
सात बहनों के नाम से मशहूर पूर्वोत्तर के राज्यों की खूबसूरती का बखान करना उनका अपमान होगा.
वहां के मेहनती और खुशहाल लोगों से जुड़ी एक दिलचस्प बात आपने जरूर सुनी होगी कि वहां का समाज महिला प्रधान है.
कहते हैं, वहां महिलाओं की ही चलती है. वहां की औरतें ही घर की मुखिया होती हैं.
इसके बावजूद भी नॉर्थ-ईस्ट के कुछ हिस्सों में आज भी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार होता है.
नॉर्थ-ईस्ट की उन जगहों की ये सच्चाई सामने लाई हैं मोनिशा बहल. इतना ही नहीं उन्होंने इसे बदलने के लिए कई अहम कदम भी उठाए हैं. उनके कारण ही आज वहां महिलाओं और पुरुषों का समाज में एक जैसा दर्जा है.
एमजी मोटर इंडिया (MG Motor India) एवं दी बेटर इंडिया (The Better India), यूएन विमेन (UN Women) के सहयोग से अपनी चेंजमेकर कैम्पेन में ऐसी ही ‘साहसी महिलाओं’ को सामने ला रहा है, जिन्होंने अपने हौसले से समाज में एक बड़ा बदलाव लाया.
तो आइए जानते हैं मोनिशा बहल के इस सफर के बारे में–
गणित कभी रास नहीं आई!
मोनिशा का जन्म 15 सितंबर, 1951 में गुवाहाटी के तेजपुर में हुआ. उनकी माँ महिला तेजपुर समिति में काम किया करती थीं.
शुरुआती शिक्षा के बाद वह दार्जिलिंग के लोरेटो स्कूल में पढ़ने चली गईं. वहां उन्होंने बोर्डिंग स्कूल में रहकर पढ़ाई की.
मोनिशा को नंबरों की पढ़ाई समझ नहीं आती और वह लगातार इसमें फेल हो जाती थीं.
मोनिशा बताती हैं कि, जब बात मैथ्स की होती थी, तब उनका दिमाग तो जैसे सुन्न पड़ जाता था.
अपनी मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद उनका अगला गंतव्य बना दिल्ली. राजधानी के दिल्ली विश्वविद्यालय से उन्होंने बीए और राजनीति में एमए किया.
अपनी पढ़ाई को उन्होंने यहीं तक सीमित नहीं रखा बल्कि उसे और भी आगे बढ़ाया.
यूँ बढ़ता चला गया रिसर्च की ओर रुझान!
दिल्ली में अपनी पढ़ाई के दौरान उन्होंने नॉर्थ-ईस्ट के कल्चर, लाइफस्टाइल, धर्म आदि से जुड़ी ढेर सारी किताबें पढ़ीं.
यहीं से उनका रुझान अपने स्थान से जुड़ी जानकारी प्राप्त करने में बढ़ता चला गया. कब ये रुझान महिलाओं के मुद्दे पर आकर केन्द्रित हो गया, उन्हें पता ही नहीं चला.
एमफिल करने के लिए उन्होंने असम के प्रचलित धर्म ‘वैष्णव' के बारे में पढ़ना चाहा.
लिहाज़ा, जेएनयू में सोशियोलॉजी डिपार्टमेंट में उन्हें एडमिशन मिल गया और उन्होंने रिसर्च फील्ड में अपना काम शुरू किया.
जब, वीना मजूमदार से हुई मुलाकात!
एक दिन मोनिशा ने टीवी पर एक विज्ञापन देखा. उस विज्ञापन के जरिए उन्होंने पहली बार सेंटर फॉर वीमेन डेवलपमेंट स्टडीज (CWDS) के बारे में सुना. उस विज्ञापन को देखकर उन्हें बड़ी दिलचस्पी हुई संसथान से जुड़ीं वीना मजूमदार से मिलने की.
मोनिशा के पास न तो उनका फोन नंबर था और न ही एड्रेस, लेकिन वह फिर भी वीना से मिलना चाहती थीं.
हालांकि, बाद में वह पता ढूंढकर उनसे मिलने पहुँच ही गईं. मोनिशा ने वीना को बताया कि वह एथनोग्राफी करती हैं और उनके साथ जुड़ना चाहती हैं.
हालांकि, वीना ने उनसे कहा कि CWDS सिर्फ महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर ही काम करता है और वह उन्हें एथनोग्राफी के लिए नहीं रख सकते.
इस बात को सुनते ही वह थोड़ी हताश हो गईं. इसके बाद मोनिशा वहां से चली गईं.
कुछ ही दिनों बाद, मोनिशा के पास एक चिठ्ठी आई, जिसमें वीना ने खुद उन्हें मिलने बुलाया.
वह मजूमदार से मिलने उनके ऑफिस पहुंची. उन्होंने मोनिशा से असम की महिलाओं पर हो रही एक स्टडी में काम करने के लिए पूछा. ये बात सुनते ही मोनिशा ने तुरंत ही ‘हाँ’ कह दी.
जब, असमानता की खाई को करीब से देखा!
इस स्टडी को करने के लिए मोनिशा असम चली गईं. उन्होंने इससे पहले ऐसी कोई स्टडी नहीं की थी.
साल 1981-82 में स्टडी के दौरान वो समाज के एक डरावने चेहरे से रूबरू हुईं. जैसी छवि नॉर्थ-ईस्ट की लोगों के बीच थी, वह पूरी तरह से वैसा नहीं था.
उन्होंने देखा कि कैसे पुरुष महिलाओं को मजदूर और बुनकर की तरह इस्तेमाल करते थे. उनके द्वारा किये गए श्रम के बदले में उन्हें बहुत ही कम पैसे दिए जाते.
इस तरह महिला उद्यमियों के साथ हो रहे शोषण को देखकर वह भीतर तक प्रभावित हुईं. यहीं से उन्होंने समाज में व्याप्त असमानता की खाई को बड़े ही करीब से देखा.
मोनिशा चिंतित थीं कि आखिर क्यों नॉर्थ-ईस्ट की महिलाओं का दर्द कभी सामने नहीं आया? मोनिशा का मानना था कि यहाँ का समाज भी पुरुष प्रधान है, जिसकी मानसिकता बेहद भेदभावपूर्ण है.
वहां रहते हुए, वक्त के साथ उन्हें और भी कड़वी सच्चाईयां पता चलती गईं.
मैकआर्थर फेलोशिप बना वरदान!
मोनिशा मैकआर्थर फेलोशिप पाने में कामयाब रहीं. यह फेलोशिप उन लोगों को दी जाती है, जो समाज में कोई बड़ा बदलाव ला रहे हो, वह भी अपने दम पर.
फेलोशिप के सहारे उन्हें दो साल और नागालैंड में स्टडी करने का मौका मिला.
उन्होंने वहां नागा महिलाओं की सेहत की दशा पर रिसर्च की. इस दौरान उन्होंने नागालैंड के सात जिलों को कवर कर लिया था.
कहते हैं कि, जब वह नागालैंड के कोहिमा इलाके में रिसर्च करने जाती थीं, तब उनकी जान को भी खतरा होता था.
वहां के लोगों को यह नहीं पता था कि मोनिशा वहां रिसर्च के लिए आई हैं. यह उन्हें पता चल जाता, तो उनकी जान पर बन आती.
हालांकि, फिर भी उन्होंने अपनी रिसर्च जारी रखी.
चिजामी प्रोजेक्ट से मिला ‘बराबर अधिकार’!
साल 1995 में मोनिशा ने ‘नॉर्थ ईस्ट नेटवर्क’ की स्थापना की. इस नेटवर्क के तहत उन्होंने एक प्रोजेक्ट चलाया. दरअसल, वे नागालैंड के चिजामी गाँव की महिलाओं के सामूहिक हुनर से काफी प्रभावित हुई थीं.
महिला स्वास्थ्य पर केन्द्रित यह प्रोजेक्ट धीरे-धीरे महिला अधिकारों, पर्यावरण और लिंग समानता जैसे मुद्दों से भी जुड़ गया.
इसमें महिलाएं आर्गेनिक फार्मिंग, बम्बू क्राफ्ट आदि द्वारा स्वरोजगार के तरीके सीखती हैं.
आज इस प्रोजेक्ट में दस गांवों से करीब 300 महिलाएं जुड़ गयी हैं. अब यह और भी मजबूत हो गया है.
इसकी सफलता के कारण 2014 में वहां की गाँव समिति ने महिला और पुरुषों को श्रम के बदले में बराबर पैसे देने की बात कही.
धीरे-धीरे वहां पर भेदभाव थोड़ा कम होने लगा.
नॉर्थ-ईस्ट नेटवर्क (NEN) बना मील का पत्थर!
NEN पूर्वोत्तर के पहले संगठनों में से एक है, जो उदारवादी नारीवाद को महत्व देता है. यह संवाद और प्रसार के माध्यम से लिंग संबंधी मुद्दों को भी व्यक्त करता है.
NEN महिलाओं से जुड़े मुद्दों की वकालत के साथ सक्रियता को भी बराबर की जगह देता है.
यह नॉर्थ-ईस्ट की महिलाओं की दशा को मेनस्ट्रीम मीडिया में लाना चाहता है. इन्हीं मुद्दों को देश के सामने रखने वाली मोनिशा ने इस नेटवर्क की स्थापना की है.
इस संस्थान का उद्देश्य उत्तर-पूर्व के समाज को लिंग, न्याय, समानता और मानवाधिकार जैसे गंभीर मुद्दों के प्रति संवेदनशील बनाना है.
आज यह नेटवर्क बहुत बड़ा बन चुका है. इसके प्रभाव से छठी पंचवर्षीय योजना में महिलाओं के मुद्दों को अहमियत देते हुए नीतियां बनाई गईं.
मोनिशा बहल ने नॉर्थ-ईस्ट की बनावटी छवि को तोड़कर वहां की महिलाओं को एक बेहतर भविष्य का सपना दिखाया है.
एमजी मोटर इंडिया (MG Motor India) एवं दी बेटर इंडिया (The Better India), यूएन विमेन (UN Women) के सहयोग से भारतीय महिलाओं के सम्मान का उत्सव मना रहा है, जो प्रत्येक दिन नए कीर्तिमान गढ़ रही हैं तो भारत को एक उन्नत भविष्य की ओर प्रभावी ढंग से अग्रसर कर रही हैं.
ऐसे अभियानों को सपोर्ट करने के लिए आप यथासंभव दान कर सकते हैं. डोनेट करने के लिए इस लिंक पर जाएँ: https://milaap.org/fundraisers/mgchangemakers
एमजी मोटर इंडिया (MG Motor India) के बारे में और जानने के लिए आप इसके फेसबुक और इन्स्टाग्राम पेज पर जाएँ:
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Web Title: Monisha Behal: A Woman Who Broke The Beautiful Image of North-East India, Hindi Article
Feature Image Credit: thebetterindia