ब्याह शादी तो आप लोगों ने बहुतेरे देखे होंगे, पर ऐसा ब्याह नही देखा होगा जैसा पिछले साल हमने देखा. ये विवाह ऐसा था कि कोई चाहे तो भी भुला ना पाए… हर जगह इसी विवाह की चर्चाएँ हुई.
हमारे रिश्ते की जेठानी के लड़के की शादी का किस्सा है. शादी यहीं दिल्ली में थी, सो हम शुरू से हाजिर. यानी इस विवाह के चश्मदीद थे. वैसे तौ हमारी ये जेठानी अपनी कंजूसी और टुच्चेपन के लिए काफी प्रसिद्ध रही हैं… किससे क्या लेना है, इसके लिए उनकी याददास्त काफी दुरुस्त और वो चुस्त होती है. और जहाँ किसी को देने की बात आये बेचारी अल्जाइमर की शिकार हो जाती हैं. पर सबने सोचा पहले बच्चे की शादी कर रही हैं और पैसे की कमी भी नहीं, सो सबकी उम्मीद सुधार की ही थी. हमने काम काज और इंतजाम की पूछी तो हमें टका सा जबाब मिल गया कि सब हो गया है सो हम भी बेफिकर और मस्त हो गए.
सबको बुलाया भी था. सो गाँव के सब लोग भी आने को तैयार हो गए. वैसे भी हमारे जेठजी सबके यहाँ जाते थे शामिल होने, सो सब उनसे खुश थे. खैर पहले दिन हमें मेहँदी और संगीत का न्योता मिला, हम सब बड़े सज धज के ख़ुशी ख़ुशी पहुंचे कि आज तो जम कर नाचेंगे. वहां जाके जो देखा उसे देखकर तो हमारी खुशियों पर मानो पानी की टंकी पूरी खाली हो गयी थी. भजन कीर्तन चल रहा था और सारी पडौसन गुरु आशाराम की तस्वीर के सामने झूम झूम के नाच रही थीं. अभी हमारी खोपड़ी थोड़ी ही हिली थी कि किसी ने पूछ लिया मेहँदी वाली कहाँ है? हमारी जेठानी जी जिनके बेटा की शादी थी बड़ी हँसती हुए बोली ‘अरे मैंने घर पर तो नही बुलाई’ पडौस में ही रहती है जिसे लगवानी है वो वहीं चले जाओ मैंने कह दी है. सबने सोचा चलो बराबर के घर में ही है… फ्री की ही लगेगी सो लगवा लें, पहलें घर की बेटियां गयीं फिर में और मेरी देवरानी गयी और मजे से मेहंदी लगवा ली. जैसे ही मेहँदी लगा के हम चले मेहँदी वाली बोली, पैसा तो दो…
हमारा तो माथा ठनक गया पैसा किस बात का? वो ऐसे हँसते हुए बोली मानो हमारा ही मजाक उड़ा रही हो… भाभी ने कहा है सबसे पैसा ले लेना डिस्काउंट करके, सो कम कर दिए हैं, आप सबके हजार रूपये हुए.
हमारे तन बदन में आग लग गयी थी सुनकर पर क्या बोलते .. तभी सारी नन्दे बोली भाभी हम तौ पर्स ना लाये तुम ही देदो बाद में दे देंगे. बैठे बिठाये हमारी चांद हजार रुपये से कुट गयी थी, पर ये तो मानो शुरुआत भर थी… अपना सा मुंह लेकर वापिस आए तो बच्चे और पति चिड़चिड़े से दिखे. पूछने पर पता लगा कि खाने की बैरायटी तो खूब गिनाई जेठ जी ने पर खाने के नाम पर निरे गोलगप्पे टिक्की थे…
सो किसी का पेट नहीं भरा, हम घर चले तो दो चार रिश्तेदार भी हमारे संग हो लिए हमारी हालत तो ‘पड़ौसी के ब्याह हमारे खलबली’ टाइप थी सो घर आकर खाना बनाया और सबको खिलाया.
अगले दिन सुबह से न्योता था देवी देवता की पूजा होनी ही सो सब दूध फल खाके ही पहुंचे… इस उम्मीद से कि आज तो कुछ अच्छा ही मिलेगा, खैर पूजा पूरी होते ही सबको भूख लगी. रिश्तेदार भी आना शुरू हो गए पर खाने का दूर दूर तक पता नहीं था. इंतजाम के हालात इतने खराब थे कि चाय भी खुद बनाओ… यहाँ तक कि दूध भी खुद लाना पड़ रहा था कंजूसी की इन्तहा ही कहेंगे कि एक नौकरानी तक का इंतजाम नहीं किया गया. मर्द तो बाहर से ही खा पी रहे थे. हम सब औरतें भूख से बिलबिला रही थी… और तो और हलवाई ऐसा था जो भांग पीके मस्त था… जो उसकी मर्जी में आ रहा था वो ही बना रहा था. लड़की वाले भी बाहर से आ रहे थे सो वे भी बस लेकर बारातियों की तरह दोपहर में पहुंचे. उन्हें लेने मेरा मेरा देवर गया और जिस जगह उनकी व्यवस्था करी वहां लेकर जैसे ही पहुंचा बेचारे को चक्कर आ गए. इंतजाम स्पोर्ट्स क्लब में किया था. लड़की वालों की बस जैसे ही वहां रुकी सारे रिश्तेदार ऐसे अन्दर की तरफ की तरफ भागे जैसे रस्सा तुड़ा के गाय भैस भागी हों, कोई बैडमिन्टन वाले रूम में घुसा तो किसी ने अपना बैग टीटी टेबल पे टिका दियो… कुछ लोग जिम में घुस गए और ट्रेडमिल और साइकिल पर बैग रख दिए जो लोग खेल रहे थे या कसरत कर रहे थे वे बेचारे हड़बड़ा गए और गार्ड को बुलाने दौड़े.
Hindi Satire on Marriage Celebration (Pic: menxp)
गॉर्ड ने सीटी बजा बजा के सबको ढोर की तरह इकठ्टे किया और ऊपर एक खुले से बरांडे में पहुंचा दिए कि ये है तुम्हारे रहने की जगह! बेचारे मेहमानों की खुमारी सी उतर गयी. जो ये सोचकर आये थे बढ़िया से होटल में अलग अलग कमरे मिलेंगे और रही सही कसर बाथरूम को देखकर पूरी हो गयी जो सरकारी अस्पताल के शौचालय से भी बुरे हाल में था. बदबू और गंदगी देख के सबके मुंह लटक गए. मरद तो खैर बाहर निकर गए रोड के किनारे शुद्ध करने.. अब औरतों के पास नाक पर धोती और चुन्नी के ढाटे कसने के अलावा कोई चारा ना था. सब लोग चाय पानी की पूछने लगे जिसका कोई इंतजाम नहीं था. सो मेरो देवर सबकी नजर बचा के भाग लिए. इधर जेठानी जी से हमने पूछ डाला कि आपके मायके से भात आने वाला होगा. सुना है पूरी बस भर के आ रहे हैं कहाँ किया है उनके ठहरने का इंतजाम? तो बड़ी हँस के बोली “अरे चिंता मति ना कर मेरे पडौसी बड़े अच्छे हैं सबने अपने कमरा खोल दये हैं” हम चुपचाप अपना सा मुंह लेकर बैठ गए. जो जो रिश्तेदार दिल्ली के थे वे सब तो ड्राइवर और नौकर बन चुके थे… इधर से उधर इंतजाम में भाग रहे थे और औरतें बेचारी चाय पानी देख रही थीं. थोड़ी देर में खाने के नाम पे पकौड़ा मिले वो भी बिना चटनी के जिन्हें हम अपनी किस्मत समझ के खाने बैठे ही थे कि भगदड़ सी मच गयी. पता लगा कि गांव से दो बस भरके रिश्तेदार आ गए हैं. उन्हें देख के जेठ जी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी. इतने लोगों को कहाँ बिठाये… कहाँ रखें…
कंजूसी के चलते घर से ही शादी कर रहे थे. हमने कहा आपने सबको बुलाबा दिया तौ इंतजाम क्यों नहीं किया? हमारी महान जेठानी जी बोली “इन लोगन ने बताई ना ही कि कितने जने आमेंगे? उनकी बात सुनकर हमने माथा ठोंक लिया ये मैडम सबके जाती हैं सबको बुला आई… अब कोई इन्हें बता कर आता कि कितने लोग आ रहे हैं?
खैर जैसे तैसे उन लोगों के बैठने की जगह बनी. घर पूरा औरतों और बच्चों से भरा था. बाहर सड़क पर और छत पर कुर्सी डाल कर के सब बैठ गए .दिन का ठीक था जाड़े के दिन थे धूप में सब बैठ गए. रात की रात को देखेंगे सोच कर राहत की साँस ली.
जो रिश्तेदार गांव से आये थे. बड़ी हसरत लिए आये थे कि दिल्ली की शादी देखेंगे. उनके चेहरे के सारे मानो बल्ब फ्यूज हो चुके थे. बेचारे हैरान परेशान से थे और जेठ जेठानी जी ने ऐसा व्यवहार किया जैसे वे सब बिन बुलाये आ गए हों. किसी ने चाय पानी की भी नही कही. हमें ही दया आई सो अपने बेटे से दूध मंगा के चाय बनाई और बचे खुचे पकौड़े के संग दे दी. शाम को बारात जानी थी सबको तैयार होने को जगह चाहिए थी. सबसे ज्यादा औरते परेशान थी. कपडे कहाँ बदलें? मर्दों की कोई इज्जत होती नहीं सो बेचारे सड़क पर और छत पर ही तैयार हो गए और किसी पडौसन के घर जैसे तैसे तैयार हुई. हम भागे अपने घर तैयार तो बाद में हुए पहले खाना बनाकर खाया, क्योकि दो दिनों की खातिरदारी देखकर हमे आगे भोजन मिलने की अब कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी. जैसे तैसे सज सजा के बरात चढ़ी और सारी बस और कारें चल दी. जगह ज्यादा दूर नहीं थी पर दिल्ली का ट्रेफिक था सो गांव वाले रिश्तेदारों वाली बस भटक कर कही और चली गई. हमारे पति और देवर को पता लगी तो परेशान हो गए पर जिनके घर ब्याह था उनपर कोई असर ना हो बेफिक से मस्त थे. दो घंटे की मसक्कत से उस बस को जैसे तैसे ढूढ के लाये. बच्चे और औरतें भूखे प्यासे रोनी सी शकल लेकर पहुंचे. यहाँ का इन्तजाम तो और भी मस्त था. जाड़ों की रात में खुले में शादी. सब रिश्तेदार मन ही मन गाली दे रहे थे. इधर जो रिश्तेदार बस में से आये वो खाने पहुंचे तो ज्यादातर खाना या तो ख़तम हो चुका था या एकदम ठंडा था. थकान और गुस्से में वे जोर जोर से गाली देने लगे और बस लेकर उसी वक्त वापिस निकल गए. पर मजाल है उन बेशर्मों पर जरा भी असर पड़ा हो. वे तो फोटो सेशन में व्यस्त थे उस दिन ही समझ में आया कि ‘जूतन में दाल बंटने’ का क्या मतलब होता है.
उस शादी में सिर्फ लड़का लड़की और उनके माँ बाप ही खुश नजर आ रहे थे. बाकी सब तो अपने भाग्य को कोस रहे थे कौन से बुरे कर्म किये थे सो ये सजा मिली. खाना तो दूर चाय तक नसीब नहीं हुई. बहु आने की प्रतीक्षा में दस बाई बीस के हाल में पचास औरतें रात भर बैठी रही. कमर सीधी करने की भी जगह नहीं थी. सब खुसर फुसर गाली देती रही. मर्द बेचारे इधर-उधर अडौस पडौस में सो गए या घूमते रहे. कंजूसी की इन्तहा तो तब देखी जब किसी रिश्तेदार ने चाय मांग ली. ‘रात भर से बैठे हैं एक कप चाय तो पिला दो.’ हम उठे तो देखा सिर्फ एक लीटर दूध था और चीनी भी नहीं थी. ये हाल तो शादी वाले घर का था… हम शर्म से पानी पानी थे… पर जेठानी जी के चेहरे पर शिकन तक नहीं थी.
जहाँ लड़की वाले रुके वहां तो ऐसा लग रहा था मानो स्टेशन पर यात्री पड़े हों. सब लाइन से जमीन पे बिस्तर लगा कर पड़े थे. लड़की वाले और लड़का वाले सब रिश्तेदार उन्हें कोस रहे थे. वाह रे! बेशरम हो तो ऐसे जो मुस्कुराते हुए सबको ये अहसास करा रहे थे कि क्यों आये भाई हमें तो आपकी जरुरत नहीं थी.
अपना पैसा बचाते रहे… गाडी तक रिश्तेदारों की इस्तेमाल की, नेग भी सब चाचा मामा चाची मामी से खर्च करवा दिए. देने के नाम पर चुप्पी साध ली.
जैसे तैसे रात कटी और बहु आई सबने मुहं दिखाई की रस्म करी और ऐसे भागे मानो कि पीछे भूत पड़ा हो. ज्यादातर लोगों को बहु को नेग देना भी दुःख रहा था. सबकी हालत खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना वाली थी. जो रिश्तेदार इतने पर भी रुकना चाहते थे उन्हें हमारी जेठानी जी के बेहया परिवार ने जबरदस्ती भगा दिया ये कहकर कि हम भी जा रहे हैं. हम भी अपनी खाली जेब खाली पेट लिए घर को चल दिए और उस दोहे के मायने आज बदल गए थे जो कार्ड पर लिखा होता है (भेज रहे हैं नेह निमंत्रण,प्रियवर तुम्हे बुलाने को …..
भेज रहे हैं नेह निमंत्रण, केवल रस्म निभाने को
हे मानस के राजहंस तुम्हे कष्ट ही होगा आने पर …
Web Title: Hindi Satire on Marriage Celebration, Humor in Hindi
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