हिंदू पौराणिक कहानियों के अनुसार, प्राचीन समय में दो दैत्य थे. एक का नाम था आतापी और दूसरा था वातापी. वैसे रिश्ते में दोनों भाई थे.
माना जाता है कि आतापी के पास बुहत सारा धन था. जो इसने अपनी आसुरी शक्तियों से इकट्ठा किया था. आतापी और वातापी दोनों ही शक्तिशाली मायावी राक्षस थे. दोनों के पास आसुरी शक्तियां थीं.
आतापी के पास ये शक्ति थी कि वह जिस किसी भी मरे हुए व्यक्ति को आवाज लगाता, वह जीवित हो उठता. वह दोबारा से वही पुराना शरीर धारण कर प्रकट हो जाता. वहीं, वातापि किसी का भी रूप धरने में समर्थ था. वह जब चाहे हाथी, बैल, बकरा इत्यादि बन सकता था.
एक रोज अपने अहंकार में चूर निशाचर आतापी ने एक तपस्वी ब्राह्मण से इंद्र के समान पराक्रमी पुत्र मांगा. ब्राह्मण ने ऐसा करने से मना कर दिया.
तभी से इन दैत्यों ने महात्माओं की हत्या करनी शुरू कर दी.
ऐसे में आइए इस पौराणिक घटना को जानते हैं –
निर्दयी और बेहसी था मारने का तरीका
हिन्दुओं के प्रमुख और आदि काव्य ग्रंथ महाभारत के वनपर्व भाग के तीर्थयात्रा पर्व में छियानवेवां अध्याय "इल्वल और वातापी का वर्णन" कहता है कि मणिमती नगर में रहने वाले निशाचर इल्वल का ही दूसरा नाम था आतापी. इसी का छोटा भाई था वातापी.
आतापी और वातापी का लोगों को मारने का तरीका बड़ा ही विचित्र था. वह महात्मा-बाह्मणों को अपने यहां भोजन, सादर-सत्कार का निमंत्रण दे आते.
जब महात्मा लोग उनके यहां भोजन निमंत्रण पाकर आ जाते, तो बड़ा भाई छोटे भाई को काटकर भोजन बना देता. भोजन कई प्रकार के स्वाद और व्यंजनों से पकाया गया होता था.
विभिन्न प्रकार के उत्तम और स्वादिष्ट पकवानों को ग्रहण कर जब तृप्त महात्मा अपने घरों की ओर प्रस्थान करते, तो आतापी उन्हें कुछ दान-दक्षिणा भी दे देता.
वे महात्मा इन राक्षसों के घर से निकलते, तभी बड़ा भाई छोटे भाई को आवाज लगाता.
वातापी... अरे ओ वातापी... बाहर आओ.
और आतापी की आवाज सुनकर वातापी महात्माओं के पेट को फाड़ कर बाहर निकल आता.
फिर आतापी-वातापी मरने वाले महात्माओं को बड़ी तसल्ली बख्श तरीके से बैठकर खाते. कुछ को ये निशाचर ताजा ही खा जाते और कुछ को तल भूनकर स्वादानुसार. बाकी बचे खुचे महात्माओं को ये सुखाकर रख लेते थे.
इस तरह से इन निशाचरों के पूरे परिवार का पोषण हो जाता था. कई दिनों के खाने की वयवस्था हो जाती थी.
इसी प्रकार का छल उन्होंने महर्षि अगस्त के साथ किया.
जब आतापी के पास पहुंचे महर्षि अगस्त्य
सप्तर्षियों में से एक वैदिक ॠषि महर्षि अगस्त्य वशिष्ठ मुनि के बड़े भाई थे.
महर्षि अगस्त्य ने कई बार इस धरती को दैत्यों, राक्षसों और निशाचरों से मुक्त किया है. एक बार, समुद्री राक्षसों के अत्याचार से देवताओं को छुटकारा दिलाने के लिए इन्होंने पूरा समुद्र पी लिया था. हालांकि इस बारे में हम अगले लेख में बात करेंगे.
महाभारत के वनपर्व भाग के तीर्थयात्रा पर्व में अट्ठानवेंवां अध्याय कहता है कि अगस्त्य मुनि को एक बार धन की आवश्यकता पड़ी. विदर्भ नरेश की पुत्री लोपामुद्रा से विवाह के पश्चात ऋषि अगस्त्य धन प्राप्ति के लिए निकल पड़े.
ऋषिवर सबसे पहले सभी राजाओं में वैभवसंपन्न महाराजा श्रुतर्वा के पास गए. श्रुतर्वा ने उनके समझ अपना आय-व्यय का पूरा ब्यौरा रख दिया. ऋषिवर ने ब्यौरे को देख धन का अभाव समझ कुछ भी लेने को मना कर दिया.
इसके बाद वह राजा श्रुतर्वा के साथ राजा ब्रध्नश्व के पास पहुंचे. यहां भी कुछ ऐसा ही हाल हुआ.
इसके बाद ऋषिवर दोनों राजाओं के साथ महाधनी राजा त्रसदस्यु के पास गए, लेकिन इनके पास भी ऋषिवर को देने के लिए पर्याप्त धन नहीं था.
तब इन तीनों राजाओं ने अगस्त्य जी को बताया कि आपकी धन की इच्छा को यहीं पास में रहने वाला बड़ा धनवान दैत्य इल्वल पूरी कर सकता है.
चूंकि, अगस्त्य मुनि को तत्काल धन की आवश्यकता थी, सो सभी लोगों ने इस असुर के पास जाना ही बेहतर समझा.
आतापी ने किया छल
महाभारत के वनपर्व भाग के तीर्थयात्रा पर्व में निन्यानवेवां अध्याय "अगस्त्य जी का इल्वल के यहां धन के लिए जाना, आतापी और वातापी का वध" के अनुसार, ऋषि अगस्त्य तीनों राजाओं संग निशाचर के राज्य पहुंचे. जहां आतापी ने अपने मंत्रियों संग इनका आदर सत्कार किया.
आतापी और वातापी ने आसुरी शक्तियों का चोला ओढ़कर महर्षि अगस्त को दावत का निमंत्रण दिया. बहरहाल, महर्षि अगस्त भोजन के निमंत्रण पर उनके कक्ष में आ पहुंचे.
आतापी अपने शिकार को देख बहुत खुश था और उसने अपने छोटे भाई को उसी तरह से मारकर उसका स्वादिष्ट पकवान तैयार किया.
भोजन ग्रहण करने के बाद जब ऋषिवर उठने को थे, तभी आतापी ने महर्षि अगस्त के पेट में बैठे छोटे भाई को आवाज दी. वातापी… अरे ओ वातापी…. बाहर आओ.
काम न आईं आसुरी शक्तियां
इससे पहले कि आवाज सुनकर छोटा भाई पेट से बाहर निकलता, महर्षि अगस्त के पेट में कुछ हलचल हुई. उन्होंने अपने तपोबल से देखा, तो पता चला कि राक्षस पेट के भीतर ही मौजूद है.
महर्षि ने तुरंत ही अपने कमण्डल से जल लिया, उसे बाहर छिड़ककर अपने पेट पर हाथ फेरा.
आतापी की आवाज का कोई भी असर वहां नहीं हुआ. इसी प्रकार आतापी ने दोबारा से अपने भाई का नाम पुकारा. तब ऋषि अगस्त्य ने कहा कि तुम जिसे आवाज दे रहे हो, उसे तो मैं पचा गया हूं. अब वह कैसे निकल सकता है.
वातापी को मरा जान आतापी ऋषि अगस्त्य के चरणों में लेट गया और उनसे अपने राज्य आने का कारण पूछा. तब अगस्त्य मुनि ने धन देने के लिए कहा.
आतापी भी कोई निर्धन नहीं था, सो उसने तीनों राजाओं को गाय, घोड़े और बहुत सारा धन दिया. उससे भी ज्यादा धन, एक सोने के रथ के साथ ऋषि अगस्त्य को दिया.
धन प्राप्ति के बाद तीनों राजा ऋषिवर के साथ रथ पर सवार होकर आश्रम की ओर निकल पड़े.
आतापी वातापी की मौत से दुखी था. बदला लेने के लिए वह अगस्त्य मुनि को मारने उनके पीछे चल दिया. इससे पहले कि वह कुछ कर पाता, अगस्त्य मुनि ने उसे अपनी हुंकार से ही खत्म कर दिया.
इस तरह से महात्माओं को खा जाने वाले मायावी दैत्य आतापी और वातापी का खात्मा हुआ.
Web Title: Fate of Demon Brothers Atapi And Vatapi, Hindi Article
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