वर्ष 1959 में पहली बार कुत्तों को भारतीय सेना की सहायता के लिए सेना में शामिल किया. तब से लेकर अब तक अनेक नस्लों के हजारों कुत्ते भारतीय सेना को अपनी सेवा दे चुके हैं. ये कुत्ते माइनों और जमीन में छुपाए गए विस्फोटकों का पता लगाते हैं. इसके साथ ही ये संदिग्ध व्यक्ति की सूंघकर शिनाख्त कर लेते हैं. ये सब करने के लिए उन्हें कड़ी ट्रेनिंग दी जाती है.
आज बहुत सारे कुत्ते अशांत क्षेत्रों में तैनात हैं. कई तो महत्वपूर्ण लोगों को सुरक्षा दे रहे हैं. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इन कुत्तों को सेना ने वीरता पुरस्कारों से भी नवाजा है.
तो आईए जानते हैं कि भारतीय सेना किस तरह की नस्ल वाले कुत्तों का प्रयोग करती है…
लैब्राडोर
लैब्राडोर को तो वैसे एक ऐसा कुत्ता माना जाता है, जो परिवार के साथ घुल-मिलकर रहता है. यही घुल-मिलकर रहने की प्रवत्ति उसे सेना के लिए बहुत महत्वपूर्ण बनाती है. ये कुत्ता बहुत ज्यादा वफादार होता है.
इसके साथ ही इसके सूंघने की शक्ति बहुत तेज होती है. कहा जाता है कि वियतनाम युद्ध के समय अमेरिकी सेना ने करीब चार हज़ार कुत्तों का प्रयोग किया था. इन कुत्तों में से ज्यादातर लैब्राडोर ही थे. लैब्राडोर कुत्तों ने घायल अमेरिकी सैनिकों और पानी के नीचे छिपे दुश्मन सैनिकों को खोज निकालने में अमेरिकी सेना की बहुत मदद की थी.
वहीं भारतीय परिपेक्ष्य की बात करें तो लैब्राडोर कुत्तों ने एंटी-मिलिटेंट अभियानों में सेना और सुरक्षाबलों की खूब सहायता की है. ऐसे कई मौके हुए जब उग्रवादियों और सेना के जवानों के बीच झड़प हुई और घायल होने के बाद कोई उग्रवादी भागने में सफल रहा हो. ऐसे में लैब्राडोर कुत्तों ने उग्रवादी की महक की सहायता से उसका पता लगाया है और सेना की मदद की है.
आज ये कुत्ते सेना के लिए बहुत ज्यादा सहायक सिद्ध हो रहे हैं. सैन्य ऑपरेशन के साथ-साथ ये सैनिकों का स्ट्रेस कम करने में भी मदद कर रहे हैं.
जर्मन शेफर्ड
जर्मन शेफर्ड नस्ल के कुत्तों का सेना से संबंध बहुत पुराना है. पहली बार इन्हें प्रथम विश्व युद्ध के समय जर्मन सेना ने प्रयोग में लाया था. इन कुत्तों ने जर्मन सेना की बहुत मदद की थी. ये कुत्ते शारीरिक रूप से काफी मज़बूत होते हैं. इसके साथ ही ये बहुत फुर्तीले भी होते हैं. इसलिए युद्ध के समय इन्होंने छोटे-मोटे हथियारों को इधर से उधर ले जाने में बड़ी भूमिका निभाई.
इसके साथ ही इन्होंने सैनिकों की टुकड़ियों के बीच संदेशवाहक का भी काम किया. वहीं घायल सैनिकों को चिकित्सीय सहायता प्रदान करने में भी इनकी ख़ास भूमिका रही. प्रथम विश्व युद्ध में इन कुत्तों की ऐसी भूमिका देख कर अमेरिका और ब्रिटेन ने भी जर्मन शेफर्ड कुत्तों का स्क्वाड बनाया. आगे द्वितीय विश्व युद्ध में ये इनके बहुत काम आए.
भारतीय सेना भी मुख्यतः इन कुत्तों का प्रयोग सैन्य ऑपरेशनों के दौरान ही करती है. ये संवेदनशील इलाकों में सैनिकों द्वारा एक-दूसरे को सन्देश पहुंचाए जाने के काम आते हैं. इस लिहाज से ये सैनिकों के साथी होते हैं. ऐसे कई मौके आए जब सैनिकों द्वारा वायरलेस से आपस में बात करना खतरे से खाली नहीं था, ऐसे में इन कुत्तों ने सैनिकों की मदद की.
बेल्जियन मेलिनोईस
बेल्जियन मेलिनोईस नस्ल के कुत्ते सबसे तेज दिमाग वाले कुत्तों की श्रेणी में आते हैं. ये अपने मालिक के प्रति सौ प्रतिशत वफादार होते हैं. इसके साथ ही ये पतले, मजबूत और फुर्तीले भी होते हैं. वहीं इनकी सुनने की क्षमता भी बहुत अधिक होती है.
बेल्जियन मेलिनोईस नस्ल के कुत्ते बहुत ही साहसी और चतुर भी होते हैं. उनकी यही खूबी उन्हें सेना के लिए ख़ास बनाती है. इनका प्रयोग मुख्यतः बचाव कार्यों में किया जाता है. इसके साथ ही ये खोज ऑपरेशनों में भी बहुत काम आते हैं.
द्वितीय विश्व युद्ध के समय से ही इन कुत्तों का प्रयोग विभिन्न देशों की सेनाओं द्वारा किया जा रहा है. सेना के लिए इस नस्ल के कुत्ते बहुत महत्वपूर्ण हैं. जर्मन शेफर्ड कुत्तों की तरह ये भी सैनिकों के मध्य संदेशवाहकों का काम बखूबी करते हैं. इसके साथ ही ये सैनिकों को चिकित्सीय सुविधाएं प्रदान करने में भी सहायक सिद्ध होते हैं.
वहीं इनके भीतर एक खूबी ऐसी भी है, जो इन्हें जर्मन शेफर्ड से अलग बनाती है, वो है इनकी सुनने की तीव्र क्षमता. इस कारण इनका पर्योग सीमा की सुरक्षा में भी किया जाता है.
ग्रेटर स्विस माउंटेन डॉग
ग्रेटर स्विस माउंटेन डॉग नस्ल के कुत्तों की सबसे बड़ी खूबी यह है कि आप इनके ऊपर आँख मूंदकर विश्वास कर सकते हैं. ये कभी भी आपकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करेंगे. इसके साथ ही इनके भीतर बला की ताकत भी होती है.
इस प्रजाति के कुत्तों ने स्विट्ज़रलैंड के किसानों की बहुत मदद की है. इन्होंने न केवल खेतों से जानवरों को भगाया, बल्कि सामग्री को इधर से उधर ले जाने में भी मदद की. इनकी इसी मजबूती और मालिक के प्रति प्रतिबद्धता को देखते हुए विभिन्न देशों की सेनाओं ने इन्हें अपने खेमे में शामिल किया.
ऐतिहासिक स्त्रोत बताते हैं कि बहुत पुराने समय से ही इन कुत्तों का प्रयोग सेनाओं द्वारा किया जा रहा है.
महान रोमन एम्पायर की सेना में इनका प्रयोग किया जाता है. वहीं अगर हाल की बात करें, तो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इनका जम कर प्रयोग किया गया. ये कुत्ते दुश्मन की शिनाख्त करने और उनका पीछा करने में बहुत तेज होते हैं, इसलिए मिलिट्री के खोजी अभियानों में ये बहुत काम आते हैं.
वहीं ये छोटी से हलचल को बहुत दूर से ही पहचान लेते हैं, इसलिए आर्मी कैम्पों की सुरक्षा में भी इन्हें तैनात किया जाता है.
तो ये थी भारतीय सेना द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले कुत्तों की नस्लें. अपने सही अर्थों में ये कुत्ते भारत की सुरक्षा में उतना ही योगदान दे रहे हैं, जितना कि कोई सैनिक देता है.
Web Title: How Much Do You Know About The Dogs Used By Indian Army, Hindi Article
Feature Image Credit: Wallup