अगस्त के एक महीने में एक शाम पटना एम्स में एक 17 साल की लड़की भर्ती होती है. उसे साधारण बुखार हुआ था. परिवार वाले सुधार की आस में थे, लेकिन उसकी हालत बिगड़ती चली गई. खबर बाहर आई तो फेसबुक से लेकर हर मंच पर उसकी सलामती के लिए दुआएं होने लगी. उसके भाई समेत सबकी जुबान पर बस यही सुर थे कि 'लौट आओ अपराजिता'.
मगर अफसोस न दवा काम आई और न दुआ! अगस्त खत्म होते-होते सबकी लाड़ली जिंदगी की जंग हार गई. वह लड़की कौन थी और क्यों सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक उसकी सलामती के लिए लोग दुआ करते दिखे, आइए जानते हैं-
बिहार की तीजनबाई और कोकिला!
वह लड़की कोई और नहीं बिहार की तीजनबाई कही जाने वाली तीस्ता शांडिल्य थी. वहीं तीस्ता जो कुंवर सिंह की वीरगाथा को लोकगाथा के जरिए लोगों तक पहुंचाने के लिए मशहूर रही.
2001 में उसने बिहार में छपरा ज़िले के रिविलगंज में रहने वाले उदय नारायण सिंह के घर अपनी आंखें खोली थीं. पिता पेशे से शिक्षक थे, इसलिए हर कदम पर तीस्ता की पाठशाला चलती रही.
शिक्षक होने के साथ-साथ पिता की लोकगाथा गायन में खासी रुचि थी. वह अक्सर इसका लुत्फ लेते दिखे. इसी बीच तीस्ता के अंदर कब लोकगाथा गायन के लिए बीज अंकुरित होने लगे उसे पता ही नहीं चला.
वक्त के साथ उनकी उम्र बढ़ती रही और वह लोकगाथा गायन के और ज्यादा करीब होती गई.
कई बार तो वह पिता के साथ मंच तक सांझा करती दिखी. बहुत कम उम्र में वह एक हुनरबाज लोकगाथा गायिका की तरह दिखने लगी थीं. बस उसे अब एक ऐसे मौके और मंच की तलाश थी, जिसके माध्यम से वह दुनिया को दिखा सके कि ढंग से रोया जाए, तो फूटी आंखों से भी आंसू निकल सकते हैं. जल्दी ही वह मौका आ भी गया...
दिल्ली के 'लोक-उत्सव’ से मिली उड़ान
2015 के आसपास का समय था. दिल्ली में एक 'लोक-उत्सव’ कार्यक्रम का आयोजन होना था. इत्तेफाक से तीस्ता के पिता उदय नारायण सिंह को इसका हिस्सा बनने का मौका मिला. उन्हें अपनी मंडली के साथ 'वीर कुंवर सिंह लोक गाथा' का मंचन करना था. तीस्ता के लिए यह बड़ा मौका था, क्योंकि अपने पिता की इसी मंडली की वह मुख्य नायिका थीं.
क्रम शुरु हुआ तो तीस्ता कुछ असहज सी लगी, लेकिन जैसे-जैसे उसने मंच पर वक्त बिताया वह अपने किरदार में डूबती चली गई. वह कभी वीर रस में दिखी, कभी करूणा रस में, तो कभी श्रृंगार रस उसके मंचन में देखने को मिला.
13 साल की तीस्ता का यह अवतार अदभुत था. सभी उसकी तारीफ में कसीदे पढ़ रहे थे. लय, ताल, आरोह और अवरोहों से परिपूर्ण उनके शब्द सभी देखने वालों को उसका दीवाना बनाते जा रहे थे. गाते-गाते नृत्य करना किसी भी कलाकार के लिए आसान नहीं होता, पर तीस्ता को देखकर दर्शकों को एक पल के लिए भी नहीं लगा कि उसे किसी प्रकार की कोई समस्या है.
तीस्ता के इस प्रदर्शन से लोग कितना प्रभावित थे. इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि प्रस्तुति के बाद सभी उसके अभिवादन में अपनी कुर्सियां छोड़ चुके थे. करतल ध्वनि के बीच जिस तरह से उसने लोगों का मुस्कुराते हुए अभिवादन किया. वह यह बताने के लिए काफी था कि बिहार की लोकगीत का भविष्य बनने के लिए वह तैयार थी!
अश्लीलता मुक्त भोजपुरी की जगाई अलख
खास बात यह है कि तीस्ता ऐसे समय में बिहार की लोकगाथा गायन की पारंपरिक शैली की आवाज बनी. जब बिहार में आर्केस्ट्रा के अश्लील गीतों, ठुमकों पर एक बड़ी भीड़ जमा हो रही थी. साथ ही भोजपुरी कला लगातार हाशिए पर थी.
उसने अपने पिता को मजबूती दी और उनके साथ मिलकर भोजपुरी कला का प्रचार-प्रसार शुरू कर दिया. उसने लोक गायकों के पंडाल खाली पड़े होने के बावजूद पिता के साथ मंच सांझा करने का साहस दिखाया. साथ ही लोक संगीत में अपना भविष्य तलाशने के जोखिम उठाया. शायद यही कारण रहा कि भोजपुरी कला से जुड़ें लोगों की वह लाड़ली बनी.
तीस्ता के रूप में उनकी आंखें भोजपुरी कला को अश्लीलता मुक्त देखने लगी थी.
किन्तु शायद नियति को कुछ और मंजूर था. अगस्त 2017 में अपनी 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद तीस्ता बीमार पड़ गई. वह मामूली बुखार से पीड़ित थी. बावजूद इसके पिता ने देरी न करते हुए उसे पटना के एम्स में भर्ती कराया.
उन्हें उम्मीद थी कि वह जल्द ही ठीक हो जाएगी. मगर वह गलत थे. तीस्ता की हालात दिन ब दिन ज्यादा बिगड़ती चली गई. असल में वह 'एक्यूट सेप्टेसेमिया' नामक बीमारी की गिरफ्त में आ चुकी थी. इस कारण उसके पूरे शरीर में खून संक्रमित हो गया. वह कुछ खा नहीं पा रही थी. लगातार तीन दिनों तक वह वेंटिलेटर पर जिंदगी की जंग लड़ती रही.
खबर बाहर आई तो भोजपुरी कला से जुड़े कलाकारों से लेकर आम लोग भी उसकी सलामती की दुआ करने लगे. यहां तक कि मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा ने भी उसके ठीक होने की कामना की.
मगर अफसोस न तो पिता, भाई और फैन्स की दुआ काम आई और नहीं एम्स पटना के डॉक्टरों की दवा! अगस्त खत्म होते-होते सबकी अपराजिता 'तीस्ता' ने हमेशा के लिए अपनी आंखें मूंद लीं. वह अब कभी नहीं लौटेगी, ईश्वर के घर जो वह चली गई हैं.
बहरहाल, तीस्ता का इस तरह अपनी जिंदगी से कूच कर जाना न सिर्फ भोजपुरी लोकनाट्य के लिए बल्कि समूचे कला जगत के लिए बड़ी क्षति है, जिसे भर पाना संभव नहीं.
क्या कहते हो आप?
Web Title: Tribute To Bhojpuri Singer Dancer Anubhuti Shandilya Tista, Hindi Article
Feature Image Credit: Eenadu