21 फरवरी 2016 की देर रात कड़ाके की ठंड के बीच हेड मास्टर राजबीर सिंह के फोन की घंटी बजती है. राजबीर फोन रिसीव करते हैं, तो आवाज़ आती है 'जय हिंद' सर..
ये कॉल 10 पैरा स्पेशल कमांडो फोर्स जम्मू यूनिट से है. फोन करने वाले अफसर बताते हैं कि आंतकियों के ख़िलाफ चल रहे ऑपरेशन के दौरान कैप्टन पवन कुमार के सीने में गोली लगी है.
राजबीर सिंह को बताया गया कि उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा है.
राजबीर सिंह फोन पर बात करने के बाद जम्मू रवाना होने की तैयारी करते हैं. कुछ मिनटों बाद उनके फोन पर फिर कॉल आती है, और बताया जाता है कि 'कैप्टन पवन कुमार' को बचाया नहीं जा सका, वो देश के लिए शहीद हो गए हैं.
कैप्टन पवन कुमार की जब शहादत हुई, वह महज़ 23 साल के थे. सेना ज्वॉइन किए हुए उन्हें सिर्फ 3 साल ही हुए थे.
पढ़िए, देश के लिए कुर्बान होने वाले इस बहादुर सैन्य अफसर की वीर गाथा –
'आर्मी-दिवस' के दिन हुआ जन्म
शहीद कैप्टन पवन कुमार का सेना में जाना महज़ इत्तेफाक़ नहीं था. शायद, किस्मत ने पहले ही तय कर लिया था कि पवन का जीवन सेना और देश के लिए है.
15 जनवरी, 1993 को जब पूरा देश 'आर्मी दिवस' मना रहा था, बॉर्डर पर तैनात जवान अपने पुराने साथियों और उनकी कुर्बानियों को याद कर रहे थे. ऐसे समय में हरियाणा के जींद में हेड मास्टर राजबीर सिंह के घर पवन कुमार का जन्म हुआ.
12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद पवन कुमार ने नेशनल डिफेंस आकदमी का एग्ज़ाम पास किया और ट्रेनिंग के लिए अकादमी चले गए.
3 साल नेशनल डिफेंस अकादमी, खड़कवासला से ट्रेनिंग लेने के बाद पवन कुमार उत्तराखंड स्थित भारतीय सैन्य अकादमी में प्रशिक्षण के लिए गए. 14 दिसंबर, साल 2013 को वह सेना में कमीशन्ड हुए, जहां उन्हें ‘10 पैरा स्पेशल फोर्स’ में तैनाती मिली.
पूरे किए 3 खतरनाक ऑपरेशन
कैप्टन पवन कुमार को सेना ज्वॉइन किए हुए महज़ 3 साल ही गुज़रे थे, लेकिन इस समय तक उन्होंने 3 खतरनाक ऑपरेशन को अंजाम दिया.
शहादत के बाद जब पवन कुमार के पार्थिव शरीर को उनके गांव जींद लाया गया, तब उनके साथी अफसरों ने पूरे गांव को उनकी बहादुरी के किस्से सुनाए. शहीद होने से पहले भी उन्होंने कई खतरनाक ऑपरेशन्स को अंजाम दिया था. कैप्टन बहुत ही होशियार और शारीरिक रूप से चुस्त-तंदरुस्त थे. उनमें अदम्य साहस, बहादुरी और शौर्य कूट-कूट कर भरा हुआ था.
सैन्य अफसर वीरेंद्र सिंह सलारिया के बयान के बाद आपको यकीन हो गया होगा कि शहीद कैप्टन के भीतर कितनी दिलेरी थी.
साथियों को लीड करते हुए मिली शहादत
20 फरवरी 2016 की शाम जम्मू कश्मीर के पुलवामा जिले के पंपोर में आतंकियों ने उद्यमी विकास संस्थान की बिल्डिंग को अपने कब्जे में ले लिया था. आतंकियों ने यहां कार्यरत आम नागरिकों को बंदी बना लिया.
कैप्टन पवन कुमार को जैसे ही इसकी सूचना मिली, वह अपने साथियों के साथ रणनीति बनाकर तुरंत मौके पर भागे. पवन कुमार की रणनीति साफ थी. पहले किसी भी तरह से वहां फंसे लोगों को बचाया जाए. उसके बाद आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब दिया जाए.
रणनीति के तहत पहले कैप्टन पवन ने वहां फंसे लोगों को सकुशल बाहर निकाला. इसके बाद आतंकियों की घेराबंदी करते हुए गोलीबारी शुरू हो गई.
कैप्टन पवन अपनी टीम को फ्रंट पर लीड कर रहे थे. एक बेहतरीन दिलेर सैन्य अफसर की यही पहचान होती है. जो गोलियों की बौछार के बीच देश को बचाने के लिए टीम का नेतृत्व करता है.
मुठभेड़ के दौरान अचानक आतंकियों की एक गोली पवन कुमार के सीने में लगी. आनन-फानन में कैप्टन को सैन्य वाहन से अस्पताल पहुंचाया गया, जहां वह शहीद हो गए.
"मुझे अपने बेटे पर गर्व है"
राजबीर सिंह को जब बेटे की शहादत की खबर मिली, तो वह पल उनके लिए गर्व करने वाला था. पिता राजबीर का कहना था कि "मेरा एक ही बेटा था, मैंने उसे सेना में देश की सेवा में भेज दिया. वो देश की सुरक्षा करते हुए शहीद हो गया."
एक पिता के लिए इससे ज़्यादा गर्व की बात और कुछ नहीं हो सकती. महज़ 23 साल की उम्र में राजबीर का बेटा देश के लिए शहीद हो गया, लेकिन उनकी आंखों में आंसू तक नहीं आए.
उन्हें गर्व इस बात का था कि कैप्टन पवन ने आख़िरी सांस तक अपना काम किया और देश के काम आ गया.
शहादत के बाद लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ का ये बयान कैप्टन पवन की दिलेरी और बहादुरी को बताता है.
“23 जनवरी को पवन कुमार पुलवामा में एनकाउंटर के दौरान घायल हो गए थे. वो भी उनके जन्मदिन के ठीक 5 दिन बाद. एनकाउंटर में गोली लगने के बाद कैप्टन पवन को अस्पताल में भर्ती कराया गया. जहां सेना ने उन्हें दो हफ्ते की मेडिकल लीव पर घर जाने को कहा. बावजूद इसके पवन ने मना कर दिया और अपनी कमांडो टीम को ज्वॉइन किया."
ये थी कैप्टन पवन कुमार की बहादुरी. उन्होंने गोली लगने के बावजूद छुट्टी लेने से मना कर दिया था. गोली लगने पर घायल होने के बाद भी वो घर नहीं आए और अपनी कमांडो टीम के साथ अगले ऑपरेशन की तैयारी शुरू कर दी थी. इसके ठीक एक माह बाद 21 फरवरी 2016 को पंपोर में आतंकियों से लड़ते हुए कैप्टन पवन शहीद हो गए.
पवन कुमार जब कश्मीर में तैनात थे. उस दौरान दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और जींद में प्रदर्शन चल रहा था. एक ओर जहां जेएनयू में छात्र प्रदर्शन कर रहे थे, तो वहीं हरियाणा के जींद में जाट आरक्षण की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे. कैप्टन पवन कुमार खुद जाट परिवार से थे.
कैप्टन पवन कुमार ने अपने आख़िरी फेसबुक पोस्ट पर जेएनयू और जाट आंदोलन का ज़िक्र किया था. उन्होंने पोस्ट में लिखा कि "किसी को रिजर्वेशन चाहिए, किसी को आज़ादी. भाई हमें कुछ नहीं चाहिए, हमें चाहिए अपनी रज़ाई."
Web Title: Tale Of J&K Martyr Captain Pawan Kumar Shaurya Chakra, Hindi Article