गधे आजकल लाइम लाइट में हैं और जो इतने हाईलाइट हों, वह अपने बच्चा भैय्या की नजरों से कैसे बच सकते हैं. सेलेब्रिटीज का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू करने का जूनून बच्चा भैय्या से जो न करवाये… पर मुश्किल यह थी कि अगर गधा मनुष्य होता तो वह उससे ‘अपॉइंटमेंट’ ले लेते, पर गधे की ‘ढेंचू ढेंचू’ की उतनी स्पष्ट समझ उन्हें थी नहीं!
हालाँकि, मानव जाति में गधे टाइप कई लोगों का उन्होंने इंटरव्यू किया था, किन्तु आजकल डोनॉल्ड ट्रम्प मीडिया के अपुष्ट सूत्रों पर भड़के हुए हैं, इसलिए ‘गधे टाइप’ की बजाय ‘गधों’ के इंटरव्यू की बात ही ज्यादा ज़ोरदार होती. काश कि गधा ‘रोमन’ या फिर ‘हिंगलिश’ में ही कुछ संवाद करता! उससे कई प्रश्न पूछता… फिर मन ही मन कई प्रश्न सोच डाला बच्चा भैय्या ने… पर उनकी इच्छा कैसे पूरी होती भला …
बेचारे मन मसोसकर रह गए.
जब से यूपी में अखिलेश और गुजरात में हार्दिक पटेल जैसे युवा नेता गधों की बात करने लगे, तो बच्चा भैय्या के ‘कलेजे में हुक’ सी उठने लगी.
इधर भारत के प्रधानमंत्री भी ‘गधा पुराण’ पर चर्चा करते नजर क्या आए, बच्चा भैय्या दर्द से गुलाटियां मारने लगे थे कि…काश…
मैं किसी ओरिजिनल गधे का इंटरव्यू ले पाता!
गधे पर इतनी चर्चा होने के बाद बड़े-बड़े लेख, संपादकीय लिखे जा रहे थे और इधर बच्चा भैय्या की रोते-रोते आंखें सूज गईं थी. कब तक रोते, बिचारे बिना खाये-पिए ही नींद के आगोश में चले गए.
पर यह क्या, आँख लगते ही बच्चा भैय्या को ‘गर्दभ देवता’ नजर आ रहे थे, वह भी शुद्ध हिंदी बोलते हुए! वह बच्चा भैय्या की इच्छा पूरी करना चाहते थे, बोले-
कहो वत्स बच्चा, क्या पूछना चाहते हो?
चूंकि सवालों की एक लिस्ट तैयार थी तो बच्चा भैय्या फ़ौरन शुरू हो गए.
बच्चा भैय्या: …तो ‘अच्छे दिन’ आपके भी आ गए?
गर्दभ देव: बच्चा जी, पहले ‘ढेंचू ढेंचू’ का हिंदी अनुवाद आपको बताता हूँ. वस्तुतः यह दो शब्द ‘अच्छे दिन’ ही हैं, जिसकी रट हम लोग त्रेतायुग से ही लगा रहे थे. आखिर प्रभु का वरदान फलीभूत हो गया और हमारी प्रजाति को भी उत्तम नज़रों से देखा जाने लगा.
बच्चा भैय्या: प्रभु का वरदान… त्रेतायुग… थोड़ा खुलकर बताएं गर्दभ देव जी?
गर्दभ देव: अवश्य वत्स, अवश्य! भगवान राम के ज़माने का वह धोबी तो याद होगा आपको जिसने ‘विमेन एम्पावरमेंट’ के खिलाफ काम किया और सीता मइया को वन भिजवा दिया. उस धोबी के पास वर्तमान ‘गधों के पूर्वज’ थे और लोगों ने धोबी के साथ गधे को भी दोषी ठहराना शुरू कर दिया. हालाँकि, तत्कालीन गधा महोदय ‘मौन’ ही थे और उनका कोई सीधा हाथ नहीं था धोबी की करतूत में, पर उनसे चूक यह हो गयी थी कि ‘रेनकोट’ पहन कर नहाना उन्हें नहीं आता था.
चूंकि, प्रभु श्रीराम बड़े दयालु थे इसलिए दंडवत होकर ‘ढेंचू ढेंचू (अच्छे दिन)’ करने पर उन्होंने कलियुग में हमारे ‘अच्छे दिन’ आने का आशीर्वाद दिया था.
बच्चा भैय्या: पर उत्तर प्रदेश के समाजवादी पुत्र अखिलेश यादव तो कह रहे हैं कि ‘गधों का प्रचार’ नहीं होना चाहिए?
गर्दभ देव: हा हा हा… वह भी हमारी ही प्रजाति से मिलते जुलते व्यक्ति के साथ ‘यूपी को यह साथ पसंद है’ गाना गा रहे हैं, तो उन्हें तो यह कहना ही नहीं चाहिए. वैसे वह खुद पिछले ‘साढ़े चार साल’ से… अब मुंह मत खुलवाओ बच्चा जी हमारा! वैसे ही अमर सिंह नामक व्यक्ति काफी कुछ ‘एक्सक्लूसिव’ बता रहा है.
बच्चा भैय्या: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो ‘गधों’ का जबरदस्त ढंग से पक्ष लिया है, उनसे तो ‘गधा प्रजाति’ खुश है न?
गर्दभ देव: बेशक! सुषमा से लेकर आडवाणी और योगी से लेकर वरुण जैसे घोड़ों को जिस तरह से वह और उनके शागिर्द ‘शाह’ गधा बनाने की कोशिशों में लगे हुए हैं, उससे यकीनन हमारी सरकार… मतलब हमारा बहुमत हो जायेगा. और सिर्फ नेता ही क्यों, हमारे पीएम ने तो सवा सौ करोड़ देशवासियों को ‘नोटबंदी‘ और ‘कैशलेस इंडिया’ के नाम पर ये लपेटा कि… वो लपेटा कि… बाकी तो आप समझदार लगते हो बच्चा भैय्या जी, खुद ही समझ जाओ.
Interview with Donkey, Satirical Interview in Hindi, Akhilesh Yadav, Rahul Gandhi and Narendra Modi (Pic: dailymail / thenet24h.com)
बच्चा भैय्या: वाकई, आप तो पोल-पट्टी लेकर बैठे हो गर्दभ देव जी. खैर, एक सामान्य सा सवाल कि जब किसी इंसान को ‘गधा’ कहकर आपसे तुलना की जाती है तो कैसा लगता है आपको?
गर्दभ देव: देखो जी, पहले तो अच्छा लगता था. पर हाल के दिनों में इतने ज्यादा प्रवासी ‘गधे’ हो रहे हैं कि हमारी मूल पहचान ही खतरे में आ चुकी है. हमें भी कोई ट्रम्प जैसा मिले, जो हमारी पहचान को सुरक्षित रखने पर जबरदस्त ढंग से आमादा हो जाए. और हाँ, इसके लिए हम ‘तारीख नहीं बताएँगे’ वाले फॉर्मूले पर नहीं चलेंगे, बल्कि ट्रम्प जैसे ‘एग्जीक्यूटिव आर्डर’ पर चलना चाहेंगे. आखिर, गधों को भी निर्णय लेने का पूरा पूरा हक़ है!
बच्चा भैय्या: किसी पाठक ने फेसबुक पर पूछा है कि आप दुलत्ती किन परिस्थितियों में मारते हैं और क्या इसे सर्जिकल स्ट्राइक कहा जा सकता है?
गर्दभ देव: देखो जी, हम गधे जरूर हैं किन्तु ‘नमकहराम’ नहीं! सर्जिकल स्ट्राइक पर किसी ने ‘सुबूत वुबूत’ माँगा तो उसे ऐसी दुलत्ती लगी कि वह पंजाब और गोवा के बाद ‘चुप्पी’ मारकर बैठ गया है. कोई बयान ही नहीं आ रहा, इसलिए कहे देता हूँ ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की बात न करो…
बच्चा भैय्या: अरे रे रे… आप तो नाराज होने लगे गर्दभ देव जी. कम से कम यह तो बताइये कि पाकिस्तानी आर्मी द्वारा ‘रद्द-उल-फ़साद’ नामक अभियान पर आपकी क्या राय है?
गर्दभ देव: देखिये, नाम यह जबरदस्त है, बोलने में ‘ढेंचू ढेंचू’ से थोड़ा कम इंटरेस्टेड है, किन्तु फिर भी मजेदार है. जहाँ तक आपने पाकिस्तान की बात की तो मेरा मूड ही ख़राब कर दिया. हम गधे हैं किन्तु इतने गए गुजरे भी नहीं कि पाकिस्तान पर कुछ राय देकर अपना वक्त जाया करें. कुछ काम का सवाल हो तो पूछो, नहीं तो हम चले अपने ‘गर्दभ लोक’.
बच्चा भैय्या: अरे ऐसे कैसे चले, अभी तो काफी कुछ पूछना बाकी है. ट्रम्प की तरह पत्रकारों पर मत भड़किये! चलिए उदाहरण सहित बताइये ये ‘गदह पच्चीसी’ क्या होती है?
गर्दभ देव: सीधा बोलूं तो ‘नूरा कुश्ती’. उदाहरण देखना है तो महाराष्ट्र चले चलो जहाँ भाजपा और शिवसेना ‘गदह पच्चीसी’ का उच्चतम नमूना पेश कर रही हैं. विधानसभा अलग-अलग लड़कर बाकियों को निपटा दिया फिर मिलकर सरकार बना लिया. फिर बीएमसी में अलग-अलग लड़कर बाकियों को निपटा दिया और फिर… इसे ही गदह पच्चीसी कहते हैं बच्चा भैय्या जी.
बच्चा भैय्या: जब इतने सारे स्टेट्स के बारे में काफी कुछ बता ही दिए तो ‘तमिल नाडु’ क्यों अछूता रहे, कोई त्वरित टिपण्णी आपकी?
गर्दभ देव: बिल्लियों की लड़ाई और बन्दर की चतुराई वाली कहावत अब बदलने वाली है. यह ‘इंसानों की लड़ाई और गधे की भलाई’ में अगर परिवर्तित हो जाए तो कोई आश्चर्य न कीजियेगा… वैसे तमिलनाडु की ‘बिल्ली’ ‘कला’ से परिपूर्ण है और उसका पंजा पिंजड़े में रहकर भी बाहर झपट्टा मारने को तैयार है. और अब भोर होने वाली है, हमें अपने ‘गर्दभ लोक’ भी पहुंचना है, इसलिए अब जाने की इजाजत दें…
बच्चा भैय्या: साहित्य के गदहों पर…
गर्दभ देव (बात काटते हुए): कव्वे भी कोयल होने का गुणगान करते हैं इस क्षेत्र में. ऐसे लोगों का महिमा मंडन किया जाता है जो साहित्य के नाम पर ‘छिछोरापन’ दिखलाते हैं. कुछ लोग यहाँ कविता लिखते नहीं, बल्कि उसकी ‘उल्टियां’ करते हैं, किन्तु महिमा ऐसे ही लोगों की है. मुझे उम्मीद है कि इस क्षेत्र में भी जिस तेजी से गर्दभ मित्रों की संख्या बढ़ रही है, उसी अनुपात में हम सरकारी पुरस्कार भी प्राप्त कर सकेंगे. अगर नहीं तो ‘गर्दभ पुराण’ लिखकर ‘गर्दभ अकादमी’ की स्थापना की हमारी मांग होगी.
बच्चा भैय्या: जाते जाते, सृष्टि को अपना योगदान तो बताते जाइये गर्दभ देव?
गर्दभ देव: योगदान ही योगदान हैं. कई कहावतें हमारे ऊपर बनी हैं तो संस्कृति के अभिन्न अंग हैं हम. हमारे नाम में हास्य, ईर्ष्या, उपहास, ख़ुशी, दुःख, आश्चर्य से लेकर खुशकिस्मती और बदकिस्मती तक जुड़े हुए हैं. राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में हम आंदोलन, बंद, हड़ताल, जाम, अफसरशाही जैसे महत्वपूर्ण शब्दों के प्रतीक माने जाते हैं. गधे के दो आगे गधे, गधे के दो पीछे गधे और बाएं, दायें चारों ओर गधे जैसी ‘पहेलियाँ’ आखिर हमीं पर तो बनती हैं? इसके अलावा धोबी के हांकने पर हम स्वामिभक्ति का नायाब नमूना पेश करते हैं. हम तो कहते हैं कि नए ज़माने में ‘कुत्ते’ को छोड़कर दुसरे नम्बर के वफादार हमीं हैं और जिस प्रकार राजनीति में पुछल्ला, दुमछल्ला, चमचा इत्यादि शब्दावलियाँ इस्तेमाल हो रही हैं तो ऐसे में हम ‘कुत्तों’ को भी जल्द ही पीछे छोड़ देंगे. यकीन मानिये बच्चा जी अगर ऐसे ही चलता रहा तो जल्द ही हम जानवरों में ‘श्रेष्ठ’ होने का अकादमिक पुरस्कार भी पा जायेंगे. और अब सुबह हो रही है, ‘धोबी लोक’ की शिकायत हमारे पास आये, उससे पहले ही हमें अंतर्ध्यान होना पड़ेगा…
फिर गर्दभ देव अंतर्ध्यान हो गए और बच्चा भैय्या सुबह जगने के बाद ‘वो मारा पापड़ वाले को’ के अंदाज़ में खुश नज़र आ रहे थे. इतनी ख़ुशी तो उन्हें डोनॉल्ड ट्रम्प जैसी शख्शियत का साक्षात्कार लेने पर भी न हुई थी, तो फिर दूसरे इंटरव्यूज को कौन पूछे?
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