आज ठगी का अर्थ किसी को बहला-फुसला कर या धोखा देकर लूट लेने से लगाया जाता है.
वहीं अठारहवीं शताब्दी में भारत समेत दुनिया भर के देशों में ऐसे ठगों के गिरोह हुए जो अपनी साहसिक, रोमांचकारी और आश्चर्य से भर देने वाले कारनामों के कारण आज भी याद किए जाते हैं.
इन्हीं में से एक ठग था ‘विक्टर लस्टिग’, जिसने तब ठगी के सारे रिकॉर्ड ही तोड़ डाले जब उसने एफिल टॉवर ही बेच दिया.
सबसे हैरानी की बात तो यह थी कि विक्टर ने एफिल टॉवर को कोई एक बार नहीं बल्कि दो बार बेचा था!
जी हां, इसकी चाल इतनी शानदार थी कि बस एफिल टॉवर की रजिस्ट्री होना बाकी रह गया था.
हर सदी में ‘विक्टर लस्टिग’ जैसे ठग पैदा नहीं होते जो किसी को भी चूना लगाने की कला जानते हों. ‘विक्टर लस्टिग’ की एफिल टॉवर बेचने का किस्सा काफी रोचक है! तो चलिए इसे थोड़ा और करीब से जानते हैं–
बचपन में ही शुरू कर दी थी जालसाजी!
आमतौर पर ऐसी धारणा है कि बड़े होकर ठग या चोर वही बनता है, जिसका बचपन काफी अभाव में बीता हो… जिसके आसपास अच्छा माहौल न रहा हो और कोई न हो जो उसे सही गलत की पहचान करवा सके.
हालांकि विक्टर लस्टिग के मामले में यह धारणा बदल जाती है.
विक्टर का जन्म 1890 में ऑस्ट्रिया-हंगरी के होस्टिन में हुआ था. अब हम इसे चेक गणराज्य के रूप में जानते हैं. वह मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता था. उसने अपने स्कूल के दौरान ही भाषाओं पर पकड़ बनानी शुरू कर दी थी… बड़े होने तक तो उसे पांच भाषाओं का ज्ञान हो गया था.
इस बात में कोई शक नहीं कि वह बचपन से ही शातिर था पर उसका दिमाग पढ़ाई के मामले में कुछ खास नहीं चला.
हालांकि उसने अपने बारे में यह बातें जेल में एक इंटरव्यू के दौरान बताईं थीं. जब पुलिस ने उसकी बताई जगह पर छानबीन की तो वहां विक्टर नाम के किसी शख्स का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला. हालांकि आज भी लोग उसकी बताई इस कहानी को ही सच मानते हैं.
वह लोगों से बहुत जल्दी घुलमिल जाया करता था. बातों ही बातों में उनके बारे में जानकारी हासिल करता और फिर उन्हें बेवकूफ बनाने की साजिश रचता. यह सच है कि उसे लोगों को बेवकूफ बनाने में मजा आता था.
विक्टर बचपन से ही बहुत शातिर था. बचपन में तो उसके लिए लोगों को बेवकूफ बनाना किसी खेल की तरह था.
असली नाम आज तक है राज़…
विक्टर ने अपनी पहचान छिपाने के लिए कई बार नाम बदले. सबसे हैरत की बात तो यह थी कि कोई भी उस समय तक विक्टर का असली नाम नहीं जानता था. कहते हैं कि विक्टर लस्टिग भी उसका असली नाम नहीं है. हालंकि आज एफिल टॉवर बेचने के लिए विक्टर नाम ही मशहूर है.
विक्टर लोगों को बताता था कि उसके पिता एक बड़े शहर के मेयर हैं तो कभी कहता था कि उसके पिता बड़े कारोबारी हैं. जबकि एफबीआई के अनुसार विक्टर के माता-पिता किसान थे.
विक्टर के पास करीब एक दर्जन जाली पासपोर्ट थे. वह भेस बदलने में माहिर था. भाषाओं का ज्ञान उसकी पहचान छिपाने में मदद करता था. वह अपनी पहचान कुछ इस तरह से छिपाता था कि लोगों के लिए वह बिलकुल अंजान लगे. उसका नाम, पता और न जाने क्या-क्या झूठा होता था. यही कारण है कि वह हर बदलते दिन के साथ एक बड़ा ठग बनने की राह पर बढ़ जाता था.
Victor Always Changed His Name To Hide His True Identity (Pic: biography/justcriminals)
बेच दी नोट छापने वाली मशीन!
छोटी मोटी चोरी और ठगी तो विक्टर ने खूब की थी पर उसने पहली बार बड़ा हाथ मारा जब उसने नोट छापने की एक मशीन बेच डाली. वह अमेरिका में था. उसके पास देवदार की लकड़ी से बना एक बॉक्स था. उसके अंदर धातु के तारों से बनी एक मशीन थी, जिसमें रेडियम लगा हुआ था. उसने अफवाह फैलाई कि वह नोट छापने की मशीन बेचना चाहता है.
पहले तो लोगों को उसकी बातों पर यकीन नहीं हुआ मगर थोड़े ही समय में एक व्यापारी उसके झांसे में आ गया.
उसने मशीन दिखाकर व्यापारी को यकीन दिलाया कि रेडियम का इस्तेमाल करके 100 डॉलर तक के नोट इसमें बनाएं जा सकते हैं. उसने मशीन के एक हिस्से में पहले ही कुछ नोट छिपा दिए थे और व्यापारी को यकीन दिलाने के लिए उन्हीं में से एक नोट निकालकर दिखाया.
व्यापारी खुश हो गया और उसने 30 हजार डॉलर में वह मशीन खरीद ली.
वह खुशी-खुशी अमीर होने के सपने देखते हुए मशीन अपने साथ ले गया. जैसे ही उसने खुद उस मशीन को चला के देखा तो मशीन ने उसे धोखा दे दिया. यह देख व्यापारी की शकल उतर गई.
कहते हैं कि कोई उसका मजाक न उडाए, इसलिए उसने यह बात किसी को नहीं बताई.
Victor Fooled People By Making A Fake Currency Printing Machine (Representative Pic: dallasnews)
बेच डाला एफिल टॉवर को ही
1925 में विक्टर यूरोप आया, क्योंकि कनाडा और अमेरिका की पुलिस उसे ढूंढ़ रही थी. इसलिए वह पेरिस में ही बस गया. प्रथम विश्व युद्ध खत्म हुआ ही था और पेरिस में नवनिर्माण का काम तेजी से चल रहा था. निर्माण की खबरें रोजाना अखबारों में छप रही थीं. ऐसी ही खबरों से भरा हुआ एक अखबार विक्टर के हाथ लगा. वह घर पर उस अखबार को पढ़ रहा था, जिसमें एफिल टॉवर की मरम्मत के बारे में खबर छपी थी. बस यहीं से विक्टर के दिमाग में एक शातिर आइडिया आया.
उसने खुद को डाक एवं टेलीग्राफ मंत्रालय के उप महानिदेशक के रूप में तैयार किया. प्रिंटिंग प्रेस से फर्जी दस्तावेज तैयार किए जिसमें एफिल टॉवर से जुड़ी जानकारियां डाली.
इसके बाद चुनिंदा व्यापारियों तक यह खबर पहुंचाई कि एफिल टॉवर की मरम्मत करवाना सरकार के लिए मुश्किल है इसलिए वह इसे बेच रही है. चूंकि यह गुप्त योजना है इसलिए इसका ज्यादा प्रचार नहीं हो रहा है.
6 व्यापारी विक्टर के झांसे में आ गए और उसने उनके साथ ‘होटल दि क्रॉनिकल’ में एक मीटिंग फिक्स की. मीटिंग में उसने कहा कि चूंकि एफिल टॉवर से लोगों के जज्बात जुड़े हैं इसलिए उसके हटाए जाने के बारे में ज्यादा प्रचार नहीं किया जा रहा है.
उसने व्यापारियों से कहा कि एफिल टॉवर को ट्रेन के जरिए उस स्थान से हटा कर कहीं और ले जाया जाएगा. विक्टर की बातों में इतनी गंभीरता थी कि व्यापारियों को उस पर जरा भी शक नहीं हुआ. मीटिंग खत्म होने के बाद वह अपने शिकार के फोन का इंतजार करने लगा.
आखिर कुछ ही दिनों में एक व्यापारी ने फोन किया और कहा कि वह एफिल टॉवर खरीदना चाहता है. इस कांट्रेक्ट को देने के लिए विक्टर ने व्यापारी से घूस मांगी. व्यापारी ने अंदाजा लगाया कि सरकारी कर्मचारी अक्सर बड़े टेंडर्स के लिए घूस लेते हैं तो विक्टर भी यही कर रहा है. इसलिए वह घूस देने को तैयार हो गया. उसने काफी सारा पैसा विक्टर तक पहुंचा दिया.
विक्टर पैसा लेकर रातों रात फरार हो गया. अगले दिन व्यापारी जब विक्टर के होटल में रजिस्ट्री के लिए पहुंचा तो उसे खुद के ठगे जाने का अहसास हुआ. विक्टर ने इतनी चालाकी से इस काम को अंजाम दिया कि कोई विक्टर को पकड़ भी नहीं पाया.
वह विक्टर की जिंदगी की सबसे बड़ी ठगी थी.
Victor Sold Eiffel Tower For Some Thousand Dollars (Representative Pic: wallpapersite)
दूसरी बार भी बेचा एफिल टॉवर
पुलिस को इस कांड की सूचना नहीं थी, फिर भी विक्टर चौकन्ना था. वह मीटिंग के 6 माह बाद फिर पेरिस लौटा और यही मीटिंग दोबारा आयोजित की. इस बार सभी व्यापारी नए थे. फिर से कुछ व्यापारी एफिल टॉवर खरीदने को तैयार हो गए और घूस के पैसे विक्टर को दे दिए. एक बार फिर से विक्टर ने उनसे पैसे लिए और फरार हो गया मगर इस बार उसकी किस्मत पहले जैसे अच्छी नहीं थी. पहले वाले व्यापारी ने तो विक्टर के खिलाफ कोई भी रिपोर्ट नहीं की थी मगर इस बार वाले व्यापारी ने विक्टर की करतूत सब के सामने रख दी.
अब यह खबर पूरे पैरिस में फैल चुकी थी. इसलिए पिछली मीटिंग में शामिल हुए व्यापारी भी पुलिस के पास पहुंचे और अपने साथ हुया वाकया बताया.
नकली नोट की कहानी
कनाडा, यूरोप और अमेरिका में ठगी करने के बाद विक्टर पर पुलिस की चौकस निगाह थी. इसके साथ ही अमेरिकी एजेंट्स भी उसके पीछे लग गए थे.
1930 में फुलर्टन के नेब्रास्का शहर के एक फार्मासिस्ट विलियम वॉट्स के साथ विक्टर ने साझेदारी की. उसने अपना नाम टॉम शॉ रखा. उन दोनों ने प्रिंटिंग प्रेस में नकली नोट छापने का काम शुरू किया. हालांकि दोनों के लिए यह काम नया था पर उन्हें इसमें काफी मुनाफा हुआ.
Victor Started Making Fake Currency (Representative Pic: madspread)
… और ख़त्म हुआ विक्टर का खेल!
जब से विक्टर ने नकली नोट छपना शुरू किया था तभी से अमेरिकी जासूसों की नज़र उस पर पड़ने लगी थी. वह सभी बस एक मौका ढूंढ रहे थे विक्टर को रंगे हाथों पकड़ने का. विक्टर को पकडवाने में उसकी प्रेमिका का बहुत बड़ा हाथ था.
कहते हैं कि उसे लगता था कि विक्टर उसे धोखा दे रहा है इसलिए वह विक्टर के खिलाफ हो गई. जैसे ही उसने जासूसों को विक्टर के बारे में बताया सभी पुलिस वाले और जासूस उसके पीछे पड़ गए. फिर एक दिन न्यूयॉर्क में विक्टर को पकड़ ही लिया गया. उसके पास से एक बक्सा मिला जिसमें बहुत ही महंगे कपड़े रखे हुए थे.
विक्टर को उसके कामों के लिए जेल भेजा गया था, लेकिन वह वहां से भी कुछ ही दिनों में भाग खड़ा हुआ. एक बाद फिर उसे पकड़ा गया और इस बार उसे 20 साल के लिए जेल में भेजा गया. उसके बाद से अपना पूरा जीवन विक्टर ने उस जेल में ही बिताया और वहीं उसने अपनी आखिरी सांसे ली.
FBI Caught Victor (Representative Pic: fbi)
आज तक आपने भारत के सबसे बड़े ठग नटवरलाल के बारे में तो खूब सुना होगा मगर विक्टर भी उनसे कुछ कम नहीं है. एफिल टॉवर को दो बार बेचन कोई बच्चों का खेल नहीं था. विक्टर में दिमाग बहुत था मगर उसने अपना वह दिमाग बस गलत कामों में ही लगाया.
विक्टर की कहानी हमें यही बताती है कि गलत काम का नतीजा आखिर में गलत ही होता है. तो आप बताइए आपको कैसी लगी विक्टर की कहानी.
Web Title: Victor Lustig Man Who Sold Eiffel Tower Twice, Hindi Article
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