आज यहां जश्न का दिन है कॉमरेड … अरे! जानते नहीं क्या..?आज विजय दिवस है साथी. आज क्रांति की ढपली पर आजादी के गीत होंगे. अमेरिकन दारू की ताल होगी और साथ ही कॉमरेड पुष्पा का बिस्तर पर आजादी वाला डांस भी..
आज़ादी तो आखिर लेकर ही रहेंगे.. हम कामरेड कानू सान्याल और चारु मजूमदार का सपना सच करेंगे साथी.. देखना कैसे एक दिन दिल्ली में सरकार अपनी होगी.. तब न अमीर और अमीर होगा न गरीब और गरीब… सब बराबर कॉमरेड सब बराबर…. इस पूंजीवाद का सत्यानाश होकर रहेगा साथी..
लेकिन रुकिये जरा साहेब…. कामरेड की खुशी बाद में मनाइयेगा.. आइये न जरा यहां… देखिए न आज रो रहे हैं.. जिला बलिया सहतवार के परसुराम पांडे.. वो अभी खेतों से गेंहू दँवाकर लौटे ही थे.. गुड़िया अभी उनको गुड़ पानी ही दे रही रही थी कि बबुआ के मरने का समाचार आ गया जी..
अरे! गाजीपुर के पदारथ यादो को तो होश ही नहीं आ रहा.. एक ही बेटा था बबलुआ.. उसकी माई का रो-रोकर बुरा हाल है.. अरे! इसी महीने तो बबुआ की शादी थी न…. कितने सपने सजाये थे जब बबुआ भर्ती हुआ था कि पतोह आएगी तो जीवन भर का दुख मिटेगा.. लेकिन ई का हुआ ?.. पता चला कि उनके इकलौते बेटे को तो आज नक्सलियों ने मार दिया… एक पल में सारी खुशियां आज लाश बन गयीं. हाय! जीवन भर गरीबी देख चुकी उम्मीदों को जब सपनों के पर भी लगे तो उन्हें लाल आतंक खा गया..
अब तो कल इधर मुन्नी लाल के घर लाश आयेगी बेटे की. उनका बड़ा बेटा बीएसएफ में तैनात है वो भी काश्मीर में और छोटका कुछ ही महीने पहले सुकमा गया था…
उनकी बड़ी इज्जत होती थी गांव में कि अरे! “बरमा जी के दू-दू गो लइका आर्मी में बाड़े स ए भाई.. ..”लेकिन साहेब जमाना नहीं जानता था कि मुन्नी लाल और मुन्नी लाल के मेहरारु जब जब रात को सोते थे तो डीह बाबा काली माई से यही मनाते थे कि “हे बरम बाबा हमारा बबुआ लो के ठीके से राखब…”
“आज डीह बाबा काली माई ने का कर दिया…?कवन भूल चूक हो गया हे सांझा माई..”?
क्या कहूँ.. लिखते वक्त अभी हाथ कांप रहें हैं.. धैर्य मेरा जबाब दे रहा.. आंख गीली हो रही.. क्रोध के साथ दिल की धड़कन बढ़ रही.. अब किसको दोष दें..?मुन्नी लाल को कि वो अपने बेटे को फौज में भेजने की जगह जेएनयू क्यों न भेज सके..किसान होने के बदले नेता और पत्रकार क्यों न हो सके.. अनपढ़ की जगह बुद्धिजीवी क्यों न हो सके..
अरे ! अभी तीन-चार घण्टे बाद आईपीएल के हार-जीत के जश्न में हम मशगूल हो जाएंगे..राजनीतिक समीक्षक एमसीडी चुनाव का गुणा-भाग करेंगे. मोदी-मोदी खूब होगा….और 26 अप्रैल को भाजपा की प्रचण्ड जीत का जश्न मनाया जाएगा.. देखते ही देखते बुद्धिजीवियों के मन बहलाने लायक नया मुद्दा कोई मार्किट में लांच हो जाएगा.. बहस चलती रहेगी… लेकिन मुन्नीलाल परशुराम के आँशु और इस देश की समस्याएं जस की तस रहेंगी… हम फिर तब तक के लिए भूल जाएंगे जब तक कि दो-चार जवान और न मार दिये जाएं…
खैर लेकिन आपसे एक बात साझा करता हूँ…तभी इस समस्या का समाधान समझना आसान होगा….
आपको बताऊं.. अभी फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री ने एक फिल्म बनाई.. फिल्म का नाम था..”बुद्धा इन द ट्रैफिक जाम”. इस फिल्म में अनुपम खेर उस प्रोफेसर की भूमिका में हैं.. जो नक्सलियों को समझाता है कि
“तुम जंगल सँभालो हम दिल्ली सम्भालतें हैं…”
आधी हिन्दी और आधी अंग्रेजी में बनी ये पूरी फिल्म का ये एक डायलाग नक्सलवाद को समझने के लिए काफी है कि आखिर मकड़ी के जाल से भी अधिक घने जँगलों में इन्हें पैसा, बम, बन्दूक कौन दे रहा है..इनका ब्रेन वास किसके द्वारा किया जा रहा… कैसे भोले-भाले ग्रामीणों को जबरदस्ती उकसा कर नक्सली बनाया जा रहा.. नहीं तो उन्हें जान से मारा जा रहा.. उनकी माँ-बहनों का रेप किया जा रहा..
ये पूरी फिल्म नक्सलियों के फैले मकड़जाल को बड़ी बारिकी से पड़ताल करती है.. आप उस प्रोफेसर को देखने के बाद आसानी से समझ जाएंगे कि साईबाबा जैसा 90% विकलांग प्रोफेसर जब इतना खतरनाक हो सकता है… तो बाकी जिनके हाथ-पैर ठीक हैं उनका क्या हाल क्या होगा.. ?
यही कारण रहा कि इस फिल्म को दिखाने जब जादवपुर यूनिवर्सिटी में विवेक अग्निहोत्री पहुंचे तो “प्रतिरोध की संस्कृति” पर सेमिनार करने वाले लाल सियारों ने डंडे से मारकर उनके कार का शीशा तोड़ दिया..
मेरा निवेदन है भारत सरकार के कड़े निंदा वाले गृह मंत्री जी और सजिर्कल स्ट्राइक और नोटबन्दी वाले पीएम साब से कि इस देश से नक्सलवाद और अलगाववाद तब तक खत्म नहीं होगा.. जब तक कि इनके जड़ पर प्रहार नहीं होता.. आप बौराये पेड़ की टहनी को काट देने से थोड़े समय के लिए ही मुक्ति पा सकते हैं… आपको जड़ों पर वार करना ही पड़ेगा..
इन विश्वविद्यालयों और अकादमियों में कामरेड नेहरु की कॄपा से जो बैठे हैं..दरअसल ये भी नक्सली ही हैं.. एक समझौते के अंतर्गत अंतर बस इतना ही है कि इनके हाथ मे बन्दूक की जगह कलम.. और बम की जगह किताबे हैं.. वो जंगलों में जवानों को मार रहे हैं औऱ ये विश्वविद्यालयों में वैचारिक जेहादी पैदा करके जंगल वालों को वैचारिक-आर्थिक खाद पानी दे रहें हैं
( जवानों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि के साथ )
Naxalite Attack in Chhattisgarh Today (Pic: zeenews)
Web Title: Naxalite Attack in Chhattisgarh Today, Role of Universities
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