कल मेरे क्रांतिकारी मित्र मिले.. मिलनसार आदमी हैं और पढ़ाकू भी, बुद्धिजीवी तो पैदाइशी हैं… इधर पत्रकारिता पढ़ी है उन्होनें.. कुछ दिन एक अखबार वाले इंटर्नसिप के नाम पर ‘एक किलो गांजा के साथ चार गिरफ्तार’ और “बारात आने के पहले दुल्हन फरार” टाइप खबरें लिखवाते रहे.. लेकिन अचानक उनमें सम्बोधि का विस्फोट हुआ और वो बुद्धत्व को नहीं मार्क्सत्व को प्राप्त हुए..
इस महाघटना से जो पहली घटना निकली उसका परिणाम ये हुआ कि उन्हें पत्रकारिता से चिढ़ हो गयी.. दूसरी घटना ये हुई कि उन्हें भी सभी बौद्धिकों की तरह पता चल गया कि उनके आस-पास निहायत ही बेवकूफ किस्म के लोग भरे हैं जो उनकी ऊंची-ऊंची बातों को समझ नहीं पा रहें हैं… या फिर उनके उच्चतर आदर्शों को पहचान नहीं पा रहें हैं.
इन बेवकूफों को सत्य का ज्ञान नहीं है.. ये सभी लोग झूठे और मक्कारों के बीच उलझें हैं. इसी बात के कारण जमीन से लेकर सोशल मीडिया पर रोज उनकी वाल पर झगड़ा हो जा रहा.. सारे संघी उनके पीछे पड़े रहते हैं.. इन कुछ कारणों से अब दुनिया रहने लायके नही रही… और इस दुनिया को जितना जल्दी हो सके बदल देना चाहिए.
देश भी तबाह हो गया है. फेंकू जबसे आया है, सिर्फ फेंक रहा है और भक्त लपेट रहें है. वो रह-रह के एक गोला छोड़ देता है. .भक्त लपेट-लपेट कर लहालोट हो जातें हैं. कम्बख्त इन संघियों ने देश की एकता अखण्डता और भाई-चारे को तहस नहस कर दिया है. आदीवासीयों की जमीनें छीनी जा रहीं.. उनकी हत्या हो रही.. जल, जंगल, जमीन लूट कर अम्बानी, अडानी और रामदेव को दिया जा रहा.. वर्ग संघर्ष बढ़ रहा, दलितों का जीना मुहाल है.. देश भर के मुसलमान खतरे में जी रहे हैं.. न जाने कब क्या हो जाए.. एकदम नरक हो गया है!
सत्तर के स्पीड में किसी रटे-रटाए डायलॉग सा उन्होंने ये संवाद बोला.. और अभी ब्रेक लिया ही था की उन्हें एहसास हुआ कि मैं उनके सामने हूँ.. उन्होनें एक लम्बी सांस ली.. वो मुझसे मुखातिब हुए.. चेहरा सुर्ख लाल पड़ गया था.. उनकी बादामी आंखों में क्रांतिकारीता की लाल ज्वाला धधक रही थी.. बोल पड़े..
“क्या कर रहे हो आजकल..”?
हमने कहा “साथी आइये पहले लस्सी पीने का काम करते हैं.. पहले जरा मन मिजाज बदलते हैं.. दुनिया तो बदलती रहेगी’.. फिर क्या लस्सी पिया गया.. धूप और उमस से जरा निजात मिली तो क्रांतिकारी ने एक लंबी सांस ली. मेरी भी जान में जान आई… आस-पास नज़र दौड़ाया और एक बार कन्फर्म किया कि सच में देश में सब ठीक तो है न ?
मैनें देखा सब ठीक था.. जो लोग जहाँ थे वहीं थे.. न किसी की कोई न जाति पूछ रहा था न धर्म.. न ही किसी का उत्पीड़न हुआ न ही कोई हिंसा हुई.
जब पूरी तरह ये इत्मीनान हो गया कि दुनिया में सब ठीक है… रहने लायक है.. कुछ दिन इस दुनिया को बिना बदले भी रहा जा सकता है तब मैं बोला.
“कुछ नहीं.. बस पढ़ाई चल रही है. आप बताइये..”
कहने लगे कि..” तुम भटक गए हो.. कुछ कर नहीं पावोगे.. साहित्य में लेखक को प्रगतिशील होना पड़ता है.. गम्भीरता धारण करनी पड़ती है.. पढ़े हो कभी काफ़्फ़ा को.. दोस्तोवस्की को ?
हमने ना में सर हिलाया.. उन्होंने पूछा किसको पढ़ रहे हो?
मैनें कहा अभी सँगीत के प्राचीन शास्त्रों के प्रति रुझान हुआ है.. अभिनव गुप्त को पढ़ने की सोच रहा हूँ.. क्रांतिकारी खामोश हुए…थोड़ी देर बाद बोले.. अच्छा ये कौन है ?
हमने कहा.. काश्मीर के प्राचीन संस्कृत के विद्वान. भारत की प्राचीन ज्ञान परम्परा के ध्वजवाहक.. संगीत, साहित्य, कला और आध्यात्म के अद्भुत मर्मज्ञ.. जिनके अथाह ज्ञान की दुनिया कभी दीवानी थी..
क्रांतिकारी ने इस नाम से अनभिज्ञता प्रगट की.. मैं अपने अनपढ़ होने पर मन ही मन दुःखी हुआ.. लगा कि अब तक का सारा पढा लिखा बेकार..जीवन हाय! ये व्यर्थ चला गया.. ये प्राचीन विद्वान भी कोई चीज हैं.. हाय! मैं प्रगतिशील न हुआ!!
मैनें पूछा “साथी आप क्या कर रहे”?
कहने लगे “अब खुद का अखबार लाने की योजना बना रहे हैं…दो कौड़ी के मनुवादी सम्पादकों को उनकी औकात में ला देंगे…इतना कहकर साथी जरा आंखों को नचाए.. जिसका मतलब ये हुआ कि “तलवार मुकाबिल हो तो अखबार निकालो”.. ये फिलिंग उनके चेहरे की शोभा बढ़ा रही थी..
कहने लगे “तुम जरा प्रगतिशील बनो अतुल.. अच्छा लिख रहे हो, लेकिन इस तरह हिंदी साहित्य में कुछ नहीं हो पाएगा.. ये सब घिसी-पीटी बातें.. ये नहीं चलता आजकल हिंदी में..”
मैं ये सब सुनता रहा …अचानक मेरी नज़र एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक पर गयी..जिसके पन्ने एक मन्द गति के पँखे से निकली उमस भरी गर्मी से फड़फड़ा रहे थे.. खबर थी..
“पति ने दुबई से दिया फोन पर तलाक.
मौलवी ने हलाला के बहाने किया शोषण..
हवाला में फंस सकते हैं केजरीवाल..
आईआईएमसी में हुआ हवन..”
मैनें कहा “साथी ये केजरिवाल बड़ा ठग निकला न’ ? वो कहने लगे “ये सब मोदी की चाल है..वो केजरीवाल को फंसा रहा..
जरा प्रगतिशील बनो..थोड़ा आगे सोचो..
मैंने पूछा..”हलाला के बारे में आपका क्या ख्याल है..”? बड़ी बेरहम परम्परा है ये तो साथी.
न जाने कितनी राबिया, रज़िया और शबनम आज मौत से बदतर जीवन जी रहीं हैं.. दाने-दाने को तरस रहीं हैं..”
क्रांतिकारी कहने लगे “ये भी उसी मोदी की चाल है.. वो पहले मुस्लिम महिलाओं को रोजी-रोजगार दे तब तलाक की बातें करे. और उनके जब धर्म ग्रन्थ में लिखा है.. तब उनका निजी मामला है.. फिर क्या दिक्कत हो रही किसी को..?
मैनें कहा “साथी वो तो ठीक है..धर्म ग्रन्थ की बात तो ठीक है… मुझे पता नहीं था कि देश अब धर्म ग्रन्थ से चलेगा संविधान से नहीं….
और साथी इस्लाम मात्र 1400 साल का है, जिसकी आप दुहाई दे रहे..लेकिन सात हजार साल से ज्यादा हुए रामायण को जिसमें वाल्मीकि ने लिखा कि राम का जन्म अयोध्या में हुआ.. यहां तक कि वो मुहूर्त, घड़ी और ग्रह, नक्षत्र, सब लिखा है.. और आज भी कलाम साब जैसे कई वैज्ञानिकों ने जब गणना किया तो उसे एकदम सटीक और सत्य पाया है.. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया जिसमे सभी धर्मों के लोग शामिल होकर खुदाई कर रहे थे..जब वो लोग बोल चूके हैं तो क्या इस आधार पर राम मंदिर नहीं बनना चाइये..?
क्रांतिकारी झल्लाए…”तुम बेवकूफ हो.. अभी और पढ़ने की जरूरत है.. जेएनयू के इतिहासकारों को पढ़ो.. वहां कोई राममंदिर नही है.. कायदे से इस झगड़ें को निपटाकर वहां एक अस्पताल बनाना चाहिए.. लेकिन ये सब संघी देश को जीने नही देंगे..
“बांट के रख दिया है इन्होंने देश को “
मुझे फिर अपने प्रगतिशील न होने पर भारी सन्ताप हो ही रहा था कि फिर एक खबर आंखों के सामने तैर गयी.. जिसका… लब्बोलुआब ये था कि
“पत्रकारिता के सबसे बड़े संस्थान में हवन..”
क्रांतिकारी इस खबर को देखते ही बौखलाए… तेज-तेज बोलने लगे… एक शिक्षण संस्थान को मजाक बना के रख दिया है इन संघीयों ने.. बताओ उस हत्यारे कल्लूरी को बुला रहे..
हमने कहा..”साथी क्या दिक्कत है. जब इस्लाम की आस्था का आपको इतना ख्याल है तो इस देश के बहुसंख्यक की सनातन परंपरा हवन से इतनी आपत्ति क्यों..? जब उसी के बगल वाले संस्थान में महिषासुर पूजा, बीफ पार्टी हो सकता है.. तब इसे लेकर इतनी हाय तौबा क्यों? अरे! एक कैम्पस में सब कुछ होना चाहिए.. सभी लोगों को अपने विचार रखने का मौका देना चाहिए.. सबको सबकी सहमति-असहमति का सम्मान करना चाहिए.. झूठे इतनी हाय! तौबा..?
क्रांतिकारी उठ खड़े हुए…”कहने लगे..लिखना छोड़ दो. तुम कभी लेखक नहीं बन सकते… लेखक से पहले प्रगतिशील बनो… जात-पात, धर्म, मजहब से उप्पर की सोचो…” इतना कहकर क्रांतिकारी जाने को हुए.. हाँ एक शुभ समाचार ये है कि नवम्बर में शादी फिक्स है.. आना है तुमको..
हमने मजाक में पूछा “भइया मैंने सुना कि आप अपने कॉलेज की किसी दलित क्रांतिकारी लड़की से शादी कर रहे हैं..?
साथी कहे. अरे! नहीं..सब अफवाह है.. मौसी की देयादिन के रिलेशन में शादी हो रही. लड़की सुंदर और सुशील है..गांव के कॉलेज से ही होम साइंस में एमए है..
हमने कहा भइया..” आपकी शादी में हवन होगा न ”
वो बस मुस्कराए..और चलते बने..
इधर मैं तब से अवाक हूँ.. प्रगतिशील बनने के सारे उपाय खोज रहा हूँ..मैं ऊपर उठने को व्यग्र हो रहा हूँ..अपनी नादानी और मूढ़मति पर तरस खा रहा हूँ..
आज जीने का मन नहीं कर रहा..सोच रहा..
हाय! मैं प्रगतिशील कब बनूँगा….?
Web Title: Progressive Writing, Atul Kumar Rai
Keywords: Writing, Writer, Communism, Sanghwad, Marxist, Triple Talaq, Halala, Issues, Satire, Progressive Writers in Hindi, Satirical Story in Hindi, Problems, Solutions
Featured image credit / Facebook open graph: sify