कई सारी फिल्मों में आपने फांसी देने वाले दृश्य को देखा होगा.
इसमें आपने गौर किया हो तो फांसी देते समय कैदी के पास कुछ लोग मौजूद रहते हैं. इनमें जेल अधीक्षक, एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट और डॉक्टर के साथ एक और शख्स नज़र आता है.
जी हां! अगर आपकी जुबान पर जल्लाद का नाम आ रहा है, तो आप बिल्कुल सही हैं.
जल्लाद एक शब्द है, जिसका नाम भर सुनकर हमारी रूह में सिहरन पैदा हो जाती है. कहते हैं कि जल्लाद के बिना किसी को फांसी देना संभव नहीं!
अब चूंकि भारत में तेजी से जल्लादों की संख्या में कमी होती जा रही है, ऐसे में सवाल लाजमी है कि अगर अपराधियों को फांसी की सजा होती है, तो उनको फांसी पर लटकाएगा कौन?
तो आईये जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर भारत में जल्लाद खत्म होने की कगार पर क्यों है. समझना दिलचस्प होगा कि आखिर क्यों कोई युवक जल्लाद नहीं बनना चाहता–
सजा के बावजूद फांसी नहीं!
भारत में फांसी की सजा कानून में तो है, लेकिन आम नहीं है. 96 देशों सहित भारत में भी मौत की सजा 1894 में बनाए गए कानून के द्वारा ही दी जाती है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक़ साल 2004 से 2013 के बीच भारत में 1,303 लोगों को फांसी की सज़ा सुनाई गई.
इसी कानून के तहत 2012 में अजमल कसाब को फांसी की सजा दी गई थी.
कसाब तो सिर्फ एक उदाहरण है, भारत में कसाब जैसे कई मुजरिमों मौत की सजा के तहत फांसी के फंदे में झूल चुके हैं. वैसे भारत में फांसी की सजा को लेकर एक दूसरा पहलू भी है.
इस पहलू पर नज़र डालें तो पता चलता है कि भारत में फांसी की सजा तो सैकड़ों लोगों को सुनाई जाती है, किन्तु कुछ गिने चुने लोग ही फांसी के फंदे तक पहुंच पाते हैं.
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट की मानें तो भारत में 2016 में किसी व्यक्ति को फांसी नहीं दी गई, जबकि 136 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई.
बताते चलें कि तिहाड़ जेल में 9 फरवरी 2013 को अंतिम फांसी अफजल गुरु को दी गई थी. इसके बाद नागपुर जेल में जुलाई 2015 मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन को लटकाया गया.
कसाब और याकूब मेमन से पहले अगस्त 2004 में बलात्कार और हत्या के दोषी धनंजय चटर्जी को कोलकाता में फांसी पर लटकाया गया. इसी कड़ी में सीरियल किलर ऑटो शंकर का भी नाम आता है, जिसे 1995 में फांसी दी गई थी.
ऐसा नहीं है कि फांसी की सजा किसी को सुनाई नहीं जा रही. कई सारे मामले अदालतों में लंबित हैं. वैसे एक सच तो यह भी है कि प्रशासन के पास फांसी देने वाले जल्लाद भी नहीं हैं.
Ajmal Kasab Hanged (Representative Pic: akavideos)
जटिल है फांसी का कानून
भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने 1983 में अपने एक फैसले में कहा था कि सिर्फ दुर्लभों में दुर्लभ यानी रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामलों में ही फांसी की सजा दी जा सकती है. क्रूरतम हत्या, हत्या के साथ डकैती,बच्चे को खुदकुशी के लिए उकसाने, राष्ट्र के खिलाफ युद्ध भड़काने और सशस्त्र बल के किसी सदस्य द्वारा विद्रोह करने की स्थिति में भारत में फांसी दी जा सकती है.
1989 में इस नियम को बदला गया और इसमें नशीली दवाइयों का कारोबार करने वालों के लिए भी फांसी की सजा तय कर दी गई. वहीं बाद में आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने वाले व्यक्तियों को भी फांसी की सजा देने का फैसला किया गया है.
भारत में हाल के सालों में इज्जत के नाम पर हत्या (हॉनर किलिंग) के मामले भी ज्यादा संख्या में सामने आए हैं और तय किया गया है कि ऐसी हत्या के जिम्मेदार लोगों को भी फांसी दी जा सकती है.
2012 में हुए निर्भया कांड के बाद बलात्कार को भी इसी श्रेणी में डाला गया है.
हालाँकि, माफी की लंबी प्रक्रिया होने के कारण फांसी तक काफी कम लोग पहुंच पाते हैं. भारत में निचली अदालतों में फांसी की सजा मिलने के बाद सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट में अपील की जा सकती है.
सुप्रीम कोर्ट भी अगर फांसी की सजा पर मुहर लगा भी दे तो फिर राष्ट्रपति से दया की अपील की जा सकती है. अगर राष्ट्रपति भी इस अपील को खारिज कर दे तो ही फांसी दी जाती है.
इस वक्त भारत की अलग अलग अदालतों ने सैकड़ों लोगों को फांसी सुना रखी है. इनमें से कई याचिकाएं राष्ट्रपति या गृह मंत्रालय के पास लंबित हैं. दिलचस्प बात तो यह है कि अगर राष्ट्रपति के यहाँ से भी फांसी पर माफ़ी नहीं मिलती है, तो भी जल्लादों की कमी के चलते तमाम लोग फांसी पर लटक नहीं पाएंगे.
Why Anyone Does not Want to Become A Hangman (Pic: nytimes)
बचे हुए हैं सिर्फ दो जल्लाद!
भले ही भारत की आबादी 1.2 अरब पहुंच चुकी है. साथ ही अपराध दर भी उच्च है, पर जल्लादों की कमी अब भी बरकरार है. देश भर में जल्लादों की भारी कमी है. आपको जानकर शायद हैरानी हो, लेकिन अब भारत में अहमद और पवन नाम के केवल 2 ही जल्लाद बचे हुए हैं.
अहमद के बारे में आप कुछ इस तरह जान सकते हैं कि 2012 में आतंकी कसाब को उसने ही फांसी पर लटकाया था. वहीं पवन की बात करें तो उसने याकूब को फांसी दी थी. पवन की एक पहचान यह भी है कि वह देश का एकलौता जल्लाद है, जिसके परिवार के अन्य लोग भी जल्लाद रहे हैं. इस परिवार के लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसी काम को करते आ रहे हैं.
परदादा से लेकर पोते तक ने इस पेशे को कायम रखा है. गौरतलब हो कि उसके परदादा ने अंग्रेजी हुकूमत में सरदार भगतसिंह को फांसी दी थी, वहीं खूंखार हत्यारे रंगा-बिल्ला और इंदिरा गांधी के हत्यारे सतवंत सिंह व केहर सिंह को पवन के दादा कल्लू जल्लाद ने फांसी का फंदा पहनाया था. कहते हैं कि पवन ने फांसी का फंदा बनाना और प्लैटफॉर्म तैयार करना अपने दादा कल्लू सिंह से ही सीखा है.
पवन को इस पेशे के तौर पर सरकार से तीन हजार रुपए प्रतिमाह मानदेय मिलता है. पवन जल्लाद का परिवार मेरठ के भगवतपुरा इलाके में एक कमरे के छोटे से मकान में रहता है. घर में रोजमर्रा की जरूरत के अलावा कोई मनोरंजन का सामान नहीं है. कम मानदेय के कारण उन्हें घर चलाना नामुमकिन हो जाता है, इसलिए वह फेरी लगाकर कपड़े बेचते हैं.
Why Anyone Does not Want to Become a Hangman (Representative Pic: pkvoices)
आसान नहीं है जल्लाद बनना!
पवन जल्लाद की मानें तो किसी को फांसी के फंदे पर लटकाना हंसी खेल नहीं, इसके लिए बहुत कलेजा चहिए होता है. वह तो पवन जैसे जल्लाद इसे अपना कर्म मानते हैं. उनके हिसाब से ईश्वर ने धरती से पापियों को दंड देने के लिए उनको चुना है, इसलिए वह यह काम खुशी से करते हैं.
फांसी देने से पहले वह नहाकर अपने पूरी तैयारी करते हैं.
मनोवैज्ञानिक डा अरूणा ब्रूटा अपनी राय देते हुए कहती हैं कि जल्लाद को फांसी देने से पहले काफी अभ्यास करना पड़ता है. दरअसल, किसी की जान लेने का मानसिक और मनोवैज्ञानिक दबाव जल्लाद पर सबसे ज्यादा होता है. जैसे फांसी के तख्ते को ठीक करना, फांसी की रस्सी जांचना, फंदा बनाने का अभ्यास आदि.
यही नहीं उन्हें अपराधी के वज़न के बराबर रेत की बोरी को लटकाकर अभ्यास करना होता है. लीवर से लेकर रस्सी को लटकाने वाली फिरकी की मरम्मत करवानी पड़ती है. जिसका इस्तेमाल फांसी में होता है. फांसी के वक्त इन सभी का ठीक से काम करना बेहद जरूरी है, जोकि आसान काम नहीं होता.
Why Anyone Does not Want to Become a Hangman (Representative Pic: helsinkifigyelo)
शायद यही वजह है कि आज की युवा पीढ़ी जल्लाद नहीं बनना चाहती, फिर चाहे यह उसका खानदानी पेशा ही क्यों न रहा हो. दूसरी बड़ा कारण है जल्लाद बनने के बदले उन्हें मिलने वाला मानदेय, जोकि दूसरी नौकरियों से बहुत कम है.
आप क्या कहेंगे इन जल्लादों के बारे में… जिनका नाम ही उनका काम बताने के लिए काफी है!
Web Title: Why Anyone Does Not Want To Become A Hangman, Hindi Article
Feature Image Credit: themediaexpress