ऐसे कई महान लोग हुए हैं, जिनका सुयश दुनियाभर में फैला. उनके विचारों व कार्यों ने मानव सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया. लाजमी है, दुनिया ऐसे महात्मा को चिरकाल तक याद करती है. लेकिन ऐसा एक दानव भी है, जिसने भारत श्रीलंका सहित अमेरिका तक लोगों को प्रभावित ही नहीं किया, बल्कि सभ्यता तक की स्थापना कर दी.
बता दें कि यही दानव रावण का ससुर था और इसी ने महाभारत काल में इंद्रप्रस्थ की रचना की थी. इतना ही नहीं, अमेरिकी माया सभ्यता की स्थापना करने वाला भी इसी को माना जाता है. ये दानव और कोई नहीं बल्कि मायादानव है, जिसे मायासुर, मयासुर व मयदानव भी कहा गया है. ये उसी माया सभ्यता का जनक है जिसका जिक्र आए दिन मीडिया में होता रहता है.
माया सभ्यता जब भी ख़बरों में आती है. एक डर का माहौल बनने लगता है. उसके कैलेंडर और रहस्यों की बातें चौंकाने वाली हैं. असल में दुनिया के विनाश की तारीख माया कैलेंडर में दी हुई है, जोकि आज भी दुनिया को भयाक्रांत कर देती है.
तो आइए पहले उस अमेरिकी सभ्यता के बारे में जानते हैं जिसे मायादानव ने बसाया था.
मायादानव का अमेरिका कनेक्शन!
मायादानव के पास दिव्य शक्तियां थी और उसे दक्षिण अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता का जनक कहा जाता है. माया सभ्यता में लोगों के पास जैसी शक्तियां थी वे मायासुर से मिलती-जुलती हैं.
बताया जाता है कि अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता ग्वाटेमाला, मैक्सिको, होंडुरास तथा यूकाटन प्रायद्वीप में अवस्थित थी. इसका अंत सोलहवीं शताब्दी में हो गया, लेकिन इसके अंत के कारण का पता अभी तक नहीं चल पाया है.
गौरतलब है कि माया सभ्यता की जो शासन व्यवस्था थी, वह भी भारतीय राजशाही से मिलती-जुलती है. लिहाजा इसके तार भारतीय उपमहाद्वीप से जुड़े बताए जा रहे हैं. इसके बारे में जो खोजें हो रही हैं, वे भी इस जानकारी पर मुहर लगाती हैं.
ये माना जाने लगा है कि वास्तुशिल्प में पारंगत मायादानव ने ही अमेरिका के प्राचीन खंडहर बनाए हैं. अमेरिका में शिव, गणेश, नरसिंह आदि देवताओं की मूर्तियां तथा शिलालेख आदि के मिलने से इस बात को और भी बल मिला है.
भिक्षु चमनलाल की पुस्तक 'हिन्दू अमेरिका' में इन बातों को चित्रों सहित बताया गया है. एक राक्षस होते हुए भी मायादानव ने जो काम किया, वो वाकई चकित करता है. माया सभ्यता के बारे में अनुसंधान चल रहा है और अनेक सत्य सामने आने बाकी हैं!
बहरहाल, अब हम लंका की ओर रुख करते हैं!
मायादानव ही था मंदोदरी का पिता
रामायण के उत्तरकांड में बताया गया है कि मायादानव, कश्यप ऋषि व दिति से उत्पन्न हुआ था. यह बेहद ही प्रतिभावान और विषयों का ज्ञाता था. इसकी प्रतिभा का ही प्रताप था कि अप्सरा हेमा और रंभा इसकी पत्नियां थी.
इनसे मायादानव को पांच पुत्र तथा तीन कन्या की प्राप्ति हुई थी.
मंदोदरी अप्सरा हेमा की पुत्री थी. लिहाजा वह बेहद खूबसूरत थी. रावण का विवाहपूर्व भी मायादानव के यहां आना-जाना था. कहा जाता है कि लंकानगरी की भव्यता में मायादानव का भी योगदान हुआ करता था.
इसी सिलसिले में जब रावण की नजर मायादानव की पुत्री मंदोदरी पर पड़ी तो वो मोहित हो गया.
मंदोदरी से विवाह के बाद तो लंकाधिपति रावण का मायादानव से संबध हो गया. मायादानव को असुरों का विश्वकर्मा भी कहा जाता है. इसे ब्रह्मा जी से शक्ति मिली थी और वह कहीं भी मनमोहक व सुंदर नगर बसा सकता था. कई जगह इस बात का उल्लेख मिलता है कि सोने की लंका की खूबसूरती में रावण के ससुर मायासुर के योगदान को नकारा नहीं जा सकता.
इस बात के भी कयास हैं कि ‘धरती से लेकर स्वर्ग तक सीढ़ी’ के निर्माण को लेकर रावण की जो परिकल्पना अधूरी रह गई, उसमें मायादानव की भूमिका हो सकती थी.
या यूं कहें कि अपने ससुर मायादानव की प्रतिभा से अभिभूत रावण ने ऐसी परिकल्पना कर रखी थी.
वास्तुशास्त्र व खगोलशास्त्र में था प्रवीण
मायादानव को त्रिपुरा के निर्माण के लिए भी जाना जाता है, जिसे भगवान शिव ने नष्ट कर दिया था. दरअसल, इसने तारकासुर के लिए तीन भव्य नगर का निर्माण किया था जो सोने, चांदी और लोहे के बने थे.
तारकासुर ने ये तीनों राज्य बेटों तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युनमाली को दे दिए थे.
कहा जाता है कि जब दैत्यराज वृषपर्वन यज्ञ कर रहे थे तभी बिंदुसरोवर के निकट मयासुर ने अद्भुत सभाकक्ष का निर्माण कर प्रसिद्धी बटोरी थी. वास्तुशास्त्र के साथ ही मायासुर ज्योतिष विद्या के आचार्य रूप में समादृत था.
खगोलशास्त्र के क्षेत्र में तो इसने 'सूर्य सिद्धांतम' की रचना कर सबको उपकृत किया. कहा जाता है कि उसने ये विद्या स्वयं सूर्य देव से ही सीख राखी थी.
आज भी इसके द्वारा दिए सिद्धांत खगोलीय ज्योतिष से जुड़ी भविष्यवाणी करने में सहायता प्रदान करते हैं.
द्वापर में श्रीकृष्ण ने दिया ये कार्य
महाभारत काल में अज्ञातवास के बाद जब पांडवों को खांडव वन का भाग दिया गया तो अर्जुन ने वन को जलाने की ठानी. उस वन में मायादानव का वास था जिसे अर्जुन ने जीवनदान दे दिया. इसके बाद से ही वह अर्जुन के उपकार तले दब गया.
उसने अर्जुन से प्राणरक्षा के बदले सेवा करने की लालसा प्रकट की. अर्जुन ने उसे भगवान श्रीकृष्ण की सेवा करने की बात कही. भगवान श्रीकृष्ण मायादानव की कलाकारी से भलीभांति परिचित थे. उन्होंने उसे इन्द्रप्रस्थ के निर्माण का जिम्मा दे दिया.
मायादानव ने श्रीकृष्ण की आज्ञा मानते हुए अद्वितीय नगर का निर्माण कर डाला. साथ में एक दिव्य राजमहल भी बनाया जो कि इन्द्रपुरी से मिलता-जुलता था. उसने अपनी माया और वास्तुकला का अद्भुत नमूना पेश किया.
जिसे देखकर सभी राजा-महाराजा दंग रह गए. यहां तक कि दुर्योधन भी इस महल की ओर लालच से देखने लगा.
...इसलिए चिरकाल तक रहा जीवित
अब सवाल ये उठता है कि आखिर एक दानव इतने समय तक कैसे जीवित रह सकता है. पुराणों के अनुसार राजा बलि रसातल के अधिपति हैं तो मय दानव तलातल के राजा हैं.
तलातल का अधिपति मायादानव चिरायु है इसलिए इसका उल्लेख विभिन्न कालखंडों में हुआ है. इसे मेरठ, मंदसौर और मैसूर से भी जोड़ा जाता है. बताया जाता है कि इन जगहों पर इसके छाप आज भी मौजूद हैं.
अगर आपके पास मायादानव से जुड़ी और जानकारी हो तो कृपया कमेंट कर बताएं ताकि हम शीघ्र इस पर अपने अन्य आलेख में प्रकाश दे सकते हैं.
Web Title: Story of Mahishasura, Hindi Article
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