भारत एक युवा देश है. यहां की टॉप यूनिवर्सिटीज से हर साल लाखों हुनरमंद युवा निकलते हैं. पढ़ाई पूरी करने के बाद ये युवा आमतौर पर बढ़िया नौकरी पाने का सपना देखते हैं और उसके मिलते ही अपनी लाइफ सेट मानते हैं!
वहीं कुछ युवा ऐसे होते हैं, जो इस लीक से हटकर कुछ नया कर गुजरने का जज्बा रखते हैं.
नीलेश रंगवानी ऐसा ही एक नाम हैं, जिन्होंने आइआइटी मद्रास से निकलने के बाद 2017 में अपने दोस्त विवेक के साथ कुछ कर गुजरने का सपना देखा, और उसी के तहत 2015 में 'विशअप' नाम की एक कंपनी की नींव डाली.
महज 10 लाख रुपए से एक स्टार्टअप के रूप में शुरू होने वाली उनकी कंपनी आज मार्केट में अच्छी पैठ जमा चुकी है.
तो आइए जानते हैं कि नीलेश रंगवानी ने भोपाल से यहां तक सफर कैसे तय किया-
आईआईटी मद्रास से शुरू हुआ सफर
नीलेश रंगवानी भोपाल से आते हैं. आम बच्चों की तरह उन्होंने 12वीं तक पढ़ाई की. इसके बाद जैसा कि होता है कि ज्यादातर साइंस पढ़ने वाले विद्यार्थी 12वीं के बाद इंजीनियरिंग को अपना करियर बनाते हैं. नीलेश ने भी इसे अपना करियर बनाया.
इसी के तहत वह आईआईटी मद्रास पहुंचे, जहां उन्होंने अपने 4 साल गुजारे. इसी कालखंड में उनकी मुलाकात कई सारे साथियों से हुई. इसी में एक थे राजस्थान के 28 वर्षीय विवेक गुप्ता. शुरु में शायद ही दोनों ने सोचा होगा कि आईआईटी मद्रास में हुई उनकी यह मुलाकात इतनी लंबी होगी और दोस्ती की अनूठी मिसाल बनकर लोगों को प्रेरित करेगी!
आम स्टूडेंट्स की तरह इन दोनों दोस्तों ने भी पढ़ाई के बाद अच्छी नौकरी का रास्ता चुना और दिल्ली आ गए. पर चूंकि दोनों की आंखों में अंदर कुछ कर गुजरने का सपना पल रहा था, इसलिए दोनों को ज्यादा वक्त तक नौकरी का सिस्टम रास नहीं आया.
अंतत: दोनों ने नौकरी को अलविदा कहा और 2015 में 'विशअप' की नीव डालकर एक नई राह पर चल पड़े!
इससे पहले नीलेश कई बड़ी कंपनियों में अपनी सेवाएं दे चुके थे. वहीं विवेक गुप्ता आईआईएम (IIM) अहमदाबाद से पढ़ाई पूरी कर चुके थे. साथ ही उनके पास BCG जैसी बड़ी कंपनी में बतौर मैनेजमेंट कंसलटेंट काम करने का अनुभव भी था.
10 लाख की निजी बचत से शुरु हुई 'विशअप'
नीलेश और विवेक 'विशअप' के जरिए बिज़नेस ओनर्स और सहायकों के बीच का ऐसा पुल बनाना चाहते थे. इसके लिए उनके दिमाग में उन्हें वर्चुअल एम्प्लोयेर्स देने का प्लान था. ऐसे वर्चुअल एम्प्लोयेर्स, जो एक सहायक के रूप में जरूरतमंद कम्पनीज को ऑनलाइन मदद करते. ऐसा करने से वो कंपनी की लायबिलिटी भी नहीं रहते और उनका काम हो जाता.
आइडिया नया था, पर नीलेश और विवेक के हिसाब से कारगर. इसलिए दोनों ने देरी न करते हुए इस पर काम करना शुरु कर किया. उन्होंने अपने इस आइडिया को धरातल पर उतारने के लिए शुरुआत में अपनी निजी बचत के 10 लाख रुपए झोंक दिए.
साथ ही 'विशअप' को दिल्ली में लांच कर दिया.
कंपनी का नाम 'विशअप' चुनने के पीछे ख़ास वजह रही. यह नाम यह सोच समझकर रखा गया था. असल में कंपनी का उद्देश्य प्रोफेशनल उद्यमियों की सभी इच्छित जरूरतों को पूरा करेगा. इस लिहाज से यह एकदम सटीक था.
जरुरतमंदों के बीच का पुल है 'विशअप'
हर दिन बाज़ार में नए उद्यमी उतर रहे हैं. जो रोज दस से बारह घंटे काम करते हैं. ऐसे में कई काम ऐसे होते हैं, जिनमें काफी समय व्यर्थ हो जाता है. इनमें ऑनलाइन रिसर्च, बिल्डिंग डाटा बेस, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कुछ आम उदाहरण है.
ऐसे में 'विशअप' इन कामों के लिए वर्चुअल एम्प्लोयेर्स के रूप में सहायक मुहैया करता है, जोकि इनके एक्सपर्ट्स होते हैं!
इससे बिज़नेस ओनर्स को दो बड़े फायदे होते हैं. पहला यह कि समय रहते उनका काम होता गुणवत्तापूर्वक हो जाता है. दूसरा यह कि उन पर कर्मचारियों की लायबिलिटी भी नहीं बढ़ती. विशअप जहाँ ये एक ओर 55,000 रुपए हर महीने पर वर्चुअल एम्प्लोयेर्स देता है. वहीं दूसरी ओर यह कंपनी प्रति घंटे के हिसाब से भी अपनी सर्विस देती हैं.
इस तरह वर्चुअल एम्प्लोयेर्स के रूप में कार्य कर रहे लोगों के लिए भी 'विशअप' की यह पहल मददगार साबित हो रही है. असल में इसके माध्यम से उन्हें रोजगार के मौके मिलते हैं. वह कहीं से भी अपनी कार्यकुशलता के दम पर पैसे कमा सकते हैं.
खास कर उन महिलाओं के लिए जो शादी के बाद बढ़ी पारिवारिक जिम्मेदारी के कारण रोज ऑफिस नहीं जा पाती और अपने प्रोफेशन से एकदम अलग हो जाती हैं. वे अब 'विशअप' की मदद से अपने परिवार व बच्चों की देखभाल के साथ-साथ काम भी कर पा रही हैं. लिहाजा महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में भी 'विशअप' के योगदान को देखा जा सकता है.
एक लाइन में कहना हो तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी कि 'विशअप' बिज़नेस ओनर्स और सहायकों के बीच एक पुल काम काम कर रहा. साथ ही दोनों को जरूरत के हिसाब से विकल्प प्रदान कर रहा है.
क्या कहता है ‘विशअप’ का मास्टर प्लान!
अपने बिज़नेस के लिए नीलेश और विवेक ने एक मास्टर प्लान बनाया. इसके तहत उन्होंने समय अनुसार चार्ज करने के साथ ही सब्सक्रिप्शन आधारित चार्ज करना शुरू किया. इसमें उन्होंने मासिक, सालाना, छमाही आदि के हिसाब से सब्सक्रिप्शन देना शुरू किया. ऐसा करने से उनका काम काफी हद तक व्यवस्थित हो गया. कंपनी खुद सहायकों को ट्रेन और हायर करती है.
इसके लिए वह उन्हें मासिक आय भी देती है. दूसरी कंपनी और सहायक के बीच बेहतर संवाद के लिए चैट आधारित मोबाइल एप और वेब एप मौजूद हैं. इससे इन लोगों के बीच किसी भी प्रकार का कम्युनिकेशन गैप नहीं आता.
नीलेश बताते हैं बेंगलुरु के तुलना में दिल्ली में टेक टैलेंट ढूंढना ज्यादा कठिन है. इसके बावजूद आज ये लोग 15 लोगों की टीम है, जो मार्केटिंग और सेल्स, टेक्नोलॉजी से लेकर रिक्रूटमेंट सब खुद ही देखते हैं. ये अपनी टेक्नोलॉजी (यूजर इंटरफ़ेस और यूजर एक्सपीरियंस) को कॉलेज इंटर्न की मदद के साथ बानाते और उसमें सुधार लाते हैं.
सोशल मीडिया इसमें एक अहम किरदार में है. इसके लिए कंपनी ने हमेशा इसे अहमियत दी है. आज ज्यादातर उद्यमी अपना समय इन प्लेटफॉर्म्स पर व्यतीत करते हैं. ऐसे में कंपनी का इस प्लेटफार्म पर मौजूद होना जरुरी है.
आज विशअप एक मुनाफे में जा रही कंपनी है, जो अब यूरोप से लेकर अमेरिका के मार्केट में भी अपनी सर्विस देने पर विचार कर रहा है. आज कंपनी अपने शुरुआती दिनों की तुलना में कई गुना बेहतर हो चुकी है.
नीलेश बताते हैं कि इस सफर में कई ऐसे मौके जाए, जब उन्हें लगा कि उन्हें कुछ और देखना चाहिए. किन्तु, इन परिस्थितियों में उनके दोस्त विवेक हमेशा उनकी ढाल बनकर खड़े रहे. उन्होंने तन-मन और धन से हर रास्ते पर नीलेश को बल दिया.
नतीजा सबके सामने है. वह अब कह सकते हैं कि वे सही दिशा में आगे बढ़ रहें हैं!
ईश्वर सबको नीलेश और विवेक जैसे दोस्त दे, ताकि उनकी ही तरह हम सब भी सफलता की ऐसी ही प्रेरक कहानी गढ़ सकें.
Web Title: Wishup Company Is Becoming A Bridge Between Corporates And Youth, Hindi Article
Feature Image Credit: Bangalore