राजा नल!
हिंदू पौराणिक कथाओं में दर्ज एक ऐसा चरित्र, जो राजकुमारी दमयंती के बिना अधूरा है. जहां राजा नल अपनी वीरता, उदारता और पाक कौशल के लिए जाने जाते हैं, वहीं राजकुमारी दमयंती अपनी सौदर्यता के लिए. कहते हैं वह इतनी ज्यादा सुंदर थीं कि देवता भी उनसे शादी करना चाहते थे.
दोनों का जिक्र महाभारत में भी मिलता है. मान्यता है कि जब धर्मराज युधिष्ठिर को जुए में अपना सब-कुछ हार कर अपने भाईयों के साथ वनवास काट रहे थे, तब एक ऋषि ने उन्हें नल और दमयंती की ही कथा सुनाई थी. वह इसलिए क्योंकि उनकी तरह नल भी 'जुआ' खेलने के शौकीन थे!
खैर, आज कहानी नल-दमयंती के उस रिश्ते की, जिसके लिए वह आज भी लोककथाओं में जीवित हैं-
बिन मिले ही दे बैठे थे एक-दूजे को दिल!
नल-दमयंती की कहानी शुरु होती है निषध से. नल यहां के राजा हुआ करते थे. तमाम गुणों के होने के बावजूद वह शादी के बंधन में नहीं बंधे थे. इस दौरान उनके कानों तक विदर्भ नरेश की पुत्री दमयन्ती का नाम पहुंचा. चारों तरफ उनके यौवन और सुंदरता के चर्चे थे. दूसरी तरफ विदर्भ में राजा नल के गुणों के किस्से आम थे. ऐसे में दोनों के मन में पारस्परिक आकर्षण लाजमी था. किन्तु, समस्या यह थी कि आखिर दोनों मिले कैसे!
प्रचलित कथा की माने तो इसी सवाल के जवाब में एक दिन राजा नल अपने बगीचे में टहल रहे थे. तभी अचानक उन्हें एक हंस अच्छा लगा और उन्होंने उसे पकड़ लिया. हंस ने नल से निवेदन किया कि वह उसे छोड़ दें. इसके बदले वह राजकुमारी दमयंती के पास जाकर उनके गुणों का बखान करेगा. इससे दमयंती को पाने में उन्हें मदद मिल सकती है.
चूंकि, बात दमयंती तक अपने प्रेम संदेश को पहुंचाने की थी, इसलिए नल तुरंत मान गए. आगे उन्होंने बिल्कुल ऐसा ही किया. विदर्भ पहुंचने पर उन्होंने दमयंती को राजा नल के बारे में बताया. साथ ही उनका दिल खोलकर दमयंती के सामने रख दिया.
यह सुनकर दमयंती राजा नल के बारे में सोचने लगी. कहते हैं कि नल के लिए उनके अंदर आसक्ति इतनी बढ़ गयी थी कि वह रात-दिन उनका ही ध्यान करती रहती. इससे उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता चला जा रहा था. यह देखकर उनके पिता चिंतित हुए. चिकित्सकों से सलाह मशवरा करने के उन्होंने तय किया कि वह अपनी बेटी दमयंती की शादी करेंगे!
इंद्र ने मुश्किल कर दिया था मिलन मगर...
जल्द ही दमयंती के पिता ने उनके लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया. इसमें आज-पास के सभी राजाओं को बुलावा भेजा गया.
कहते हैं यह आमंत्रण पाकर देवराज इंद्र भी विदर्भ के लिए रवाना हो गए थे. यही नहीं उन्होंने राजा नल से कहा था कि वह उनके दूत बनकर दमयंती के पास जाए, और कहें कि वह उनसे विवाह कर लें. बहरहाल, अपना दिल दमयंती पर पहले ही हार चुके राजा नल कहां मानने वाले थे.
उन्होंने इंद्र से कहा भगवन् यह संभव नहीं है. मैं पहले ही दमयंती को अपनी पत्नी मान चुका हूं!
इस तरह आखिरकार वह दमयंती के स्वयंवर में जा ही पहुंचे. किन्तु परेशानी यहीं खत्म नहीं हुई थी. जैसे ही वह सभागार में पहुंचे, उन्होंने देखा कि कई सारे लोग उनका रूप धारण कर खड़े हुए हैं. ये लोग कोई और नहीं इंद्र के साथ दूसरे देवता गण थे. ऐसे में असली नल को पहचानना आसान नहीं था.
पर कहते हैं न कि प्यार की डगर में ऐसी परेशानियों की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती. दमयंती बिल्कुल भी परेशान नहीं हुईं. उन्होंने असली नल को पहचान लिया. साथ ही उन्हें अपना जीवनसाथी चुना. अगली कड़ी में दमयंती निषध पहुंचती हैं और नल के साथ सुखमय वैवाहिक जीवन शुरु करती हैं.
खैर, वक्त कैसा भी हो, अच्छा हो या बुरा वक्त का काम होता है बदल जाना, इसलिए वह बदल ही जाता है. दमयंती और नल के जीवन में भी वक्त ने अपनी करवट ली. ऐसी करवट, जिससे दोनों की जिंदगी बेपटरी हो गई!
'जुए' की लत ने दोनों को जुदा किया, लेकिन
तमाम गुणों के बावजूद राजा नल के अंदर के 'जुआ' खेलने जैसा बड़ा दुर्गुण भी था. इसी के चलते एक बार वह अपने भाई पुष्कर के साथ इसका आनंद लेने के लिए पहुंच गए. इसी क्रम में एक पल ऐसा आया, जब वह अपना सोना, चाँदी, रथ, राजपाट सब हार चुके थे.
नतीजा यह रहा कि उन्हें अपने राज्य से बाहर जाना पड़ा. ऐसे में दमयंती उनकी हमराही बनीं. उनकी स्थिति दयनीय थी. वह यहां-वहां अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे. इस बीच एक दिन नल की नजर सोने के पंख वाले पक्षी पर पड़ी. उन्हें देखते ही उनके मन में ख्याल आया कि अगर वह इनको पकड़ लेते हैं, तो आगे की राह आसान हो सकती है. हालांकि, वह इसमें सफल नहीं हो सके.
आगे हालात और ज्यादा बिगड़ते चले गए. नल खुद के लिए ज्यादा परेशान नहीं थे. उन्हें दमयंती की चिंता खाए जा रही थी. इसके हल के लिए उन्होंने तय किया कि वह दमयंती को अकेला छोड़कर चले जाएंगे. ऐसी स्थिति में शायद दमयंती अपने पिता के घर लौट जाएं. आगे उन्होंने ऐसा ही किया. एक दिन वह दमयंती को अकेला सोता हुआ छोड़ चले गए. जब दमयंती की आंखें खुलीं, तो वह विलाप करने लगीं.
उन्होंने राजा नल को यहां-वहां बहुत ढ़ूढ़ा, मगर वह नहीं मिले.
अंतत: उन्होंने खुद को अजगर का आहार बनाने की कोशिश की, तभी वहां से गुजर रहे एक व्याध ने उनकी रक्षा की. हालांकि, अगले ही पल वह उनके यौवन को देकर काम भावना से भर उठा. इसके तहत उसने जबरन उन्हें पाने की कोशिश की. ऐसे में दमयंती ने उन्हें शाप देखकर मृत्युदंड दे दिया.
आगे की कहानी में वह अपने पिता के पास पहुंचने में सफल रहीं. साथ ही अपने प्रभाव से राजा नल के सभी दुःखो का अंत करने में सफल रहीं.
दोनों के प्यार ने उन्हें फिर से मिलाया और उनकी प्रेम कहानी अमर हो गई.
Web Title: Love Story of Nala Damyanti, Hindi Article
Feature Image Credit: Wikipedia