इस सदाबहार त्यौहार को भला कौन नहीं जानता और मानता है. ऋतु परिवर्तन के रूप में वस्तुतः यह एक उपहार ही है हम सबके लिए! बसंत पंचमी के अवसर पर चारों ओर पीली सरसों लहलहाने के किस्से सदियों से हम सुनते रहते हैं तो इस दिन से शरद ऋतु की विदाई के साथ पेड़-पौधों और प्राणियों में नवजीवन का संचार होता है. इस त्यौहार को प्रेम, यौवन और मस्ती से जोड़ा जाता है और कौन ऐसा मनुष्य होगा, जिसे “प्रेम” से लगाव न हो! आखिर, इसी बसंत में तो ‘वेलेंटाइन डे’ की धूम समूचे संसार में रहती है. पर प्रेम और मस्ती से अलग हटकर देखते हैं, तो बसंत पंचमी हमारे इतिहास और परम्पराओं से भी गहरे से जुड़ा हुआ है. आइये कुछ तथ्यों पर दृष्टिपात करते हैं:
सरस्वती आराधना
Basant Panchami 2017, Saraswati Poojan (Pic: God Wallpaper)
इस दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है. माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि यानी ‘बसंत पंचमी’ का दिन ज्ञान, संगीत, नृत्य, कला से सम्बंधित लोगों के लिए बेहद खास होता है. वे माँ ‘सरस्वती’ की पूजा कर अपने क्षेत्र में सफलता की कामना करते हैं. देश भर के तमाम विद्यालयों में इस दिन ‘सरस्वती पूजा’ तो की ही जाती है, साथ में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं. आज ही के दिन बच्चों को हिंदू रीति के अनुसार उनका पहला शब्द लिखना सिखाया जाता है. परम्पराओं के अनुसार इस दिन पीले वस्त्र धारण करने का भी ख़ास महत्त्व है.
पृथ्वीराज चौहान से जुड़ी गौरव गाथा
Basant Panchami 2017, Prithviraj Chauhan (Creative: Team Roar)
भारत का इतिहास वीरगाथाओं से भरा पड़ा है. इन्हीं गाथाओं में वीर शिरोमणि पृथ्वीराज चौहान का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है. युद्ध में 16 बार मोहम्मद गौरी को हराने के बाद पृथ्वीराज चौहान ने अपने शत्रु को माफ़ कर दिया था. ऐसा उदाहरण इतिहास में कोई दूसरा नहीं मिलता है. अपने 17वें आक्रमण में धोखे से मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना लिया और अपने साथ अफगानिस्तान ले गया. वहां ले जाकर उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित किया गया. यहाँ तक कि लोहे की गर्म सलाखों से उनकी आंख तक फोड़ दी गयी. जिस दिन उन्हें मृत्यदंड दिया जाना था, वह 1192 में ‘बसंत पंचमी’ का ही दिन था. उस ख़ास दिन श्रेष्ठ धनुर्धर पृथ्वीराज चौहान ने अपने मित्र कविश्रेष्ठ चंदबरदाई की एक कविता की मदद से ऊंचाई पर बैठे मोहम्मद गौरी को अपने शब्द भेदी वाण से मौत के घाट उतार दिया था. वह कविता की पंक्ति थी:
चार बाँस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमान!
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान!!
बाल वीर हकीकत राय का बलिदान
Basant Panchami 2017, Bal Veer Hakikat Rai (Pic: Voiceofpunjab)
वीर हकीकत राय का बलिदान आज भी हमारे समाज में श्रेष्ठ उदाहरण और प्रेरणा का श्रोत बना हुआ है. बसंत पंचमी के दिन ही इस वीर बालक को ‘मृत्युदंड’ दिया गया था. अपनी जान और अपने धर्म की रक्षा में इस कालजयी बालक ने मृत्यु का चयन किया, किन्तु अपने धर्म को न छोड़ा! कहा जाता है कि कुछ मुस्लिम बच्चों के द्वारा माँ दुर्गा का मजाक उड़ाने का विरोध करने पर उल्टा उन्हें ही बीबी फातिमा के अपमान में फंसा दिया गया था. आरोप के बाद उनके सामने या तो इस्लाम कबूलने या मौत को स्वीकार करने का प्रस्ताव रखा गया, लेकिन बालक हकीकत ने मौत को स्वीकार किया और स्वधर्म की रक्षा कर अजर अमर हो गए. इस्लाम को नहीं.
रामसिंह कूका का जन्मदिवस
Basant Panchami 2017, Ram singh Kooka (Creative: Team Roar)
बसंत पंचमी हमें गुरू रामसिंह कूका की भी याद दिलाती है. उनका जन्म 1816 ई. में बसंत पंचमी पर लुधियाना के भैणी ग्राम में हुआ था. कुछ समय वे रणजीत सिंह की सेना में रहे, फिर घर आकर खेतीबाड़ी में लग गये, पर आध्यात्मिक प्रवृत्ति होने के कारण इनके प्रवचन सुनने लोग आने लगे. धीरे-धीरे इनके शिष्यों का एक अलग पंथ बन गया, जो बाद में ‘कूका पंथ’ कहलाया. गुरू रामसिंह गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उद्धार, अंतरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे. उन्होंने सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का वहिष्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी. उन्हें एक आध्यात्मिक और सामाजिक सन्त के रूप में ख्याति प्राप्त है.
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
Basant Panchami 2017, Suryakant Tripathi Nirala (Creative: Team Roar)
हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्मदिवस बसंत पंचमी के दिन ही हुआ था. निराला जी ने 1942 से मृत्युपर्यन्त इलाहाबाद में रह कर स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य किया. वे जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं. उन्होंने कहानियाँ, उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं, किन्तु उनकी ख्याति विशेष रुप से कविता के कारण ही है. उनकी रचनाओं में प्रेम, आध्यात्मिकता, विपन्नों के प्रति सहानुभूति, देश प्रेम और सामाजिक रूढ़ियों का कड़ाई से विरोध किया गया है. इलाहाबाद में पत्थर तोड़ती महिला पर लिखी उनकी कविता ‘वो तोड़ती पत्थर’ आज भी सामाजिक यथार्थ का एक आईना है.
Web Title: Basant Panchami 2017, Historical Point of View in Hindi
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