स्वतंत्रता दिवस के पास आते ही मन में कुछ डरावने ख़याल आने शुरू हो जाते हैं. सबसे पहला बुरा विचार जो मन में आता है वह यह होता है कि कहीं यह सन्डे के दिन पड़कर एक अच्छी खासी छुट्टी का सत्यानाश न कर जाए. दूसरा दु:स्वप्न यह होता है कि इस बार ऑन लाइन शौपिंग में फ्रीडम सेल चलेगी कि नहीं और चलेगी तो क्या इतनी छूट मिलेगी की हमें अपनी आजादी को फील करने का भरपूर मौका मिलेगा ?
शंकाओं के बादल बस इतने से ही छंटने वाले नहीं होते है. हर स्वतंत्रता दिवस से पहले यह बात भी तय करनी होती है कि इस दिन पूरा समय परिवार के साथ मूवी देखकर बिताना है या फिर दोस्तों के साथ क्लब -श्लब में पार्टी के साथ आजादी का जश्न एन्जॉय करना है. हर बार जिस चीज़ की कमी रह जाती है वह है इस दिन ‘ड्राई डे’ होने की वजह से आजादी के जश्न में खलल पड़ना.
इसलिए सोमरस का प्रबंध हफ्ते भर पहले से करके टेंशन फ्री होकर स्वतंत्रता दिवस पर अटेंशन देने की कवायद करना भी सबसे बड़ा काम हो जाता है.
इस बार एक नया अनुभव हुआ. स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या कम नाइट में एक स्वतंत्रता सेनानी की भटकती आत्मा ने मेरे फिनाले तक पहुंच चुके सपने में वाइल्ड कार्ड से इन्ट्री ली और उत्सुकतापूर्वक पूछा- ‘लगता है कल की तैयारियों की प्लानिंग चल रही है कि कैसे आज़ादी के जश्न को शानदार तरीके से मनाओगे?
कैसे शहीदों को याद करोगे और कैसे देश भक्ति की भावना दिखाओगे’?
स्वतंत्रता सेनानी की आत्मा के इस दु:स्साहस ने मेरा सपना क्या तोड़ा, मैं किसी घायल सांप की तरह तड़पते हुए बोला- ‘अब जले पर नमक ना छिड़को. एक तो तुम्हारे इस स्वतंत्रता दिवस पर बॉस ने ऑफिस में झंडा फहराने का आदेश निकाल कर सारे फनडे को खराब कर झण्डे को पकड़ने पर मजबूर कर दिया और ऊपर से तुम मेरी नींद भी खराब करने चले आए’. लगभग पूरे कलयुगी राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाले मेरे स्टेटमेन्ट को फ्रीडम फाइटर साहब की आत्मा पचा ना पाई और तुनक कर बोली- ‘अगर ऐसी बात है तो फिर आफिस, स्कूल, कालेज और जगह-जगह जलसे क्यों होते हैं? मिठाई क्यों बांटते हैं. हमने देश के लिए अपनी जान दे दी और तुम लोग देश के लिए अपना एक दिन नहीं कुर्बान कर सकते हो ?’
मैं एक कुटिल मुस्कान रिलीज़ करता हुआ बोला- ‘बड़े मियां ! बहुत भोले हो, तभी तो खामाखां में शहीद हो गये. ध्यान से कान खोलकर सुनो. जलसे ऐसे ही नहीं मनाये जाते. मिठाई ऐसे ही नहीं बांटी जाती है. टेन्ट, कुर्सी, मेज़, चाय-नाश्ते, झण्डा, झण्डी, लड्डू-टाफी सबका काफी बजट होता है. इसमें कुछ देश भक्ति के नाम खर्चा होता है और कुछ कर्णधार टाईप के लोगों की शक्ति से आपस में मिल बांट के खर्चा हो जाता है. और रही बात एक दिन की क़ुरबानी देने की तो इसका उत्तर भी जान लो. जब कोई मल्टी नेशनल कंपनी आपसे कोल्हू के बैल की तरह काम लेती है तो उसे आजादी और गुलामी में फरक करने के सिर्फ छुट्टी का दिन ही मिलता है.’ वास्तविकता की इतनी कडवी डोज़ पाकर वह फ्रीडम फाइटर किसी डेन्जर ज़ोन में खड़े प्रतिभागी की तरह दुखी होकर अपन साहस बटोरता हुआ बोला- ‘चलो कोई बात नहीं, यह तो बताओं कि हमारी दी हुई आज़ादी को तुम लोग इन्ज्वाय कर रहे हो ना? तुम्हे इस आज़ादी की खुली सांस का प्रयोग करते देखने में ही हमें आनंद आ जायेगा.
मैंने कहा- ‘अब पूछा है तुमने मिलियन डालर क्वेश्चन. आज़ादी तो बड़े मियां हम लोग ऐसे इन्ज्वाय कर रहे हैं कि तुम्हे पता चलेगा तो वाकई फील गुड करने लग जाओगे. आज हमारे नेताओं के पास घोटाले करने की फुल फ्रीडम है. अधिकारियों को भ्रष्टाचार करने का तो मौलिक अधिकार प्राप्त हो गया है. सुविधा शुल्क लेने और देने की हमें पूरी स्वतंत्रता प्राप्त है. मिलावट खोरों को दवा से लेकर दारू तक रिमिक्स करने की पूरी छूट का परमानेन्ट लाइसेंस मिला हुआ है. आज जातिवाद भाषावाद, क्षेत्रवाद के आधार पर पालिटिक्स करने का नेताओं को कापी राइट मिला हुआ है. तो नेताओं के कुपुत्रों को राह चलती लड़कियों को दिन दहाड़े छेड़ने की भरपूर स्वच्छंद्ता है.’
आजादी की इस लेटेस्ट परिभाषा को जानकर स्वतंत्रता सेनानी महोदय की आत्मा अपना आपा खोने लगी. अपने खत्म होते धैर्य के पेट्रोल को ‘मेन’ से रिज़र्व में लगाते हुए बोली- ‘अच्छा यह बताओ सत्य, अहिंसा, समानता, कर्मठता, त्याग, बलिदान, स्वाभिमान और अभिमान की बातें जो हमारी प्रेरणा होती थीं. आज बताईये यह सब हैं कि नहीं?’
मैं बोला – ‘है ना ! मीटिंगों में, सम्मेलनों में, भाषणों में, गोष्ठियों- में, संकल्पों में, परिकल्पनाओं में, प्रोजेक्टों में, ए0सी0 कमरों के अन्दर चल रहे वाद विवाद में और लाइब्रेरी में सजी किताबों में यह सारी बातें बखूबी आज भी अंगद के पैर की तरह डटी हुई हैं. पन्द्रह अगस्त को इन्हीं भूली बिसरी बातों को झाड़-पोछकर इस्तेमाल किया जाएगा और सोलह अगस्त को फिर से इन्हें अगले साल तक के लिए लालच, स्वार्थ, झूठ, फरेब, हिंसा के लाकरों में सुरक्षित कर लिया जाएगा.’
स्वतंत्रता सेनानी की आत्मा शायद तब भी इतनी शर्मशार न हुई होगी जब यहाँ पर अंग्रेजों का शासन रहा होगा. मेरी बाते सुनकर उस आत्मा की अगर आत्मा होती होगी तो वह भी छलनी ज़रूर हुई होगी. उस आत्मा को अब गांधी दर्शन से ही कुछ आशा बची थी .आत्मा ने पूछा – ‘अच्छा यह बताओ की गांधी जी को तो लोग पहचानते हो कि नही कि उन्हें भी लोगों ने बुला दिया है?’
मुझे पता था कि बिना गाँधी जी की बात किये अभी उस आत्मा को शांति मिलने वाली नहीं . मैंने कहा –‘ गाँधी दर्शन से ही तो आज पूरा देश प्रेरणा ले रहा है. हर सरकारी दफ्तर में मेज के नीचे अलमारी के पीछे नोट पर छपे गाँधी दर्शन से ही तो देश चल रहा है.’ अब उस आत्मा का कुपित होने का प्रतिशत और बढ़ गया. लेकिन लगता था कि जिस तरह अंग्रेजों के पीछे पड़कर उसने देश को आजादी दिलाई थी उसी तरह वह आज मुझे आजाद किये बगैर मेरा पीछा छोड़ने वाली नहीं थी. इसलिए उसने अगला सवाल गाँधी जी के तीन बंदरो के कुशलक्षेम पूछने में लगा दिया . अब मैंने भी उस आत्मा की परमानेंटली शांति के लिए उनको बंदरो के हाल भी बयाँ कर दिए. मैंने कहा –‘बापू का वह बन्दर जो आँख बंद कर बुरा न देखो की सीख देता था अब वह कानून बन चुका है. उसे सबूतों के अलावा कुछ नहीं दिखाई देता है. कान बंद कर बुरा न सुनो कहने वाला बन्दर अब प्रशासन बन गया है जो किसी की नहीं सुन रहा है. मुंह पर हाथ ढक कर बुरा न बोलो का सन्देश देने वला बन्दर अब देश के हर बन्दे का आदर्श बन चुका है. चाहे जितना भ्रष्टाचार हो जाए जनता अपना मुंह बंद किये रहती है. चाहे समाज में कितनी भी असमानताएं पनप जाए लोग झूठी शान के लिए मुंह सिले रहते हैं.’
शायद आजादी के मायने जो उनके लिए थे और जो मायने हमने खोज लिए हैं. उनमें बड़ा अंतर आ चुका है. अब स्वतंत्रता सेनानी की आत्मा तार -तार हो चुकी थी. उसमे इतना साहस नहीं बचा था कि वह इस आज़ादी के बारे में बारे में मुझसे कुछ और सवाल पूछ सके. लगता है मेरी बाते सुनकर उस आत्मा को अभी जल्दी शांति मिलने वाली नहीं.
Web Title: Real meaning of freedom, Hindi Satire, Alankar Rastogi
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