उन्होंने जेब से पान मसाले का पाउच इस गर्व से बाहर निकाला मानो, कोई सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रमाण-पत्र बाहर निकाल रहे हों. फिर उसे एक अद्भुत शैली में फाड़ कर सम्पूर्ण पान मसाले को अपने श्रीमुख में डालकर अपने आपको समाज की मुख्य धारा में सम्मिलित हुआ मान लिया. अपनी गरदन को गर्व के उच्चतम बिंदु पर समायोजित कर वे मानव जीवन पाने का वास्तविक उद्देश्य पा चुके थे. साथ ही पाउच को सड़क के हवाले कर जनाब स्वच्छता अभियान के दमन के अघोषित ब्रांड अम्बेसडर भी बन गए थे. फिर अपनी पान मसाले से लैस जेब के प्रति कृतज्ञता दर्शाते हुए अपने दैनिक क्रियाकलापों से दो-दो हाथ करने के लिए कूच कर गए.
इस पान मसाले के अदने से पाउच ने क्रांति की लहर सी पैदा कर दी है. आजकल के समय में पान मसाले को युगप्रवर्तक कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. इससे समाज को जो लाभ हुआ है उसका संकलन कर दिया जाए तो पूरा का पूरा पान मसाला पुराण तैयार हो सकता है. इसने ध्वनि प्रदूषण को रोकने में भी बड़ी भूमिका निभाई है. खुद सोचिये जब देश की आधी आबादी मुँह में पान मसाला चबाये इशारों-इशारों में लम्बी-लम्बी बातें कर रही हो तो ध्वनि प्रदूषण तो कम होना ही है. या यूँ समझ लीजिए इन लोगों को मुँह से पान मसाला न थूकना पड़े इसके लिए इशारो-इशारो में यह लोग ऐसे बतियाते हैं कि गूंगे-बहरे तक शरमा जायें.
कुछ लोग तो शादी-ब्याह में भी पान मसाला खाकर ऐसे शान्त बैठ जायेंगे मानों शादी में नहीं किसी के अंतिम संस्कार में आये हों.
घर की सुख शांति में भी पान मसाला बड़ा कारगर सिद्ध होता है. घर में पत्नी के आगे वैसे भी पति वाईब्रेशन मोड़ में लगा रहता है. बाकी कसर तब पूरी हो जाती जब इसके सेवनोपरान्त पति रूपी प्राणी की रही-सही जबान भी बन्द हो जाती है और आपसी झगडे़ की भी सारी संभावनायें समाप्त हो जाती हैं.
पान मसाले ने ही इस देश की गली – गली में एम् ऍफ़ हुसैन पैदा कर दिए हैं. जो स्प्रे पेन्टिंग बड़े से बड़े कलाकार को करने में घंटों लग जाते हों, वही पेन्टिंग आज यह पान मसाले के सेवनकर्ता मात्र एक पीक में कर डालते हैं.
आज शौचालय से लेकर सचिवालय तक, मंदिर से लेकर मदिरालय तक, बस अड्डे से लेकर हवाई अड्डे तक आप इस लोक कला का प्रदर्शन उन्मुक्त रूप से देख सकते हैं. अब वह दिन दूर नहीं जब राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस ‘पीक कला’ को मान्यता प्रदान कर उसे प्रोत्साहित करने के लिए थूक और पीक कला प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाने लगेगा.
Eating Gutkha, Ban in Government Offices (Pic: dnaindia.com)
इसका सबसे बड़ा लाभ तो उन लोगों को होता है जो अपने पुराने सफेद वस्त्र से त्रस्त हो चुके होते हैं. उन्हें बस किसी टैम्पो या टैक्सी के अगल-बगल चलना होता है. फिर मात्र एक किलोमीटर की यात्रा में ही उनके सफेद डल और बोरिंग वस्त्र लाल-लाल रंग के नये पैटर्न और डिज़ाईन में परिवर्तित हो जाते हैं.
पान मसाले ने आपसी मेलजोल और भाईचारे को भी बढ़ाने में वह योगदान दिया है जो आज तक दूरदर्शन का ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ वाला नारा तक नहीं दे पाया है. मंदिर –मस्जिद बैर कराते मेल कराता पान मसाला वाली तर्ज़ पर लोग आफिस, बस, ट्रेनऔर राशन की लाईन या कहीं भी देखिये ऊँच-नीच, अमीर-गरीब, हिन्दू-मुस्लिम के भेद की परवाह किये बगैर पान मसाले को खाते और खिलाते मिल जायेंगे. पान मसाले से लोगों के अन्दर एक गर्व और अभिमान की भावना का भी विकास हुआ. पान मसाला खाते ही लोगों की गर्दन स्वतः ही ऊँची हो जाती है. यह प्रक्रिया स्वाभिमान के कारण नहीं बल्कि अपने मुंह के माल को नीचे गिरने की कवायद के कारण होती है. पान मसाले के सेवन करने के पश्चात महा के लुच्चे फकीर तक शहंशाह मुहम्मद जलालउद्दीन अकबर की तरह अकड़ कर चलने लग जाते हैं. यह तो खैर गनीमत है कि अपने देश में थूकने में पाबन्दी नहीं है इस कारण लोग थूक –थूक कर ही कई इलाकों पर अपना मालिकाना बना लेते हैं.
पान मसाले के कारण ही आज हमारा देश अनाज के मामले में आत्मनिर्भर हो पाया है. आज लोग नाश्ते में ब्रेड-मक्खन न खाते हों, अलबत्ता सुबह उठते ही उनके मुख में पान मसाले का सुख अवश्य प्राप्त होना चाहिए. खाने में दो रोटी कम चलेगी, लेकिन दिन भर में बीस-पच्चीस पाउच से कम में पेट नहीं भरता है. ऐसे लोग किसी शादी-ब्याह की दावत में जाते हैं तो यही मनाया करते हैं कि काश रसमलाई और रसगुल्ले की जगह पर पान मसाले के पाउच सर्व हो रहे हों. वैसे इस पान मसाले के पाउच में ऐसा न जाने कौन सा आकर्षण है कि लोग इसके आगे फट से आत्मसमर्पण कर देते हैं.
अगर इसे सरकारी दफ्तर में बैन कर दिया जाएगा तो स्थिति कितनी भयावह हो सकती है इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं. आज इसी पान मसाले की ही बलिहारी है जिसमें बड़े से बड़े खुर्राट बाबू तक को महज एक पाउच में पिघला कर काम करने को विवश कर दिया है और न जाने कितनी चप्पलों को घिसने से बचा लिया है.
कई बाबुओं का तो दिमाग ही तभी चलता है जब उनमें पान मसाला रुपी पेट्रोल पड़ता है. दफ्तर का बाबू जब कहीं नहीं मिले तो पक्का पान की दुकान में पान मसाले की जुगाली करता ज़रूर मिल जाता था. एक चुटकी पान मसाले की कीमत केवल एक बाबू से मिलने जाने वाला बंदा ही बता सकता है. यह बाबुओं की आन, बान और शान का प्रतीक होता है.
Tobacco Chewing, Eating Gutkha, James Bond (Pic: india.com)
कुछ लोग तो इसके इतने मुरीद हैं कि मृत्यु शैया पर पड़े हों और संजीवनी बूटी तथा पान मसाले में से किसी एक को चुनना हो तो उंगली पान मसाले पर ही रखेंगे. भले ही मृत्यु शैया भी उसी पान मसाले के कारण ही क्यों न मिली हो. पान मसाले की महिमा तो तब समझ में आती है जब अगला एक पाउच के बूते वह काम कर जाता है जो लोग बादाम और जूस लेकर नहीं कर पाते. इधर एक पाउच अन्दर और उधर जिन्न वाली आत्मा ‘क्या हुकम है मेरे आका’ कहते हुए बाहर निकल पड़ती है. इस एनर्जी बूस्टर का जलवा इस कदर है कि जब जेब में यह पड़ा होता है तब अगले के पास हर काम का बस यही जवाब होता है कि ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है.
पान मसाले के सेवनकर्ता जब इसके पक्ष में तर्क देते हैं तो एक बार तो बड़े से बड़े वकील का कद भी छोटा लगने लगता है. कोई कहता है मजाल है इसे खाने के बाद दांत में कीड़ा लग जाए. कोई कीड़ा इसके खाने के बाद जिंदा ही नहीं रह पाता है.
एक का तर्क था यह दिमाग के लिए बादाम के अर्क से ज्यादा फायदेमंद होता है.
हद तो तब हो जाती है जब इसे खाने वाले अपने आपको ही मर्द मानते हैं. यानी मर्दानगी का आईएससो 9001 प्रमाणपत्र भी यही पान मसाला ही होता है. कुछ लोग तो बस इसी लिए पान मसाला नहीं छोड़ पा रहे हैं कि कहीं कोई उनकी मर्दानगी पर ही प्रश्न चिन्ह न लगा दे. अब खुद सोचिए जहाँ इस अदने से पान मसाले से इतने बड़े सामाजिक परिर्वतन हो जाते हैं वहाँ छोटी मोटी कैंसर जैसी बीमारी हो भी जाये तो क्या करना.
Tobacco Chewing, Eating Gutkha, Dangerous for Health (Pic: distantdrumlin)
Web Title: Tobacco Chewing, Eating Gutkha, Hindi Satire
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