स्नैपचैट के सीईओ साहेब ने भारत को गरीब क्या कहा. हमारे देश के नेटवीर रणबांकुरों ने उनकी ऐसी लंका लगाई कि उनकी सात पुश्तें अब याद रखेंगीं कि भारत किसी एंगल से गरीब नहीं है. इसकी आर्थिक समृद्धि का आलम ये है कि स्नैपडील और स्नैपचैट में अंतर न करने वाले लौंडे भी अर्थ शास्त्र पर लमहर-चाकर शोध प्रबंध बांच सकतें हैं.. और ये बता सकतें हैं कि दुनिया के चिंटू-पिंटू टाइप देश अपनी औकात में रहें.
इस देश का एक आम आदमी नास्ते में एक करोड़ का समोसा खा जाता है… और जमीन से जुड़ा आदमी खाने में पशुओं का चारा खाकर, मिट्टी भी खाने की क्षमता रखता है… और तो और इस देश के एक राष्ट्रीय किसान को आज तक पता ही नहीं कि उसके कितने बीघे खेत में पुदीने की फ़सल लहलहा रही है…
सो इन कारणों से कोई भारत को गरीब कहने की हिम्मत न करे, वरना उसका वही हाल होगा जो प्ले स्टोर में स्नैपचैट का हुआ है… ध्यान रहे कि जितना और देशों का सालाना बजट होता होगा उतना तो लौंडे हमारे रजनीगंधा और पानपराग खाकर किसी पिंकिया के इंतजार में सुरतिया देवी इंटर कालेज के सामने थूक देते हैं…
अरे हम सात महीने से अनलिमिटेड 4G यूज करने वाले देश से आते हैं… जितना हमने फ़्री में सनी लियोन का हऊ वाला hd डाउनलोड किया होगा न, उतना डाटा कीसी देश में पैसे देकर भी नसीब नहीं होगा…
स्नैपचैट को पता नहीं कि भारत अमीर न होता तो टोरेंट वाले आज कटोरा लेकर झाँझा रेलवे स्टेशन के सामने भीख मांग रहे होते.. अभी ए राजा और सुरेश कालमाड़ी के गुणों की बखान कर दें तों सारी अमीरी का भूत एक मिनट में उतर जाएगा… इसलिए मुद्दे पर आ जाते हैं..
कल सुबह हम देर से उठे… ट्वीटर खोले तो देखा कि सुबह की शुरुवात सोनू निगम के अज़ान से हो गयी है… बन्दे कि नींद क्या टूटी… उसने तो ट्वीटर बम से समूचे कम्युनल, लिबरल और सेक्युलर टाइप जीवों की नींद उड़ा दिया है… दिन भर मोदी-योगी भजन करने वाली मीडिया आज सोनू निगम का जाप कर रही है… “लाउडस्पीकर पहले आया या धर्म” ये सवाल “मुर्गी पहले आया या अंडा’ टाइप क्लास टू के वाला सवाल जैसा लगने लगा है……
खैर, दिन चढ़ने के साथ बहस चढ़ती-उतरती रही.. देश के कुछ जमीन से उखड़ते बुद्धिजीवी अपने एजेंडे में रंगने लगे.. उनका छद्म सेक्युलरवाद जागने लगा. मानों किसी को नमाज़ पढ़ने से रोका जा रहा हो..
कुछ ही देर में मौलाना लोग न्यूज चैनलों के केबिन में आ गए.. मानों आज कयामत का दिन हो…
औऱ देखते ही देखते हमेशा खतरे में रहने वाला एक धर्म थोड़ा और खतरे में आ गया.. उन्हीं में से कुछ लोगों द्वारा सोनू निगम को घटिया और औसत गायक बताया जाने लगा.. तो इधर सरस्वती पूजा में दिन भर गुड्डू रँगीला वाला “देबू की ना देबू” टाइप डीजे बजाकर पूजा करने वाले वाले भक्तों के लिए सोनू निगम नये हिन्दू हृदय सम्राट हो गए…
मेरा काशी में बसा मन अपने कबीर दास जी को याद करने लगा… सोचने लगा कि अच्छा हुआ बाबा सोशल मीडिया के पहले ही चल बसे.. उनके जमाने मे ट्वीटर नहीं हुआ… वरना बाबा की संतता और आध्यात्मिक ऊँचाई को तो ये लोग एक झटके में खारिज कर देते.. जब बाबा अपना ये दोहा ट्वीट करते..
“कंकड़ पत्थर जोड़ के मस्जिद लियो बनाय
ता चढ़ मुल्ला बांग दे क्या बहिरा हुआ खुदाय”
कई हिन्दू हॄदय सम्राट उन्हें पागल घोषित कर देते… जब वो एक दिन उकता कर कह देते…
पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजू पहाड़ !
घर की चाकी कोई ना पूजे, जाको पीस खाए संसार”
Sonu Nigam and Loudspeaker, Temple Loudspeaker (Pic: indianexpress)
अच्छा छोड़िए ई सब… मेरे कमरे में अभी नुशरत फतेह अली खान बज रहे हैं… शायद सोनू निगम की तरह चचा को भी कुछ लोग चैन से सोने नहीं देते थे.. तभी वो बड़े झल्ला के गा रहे हैं…
“नींद तो दर्द के बिस्तर पर भी आ सकती है
उनकी आगोश में सर हो ये जरूरी तो नहीं
शेख जो करता है मस्जिद में खुदा को सज़दे
उसके सजदों में असर हो ये जरूरी तो नहीं…”
ये सुनकर मेरा दिल धक से बैठा जा रहा है… सोच रहा हूँ सोनू निगम को भला-बुरा कहने वाले नुशरत को भी घटिया गायक कह देते या उन्हें मुसलमान होने के कारण थोड़ी छूट दी जाती…?
कभी -कभी उदास हो जाता हूँ कि न जाने कैसे प्रतिक्रियावादी समय में हम सब जी रहे हैं… जहां हर आदमी लाउडस्पीकर हुआ जा रहा… जहां हर आदमी पर एक छोटी सी बात को तील का ताड़ बनाने की सनक सवार है… हर बात को अपनी राजनीतिक दुकान सजाने का कैलेंडर समझा जाने लगा है….
तभी तो किसी ने नहीं कहा कि भाई साब सोनू निगम को अजान से दिक्कत नहीं.. दिक्कत लाउडस्पीकर से है. सोनू निगम को मस्जिद से दिक्कत नहीं उनको दिक्कत मन्दिर या गुरुद्वारा के लॉउडस्पीकर से भी है..
मुझे कोफ्त होती है… क्योंकि जितनी शिकायत पूजा में डीजे बजाने वालों से है.. उतनी शिकायत इस बेहिसाब शोर और पूजा के नाम पर हुडदंगई करने वालों से भी है… अश्लील फिल्मी गीतों पर कमर मटकाने से भगवान कैसे प्रसन्न होते हैं..ये मुझे आज तक समझ मे नहीं आया..हाँ डीजे का पुरजोर विरोध करने वाले मेरे जैसे एक हजार मिल जाएंगे.. लेकिन कल से एक आदमी मुझे नहीं मिला जो कह दे कि बिना लाउडस्पीकर के भी नमाज पढ़ी जा सकती है..
कुछ इन्हीं कारणों से मुझे आज तक समझ में नहीं आया उन मुस्लिम बुद्धिजीवियों की मानसिकता जो कम्युनिस्टों और सो कॉल्ड सेक्युलरों के अनवरत प्रयास से हर बात को हिन्दू और मुसलमान के नज़रिए से देखने की आदी हो गयी है… कल से वो इस मुद्दे को संघी एजेंडे से प्रभावित बता रही है…
तभी तो शायद किसी ने नहीं कहा कि आदमी इस धरती पर जिंदा रहेगा तभी मन्दिर और मस्जिद रहेंगे. यहां जितना किसी को नमाज पढ़ने का हक है… उतना ही किसी को चैन से सोने का भी है..
दुनिया के सारे धर्म इंसान को सत्मार्ग पर ले जाने के लिए हैं.. आदमी का जीवन सरल, सहज और आनन्दमय बनाने के लिए हैं.. न कि उसको किसी प्रकार का दुःख देने के लिए हैं.
बस आप मित्रों से कहूंगा कि देश-दुनिया का जो हाल है वो तो है ही.. इस सोशल मीडिया पर कम से कम आप किसी का लॉउडस्पीकर मत बनिए… सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत पैदा करिये.. याद रखिये, जिसे आदमी से प्रेम न हुआ वो खुदा से प्रेम क्या करेगा… प्रेम सबसे बड़ा धर्म है.. बकौल
नरेश कुमार शाद
ख़ुदा से क्या मोहब्बत कर सकेगा
जिसे नफ़रत है उस के आदमी से
Sonu Nigam and Loudspeaker, Mosque Loudspeaker (Pic: aljazeera)
Web Title: Sonu Nigam and Loudspeaker, Satire by Atul Kumar Rai
Keywords: Mandir, Masjid, Personal Freedom, Satire Article in Hindi, Mosque, Temple, Church, Gurudwara, Religion and People, Hindu, Muslim, Hinduism, Islam, Religious Articles
Featured image credit / Facebook open graph: flickr+indya101