जब हम वेलेंटाइन डे, मदर डे, फादर दे जैसे हर विदेशी दिन को धूम धाम से मना डालते हैं, तो मूर्ख दिवस पर तो हमारा पूरा पूरा हक है. यही तो वो दिन है जिसे मनाना हमारा मूर्ख’सिद्ध’ अधिकार है. हम उस देश के वासी हैं जहाँ हमारा काम सिर्फ अप्रैल फूल से नहीं चलता, हम तो पूरे वर्ष ही फूल बने खिल खिलाते हैं… असल में हम बारामासी फूल हैं.
हम इतने भोले और भले लोग हैं कि कोई भी हमें मूर्ख बना डालता है और हम ख़ुशी ख़ुशी बनते भी हैं. इतना ही नहीं, अपनी मूरखोपाधि को सेलिब्रेट भी करते हैं. कभी नेता झूठे सपने दिखा कर हमें छलते हैं, तो कभी बाजारवाद के झांसे में फंसते हैं, तो कभी हनी ट्रेप टाइप खेल में पर कुल मिला कर ये सब मुर्ख बनाओ अभियान के तहत ही आता है. वैसे ये अप्रैल फूल टाइप खेल सिर्फ देवी देवता और असुर आपस में खेलते थे. खासकर कर इंद्र देव… जरा सा किसी ने तप ज्यादा कर लिया तो इनका सिंहासन हिल जाता था और अप्सराओं को भेज तपस्या भंग करा डालते थे.
देवताओं ने अमृत मंथन के समय भी असुरों को मूर्ख ही तो बनाया था और उनके हाथ आया अमृत हड़प लिया था. भगवान ने वामन अवतार में महाराज बली को अप्रैल फूल बना कर तीन पग जगह मांग उनका सब कुछ ले डाला. इसी खेल में रावण ने बुद्धिमानी दिखाई और राम जी रूप में सोने के हिरन वाले गेम में फंसा कर अप्रैल फूल बना डाला. ऐसे बहुत से उदाहरण हमारे धर्मग्रंथों में मिल जायेंगे. बाकी तो हम हर कदम पर इस दिन को पूरे साल मनाते रहते हैं और खुद को महाबुद्धिमान समझ खुश भी होते रहते हैं.
पूरा पैसा देकर भी कभी मिलावटी खाने के नाम पर, तो कभी आधा दूध, आधा पानी पीकर… केमिकल युक्त पेय पदार्थ और रंगों से रंगी सब्जियां खाकर हम हर दिन मूर्ख बनते रहते हैं. पर मजाल है हम इसका विरोध करें या दुखी भी हों.
अरे भई! कोई हमें बनाता है हम भी उसे बना डालेंगे असली खिलाड़ी वाली भावना के साथ हम मूर्ख बनाओ वाली अपनी श्रृंखला चालू रखते हैं और जिसे जहाँ मौका मिलता है वो दूसरे को बना डालता है… मूर्ख ..हम तो इत्ते भोले जीव हैं कि हमें पता ही नहीं चलता, कब हम धर्म के नाम पर अप्रैल फूल बन गए. पढ लिख कर अफसर बन गए, पर साधू बाबा के चरणों में ऐसे झुक जाते हैं मानो दुनिया के हर सुख यही हैं… संतों और महंतों के सामने आते ही हमारी बुद्धि जाने क्या क्या चरने निकल जाती है और हम अपना सर्वस्व निछावर करने को तत्पर हो उठते हैं. अब आप ही बताइए हमारा हक है या नहीं मूर्ख दिवस पर…? नेताजी की मीठी बातों के जाल में ऐसे फंसते हैं मानो इनसे बड़ा सत्यवादी कोई नहीं और हम खुद को बुद्धिमान भी समझते हैं…झूठी लोटरी या कोई भी ऐसा खेल जिसमें तुरंत रईस बनने का सपना दिख जाए हम उसके पीछे बिना सोचे समझे दौड़ पड़ते हैं. हम तो अपने पास का भी दे आते हैं, इतने समझदार हैं. अब बताओ हम जैसे समझदार इस दिवस को नहीं मनाएंगे तो कौन मनायेगा?
फेसबुक पर सुन्दर महिलाओं के फोटो के पीछे छिप कर दूसरे मर्दों से इश्क फरमा कर अप्रैल फूल बनाते मर्द भी आजकल चलन में हैं.वैसे कितने भी तरीके हों मूर्ख दिवस मनाने के या मूर्ख बनाने के पर हम जैसी समझदार महिलाएं इसके जरिये भी पति सुधारो अभियान मना डालती हैं… वैसे भी पत्नी बनने वाली हर लड़की का एक ही लक्ष्य होता है पति सुधारो सो हमने भी इस बहाने ही ये अभियान छेड़ डाला.. …
हमारे पतिदेव जी को आदत थी ‘बेड टी’ यानी बिस्तर पर चाय की वो भी बिना दातुन कुल्ला… यहाँ तक कि जब तक चाय का घूंट न लें आँखे भी ना खोलें. हमें बहुत बुरी लगती थी ये आदत पर हमारे लाख समझाने पर भी वे इस आदत को छोड़ने को तैयार नही थे. आखिरकार हमें एक खुराफाती आइडिया सूझ ही गया. अप्रैल फूल वाला दिन था, हमने सुबह-सुबह रोज की तरह चाय बनाई और कप पतिदेव के हाथ में पकड़ा दिया और चाय की ट्रे लेकर दूर जाकर बैठ गए. पतिदेव ने अपनी आदत के अनुसार बिना आँख खोले जैसे ही घूंट भरा तुरंन्त थू थू करते हुए ऐसे उछल के खड़े हुए मानो करेंट लग गया हो. हम जोर से बोले ‘अप्रैल फूल’ अब बेचारे गुस्सा भी नहीं कर सकते थे… चुपचाप कुल्ला करने बाथरूम की ओर भागे.
असल में हमने चाय तो बनाई पर साथ ही नमक का पानी भी गर्म किया और पतिदेव को वही नमक वाले गर्म पानी का कप पकडाया था जिसे पीकर उनके मुंह का स्वाद खारा हो गया था. हमने उन्हें हँसते हुए चाय का कप पकड़ाया, तो वो भी मुस्कुरा दिए… वो दिन है और फिर आज तक बिना पेस्ट किये पतिदेव ने चाय नहीं पी, बल्कि काफी दिन तक तो खुद ही बनाते रहे. हो गया ना अप्रैल फूल संग पति सुधारो अभियान… 🙂
April Fool Hindi Satire (Pic: independent.co.uk)
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