मणिपुर विधानसभा चुनाव बीजेपी बनाम कांग्रेस ही देखने को मिला. इसके साथ ही ‘आयरन लेडी’ के नाम से मशहूर ‘इरोम शर्मिला’ भी अपनी पार्टी ‘पीपुल्स रिसर्जेस एंड जस्टिस अलायंस’का गठन कर चुनाव में उतरीं, लेकिन उनका जादू नहीं चला. उन्हें कांग्रेस के इबोबी सिंह ने हरा दिया. हालाँकि, किसी भी दल को वहां पूर्ण बहुमत नहीं मिला, पर बीजेपी सहयोगियों की मदद लेकर यहां सरकार बनाने की कोशिश में आगे निकलती दिख रही है. वह कितना सफल होती है, यह तो वक्त बताएगा. फिलहाल हम इस चुनाव के घटनाक्रम पर एक नज़र डाल लेते हैं:
इरोम को मिले सिर्फ़ 90 वोट
इस चुनाव में खास बात यह रही कि सेना को प्राप्त सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा) का 16 सालों तक अनशन करने वाली ईरोम चानू शर्मिला ने भी विधानसभा चुनाव लड़ा. मणिपुर विधानसभा चुनाव में तीन बार से कांग्रेस मुख्यमंत्री ओक्रम इबोबी सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने वाली इरोम शर्मीला चनू को केवल 90 वोट मिले हैं. थोउबाल सीट पर कांग्रेस के ओक्रम इबोबी सिंह ने 18649 वोट के साथ जीत दर्ज की है. इनके बाद
दूसरे नंबर पर रहे भारतीय जनता पार्टी के लैतानथेम बसन्ता सिंह को 8179 वोट मिले हैं. तीसरे नंबर पर ऑल इण्डिया तृणमूल कांग्रेस के लैतानथेम सुरेश सिंह रहे, जिन्हें 144 वोट मिले हैं. वहीं चौथे स्थान पर इरोम शर्मीला रहीं.
इरोम शर्मीला ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम के खिलाफ 16 साल तक भूख हड़ताल की थी. भूख हड़ताल खत्म करने के बाद इरोम शर्मीला राजनीति में उतर आई थीं. आयरन लेडी कहलाने वाली इरोम शर्मिला ने जब अपनी भूख हड़ताल खत्म की थी तो उन्हें काफी आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा था. एक वरिष्ठ साहित्यकार ने फेसबुक पर इरोम की हार को कुछ हूँ व्यक्त किया-
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों का सबसे दुःखद पहलु मणिपुर में वर्षों से आंदोलन करने वाली इरोम शर्मिला की हार नहीं, बल्कि मात्र 90 वोट प्राप्त करने माना जा रहा है. इस स्थिति के लिए वहां के मतदाताओं को संवेदनहीन और नासमझ तक बताया जा रहा है, लेकिन हमें यह विचार करना चाहिए आखिर सामाजिक कार्यकर्ता क्यों हारते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं जिन लोगों ने सामाजिक बदलाव और भ्रष्टाचार के विरूद्ध आंदोलन के लहरों पर सवार होकर सत्ता प्राप्त की वे कसौटी पर खरे नहीं उतरे! क्या मतदाता उन सामाजिक कार्यकर्ताओं के आचरण से संतुष्ट हैं, जो पहले राजनीति में आये हैं? मतदाताओं ने इन लोगों से जिस आदर्श आचरण की अपेक्षा की थी क्या वे ऐसा कर सके? प्रश्न एक व्यक्ति की हार या जीत का नहीं बल्कि भविष्य की राजनीति का भी है.
Assembly Elections Manipur (Pic: apherald.com)
पहली बार भाजपा सबसे मजबूत
मणिपुर विधानसभा चुनाव में भाजपा बेहद मजबूत दिखी है और इस पूर्वोत्तर राज्य में यह पहली बार दिखा है. मणिपुर में 21 सीटें जीतने वाली भाजपा नगालैंड पीपुल्स पार्टी और नेशनल पीपुल्स पार्टी के चार-चार विधायकों और लोक जनशक्ति पार्टी के एक विधायक के समर्थन देने की वजह से 30 की संख्या तक पहुंचती दिख रही है. एक निर्दलीय विधायक के सहारे वह बहुमत के लिए जरूरी 31 की संख्या को हासिल करती दिख रही है.
बीजेपी ने इस पूर्वोत्तर के राज्य में जिस तरह से धुआंधार प्रचार किया है, उससे राजनैतिक विश्लेषकों से मणिपुर को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है. सूत्रों की मानें तो मणिपुर में बीजेपी सरकार के आसार हैं और इसके लिए बीजेपी सहयोगियों की मदद ले सकती है.
बहुमत हासिल करने के लिए कांग्रेस के पास 31 सीटें होनी जरूरी हैं. जो आती नहीं दिख रही है. ऐसे में भाजपा के पास एक मौका है सरकार बनाने का. ऐसा इसलिए क्योंकि इसकी जोर अजमाइश वह एक बार पहले भी कर चुकी है.
Assembly Elections Manipur (Pic: jagran.com)
राजनीति में उठा-पटक का दौर
मणिपुर विधानसभा के चुनाव परिणाम अब सामने हैं. साल 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 60 में से 42 सीटें जीत कर मणिपुर में रिकार्ड कायम किया था और मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सरकार बनायी थी, लेकिन सितंबर 2016 में कांग्रेस के 25 विधायक मुख्यमंत्री इबोबी सिंह के मंत्रिमंडल में बदलाव के लिए असंतुष्ट हो गए. उन्होंने आरोप लगाया कि इबोबी अपने मन की करते हैं और विधायकों की बात नहीं सुनते. मामला इतना बढ़ा कि बागी विधायकों ने भाजपा में शामिल होने तक की धमकी दे डाली थी. तब मणिपुर में कांग्रेस की सरकार गिरते गिरते बची थी. इस लिहाज से कांग्रेस हर हाल में इस चुनाव को पूर्ण बहुमत से जीतना चाहती थी, लेकिन वह सफल नहीं हो सकी. भाजपा ने इस चुनाव में उसे कड़ी टक्कर दी और सम्भवत कांग्रेस को सत्ता से दूर रहना पड़ेगा..
क्या रहा इस चुनाव में खास
मणिपुर के चुनावी दौर का हाल मणिपुर में विधानसभा चुनाव दो चरणों में 4 और 8 मार्च को कराए गए. प्रदेश में ओकराम इबोबी सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार है. मणिपुर में 60 विधानसभा सीटें हैं जिसमें से 34 आरक्षित हैं. 4 मार्च को पहले चरण का मतदान जहां 82 फीसदी हुआ था वहीं 8 मार्च यानी दूसरे चरण में 86 फीसदी मतदान हुआ था. पहले चरण के मतदान में विद्रोहियों के कैंप से भी वोट डाले गए थे. 2012 के बाद ये दूसरी बार है, जब इन कैंपों के लोग वोट डालने के लिए आगे आए थे. 2,794 पोलिंग बूथ बनाए गए जो 2012 में संपन्न कराए गए चुनाव से 20.1 फीसदी ज्यादा थे.
2012 में संपन्न कराए गए चुनावों में यहां कांग्रेस को 42, ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस को 7, लोक जनशक्ति पार्टी को 1, मणिपुर स्टेट कांग्रेस पार्टी को , नागा पीपुल्स फ्रंट को 5 और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी को 1 सीट मिली थी. मणिपुर में मौजूदा कांग्रेस की सरकार मियाद 18 मार्च 2017 को खत्म हो जाएगी.
पूर्वोत्तर के राज्यों को भाजपा का गढ़ नहीं माना जाता है, लेकिन मोदी फैक्टर की वजह से अब इन राज्यों में भी भाजपा का जनाधार बढ़ा है. जो भारतीय जनता पार्टी के लिए सकारात्मक परिणाम है. निश्चित तौर पर इस सीमान्त राज्य के चुनाव प्रभारी केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और जम्मू-कश्मीर और असम की सफलता के बाद पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव की सक्रियता को नहीं नकारा जा सकता. उम्मीद की जाना चाहिए कि आगामी दिनों में मणिपुर में को एक स्थाई सरकार मिलेगी, जिसमें किसी भी प्रकार की कोई उठा-पटक न दिखाई दे. तभी इस सीमान्त राज्य का सतत विकास संभव है.
Assembly Elections Manipur (Pic: ndtv.com)
Web Title: Assembly Elections in Manipur, Hindi Article
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