“जीत ही सब कुछ है”.
कई मौकों पर ये कहना गलत नहीं होगा. एक ऐसे शख्स के बारे में, जिसने अपनी हार के बाद भी जीत की आस नहीं छोड़ी और लड़ता रहा. वो लड़ता रहा, झगड़ता रहा, अपनी जीत के लिए.
आखिरकार, एशियाई खेलों में उसे वो मौका मिल ही गया, जब उसने हारी हुई बाजी अपने नाम कर ली.
जी हां! यहां बात हो रही है, हरियाणा के बॉक्सर अमित पंघाल की.
हाल ही में समाप्त हुए एशियाई खेलों में 22 साल के अमित पंघाल ने मुक्केबाजी लाइट फ्लाइवेट वर्ग के अंतर्गत गोल्ड जीता है. यही नहीं इन्होंने उज़्बेकिस्तान के रियो ओलंपिक 2016 के चैंपियन हसनबॉय दुस्मतोव को हराकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर दिखा दिया है कि हार को कैसे जीत में बदला जाता है.
क्या थीं इनके लिए चुनौतियां और कैसे अमित पंघाल रोर राइजिंग स्टार बने, आइए जानते हैं –
कम वजन का मुक्केबाज
16 अक्टूबर 1995 को हरियाणा के रोहतक जिले के मायना गांव में पैदा हुए अमित पंघाल को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि ये बड़ा होकर एक मुक्केबाज भी बन सकता है.
जब अमित ने मुक्केबाजी सीखनी शुरू की, तब उनका वजन मात्र 24 किलोग्राम ही था. ऐसे में ये तय नहीं था कि ये मुक्केबाजी में कुछ कमाल कर पाएंगे भी या नहीं.
वैसे इनके वजन का हाल आज भी कुछ ऐसा ही है. जन्म के समय भी इनका वजन केवल 1.5 किलोग्राम ही था. शायद समय से पहले ही इनका जन्म हो गया था, लेकिन इनकी मां इस बात से बहुत चिंतित रहती थीं कि इस बच्चे का भविष्य क्या होगा.
धीरे-धीरे अमित बड़े हुए तो उनके अंदर की प्रतिभा में निखार आने लगा. अमित को कभी नहीं लगा कि उनका कम वजन उनके उत्साह और इच्छाशक्ति को कहीं से भी कम करता है.
अमित के कोच ने भी उनकी इच्छाशक्ति को सलाम किया, जब रिंग में उतरने के बाद 2009 में अमित ने महाराष्ट्र के औरंगाबाद में हुई सब जूनियर नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड जीता.
2017 में जिससे हारे, उसी को हराया
अमित पंघाल 2017 की एशियन अमेच्यौर बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, हालांकि इसमें इन्हें कांस्य से ही संतोष करना पड़ा था. ऐसे में अमित को एशियाड में मिला ये गोल्ड एशियन अमेच्यौर बॉक्सिंग चैंपियनशिप का ही बदला है. इसमें उज़्बेकिस्तान हसनबॉय दुस्मतोव ने अमित पंघाल को हराकर गोल्ड जीता था.
वहीं, इसी साल वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भी अमित को हसनबॉय हसनबॉय दुस्मतोव से क्वॉर्टर फाइनल में हार का सामना करना पड़ा था और वह इस टूर्नामेंट से बाहर हो गए थे.
हसनबॉय दुस्मतोव इस वजन वर्ग में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाजों में से एक माने जाते हैं. हसनबॉय जाहिरतौर पर रियो ओलंपिक में मिली अपनी जीत को 2020 टोक्यो ओलंपिक में दोहराना चाहेंगे, लेकिन अब उनके सामने भारत का उभरता मुक्केबाज अमित पंघाल एक नया खतरा है, जो उसे चुनौती देगा.
अमित ने 2010 में चेन्नई में हुई सब जूनियर नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में रजत पदक जीता था. इसके एक साल बाद ही पूना में हुई इसी प्रतियोगिता में भी इन्होंने रजत पर पंच मारा.
अमित 2012 में पटियाला में आयोजित हुई 45वीं जूनियर बॉक्सिंग चैंपियनशिप में अपने राज्य का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. इसी साल इन्होंने विशाखापत्तनम में हुई पहली डॉ. बीआर अम्बेडकर अखिल भारतीय पुरुष मुक्केबाजी चैंपियनशिप में गोल्ड जीता था.
इसके बाद अमित ने फरवरी 2018 में सोफिया में हुए स्ट्रैंडजा कप में स्वर्ण पदक जीता था.
अमित 2018 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में लाइट फ्लाईवेट वर्ग में गोल्ड से चुक गए थे, जिसके बाद इन्हें रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा. इसके अलावा भी अमित पंघाल कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी प्रतियोगिताओं में सम्मान प्राप्त कर चुके हैं.
बॉक्सिंग ग्लब्स खरीदने तक के पैसे नहीं थे
बेहद साधारण किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले अमित पंघाल को अपने करियर के शुरुआती दिनों में आर्थिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ा था. इनके पिता के पास खेती लायक थोड़ी ही जमीन थी, जिस पर गेंहू और बाजरा उगाया जाता था. इसी से इनके घर-परिवार का गुजारा होता था.
अमित ने मुक्केबाजी सन 2008 से शुरू कर दी थी. इनके चाचा रोहतक के पास मुक्केबाजों को प्रशिक्षित किया करते थे. तब युवा अमित यहां अपने बड़े भाई के साथ शारीरिक फिटनेस के लिए आते थे.
बस यहीं से इन्हें मुक्केबाजी का शौक चढ़ा और दूसरों को देख अमित ने भी प्रशिक्षण शुरू कर दिया.
अमित के बड़े भाई अजय पंघाल भी एक मुक्केबाज बनना चाहते थे. उन्होंने इसकी तैयारी भी शुरू कर दी थी, लेकिन परिवार के आर्थिक हालात ठीक न होने के कारण इन्हें मुक्केबाजी छोड़नी पड़ी थी. बावजूद इसके उन्होंने अपने छोटे भाई के लिए ऐसी नौबत नहीं आने दी. बल्कि जब पूरा गांव इनकी जीत की खुशी मना रहा होता था, तब इनके पिता आगे जीत की तैयारियों में जुट जाते थे.
चूंकि इनके पास वित्तीय तंगी थी, इसलिए भविष्य के टूर्नामेंटों के लिए इन्हें अपने पड़ोसियों, नाते-रिश्तेदारों से पैसों को जुगाड़ करना पड़ता था. हालांकि, इस दौरान कई बार ऐसे मौके भी आए जब इन्होंने कई महीनों तक बिना ग्लब्स के मुक्केबाजी की प्रेक्टिस की. इनके पास बॉक्सिंग ग्लब्स खरीदने तक के पैसे नहीं थे.
बड़ा भाई सेना में भर्ती हो गया और फिर अपने भाई की राह पर चलते हुए अमित ने भी भारतीय सेना ज्वॉइन कर ली. मार्च 2018 से ही अमित पंघाल सेना में जूनियर कमीशंड ऑफिसर के पद पर तैनात हैं. यहां से इनके मुक्केबाजी के जज्बे को और भी प्रोत्साहन मिला.
बहरहाल, अमित की मुक्केबाजी सीखने के प्रति ललक ही थी कि इन्होंने कभी भी वित्तीय तंगी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया और खेल की प्रेक्टिस में लगे रहे.
झेल चुके हैं बैन का दंश
सन 2012 में एनाबॉलिक स्टेरॉयड लेने के सकारात्मक परीक्षण के बाद अमित को दो साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था. हालांकि बाद में उन्होंने प्रतिबंध के खिलाफ अपील की और इस प्रतिबंध को एक साल के लिए कम कराने में सफल रहे.
बहरहाल, इस दौरान बैन के कारण इन्हें तैयारी का पूरा समय मिला था और इन्होंने इस समय का सदुपयोग भी किया. लगभग डेढ़ साल तक इन्होंने अपने शरीर को मजबूती दी और मुक्केबाजी के हुनर को बढ़ाया.
एशियाड में गोल्ड पर पंच मारने के बाद अब अमित की नजरें टोक्यो ओलंपिक पर हैं. हालांकि 2020 टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने के लिए अमित को 52 किलोग्राम भार वर्ग की टिकट हासिल करनी होगी.
वैसे, अमित देखने में तो बहुत ही पतले-दुबले हैं, लेकिन इनके भीतर की इच्छाशक्ति जीत के लिए दहाड़े मारती है. और इन्हें बनाती है आदर्श, ऐसे लोगों का जो अपनी परेशानियों के कारण अपने आपको और अपनी किस्मत को कोसते हैं.
इन्होंने अपनी जीत के साथ बताया है कि चुनौतियों से लड़कर जो जीतता है, वही कहलाता है रोर राइजिंग स्टार.
Web Title: Amit Panghal: India's First Boxing Gold Winner in 2018 Asiad, Hindi Article
Featured Image Credit: dinamani