
21वीं सदी के आधुनिक दौर में भी ट्रांसजेंडर होना आम नहीं समझा जाता है.
आज भी जब कोई ट्रांसजेंडर अपने घर से निकलता है, तो उसे उपेक्षा की नज़र से देखा जाता है. उन्हें समाज से अलग रहने की मूक हिदायत दी जाती है. ऐसा न करने की स्थिति में उन्हें कई बार अभद्र व्यवहार सहना पड़ता है.
समाज ही क्यों उनका परिवार तक उनसे दूरी बनाने में संकोच नहीं करता. ट्रैफिक सिग्नल्स पर कड़ी धूप में जिस तरह वह अपनी आजीविका के लिए खड़े रहते हैं, वह दृश्य बेहद कारुणिक और अमानवीय प्रतीत होता है.
यह समझना मुश्किल है कि आदमी या औरत के बराबर सम्मान और स्वीकार्यता की ‘उनकी चाह’ गलत कैसे है?
जैसे-तैसे वह अपना जेंडर बदलने के लिए खुद को तैयार भी कर लेते हैं, तो उन्हें चिकित्सा के दौरान होने वाला लंबा खर्चा पीछे धकेल देता है. ऐसे में आमतौर पर किसी का भी हौसला दम तोड़ सकता है.
किन्तु, घबराने की बात नहीं है, क्योंकि बदलाव की राह पर समाज को ले चलने वाले और उसे सहज बनाने वाले लोग भी मौजूद हैं.
एमजी मोटर इंडिया (MG Motor India) एवं दी बेटर इंडिया (The Better India) अपने चेंजमेकर कैम्पेन के माध्यम से ऐसे ही ‘बदलाव के वाहकों’ को सामने ला रहा है, जिन्होंने तमाम बाधाओं को अपनी इच्छाशक्ति के सामने टिकने नहीं दिया है.
तो आईए मिलते हैं एक ऐसी ही ट्रांसजेंडर से, जिन्होंने इसी समाज में न सिर्फ अपनी पहचान को स्थापित किया, बल्कि दुनिया के लिए एक मिसाल बनकर उभरीं-
13 की थीं कल्कि, जब लगा ‘कुछ औरत जैसा’ है!
'कल्कि सुब्रमण्यम'.
वह नाम जिसने बचपन से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ी. आज वह ट्रांसजेंडर समुदाय ही नहीं, बल्कि सभी के लिए एक प्रेरणा हैं.
कल्कि का जन्म तमिलनाडु के पोलाची में हुआ. पिता पेशे से एक कारोबारी और मां गृहणी थीं. थोड़ी बड़ी हुईं, तो पिता ने उन्हें पढ़ाई हेतु कोडाईकनाल के छात्रावास भेज दिया.
इसी दौरान वह 13 साल की रही होंगी, जब उन्हें लगने लगा कि उनके साथ कुछ ठीक नहीं है. उन्हें महसूस हुआ कि उनका शरीर तो लड़कों का है, लेकिन अंदर से वो एक लड़की हैं.
इसकी खबर उनकी मां को हुई, तो वह पहले से ज्यादा उनकी देखभाल करने लगीं.
बाधाओं को पार करके हासिल किया ‘आत्मविश्वास’
आगे पिता ने उनका दाखिला लड़कों के एक स्कूल में करा दिया, जहां उन्हें खासी दिक्क्तों का सामना करना पड़ा. वहां उनका कोई दोस्त नहीं था. सब उन्हें चिढ़ाते थे.
इससे बचने के लिए वह अक्सर पास के पार्क में जाकर छिप जातीं. यह वही जगह थी, जहां उनकी मुलाकात अप्सरा नाम की ट्रांसजेंडर से हुई. अप्सरा की मदद से वह दूसरे कई ट्रांसजेंडरों के संपर्क में आईं. वहां उन्होंने महसूस किया कि एक ट्रांसजेंडर को किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
चूंकि बचपन से ही अंग्रेजी में उनकी खास रुचि थी, इसलिए उन्होंने स्नातक की डिग्री भी इसी से की.
आगे उन्होंने मदुरै कामराज विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में मास्टर डिग्री हासिल की.
उन्होंने यह उपाधि इसलिए ली थी, क्योंकि वह मीडिया के माध्यम से ट्रांसजेंडरोंं के लिए आवाज उठाना चाहती थीं. उन्होंने इसी दौर में ट्रांसजेंडर मुद्दों के लिए एक तमिल भाषा वाली सहोदरी नामक मासिक पत्रिका भी निकाली.
प्राइवेट कंपनी में काम करके उन्होंने पैसा इकट्ठा किया और तय किया कि वह अपना अस्तित्व पाकर रहेगीं.
वह भी बिना अपनी पहचान खोये... एक ट्रांसजेंडर के रूप में.
हालांकि, यह आसान नहीं था, किन्तु कल्कि ने बाधाओं को पार करके अपना आत्मविश्वास हासिल किया.
‘पेंटिंग्स' को बनाया अपनी ताकत
कल्कि एक ट्रांसजेंडर बन जरूर गई थीं, लेकिन समस्याएं अभी खत्म नहीं हुई थीं.
बताते चलें कि जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में लगभग 4.9 लाख ट्रांसजेंडर लोग मौजूद हैं. हालांकि, अगर कोई बच्चा ट्रांसजेंडर बनना चाहता है, तो अक्सर परिवार और समाज उसे त्याग देते हैं.
वे सड़कों पर रहने के लिए मजबूर हो जाते हैं, जहां उन्हें दुर्व्यवहार और शोषण का दंश भी झेलना पड़ता है.
कल्कि को भी इसका सामना करना पड़ा. ट्रांसजेंडर बनने के बाद उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि वे क्या करें?
रोजगार संबंधी कई सारी चुनौतियां उनके सामने खड़ी थीं.
खैर, हाशिए पर होने के बावजूद वह बिखरी नहीं. वह अपनी इच्छाशक्ति के दम पर एक नई राह पर निकल पडीं.
यह राह थी 'पेंटिंग्स' को लेकर उनका जुनून!
अपनी पेंटिंग्स को उन्होंने अपनी ताकत बनाया. अपनी हर कृति में उन्होंने मानव जीवन और प्रकृति की विविधता को दर्शाया.
इस क्रम में ‘सहोदरी फाउंडेशन’ ने उनकी इच्छा को नई उड़ान दी.
जून 2016 को एलायंस डी फ्रेंकोइस, त्रिवेंद्रम में उन्होंने एक कला प्रदर्शनी का आयोजन किया, जिसने उन्हें सुर्खियों में ला दिया. इसकी सफलता के बाद वे इसे लेकर कोयंबटूर और बैंगलोर भी गईं.
पेंटिंग्स बनाने की राह में सबसे खास बात तो यह थी कि इसके जरिए उन्होंने अपने जैसे लोगों यानी ट्रांसजेंडरों को एजुकेट करना भी शुरु किया, जोकि एक क्रांतिकारी कदम साबित हुआ.
आंकड़ों की मानें, तो वह सहोदरी के माध्यम से अब तक करीब 10,000 ट्रांसजेंडरों को ‘अनकही कहानियों’ को कैनवास पर उतारने के लिए प्रशिक्षित कर चुकी हैं.
ट्रांसजेंडर के ‘हक की लड़ाई’ का चेहरा
2008 में वे श्रीलंका में युद्ध और नरसंहार के खिलाफ अपना विरोध जाहिर करती दिखीं. उनके नेतृत्व में ट्रांसजेंडर महिलाएं एकत्रित हुई थीं और उन्होंने एक दिन का अनशन भी किया.
यही नहीं 2017 में वे ट्रांसजेंडर के हक के लिए हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में बतौर स्पीकर बनकर गयीं. उनसे पहले शशि थरूर जैसी हस्तियों को इस कॉन्फ्रेंस में आमंत्रित किया गया था.
इससे पहले वह 2010 में, संयुक्त राज्य अमेरिका के आईवीएलपी प्रोग्राम का हिस्सा बनी थीं.
8 मार्च 2015 को महिला दिवस के अवसर पर फेसबुक ने उन्हें दुनिया की 12 प्रेरणादायक महिलाओं में से एक के रूप में चुना था.
माना जाता है कि उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि तमिलनाडु में ट्रांसजेंडर कल्याण बोर्ड की स्थापना हो सकी. इसके अलावा राज्य सरकार के सह-शिक्षा कॉलेजों में ट्रांसजेंडर महिलाओं के अध्ययन के लिए प्रवेश के लिए एक विशेष श्रेणी का प्रावधान किया गया.
2013-14 में आए सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के तहत ट्रांसजेंडरों की स्वतंत्रता की पुष्टि की गई. साथ ही तीसरे लिंग के रूप में उन्हें पहचान भी दी गई.
हालांकि, इस बात में दो राय नहीं है कि ट्रांसजेंडरों को अपने अच्छे दिनों के लिए अभी भी एक लंबा सफर तय करना बाकी है. ऐसा इसलिए, क्योंकि भेदभाव कुछ कम जरूर हुआ है, लेकिन पूरी तरह से मिटा नहीं है.
ज्यादातर ट्रांसजेंडर आज भी रोजगार व शिक्षा जैसी जरूरतों के लिए संघर्षरत हैं. बहरहाल, कल्कि सुब्रमण्यम के रूप में उनके पास एक ऐसा पहिया मौजूद है, जिसकी मदद से वह अपनी जिदंगी की गाड़ी को हर पथरीली राह पर दौड़ा सकते हैं.
एमजी मोटर इंडिया (MG Motor India) एवं दी बेटर इंडिया (The Better India), यूएन विमेन (UN Women) के सहयोग से भारतीय महिलाओं के सम्मान का उत्सव मना रहा है, जो प्रत्येक दिन नए कीर्तिमान गढ़ रही हैं तो भारत को एक उन्नत भविष्य की ओर प्रभावी ढंग से अग्रसर कर रही हैं.
वस्तुतः हम सभी को, कल्कि सुब्रमण्यम जैसी हर भारतीय को सलाम करना चाहिए, जिन्होंने जिंदगी की कठिनाईयों को पार करते हुए खुद का जीवन संवारा. साथ ही एक ‘बेहतर इंडिया’ के लिए मिसाल बनीं.
ऐसे अभियानों को सपोर्ट करने के लिए आप यथासंभव दान कर सकते हैं. डोनेट करने के लिए इस लिंक पर जाएँ: https://milaap.org/fundraisers/mgchangemakers
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Web Title: Kalki Subramaniam, A True Changemakers Lady, Hindi Article
Feature Image Credit: sahodarifoundation