवर्तनों से गेंडों को उतना नुकसान नहीं हुआ जितना कि शिकारियों के कारण हुआ है.
गेंडे प्राकृतिक मौत कम और हत्या के द्वारा ज्यादा मरे जाते हैं. सूडान की मौत के बाद अब हर उम्मीद खत्म हो गई है. दुनिया शायद फिर कभी सफेद गेंडों की प्रजाति को नहीं देख पाएगी!
यदि लोगों का लालच और शिकार की प्रवृत्ति इसी तरह बढ़ती रही, तो एक दिन वह आएगा जब धरती का यह दूसरा बड़ा स्तनधारी जानवर केवल तस्वीरों में देखने के लिए रह जाएगा!
Web Title: Sudan: The Last Male Northern White Rhino has Died, Hindi Article
Feature Image Credit: cittanuova