महिलाएं! इस देश की आधी आबादी. तमाम कठिनाइयों और समाज की अड़चनों को पार कर आधुनिक दौर में स्कूल की ड्रेस पहन रही हैं. भारत में धीरे-धीरे उनके स्कूल जाने की संख्या बढ़ी है.
2018 के 12वीं की बोर्ड परीक्षा के परिणाम घोषित हुए. इन नतीजों में CBSE बोर्ड ने बताया कि पिछले कई सालों की तरह इस बार भी लड़कियों ने बाजी मारी. इस वर्ष लगभग 84 प्रतिशत लड़कियां पास हुईं, जबकि लगभग 80 प्रतिशत लड़के पास हुए.
पर सवाल यह है कि क्या वे सिर्फ स्कूल तक ही सीमित हैं!
आज भी आईआईटी, नौकरशाही जैसे क्षेत्रों में उनकी उपस्तिथि बेहद कम है.
ऐसा क्यों आइए जानने की कोशिश करते हैं-
आईआईटी में केवल 995 लड़कियां, जबकि...
गांधी जी ने कहा था कि अगर एक लड़का पढ़ता है तो सिर्फ एक व्यक्ति ही पढ़ता है, अपितु अगर एक लड़की पढ़ती है तो पूरा एक परिवार पढ़ता है. बात तब और गंभीर हो जाती है, जब एक ओर लड़कियों के स्कूल में जाकर शिक्षा प्राप्त करने की स्थिति में तो अपेक्षाकृत सुधार हुआ है. वहीं, दूसरी ओर आईआईटी जैसे क्षेत्रों में उनका आंकड़ा लड़कों से दस गुना कम है.
कुछ सरकारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2017 में देश के 23 आईआईटी में कुल 10,878 छात्रों ने अंडर ग्रेजुएट कोर्स में दाखिला लिया. इसमें लड़कियों के दाखिले की संख्या चौंकाने वाली थी. क्योंकि लगभग 11 हज़ार छात्रों में से केवल 995 ही लड़कियाँ थी.
इसके साथ ही, महिलाओं की स्थिति सरकारी नौकरी खासकर ब्यूरोक्रेट पदों पर कुछ अच्छी नहीं है. साल 2007 में NIPCCD द्वारा एक डाटा रिलीज़ किया गया. इसमें महिलाओं के सिविल सर्विसेज पदों पर होने की जानकारी दी गयी.
इनके आंकड़ों के मुताबिक़, साल 2007 तक कुल मिलाकर 4,624 में से सिर्फ 535 महिलाएं ही अफसर पद तक पहुंची. इसके अलावा, इंडियन पुलिस सर्विस में भी यह आंकड़ा नीचे ही रहा. इसमें 3,191 में से महिलाओं की संख्या सिर्फ 110 ही रही.
निश्चित रूप से आधी आबादी वाले भारत जैसे देश में ये स्थिति गंभीर प्रश्न उठाती है...
परीक्षा पास करने के बाद भी नहीं ले पाती दाखिला!
समाज के गोल-गोल चश्मे से अभी भी पुरानी सोच की धूल झड़ी नहीं है. आज भी लोग लड़कियों को लड़के की अपेक्षा कम आंकते हैं. इस समस्या के सामाजिक पहलुओं को जानने से पहले जरा इस तथ्य पर भी नज़र डालें.
साल 2015 में, मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने बताया कि 26.73 प्रतिशत लड़कियों ने जेईई मेन्स की परीक्षा पास की और 17 प्रतिशत लड़कियों ने जेईई अडवांस की परीक्षा पास की.
परंतु जब बात दाखिला लेने की आती है, तो उसमें सिर्फ 8.8 प्रतिशत लड़कियाँ ही हैं. ऐसे में, परीक्षा पास करने के बावजूद भी लड़कियाँ एडमिशन लेने के समय पाँव पीछे खींच लेती हैं. इसकी मुख्य वजह उनके परिवार की मनाही है.
दरअसल, लड़कियों का नाम अगर कहीं दूर या मनपसंद कॉलेज में नहीं आता तो वह एडमिशन नहीं लेती हैं. घर से दूर जाना या एक लड़की को घर से बाहर भेजना परिवार वाले स्वीकार नहीं करते. इसके अहम कारण है उनकी सुरक्षा के लिए चिंतित रहना.
जबकि, घर के बेटे या लड़के का नाम दूर-दराज़ के कॉलेज में आ जाता है, तो भी परिवार उसे बाहर भेजने में अपेक्षाकृत कम कतराता है. रही बात स्कूलों में ज्यादा पहुंच कि तो परिवार वाले बेसिक शिक्षा देने में ऐतराज नहीं करते हैं.
यद्यपि उच्च शिक्षा के मामले में वो कई तरह के पूर्वाग्रहों से घिरे हुए होते हैं.
इसके अलावा, अगर बात करें ब्यूरोक्रेसी में महिलाओं की कमी की, तो यहाँ भी मामला कुछ ऐसा ही है. आईआईटी से लेकर सिविल सर्विसेज की परीक्षा में महंगी कोचिंग ली जाती है.
ऐसे में, अगर कोचिंग किसी और राज्य में हो तो बात वहीँ खत्म हो जाती है. इसके साथ ही, परिवार में कम संसाधन है और बेटी या बेटे में चयन करने की बात आती है. इस समस्या का अमूमन बेटों को तवज्जों देकर हल निकाला जाता है.
इसके बाद, वो जैसे-तैसे परिवार को अगर मना भी लें तो जगह एक बड़ी समस्या बनकर खड़ी हो जाती है.
(Pic: fqz)
आईआईटी में 800 सीटों का इजाफा तक किया गया
इस समस्या की गंभीरता को सरकार भी समझती है. लिहाज़ा, उन्होंने बड़े अंतर की खाई को समझने का प्रयास भी किया है.
केंद्र सरकार ने इसके लिए आईआईटी मंडी के डॉयरेक्टर प्रोफेसर तिमोथी ए गोंज़ालविस की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया. इस कमेटी ने इस विषय पर विचार-विमर्श करने के बाद अपनी रिपोर्ट तैयार की.
इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट को मानव संसाधन मंत्रालय को सौंप दी. इस रिपोर्ट में कुछ समाधान भी सुझाए गए. इस क्षेत्र में लड़कियों की संख्या को बढ़ाने के लिए उनके लिए सीट बढाने की बात कही गयी.
ऐसा इसलिए कहा गया, ताकि 2020 तक आईआईटी में लड़कियों का आंकड़ा 20 फ़ीसदी से ऊपर तक पहुंच सके. इस रिपोर्ट के परामर्श को मानते हुए. इस वर्ष देश के कुल 23 आईआईटी मिला कर महिलाओं के लिए 800 सीटें बढ़ाई गई हैं.
यह तरीका इसलिए अच्छा है क्योंकि इसमें लड़कों की सीट को नहीं घटाया जाएगा. अपितु लड़कियों की सीट बढ़ा दी जाएगी. यह लड़कियों की संख्या आईआईटी में बढाने में मददगार साबित होगा.
इसके अलावा, इसी रिपोर्ट में आईआईटी रोल मॉडल तैयार करने से लेकर छात्राओं के लिए अलग स्कीम, छात्रवृति देना और ट्यूशन फीस में छूट की बात है. इससे उन्हें प्रोत्साहन मिलेगा.
बताते चलें, अगर उपरोक्त बातों को पढ़ने के बावजूद आप सोच रहे हैं कि इंजीनियरिंग लड़कियों का विषय नहीं तो अभी भी आप एक भ्रम में ही जी रहे हैं. दरअसल, साल 2016 में करीब तीन लाख लड़कियों ने बी-टेक में दाखिला लिया.
बस यह आंकड़ा, आईआईटी के सन्दर्भ बहुत कम है. इसके लिए 2020 तक इसे बीस प्रतिशत तक लाने लक्ष्य है.
Web Title: Why IIT And Bureaucracy Is Tough For Women, Hindi Article
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