आज हम एक ऐसी लड़की की बात करने जा रहे हैं, जो कभी सड़कों पर दौड़ती थी.
पैरों में 12 उंगलियां थीं, बावजूद इसके वो भागती थी, क्योंकि उसके पैर उसको ये ऐहसास कराते कि वो एक खास मकसद से पैदा हुई है. इसलिए उसने कभी दौड़ना बंद नहीं किया.
वह तब भी दौड़ती रही, जब उसके पास पहनने के लिए जूते तक नहीं थे. और तब भी जब उसके दोस्तों ने उसे नकार दिया. ये कहकर कि वो जीत सकती, लेकिन उसने हार नहीं मानी.
आखिरकार उसने सभी चुनौतियों से लड़ते हुए 18वें एशियाई खेलों में हेप्टाथलॉन में स्वर्ण पदक जीता.
जी हां! इस 12 उंगलियों वाली गोल्डन गर्ल का नाम है स्वप्ना बर्मन.
इस जीत के साथ ही स्वप्ना एशियन गेम्स हेप्टाथलॉन में गोल्ड जीतने वाली भारत की पहली महिला बन गई हैं.
ऐसे में आइए एक बार स्वप्ना बर्मन के इस सफर पर नजर डाल लेते हैं –
दोस्तों तक ने नकारा
स्वप्ना अपनी ट्रेनिंग के दिनों में नकारात्मक लोगों से घिरी हुई थीं. यहां तक कि उनके दोस्तों तक ने उन्हें नकार दिया था.
कैंप के दौरान दोस्तों ने इनका मनोबल तोड़ने की बहुत कोशिश की. उनके मुताबिक वह पदक नहीं जीत सकती थीं, इन सबके बावजूद इन्होंने हार नहीं मानी.
हां, ये बात सच है कि इस दौरान इन्हें कई बार चोटों का सामना करना पड़ा. इनके दोस्त कहते थे कि “इसको लेकर जाएंगे तो क्या मिलेगा? ये पदक ला सकती है क्या?”
स्वप्ना के लिए ये दौर इतना सहन करने योग्य नहीं था. उन्होंने कई बार ये विचार बनाया भी कि वह घर चली जाएं.
दोस्तों की बातों को याद कर वह कई रात रोती रहीं.
स्वप्ना को ऐसे नकारात्मक लोगों के बीच सकारात्मकता को बरकरार रखते हुए अपने लिए जीत चुननी थी. और उन्होंने ऐसा किया भी.
प्रत्येक पैर में 6 उंगलियों से इन्हें दौड़ने में भी परेशानी होती थी. असल में ऐसा कोई भी जूता इनके लिहाज से नहीं बना था, जिसे पहनकर इन्हें होने वाली दिक्कतों से राहत मिल सके.
वहीं, ट्रेनिंग के दौरान टखने में चोट लगी, और एशियाड से पहले दांत में दर्द हो गया. इसके बावजूद भी इन्होंने ट्रेनिंग नहीं छोड़ी और डटी रहीं.
चौथी क्लास से शुरू की ट्रेनिंग
स्वप्ना बर्मन जब चौथी क्लास में थीं, तभी उनकी प्रतिभा ने ये दिखा दिया था कि वह एक दिन बड़ी एथलीट बनेंगी. स्वप्ना में इस खूबी को पहचाना सुकांत सिन्हा ने. इसके बाद से ही उन्होंने स्वप्ना को ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी.
सुकांत 2006 से 2013 तक स्वप्ना के कोच रहे.
इनके घर में समस्याओं का अंबार लगा हुआ था. परिवार बेहद गरीब था, गांव उजड़ा हुआ, जहां ढंग की सड़कें भी नहीं थीं. घर की माली खराब होने के कारण इनके पिता पंचन बर्मन रिक्शा चलाते थे.
बहरहाल, जैसे-तैसे घर का गुजारा होता था. और ऊपर से स्वप्ना के पैरों में 12 उंगलियां, जिस कारण ट्रेनिंग के दौरान इनके जूते अक्सर फट जाया करते थे. वहीं, ट्रेनिंग का खर्च उठाना भी मुश्किल हो जाता था.
अपनी समस्याओं को लेकर स्वप्ना ने किसी से कोई शिकायत नहीं की.
और आज इसी कठोर परिश्रम का नतीजा है कि स्वप्ना एशियाड के हेप्टाथलॉन में गोल्ड जीतने वाली भारत की पहली महिला बनीं.
हेप्टाथलॉन प्रतियोगिता में किसी एथलीट को कुल मिलाकर 7 प्रकार के ट्रैक और फील्ड में हिस्सा लेना होता है. महिलाओं के लिए हेप्टाथलॉन में 100 मीटर की तेज दौड़, ऊंची कूद, शॉट पुट, 200 मीटर की दौड़,
लंबी कूद, जेवलिन थ्रो, और आखिर में 800 मीटर की दौड़ होती हैं. इन सभी खेलों में प्राप्त अंकों के आधार पर विजेता घोषित किया जाता है.
इन सातों प्रतिस्पर्धाओं में स्वप्ना ने कुल 6026 अंक प्राप्त किए, जो और एथलीट के मुकाबले सबसे ज्यादा थे.
राहुल द्रविड़ के फाउंडेशन ने की मदद
पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में 29 अक्टूबर 1996 को पैरों में 12 उंगलियों के साथ स्वप्ना बर्मन का जन्म हुआ. परिवार की गरीबी ने मां को काम करने पर मजबूर किया.
इधर स्वप्ना बर्मन एक एथलीट बनने का ख्वाब देख रही थीं. बहरहाल, मौका मिला तो इन्होंने उसे खूब भुनाया भी.
शायद इसी का परिणाम था कि 2016 में इन्हें 'ग्रेट स्पोर्ट्स इन्फ्रा' (जीएसआई) की ओर से डेढ़ लाख रुपए की स्कॉलरशिप मिली, तब जाकर इन्हें ये यकीन हुआ कि अब वह एक एथलीट बनने की राह पर आ चुकी हैं.
राहुल द्रविड़ के 'गोस्पोर्ट्स फाउंडेशन' के एथलीट मेंटरशिप प्रोग्राम के तहत जीएसआई ये स्कॉलरशिप प्रदान करती है. राहुल द्रविड़ का 'गोस्पोर्ट्स फाउंडेशन' ऐसे उच्च क्षमता वाले एथलीटों की पहचान कर उन्हें करियर के लिए आवश्यक सलाह देने का काम करता है.
इंचियोन एशियाड में नहीं जीत सकी थीं पदक
स्वप्ना बर्मन ने एक ऊंची कूद खिलाड़ी के तौर पर खेल की शुरूआत की थी. उन्हें इसका चस्का बड़े भाई अमित बर्मन को खेलता देख कर लगा. इसके बाद इनके पिता ने इन्हें प्रोत्साहित किया.
स्वप्ना 15 साल की उम्र में 21 मई 2012 को कलकत्ता के साई सेंटर में प्रशिक्षण लेने के लिए आईं. इनकी मां इन्हें हॉस्टल तक छोड़कर गईं. रो-रो कर इनका बुरा हाल था, हो भी क्यों न पूरा परिवार जो पीछे छूट रहा था.
बावजूद इसके इन्होंने खुद को संभाला और आने वाली चुनौतियों के लिए खुद को तैयार किया. इसके बाद से इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. अपनी सभी समस्याओं को इन्होंने जैसे अनदेखा कर दिया.
स्वप्ना बर्मन ने 2017 में कलिंग स्टेडियम भुवनेश्वर में हुई एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में हेप्टाथलॉन प्रतियोगिता में सोना जीता था. इसके बाद इसी साल इन्होंने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में हुए पटियाला फैडरेशन कप में हेप्टाथलॉन प्रतियोगिता में दोबारा से स्वर्ण जीता.
इससे पहले, दक्षिण कोरिया के इंचियोन में 2014 के एशियन गेम्स में स्वप्ना बर्मन कोई भी पदक नहीं जीत सकीं. इस प्रतियोगिता में इन्हें 5वां स्थान प्राप्त हुआ था.
स्वप्ना बर्मन एक ऐसे परिवार से आती हैं, जहां घर में पक्की दीवार तक नहीं है. स्वप्ना किसी अमीर घर में पैदा नहीं हुईं, और अगर होतीं तो शायद वो ये स्वप्ना बर्मन न बन पातीं.
जीत के लिए इनकी मेहनत और मजबूरियों के आगे दम न तोड़ने वाली इनकी हिम्मत ही इन्हें ‘रोर राइजिंग स्टार’ बनाती है.
Web Title: Asiad Golden Heptathlon Girl Swapna Barman, Hindi Article
Featured Image Credit: mykhel