अगर किसी इंसान के दोनों हाथ बांध दिए जाएं और उसे गाड़ी चलाने के लिए कहें, तो शायद वह गाड़ी स्टार्ट भी न कर पाएं.
हालांकि, भारत में एक व्यक्ति ऐसा है, जो दोनों हाथ न होने के बाद भी गाड़ी चला लेता है. इतना ही नहींं उस व्यक्ति के पास भारत सरकार का ड्राइविंग लाइसेंस भी है.
अगर आपने इसे व्यक्ति के बारे में नहींं सुना तो आज सुन लीजिए. इनका नाम है विक्रम अग्निहोत्री. तो चलिए जानते हैं विक्रम की प्रेरणादायक कहानी के बारे में–
बचपन के हादसे ने छीन लिए हाथ!
विक्रम अग्निहोत्री बचपन से अपंग नहीं थे. पैदा तो वो भी एक आम बच्चे की तरह दो हाथों और दो पैरों के साथ ही हुए थे.
बचपन में हुए एक हादसे ने उनसे उनके दोनों हाथ छीन लिए. महज़ सात साल की उम्र में ही उन्हें बिजली का झटका लगा जिसके कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा.
अस्पताल में डॉक्टरों ने निर्णय लिया कि विक्रम के दोनों हाथों को काटना पड़ेगा. उस दिन के बाद से विक्रम ने अपने हाथ हमेशा के लिए खो दिए.
जहाँ ऐसी किसी घटना के बाद कोई भी बच्चा टूट जाता. वहीं दूसरी ओर विक्रम ने अपने अंदर के हौसला नहीं खोया. हाथ जाने का गम तो उन्हें भी था मगर जीने की आस अभी भी उनके अंदर थी.
विक्रम ने किसी स्पेशल स्कूल में दाखिला नहीं लिया. वह आम बच्चों के साथ एक आम स्कूल में ही पढ़ते रहे. सिर्फ स्कूल ही नहीं उन्होंने ग्रेजुएशन और मास्टर्स भी की.
अपने इतने सालों के सफर में विक्रम को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा मगर वह हारे नहीं. उनकी माँ भी उनके हर कदम में उनके साथ रहीं.
हाथ जाने के गम में रोने की बजाए विक्रम ने उनका तोड़ ढूँढना शुरू किया. उन्होंने अपने पैरों को अपने हाथ का रूप दे दिया.
वह हर चीज अपने पैरों से करने लगे. खाना खाना हो, शेविंग करना हो या लिखना हो. हर काम विक्रम अपने पैरों से ही करने लगे.
हाथ नहीं थे फिर भी पाया ड्राइविंग लाइसेंस
वक्त के साथ विक्रम के अंदर का विश्वास और भी ज्याद बढ़ने लगा. वह कई ऐसी चीजें अपने पैरों से करने लगे, जिसके बारे में शायद ही किसी ने सोचा हो.
बड़े होने पर विक्रम का मन गाड़ी सीखने का हुआ. इसके लिए उन्होंने गाड़ी भी खरीद ली. गाड़ी तो ले ली गई, लेकिन अब असल मसला ये था, की विक्रम को ड्राइविंग कौन सिखाएगा?
ऐसा इसलिए क्योंकि, विक्रम को आम ड्राइविंग स्टूडेंट नहीं थे. उन्हें एक स्पेशल ट्रेनिंग की जरूरत थी. विक्रम को भी इस बात का एहसास हुआ. इसलिए उन्होंने अपनी गाड़ी में कुछ बदलाव कर दिए.
बदलावों के बाद विक्रम अपने सीधे पैर से स्टेरिंग संभालते और उलटे पैर से ब्रेक और एक्सलेरेटर.
बहुत खोजने के बाद भी उन्हें कोई ड्राइविंग सिखाने वाला नहींं मिला. आखिर में थक कर उन्होंने इंटरनेट पर वीडियो देखना शूरू किया और महज तीन महीनों में ही वो गाड़ी चलाना सीख गए.
गाड़ी चलाना सीखने के बाद उन्होंने ड्राइविंग लाइसेंस पाने के लिए अर्जी दी. हालांकि, उनकी अर्जी अस्वीकार कर दी गई.
विक्रम के हाथ नहीं थे और भारत के ड्राइविंग नियमों के अनुसार बिना हाथों के गाड़ी नहीं चलाई जा सकती है.
विक्रम ने इस बार भी हार नहीं मानी. उन्होंने सरकार से मदद मांगी. उन्होंने कहा कि बदलते भारत के साथ कई नियम भी बदलने चाहिए.
उन्होंने सरकार से बस एक ड्राइविंग टेस्ट की मांग की. ताकि वह हर किसी को दिखा सकें कि वह अपाहिज होने के बाद भी ठीक ढंग से गाड़ी चला सकते हैं.
कुछ वक्त बाद विक्रम को उनकी मेहनत का फल मिल गया. सरकार ने उनकी बात सुनी और उन्हें ड्राइविंग टेस्ट देने का मौका भी दिया.
इसके बाद विक्रम ने सबके सामने पैरों से गाड़ी चलाई और अपन लाइसेंस हासिल किया.
कभी नहींं मानी हार...
लाइसेंस मिलने के बाद तो विक्रम का नाम हर जगह फैल गया. इससे पहले किसी ने पैरों से गाड़ी चलाने वाले को नहीं देखा था.
विक्रम भी सिर्फ गाड़ी चलाने तक ही सीमित नहीं रहे. इसके बाद उन्होंने फुटबॉल भी सीखा और साथ में एक मोटीवेशनल स्पीकर भी बने.
उन्होंने लोगों को बताया कि आखिर कैसे जिंदगी से हारे बिन जिया जाता है. विक्रम कार रैली में भी जाते हैं और अब तक वो 10 रैली में जा चुके हैं.
यह सब विक्रम सिर्फ इसलिए कर पाए क्योंकि उन्होंने कभी हार नहीं मानी. वह हमेशा ही अपने आप को और भी बेहतर बनाने में लगे रहे. विक्रम वाकई में एक प्रेरणादायक शख्सियत हैं.
हर किसी की जिंदगी में मुश्किल आती हैं मगर उनसे हारना नहीं उन्हें खत्म ज्यादा महत्वपूर्ण है. विक्रम ने भी ऐसा ही किया. यह उनके इरादे की ताकत ही थी, जिसके कारण वह यह सब काम कर पाए.
WebTitle: Vikram Agnihotri Who Drive Without Hands, Hindi Article
Feature Image: mirror