गोलोक और स्वप्नलोक संभवतः आस पास ही रहे होंगे. तभी तो बच्चा भैय्या को सोते-सोते स्वप्न में गोमाता के दर्शन हुए और ऐसा होते ही करबद्ध होकर उन्होंने प्रणाम किया. प्रसन्न रहो वत्स!
हाँ… ये बांय-बांय की जगह गोमाता शुद्ध हिंदी में आशीर्वाद दे रही थीं. धन्य हैं माते. धन्य हैं माते… कहते-कहते बच्चा भैय्या का खुराफाती दिमाग गोमाता का इंटरव्यू लेने की योजना बना रहा था.
कहो वत्स! मुझ गोमाता का इंटरव्यू लेना चाहते हो?
आप तो अन्तर्यामी हैं माते… कहते हुए बच्चा भैय्या गो-खुर में लोट गए.
पूछो, पूछो क्या जानना चाहते हो. कहते हुए गोमाता ने पूँछ से बच्चा भैय्या को सहलाया. पूँछ के दो बाल बच्चा भैय्या की नाक में चले गए और छींकते हुए उन्होंने पहला प्रश्न पूँछ ही डाला…
बच्चा भैय्या: हे माते! आपकी महिमा वेद पुराणों ने गाई है. आज कल कलियुग में भी आपके नाम का पृथ्वीलोक पर जाप चल रहा है. कैसा लगता है आपको? आंक छी…
गोमाता: वत्स बच्चा. सिर्फ रामभक्त हनुमान के बारे में कहा गया है कि ‘चारों युग प्रताप तुम्हारा’, किन्तु हम गायों का रूतबा भी चारों युग में समान ही रहा है. जाहिर है, ऐसे में हम सांतवे आसमान पर ही महसूस करती हैं. पर…
बच्चा भैय्या: पर क्या? किसी बात की कसक…
गोमाता (रम्भाते हुए): कसक-वसक नहीं है बच्चा, सीधी पीड़ा है कि पहले जहाँ ‘गऊ’ का मतलब सीधेपन से था, अब उसका मतलब हिंसक होता जा रहा है. कलियुग में ‘ये लोग’ हमें कहीं बदनाम न कर दें. पिछले तीन युगों की हमारी छवि धूमिल हो जाएगी.
बच्चा भैय्या: माते! थोड़े स्पष्ट शब्दों में बताएं. कौन हैं ‘ये लोग’? और पिछले युगों में आपकी छवि कैसी थी, जिसके धूमिल होने का डर आपको सता रहा है?
गोमाता: ‘ये लोग’ कौन हैं, ये बात आज हर कोई जानता है. उनके डर से कोई खुलकर बेशक न कहे, पर जानकारी तो सबको है ही. इनके लक्षण बात में बताउंगी, पहले मेरी महिमा के बारे में सुनो.
यजुर्वेद में कहा गया है…अन्धस्थान्धो वो भक्षीय महस्थ महो वो भक्षीयोर्जस्थोर्ज। वो भक्षीय रायस्पोषस्थ रायस्पोषं वो भक्षीय ॥ शु. यजु. 3। 20
मतलब, ‘हे गौओं! आप अन्न को देने वाली हैं अतः आपकी कृपा से हम अन्न को प्राप्त करें. आप पूजनीय हैं, आपके सेवन से हममें सात्विक उच्च भाव पैदा होते हैं. आप बल देने वाली हैं, हमें भी आप बल दें. आप धन को बढ़ाने वाली हैं अतः हमारे यहाँ भी धन की वृद्धि और शक्ति संचार करो.’इसी तरह हमारी महिमा का गान हर युग में किया गया है. पर अब हमारी छवि ऐसी है क्या? गोरक्षा के नाम पर जो उत्पात मचाया जा रहा है, उससे तो और लोग हमसे दूर भागेंगे.
बच्चा भैय्या: आपसे ऐसी उम्मीद न थी माते! आप अपने रक्षकों को ‘उत्पाती’ कह रही हैं?
गोमाता: नहीं, उत्पातियों और गुंडों को ही उत्पाती कहा जा रहा है. आपके प्रधानमंत्री ने भी तो 80 प्रतिशत गोरक्षकों को गुंडे और उत्पाती कहा है. आखिर उनके पास कहीं से तो रिपोर्ट आयी ही होगी. अंतर्यामी होने के कारण हम भी देख रहे हैं कि यह कोई गलत तथ्य नहीं है.
बच्चा भैय्या: आप तो यहाँ गोलोक में आराम से हैं, पर आप जैसी दूसरी गायों को पृथ्वीलोक पर कसाईखाने में काटा जाता है, उसको जस्टिफाई कैसे किया जा सकता है?
गोमाता: महर्षि दाधीच ने जरूरत पड़ने पर अपनी हड्डियां दान कर दी थीं. पहले भी भारत में गायों के मृत हो जाने के पश्चात् उनके चमड़े उतार लिए जाते थे, जिससे किसी को आपत्ति कभी नहीं रही. मृत हो जाने के पश्चात् अगर हमारी हड्डियां और चर्म अगर काम आते हैं तो हमें क्या आपत्ति होगी. हाँ, कसाईखाने में जिस तरह मांस के लालची गोवंश को मार डालते हैं, उनके साथ निश्चित रूप से अच्छा व्यवहार नहीं होगा. पर वैसे लोग कौन हैं, इसे समझना आवश्यक है. कई बार तो दिन में जो गोरक्षा की बात करते हैं, उन्हीं विचारवादियों के कई कसाईखाने खुले होने की खबरें मैं भी देखती हूँ अपने गो-चैनल पर. इसके अतिरिक्त…
बच्चा भैय्या: इसके अतिरिक्त और क्या? बताइये माते!
गोमाता: इसके अलावा, गोरक्षा की बातें तो की जा रही हैं, पर हमारे बछड़े यानी ‘बैलों’ की दुर्गति हो रही है. क्या इसकी राह भी निकाली जा सकती है? आखिर वह भी तो ‘गोवंश’ के ही हैं. इसके अतिरिक्त, अपनी पूरी ज़िन्दगी हम गायें दूध देती हैं, किन्तु बुढ़ापे में…
बच्चा भैय्या: आप बोलते-बोलते रूक जा रही हैं. कहिये, क्या कहना चाहती हैं बुढ़ापे के बारे में?
गोमाता: इस बार मैं इसलिए रूक गयी थी कि जब पृथ्वीलोक का इंसान बुढ़ापे में जन्म देने वाले माँ-बाप को छोड़ देता है, तो फिर हम गायों की कौन कहे. अब भारत के लगभग प्रत्येक प्रदेश में वृद्धाश्रम खुलते जा रहे हैं. ऐसे में अगर हम गायें प्लास्टिक खाने को मजबूर हैं तो फिर शिकायत कैसी! यह सब देख कर ‘गोरक्षा’ और गोरक्षकों पर से भरोसा नहीं उठेगा तो क्या होगा फिर.
बच्चा भैय्या: पर कई गोरक्षक बढ़िया काम भी तो कर रहे हैं. जगह-जगह कैंप लगाकर डेमो देते हुए गाय के दूध, दही, मूत्र, गोबर इत्यादि का महत्त्व बता रहे हैं. यहाँ तक कि कैंसर के इलाज तक में…
गोमाता (बात काटते हुए): इलाज की खोज और उस पर शोध इंसानों का काम है. मैं गायों की ओर से क्या कहूँ. वैसे गाय के तमाम फायदों पर शोध हुए भी हैं, किन्तु जाने क्यों इसके प्रसार में उस तरह से रुचि नहीं ली जाती है, जैसे आजकल गोरक्षा में रुचि ली जा रही है. हम गायों का भी सोचना है कि अगर बदले समय में हमारी उपयोगिता बढ़ाने पर विचार किया जाए तो फिर अलग से ‘गोरक्षा’ और ‘गोरक्षकों’ की जरूरत क्यों पड़े भला! और अब तुम्हें मैं अपना अमृत-तुल्य दूध पिला रही हूँ, ताकि मेरा यह सन्देश तुम अच्छे से छाप और प्रसारित कर सको.
फिर बच्चा भैय्या गोमाता के थन के आगे अपना मुंह करके दूध पीने की कोशिश करते हैं, लेकिन यह क्या दूध मुंह में जाने की बजाय आँखों पर क्यों आ रहा है…छपाक…!!
बच्चा भैय्या की आँख खुल चुकी थी और यह दूध की बजाय आँखों पर पानी था, जिसे मिसेज बच्चा फेंकते हुए चिल्ला रही थीं कि ‘ऑफिस नहीं जाना है क्या आज’?
बिस्तर से उतरते हुए बच्चा भैय्या गोलोक की इस यात्रा और गो-महिमा पर सोच रहे थे कि वास्तव में सच्ची ‘गोरक्षा’ है क्या?
Web Title: Bachcha Bhaiyya Interview with Go Mata, Satirical Cow Interview in Hindi
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