ये तब की बात है, जब अंग्रेजों ने सात द्वीपोंवाले मुंबई (पहले बॉम्बे) शहर को व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित करना शुरू कर दिया था.
टेक्सटाइल से लेकर तमाम फैक्टरियां मुंबई में उगने लगी थीं. मुंबई के द्वीपों से होकर विदेशों से सामान की आमदरफ्त तेज थी.
देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग रोजगार के लिए मुंबई आने लगे थे.
उसी दौर में तमिलनाडु से भी 8 साल का एक सहमा हुआ सीधा-सादा बच्चा अपने पिता की अंगुली पकड़कर मुंबई शहर में दाखिल हुआ था. अपनी मासूम-सी आंखों में अमीर बनने के सतरंगी सपने लेकर.
मुंबई में वह साइकिल के पंक्चर बनाने से लेकर कूली तक का काम करता है. …और एक दिन वह मुंबई अंडरवर्ल्ड के सबसे बड़े डॉन का खिताब हासिल कर लेता है.
जी, हां! हम बात कर रहे हैं आकिब हुसैन उर्फ हाजी मस्तान (हाजी मस्तान नाम बाद में मिला. इसकी कहानी इस लेख के बीच में मिलेगी) उर्फ हाजी हुसैन उर्फ बावा उर्फ सुल्तान की.
…तो आइये हम जानते हैं हाजी मस्तान की जिंदगी के दिलचस्प किस्से को-
तमिलनाडु में पैदाइश, मुंबई पलायन
1 मार्च 1926 को तमिलनाडु के पनाईकुलम में हाजी मस्तान का जन्म हुआ. चूंकि उसका परिवार आर्थिक तंगी में दिन गुजार रहा था, इसलिए उसके लिए पढ़ाई-लिखाई मुमकिन न हो सकी.
साल था 1934. मुंबई तेजी से देश की व्यापारिक राजधानी बन रहा था. भारत के हर क्षेत्र से लोग मुंबई का रुख कर रहे थे. उसी समय पनाईकुलम से अपने पिता हैदर मिर्जा के साथ हाजी मस्तान भी मुंबई आ गया.
मुंबई के क्रेफोर्ड रोड में दोनों साइकिल रिपेयरिंग का काम करने लगे. दिनभर वहां काम करने पर भी आमदनी बहुत कम होती. जिससे परिवार का गुजारा मुश्किल से हो पा रहा था. फिर भी दोनों ने 10 साल तक वहां काम किया. लेकिन, इन दस सालों में हाजी मस्तान ने अपने भीतर कुलांचे भर रहे सतरंगी सपनों को मुरझाने नहीं दिया.
यह सन 1944 की बात होगी. उसने किसी तरह 5 रुपये दिहारी पर बॉम्बे डॉक में माल ढुलाई की नौकरी पा ली.
बस यहीं से हाजी मस्तान के गैंगस्टर बनने का सफर शुरू हो गया.
Haji Mastan (Pic: ohcelebrity)
अपराध की काली दुनिया में रखा कदम
बॉम्बे डॉक में काम करते हुए हाजी मस्तान वहां के कर्मचारियों व व्यापारियों को खूब खुश रखता था. उन दिनों व्यापारी चोरी-छिपे विदेशी ट्रांजिस्टर, सोना-चांदी व विदेशी घड़ियों की तस्करी करते थे.
मस्तान ने इनका सामान डॉक से सुरक्षित बाहर निकालना शुरू कर दिया. इसके बदले उसे अच्छा पैसा मिलता था. मस्तान के बारे में कहा जाता है कि वह काला धंधा भी बड़ी ईमानदारी से करता था.
उसकी ईमानदारी का एक किस्सा खासा मशहूर है. इसके तहत एक बार एक व्यापारी हाजी मस्तान की मदद से सोने की तस्करी करना चाहता था. उसने हाजी मस्तान को सोने के कुछ बिस्कुट दे दिए और खुद भी छिपाकर डॉक से बाहर निकलने लगा.
हाजी मस्तान तो वहां से सुरक्षित बाहर निकल गया, लेकिन व्यापारी गिरफ्तार हो गया. उसे 4 साल की जेल हुई. आगे सजा काटने के बाद जब वह जेल से बाहर निकला, तो हाजी मस्तान ने पूरा सोना उसे वापस कर दिया.
बहरहाल, सन 44 से लेकर 50 तक हाजी ने व्यापारियों के लिए स्मगलिंग का सामान डॉक से बाहर निकालने का काम किया. इसी दौरान उसकी मुलाकात दमन के स्मगलर सुक्कुर नारायण बखिया से हो गयी.
…और यहीं से वह काले धंधे की काली दुनिया में चमचमाने लगा.
हां, और एक बात. उस दौर में मुंबई अडरवर्ल्ड में मार-काट नहीं होती थी. हाजी मस्तान के बारे में तो यह तक कहा जाता है कि उसने कभी किसी की हत्या नहीं करायी थी! मुंबई अंडरवर्ल्ड में खून-खराबे का दौर 70 के दशक के बाद शुरू हुआ था. उसकी एक अलग कहानी है, जिसका जिक्र फिर कभी होगा.
हुस्न-ओ- इश्क की गिरफ्त में
कहते हैं कि कोई भी शख्स कितना भी पत्थर-दिल और क्रूर क्यों न हो, उसके दिल के किसी कोने में बेशुमार मोहब्बत भी होती है.
हाजी मस्तान भी अपवाद नहीं था. सन 44 में हाजी मस्तान ने बॉम्बे डॉक में माल ढुलाई का काम शुरू किया था. इससे दो साल पहले यानी सन् 1942 में महज 9 साल की उम्र में मधुबाला की बॉलीवुड में इंट्री हुई. फिल्म थी ‘बसंत’. इसके बाद उन्हें एक के बाद एक फिल्में मिलती गयीं और वह कामयाबी की बुलंदियों को छूती गयीं.
बेहद खूबसूरत मधुबाला के दीवानों की कमी नहीं थी. इन दीवानों में हाजी मस्तान भी था, लेकिन उसकी मोहब्बत एकतरफा थी. उसने कभी मधुबाला के सामने अपना इश्क जाहिर नहीं किया.
बस, चुपचाप इश्क का तसव्वुर करता रहा.
सत्तर के दशक के आखिरी वक्त में उसने हिम्मत जुटायी भी, लेकिन वह कुछ कह पाता कि मधुबाला चुपके से दुनिया-ए-फानी को अलविदा कह गयीं.
मधुबाला की मौत से हाजी मस्तान को बड़ा सदमा लगा. ऐसे में मरहम बनकर आयी सोना. सोना का पूरा नाम था शाहजहां बेगम. सोना बॉलीवुड में ब्रेक पाने के लिए स्ट्रगल कर रही थी. संयोग से उसे हाजी मस्तान के प्रोडक्शन में बननेवाली फिल्म में काम करने का मौका मिल गया.
उसके नैन-नक्श बिल्कुल मधुबाला जैसे थे. हंसी भी मधुबाला की तरह ही थी. हाजी मस्तान को एक नजर में ही मधुबाला-सी दिखने वाली सोना से इश्क हो गया और दोनों ने बिना एक पल गंवाए शादी कर ली.
Haji Mastan with His Love Sona (Pic: Dailymotion)
इमरजेंसी में गिरफ्तारी और…
26 जून 1975 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इशारे पर देश में आपातकाल लागू हुआ था. तमाम अपराधियों को एहतियातन जेलों में डाला जा रहा था. इसी क्रम में हाजी मस्तान को भी जेल में डाल दिया गया.
जेल में उसने करीब 18 महीने बिताये. इसी दौरान वह जय प्रकाश नारायण के संघर्ष व उनकी राजनीति से रूबरू हुआ और आखिरकार उसने अपराध की दुनिया को अलविदा कहने का मन बना लिया.
जेल से छूटने के बाद वह हज करने चला गया. हज कर लौटा, तो उसे ‘हाजी मस्तान’ नाम मिला. हज से लौटने पर हाजी मस्तान ने स्मगलिंग का धंधा छोड़कर वैध कामों में पैसे लगाने लगा. साथ ही सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना शुरू कर दिया.
माना जाता है कि जेपी से ही प्रेरणा लेकर उसने 1985 के आसपास ‘दलित मुस्लिम सुरक्षा महासंघ’ नाम के राजनीतिक संगठन की स्थापना कर डाली थी. इस तरह वह राजनीति के सफर पर चला तो, लेकिन कोई बड़ा नाम नहीं कमा सका.
हां, मुंबई के गरीबों खासकर दलितों व मुसलमानों के लिए वह मसीहा बनकर जरूर उभरा. अंतत: 9 मई 1994 को उसके सफर का अंत हो गया.
Ajay Devgan as a Haji Mastan in Once upon a Time Film (Pic: BhindiBazaar)
बाद में उनकी जिंदगी पर ‘वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ नाम की फिल्म बनीं, जिसमें अजय देवगन ने उनका किरदार निभाया था.
Web Title: Unknown Story of Haji Mastan, Hindi Article
Featured Image Credit: Kayak